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Friday, 14 December 2012

ऊर्जा संसाधनों का हो संतुलित इस्तेमाल

ऊर्जा संरक्षण दिवस
प्रियंका शर्मा द्विवेदी
Rashtriya Sahara
अपने  देश की ऊर्जा जरूरतों की मांग और आपूर्ति में बहुत बड़ा अंतर है। देश में बिजली संकट लगातार गहराता जा रहा है। पिछले दिनों नार्दर्न और ईस्टर्न ग्रिड फेल होने से देश में अभूतपूर्व बिजली संकट पैदा हो गया था। देश के 21 राज्यों में पावर सप्लाई ठप पड़ गई और लगभग 70 करोड़ लोग प्रभावित हुए। देश में मेट्रो और रेल सेवाएं पूरी तरह ठप पड़ गयी थी। ट्रेनें पटरियों पर खड़ी रह गई थीं। यह विकसित होते भारत के लिए खतरनाक संकेत थे। इस संकट ने कई बड़े सवाल खड़े कर दिए। वास्तव में अगर इस समय बिजली संकट को गंभीरता से नहीं लिया गया तो यह भारत के विकास के लिए सबसे बड़ा अभिशाप सिद्ध हो सकता है क्योंकि तरक्की का रास्ता ऊर्जा से ही होकर जाता है । भारत में 22 हजार मेगावाट बिजली इसलिए नहीं बन पा रही है, क्योंकि उसके लिए पर्याप्त मात्रा में ईधन नहीं है। वहीं, देश के अधिकांश हिस्से बिजली की भारी कमी से दो- चार हैं। पूरा बिजली क्षेत्र जबरदस्त संकट से गुजर रहा है। नई बिजली परियोजनाओं को कोयला लिंकेज नहीं मिल रहे हैं। जिन बिजली प्लांट को लिंकेज मिले भी हैं, उन्हें पर्याप्त कोयला नहीं मिल पा रहा है। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप के बावजूद स्थिति नहीं सुधर रही। देश में 86 बिजलीघरों में कोयले को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। उद्योग संगठन फिक्की के अनुसार कोयला आपूर्ति में बाधा नहीं दूर की गई तो देश की बिजली इकाइयों के सामने बंदी का संकट पैदा हो सकता है। यह जल्दी ही आने वाले बिजली संकट का संकेत है। जो देश के विकास को सीधे प्रभावित करेगा । इसलिए अब वैकल्पिक ऊर्जा स्रेतों पर गंभीरता से विचार करते हुए ऊर्जा बचत के लिए जरूरी उपाय अपनाने पड़ेंगे। इस मायने में सूर्य से प्राप्त सौर ऊर्जा अत्यंत महत्वपूर्ण विकल्प है। सौर ऊर्जा प्रदूषण रहित, निर्बाध गति से मिलने वाला सबसे सुरक्षित ऊर्जा स्रेत है। अपने देश में यह लगभग बारह मास उपलब्ध है। सौर ऊर्जा को ‘फोटोवोल्टिक सेल’ द्वारा विद्युत में परिवर्तित करने की तकनीक अब देश में उपलब्ध है। यह तकनीक अभी जलविद्युत और थर्मल ऊर्जा से कुछ महंगी जरूर है, लेकिन औद्योगिक स्तर पर उत्पादन होने पर इसकी कीमत कम हो जाएगी। अनुसंधान द्वारा ‘फोटोवोल्टिक सेल’ की कार्यक्षमता बढ़ाए जाने की भी संभावना है। सौर ऊर्जा को उन्नत करने के लिए हमें अपने संसाधनों का उपयोग करना चाहिए। ऊर्जा के मामले में दूसरों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। अपनी तकनीक और संसाधनों का उपयोग कर आत्मनिर्भरता हासिल करनी ही होगा। यह दु:ख का विषय है कि हमने सौर ऊर्जा के उपयोग पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। परिस्थितियां विषम होने के कारण हमें सभी उपलब्ध अक्षय ऊर्जा विकल्पों पर विचार करना होगा। इसके साथ ही ऊर्जा संरक्षण के व्यावहारिक कदमों को अपनाना होगा ताकि बड़े पैमाने पर बिजली की बचत हो सके। घरों में पानी की टंकियो में पानी पहुंचाने के लिए टाइमर का उपयोग करके पानी का अपव्यय रोककर विद्युत ऊर्जा की बचत की जा सकती है। साधारण सौ वाट के बल्ब के स्थान पर सीएलएफ का प्रयोग कर 75 से 80 प्रतिशत तक ऊर्जा की बचत की जा सकती है। यह साधारण बल्ब की तुलना में लगभग आठ गुना चलती है। घर और सरकारी कार्यालयों में आईएसआई चिह्नित विद्युत उपकरणों का इस्तेमाल जरूरी है और इसके लिए बकायदा कानून होना चाहिए। हर जाति, धर्म और संप्रदाय में शादी-विवाह जैसे सामाजिकधािर्मक आयोजन यथासंभव दिन में ही संपन्न करने के लिए लोगों को जागरूक किया जा सकता है। भवन के निर्माण के दौरान प्लॉट के चारों तरफ मौजूद भू-भाग को पेड़ो-लताओं से आच्छादित करके हम भवनों को गर्म होने से बचा सकते हैं ताकि एसी, कूलर या सीलिंग फैन इत्यादि का कम से कम उपयोग हो । कमरे की दीवार की भीतरी सतह पर हलके रंगों का प्रयोग करें। इससे कम वाट के प्रकाश उपकरणों से कमरे को यथोचित रोशन किया जा सकता है। खाना बनाने के लिए सोलर कुकर व पानी गर्म करने के लिए गीजर के स्थान पर सोलर वाटर हीटर का उपयोग कर हम विद्युत ऊर्जा संरक्षण कर राष्ट्रहित में भागीदार बन सकते हैं। यदि गीजर का उपयोग करें तो इसे न्यूनतम समय तक उपयोग में लायें।इसके लिए थर्मोस्टेट एवं टाइमर के तापमान की सेटिंग का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। ये कुछ ऐसे उपाय हैं जिनका प्रयोग करके ऊर्जा की बचत की जा सकती है । देश की बढ़ती आबादी के उपयोग के लिए और विकास को गति देने के लिए हमारी ऊर्जा की मांग भी बढ़ रही है। लेकिन उत्पादन में आशातीत बढ़ोत्तरी नहीं हो पा रही है। पुरानी बिजली परियोजनाएं कभी पूरा उत्पादन कर नहीं पाईं और नई परियोजनाओं के लिए स्थितियां दूभर सी हैं। खतरा देश की तरक्की की रफ्तार के प्रभावित होने का है। बिजली के इस संकट को अगर अभी दूर नहीं किया गया तो भविष्य संकटमय साबित होगा । दुर्भाग्यवश खनिज तेल पेट्रोलियम, गैस, उत्तम गुणवत्ता के कोयले जैसे प्राकृतिक संसाधन हमारे यहां बहुत सीमित हैं। हमें बड़ी मात्रा में पेट्रो पदार्थ आयात करना पड़ता है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार यदि एक बैरल कच्चे तेल की कीमत में एक डॉलर की वृद्धि होती है तो भारत के तेल आयात बिल में 425 मिलियन डॉलर का अतिरिक्त व्यय जुड़ जाता है अर्थात तेल की कीमतों में वृद्धि का सीधा असर हमारे मुद्रा भंडार पर पड़ता है। तेल कीमतों का उतार-चढ़ाव घरेलू और बाहरी दोनों मोचरे को प्रभावित करेगा। तेल के बाद कोयला हमारे ऊर्जा भंडार की महत्त्वपूर्ण इकाई है। तेल और कोयला दोनों जीवाश्म ईंधन हैं लेकिन इनके सीमित भंडार के कारण ऊर्जा का संरक्षण वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। ऊर्जा की बचत बिना हम विकसित राष्ट्र का सपना नहीं देख सकते । ऊर्जा बचत के उपायों को शीघ्रतापूर्वक और सख्ती से अमल में लाए जाने की जरूरत है। इसमें हर नागरिक की भागीदारी होनी चाहिए। छोटे स्तर की बचत भी कारगर होगी क्योंकि बूंद-बूंद से ही सागर भरता है। जब हम ऊर्जा के साधनों का इस्तेमाल सोच-समझकर और मितव्ययता से करेंगे, तभी यह भविष्य तक रह पाएंगे। अंतत: देश का प्रत्येक नागरिक इस दिशा में जागरूक हो, हर संभव ऊर्जा बचत करें तथा औरों को भी इसका महत्व बताएं।
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Tuesday, 15 May 2012

प्रौद्योगिकी विकास की राह


प्रौद्योगिकी विकास की राह पर हम
प्रियंका शर्मा द्विवेदी

आज का दिन प्रौद्योगिकी के लिहाज से हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन 1998 में पोकरण में दूसरा सफल परमाणु परीक्षण किया गया था। तभी से हर साल 11 मई का दिन राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। पोकरण परीक्षण निश्चित रूप से हमारी बड़ी तकनीकी क्षमता को दर्शाता है। इस दिन हमने न केवल अपनी उच्च प्रौद्योगिक प्रगति का प्रदर्शन किया, बल्कि किसी को कानों-कान इस परीक्षण की भनक तक नहीं लगने दी। अपने उपग्रहों से पूरी दुनिया पर नजर रखने वाला अमेरिका भी गच्चा खा गया था।
प्रौद्योगिकी विकास की इसी कड़ी में पिछले दिनों हमने सुदृढ़ स्वदेशी प्रौद्योगिकी का परिचय देते हुए इंटर कांटीनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) अग्नि-5 और देश का पहला स्वदेश निर्मित रडार इमेजिंग उपग्रह (रीसैट-1) का सफल प्रक्षेपण किया। जाहिर है, हमारा देश स्वदेशी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रक्षा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। अग्नि-5 के सफल परीक्षण के साथ विश्व में भारत के स्वदेशी मिसाइल कार्यक्रम की धाक जम गई है। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन के बाद भारत आईसीबीएम मिसाइल तैयार करने वाला छठा देश बन चुका है। यह मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटेबल रिएंट्री ह्वीकल (एमआरटीआरवी) से लैस है, जिसकी मारक क्षमता के दायरे में लगभग आधी दुनिया है। यह देश का पहला कैनिस्टर्ड मिसाइल है, जिसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना आसान है। दुनिया भर से मिली प्रतिक्रिया से जाहिर है कि हमने एक बड़ी कामयाबी हासिल की है, क्योंकि यह मिसाइल 80 फीसदी से अधिक स्वदेशी प्रौद्योगिकी और उपकरणों से सज्जित है।
रीसैट-1 इसरो का पहला स्वदेशी रडार इमेजिंग सैटेलाइट है, जो हर तरह के मौसम, बारिश, तेज गरमी, कोहरे और चक्रवात में भी तसवीरें लेने में सक्षम है। हमारे लिए यह एक बड़ी कामयाबी है, क्योंकि अभी तक हम कनाडियाई उपग्रह से ली गई तसवीरों पर निर्भर हैं। इससे पहले उपग्रहों के महत्वपूर्ण घटक सिंथेटिक अपरचर रडार (एसएआर) का आयात किया गया था, मगर रीसैट-1 में लगने वाले एसएआर का विकास भारत में किया गया है। रीसैट-1 अन्य दूरसंवेदी उपग्रहों की तुलना में उन्नत व जटिल है। इसीलिए इसका इसका वजन 1,850 किलोग्राम है और यह सबसे वजनी माइक्रोवेव उपग्रह है। इससे देश की निगरानी क्षमता काफी बढ़ जाएगी। इसका उपयोग आपदाओं की भविष्यवाणी, प्रबंधन, फसलों की पैदावार और रक्षा क्षेत्र में किया जाएगा। इसरो के प्रक्षेपण वाहन पीएसएलवीने रीसैट-1 के प्रक्षेपण के साथ 20 सफल उड़ानें पूरी कर अपनी विश्वसनीयता स्थापित की है। इसरो द्वारा प्रक्षेपित यह अब तक का सबसे भारी उपग्रह है, जो उसके करीब 10 वर्षों के प्रयासों का प्रतिफल है।
प्रौद्योगिकी मोरचे पर इस कामयाबी के बावजूद हमारे रक्षा वैज्ञानिकों को दुश्मनों की मिसाइल को मार गिराने वाली इंटरसेप्टर मिसाइल और मिसाइल डिफेंस सिस्टम पर काम करने की जरूरत है, क्योंकि अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन जैसे देश इसे विकसित कर चुके हैं। मिसाइल डिफेंस सिस्टम से दुश्मन की मिसाइल को हवा में ही नष्ट किया जा सकता है। इसलिए हमें अपनी सैन्य क्षमताओं को स्वदेशी तकनीक से अत्याधुनिक बनाना होगा, ताकि कोई भी दुश्मन देश हमारी तरफ आंख उठाने से पहले सौ बार सोचे। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर हमें उन्नत और आधुनिक प्रौद्योगिकी के विकास के लिए संकल्प लेना होगा, क्योंकि अभी प्रौद्योगिकीय क्षमता के विकास को बढ़ावा देने के लिए और भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। बेशक हमने रक्षा एवं अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास में काफी कामयाबी प्राप्त की है, लेकिन विकसित राष्ट्र बनने के लिए काफी कुछ करना बाकी है।
अमर उजाला कॉम्पैक्ट में 11/05/2012 को प्रकाशित
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