Showing posts with label स्वास्थ्य. Show all posts
Showing posts with label स्वास्थ्य. Show all posts

Friday, 6 April 2018

पीपल का पेड़ और ऑक्सीजन का मिथ


स्कन्द शुक्ला 
"पीपल के पेड़ के विषय में यह भ्रामक बात कैसे फैल गयी कि वह रात में ऑक्सीजन छोड़ता है ?"

"इसका कारण ऑक्सीजन और पीपल , दोनों को ढंग से न समझना है।"
"कैसे समझा जाए ?"
"पेड़-पौधे जानवरों की ही तरह साँस चौबीस घण्टे लेते हैं। इस क्रिया में वे ऑक्सीजन वायुमण्डल से लेते हैं और कार्बनडायऑक्साइड छोड़ते हैं। लेकिन वे सूर्य के प्रकाश में एक और महत्त्वपूर्ण क्रिया करते हैं , जिसे प्रकाश-संश्लेषण कहा जाता है। इस क्रिया में वे अपना ग्लूकोज़ स्वयं बनाते हैं वायुमण्डल की कार्बनडायऑक्साइड और जलवाष्प को लेकर। इस काम में उनका हरा रंजक क्लोरोफ़िल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और सूर्य का प्रकाश भी। इसी प्रकाश-संश्लेषण के दौरान ग्लूकोज़ के साथ ऑक्सीजन बनती है , जिसे वायुमण्डल में वापस छोड़ दिया जाता है।"
"यानी अगर पौधा या पेड़ हरा न हो और प्रकाश न हो , तो प्रकाश-संश्लेषण होगा नहीं।"
"बिलकुल नहीं।"
"तो ग्लूकोज़ और ऑक्सीजन बनेंगे नहीं।"
"नहीं। ज़ाहिर है रात में जब प्रकाश न के बराबर रहता है , तो यह काम प्रचुरता से होने से रहा। पीपल और उस जैसे कई अन्य पेड़-पौधे कुछ और काम करते हैं , जिसे लोग ढंग से समझ नहीं पाये।"
"क्या ?"
"पीपल का पेड़ शुष्क वातावरण में पनपता है और इसके लिए उसकी देह में पर्याप्त तैयारियाँ हैं। पेड़-पौधों की सतह पर स्टोमेटा नामक नन्हें छिद्र होते हैं जिनसे गैसों और जलवाष्प का लेन-देन होता है। सूखे गर्म माहौल में पेड़ का पानी न निचुड़ जाए , इसलिए पीपल दिन में अपेक्षाकृत अपने स्टोमेटा बन्द करके रखता है।"
"इससे दिन में पानी की कमी से वह लड़ पाता है।"
"बिलकुल। लेकिन इसका नुकसान यह है कि फिर दिन में प्रकाश-संश्लेषण के लिए कार्बन-डायऑक्साइड उसकी पत्तियों में कैसे प्रवेश करे ? स्टोमेटा तो बन्द हैं। तो फिर प्रकाश-संश्लेषण कैसे हो ? ग्लूकोज़ कैसे बने ?"
"तो ?"
"तो पीपल व उसके जैसे कई पेड़-पौधे रात को अपने स्टोमेटा खोलते हैं और हवा से कार्बन-डायऑक्साइड बटोरते हैं। उससे मैलेट नामक एक रसायन बनाकर रख लेते हैं। ताकि फिर आगे दिन में जब सूरज चमके और प्रकाश मिले , तो प्रकाश-संश्लेषण में सीधे वायुमण्डलीय कार्बन-डायऑक्साइड की जगह इस मैलेट का प्रयोग कर सकें।"
"यानी पीपल का पेड़ रात को भी कार्बन-डायऑक्साइड-शोषक है।"
"बिलकुल है। और वह अकेला नहीं है। कई हैं उस जैसे। ज़्यादातर रेगिस्तानी पौधे यही करते हैं। अरीका पाम , नीम , स्नेक प्लांट , ऑर्किड , तुलसी और कई अन्य। रात को कार्बनडायऑक्साइड लेकर उसे मैलेट बनाकर आगे प्रकाश-संश्लेषण के लिए इस्तेमाल करने की यह प्रक्रिया CAM मार्ग ( क्रासुलेसियन पाथवे ) के नाम से पादप-विज्ञान में जानी जाती है।"
"तो पीपल रात को ऑक्सीजन नहीं छोड़ता , वह वायुमण्डल से कार्बनडायऑक्साइड बटोरता है ताकि दिन में अपनी जल-हानि से बच सके।"
"यही।"


Wednesday, 4 April 2018

ऑक्सीजन के निर्माण का सच


स्कन्द शुक्ला 
"कई लोग ऐसा क्यों सोच लेते हैं कि पेड़-पौधे रात को ऑक्सीजन छोड़ सकते हैं ?"
"क्योंकि ये लोग यह नहीं जानते कि ऑक्सीजन का निर्माण बिना प्रकाश के करना लगभग किसी जीव के वश का नहीं।"
"आपने 'लगभग' क्यों लगाया ?"
"क्योंकि डच वैज्ञानिकों ने गहरे समुद्र में कुछ ऐसे जीवाणुओं का पता लगाया है , जो अन्धकार में भी ऑक्सीजन बनाते और छोड़ते हैं। ऑक्सीजन-निर्माण में ये जीवाणु नाइट्राइट रसायनों का इस्तेमाल करते हैं।"
"कैसे ?"
"नाइट्राइट की संरचना देखेंगे , तो पाएँगे कि उसमें ऑक्सीजन है। जीवाणु उसे रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा मुक्त कर देते हैं।"
"यह खोज कैसे महत्त्वपूर्ण हुई हमारे लिए ?"
"यह खोज दो जानकारियों के अपवाद प्रस्तुत करती है। पहली जानकारी यह कि बिना प्रकाश के ऑक्सीजन पौधे बना ही नहीं सकते। यह सत्य है कि 'पौधे' नहीं बना सकते , क्योंकि जीवाणु पौधे नहीं हैं। वे प्रोकैर्या कहलाते हैं। लेकिन कोई नहीं बना सकता , यह अतिवाद है। इन जीवाणुओं ने समुद्र के गहरे अँधेरे में ऑक्सीजन को बनाया और छोड़ा है।"
"और दूसरा अपवाद ?"
"दूसरी जानकारी यह है कि ऑक्सीजन प्रकाश में भी पेड़-पौधे तभी बना सकेंगे , जब उनमें पर्णहरित यानी क्लोरोफ़िल होगा। लेकिन इन जीवाणुओं में कोई हरियाली नहीं। फिर भी इन्होंने ऑक्सीजन बना डाली। इसका अर्थ यह कि अँधकार में हुआ यह ऑक्सीजन-निर्माण दोनों महत्त्वपूर्ण घटकों प्रकाश और क्लोरोफ़िल की अनिवार्यता को भंग करता है।"
"इसका सम्पूर्ण आशय हमारे लिए क्या हुआ ?"
"इसका अर्थ यह निकालिए कि जब इस धरती पर कोई जानवर तो जानवर , हरा पेड़-पौधा भी न था , तो ऑक्सीजन कैसे बनी होगी। जानवर-पेड़-पौधे यों ही नहीं पैदा हो गये , उनके होने के लिए हालात पहले बने। हालात किसने बनाये ? पेड़-पौधों ने ऑक्सीजन हमें दी , आज भी दे रहे हैं। लेकिन धरती पर बनी पहली ऑक्सीजन उन्होंने नहीं बनायी। कारण कि वे ऑक्सीजन छोड़ते तो हैं , लेकिन स्वयं प्रयोग में भी लाते हैं। तो वे जीव ऑक्सीजन के पहले निर्माता रहे होंगे , जिन्होंने ऑक्सीजन केवल छोड़ी , किन्तु इस्तेमाल नहीं की।"
"यानी ऑक्सीजन उनके लिए अपशिष्ट थी।"
"यही। उन जीवाणुओं ने हमारी धरती को इस लायक बनाया कि इस पर हरियाली उग सके। फिर उनका ऑक्सीजन-निर्माणक-उत्तरदायित्व हरे पेड़-पौधों ने ले लिया।"
"आज भी उन एककोशिकीय पुरखों के वंशज गहरे समुद्र में मिलते हैं।"
"हाँ। विज्ञान किसी जीव के जन्म से पहले उसके अनुकूल पर्यावरण की बात करता है। वह यह नहीं कहता कि जीव सीधे अचानक उपज गया। जन्म के पहले हवा-पानी-मिट्टी उसके अनुकूल न होते , तो क्या जीव जन्मता ? क्या मनुष्य यों ही पैदा हो गया ? या कोई पौधा ? या कोई भी जानवर या पेड़ ? नहीं। पहले इन सब के लिए माहौल बना।"
"और इन्हीं माहौल बनाने वाले जीवाणुओं के बारे में हम नहीं जानते।"
"क्योंकि हम बहुत स्थूल और आत्मकेन्द्री सोच वाले लोग हैं।"

( चित्र में गहरे समुद्र का एक गर्म गीज़र। ऐसे ही गीज़रों में ऑक्सीजन का निर्माण पहले-पहल धरती पर हुआ होगा। ) 



चक्कर आने का क्या मतलब है ?


स्कन्द शुक्ला 
जब आप कहते हैं कि मुझे चक्कर आ रहा है , तो डॉक्टर जानना चाहते हैं कि चक्कर आने से आपका मतलब क्या है।
चक्कर आना , जिसे अँगरेज़ी में वर्टाइगो कहा गया है , कई बार स्पष्ट रूप से रोगी समझकर बता नहीं पाते। ऐसे में रोग को ठीक से पकड़ने में और उसके उपचार में समस्या आती है। कुछ बातों को ध्यान में रखकर वर्टाइगो को बेहतर समझा जा सकता है।
चक्कर आने का अर्थ अगर आँखों के आगे अँधेरा छाना और गिर पड़ने की स्थिति है , तो अमूमन यह हृदय के पम्प-कार्य या ख़ून के संचार से सम्बन्धित मामला है। इसे अँगरेज़ी में सिनकपी या नियर सिनकपी कहा गया है। बहुधा ऐसा खड़े होने पर ही अधिक होता है। ठीक से ख़ून मस्तिष्क में नहीं पहुँच पा रहा। ऐसा कई बीमारियों में हो सकता है , जिन्हें हृदयरोग विशेषज्ञ जाँचों के द्वारा पहचान सकते हैं। 
चक्कर की दूसरी स्थिति रोगी का असन्तुलित होने लगना है। इसे डिसइक्विलिब्रियम कहा गया है। ऐसा होने से उसके गिरने और चोटिल होने की आशंका रहती है। असन्तुलन पैदा करने वाले रोग अमूमन मस्तिष्क के होते हैं और उन्हें न्यूरोलॉजिस्ट देखते हैं।
चक्कर की तीसरी बिरादरी शुद्ध वर्टाइगो है , जिसमें रोगी को लगता है कि उसके आसपास की चीज़ें घूम रही हैं और ऐसा होने से वह गिर पड़ेगा। यह लक्षण जिन रोगों में मिलता है , उन्हें नाक-कान-गला-रोगों के विशेषज्ञ देखते हैं।
चक्कर का चौथा प्रकार जो इन तीनों से अलग है , वह मानसिक है। वह इन सभी से भिन्न है और उसे मनोचिकित्सक द्वारा ठीक किया जाता है।
प्रयास करें कि अपने लक्षणों को और बेहतर समझें और डॉक्टर को उनसे और बेहतर अवगत कराएँ , ताकि आपके रोग की सही पहचान हो सके। लक्षणों की विस्तृत समझ बीमारी को जानने में बड़ी भूमिका निभाती है।
चक्कर आने की स्थिति में डॉक्टर रोगियों से कई बार आहार में कुछ बदलाव करने को कहते हैं। साथ ही उन्हें कुछ व्यायाम भी बताते हैं। नशे व तनाव से मुक्ति और अच्छी नींद की भी इसमें बड़ी भूमिका होती है। चक्कर की स्थिति में रोगियों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें किसी भी तरह चोट न लगे। वाहन चलाते समय ऐसा कई बार हो जाता है ; ऐसे में बेहतर है कि ड्राविंग से परहेज़ किया जाए।