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Tuesday, 7 August 2012

Wednesday, 13 June 2012

आज दैनिक भास्कर में मेरा लेख (हिन्दी में विज्ञान लेखन उपेक्षित क्यों )

आज (13/06/12)के दैनिक भास्कर में विज्ञान लेखन पर मेरा विशेष लेख .इसमें हाल में ही दिल्ली में हुए अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन का विशेष जिक्र है जिसमे मै शामिल हुआ था .एकदम लाइव रिपोर्ट (जरुर पढ़े )
For nicely read pls click on Article Link
http://digitalimages.bhaskar.com/cph/epaperpdf/13062012/12NATIONAL-PG7-0.PDF

Friday, 18 May 2012

पोलियो से जीत

दो बूँद जिंदगी की ने एक नयी जिंदगी दी
शशांक द्विवेदी 
दैनिक भास्कर में 29/02/12 को प्रकाशित
पोलियो अभियान की पंच लाइन दो बूँद जिंदगी ने वास्तव में पूरे देश को एक नयी जिंदगी दी है । इस बीमारी का सफाया होना देश के लिए बहुत गौरवशाली उपलब्द्धि है । इस बीमारी को सिर्फ सरकारी प्रयास से ही नहीं हराया जा सकता था इसके लिए सभी देश वासियो और खासतौर से पोलियो ड्राप पिलाने वाले स्वयंसेवियो का अनुकरणीय योगदान रहा है । हमारे देश की साझी विरासत से ही यह संभव हो पाया है ,इस तरह के प्रयासों से हम और भी कई गंभीर बीमारियो को हरा सकते है ।
पोलिया के खिलाफ लड़ाई में भारत को जीत हासिल हुई है । लेकिन इस जीत से जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि जीतने से ज्यादा जीत को बनाएं रखना महत्वपूर्ण है ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ, की ओर से पोलियो प्रभावित देशों की सूची से भारत का नाम हटा दिया गया है। ऐसा पिछले एक वर्ष में भारत में पोलियो का एक भी मामला सामने न आने की उपलब्धि को देखते हुए किया गया है। सूची से नाम हटने के बाद भी भारत को पोलियो मुक्त देश का दर्जा प्राप्त करने के लिए दो वर्ष तक पोलियो मुक्त रहना होगा। प्रधानमंत्री  के अनुसार वास्तव में इस कामयाबी का श्रेय उन 23 लाख स्वयंसेवकों को जाता है, जिन्होंने मुश्किल परिस्थियों में दूर-दराज क्षेत्रों में जाकर बच्चों को पोलियो ड्रॉप पिलाया। इससे यह उम्मीद भी जगी है कि हम सिर्फ भारत से ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया से पोलियो को मिटा सकते हैं। लेकिन देश में इसे पूरी तरह से मिटाने के लिए टीकाकरण जारी रखना होगा और निगरानी भी बढ़ानी होगी।
पोलियो का टीका पोलियो वायरस के लिए प्रतिरक्षा उत्पनन्नि करने और लकवा मार जाने वाले पोलियो से सुरक्षा प्रदान करने में अत्यंात प्रभावी है। पोलियो टीका पाने वाले लगभग  90 प्रतिशत या इससे अधिक व्यक्तियों  में तीनों प्रकार के पोलियो वायरस के खिलाफ सुरक्षात्मोक एंटीबॉडी दो खुराकों के बाद बन जाते हैं और कम से कम 99 प्रतिशत तीन खुराकों के बाद सुरक्षित हो जाते हैं। डॉ. एल्बसर्ट सेबिन ने 1961 में मौखिक पोलियो टीके (ओपीवी)  का विकास किया था । वर्तमान में लगभग सभी देश पोलियो उन्मूलन लक्ष्य पूरा करने के लिए ओपीवी का उपयोग करते हैं। इस टीके से व्यक्ति में हमेशा के लिए संक्रमण की रोकथाम होने के साथ अब यह व्यक्ति अन्य लोगों में पोलियो वायरस को फैलाने से भी बच जाता है। चूंकि पोलियो का वायरस मेजबान के बाहर दो सप्ताह से अधिक समय के लिए जिंदा नहीं रह सकता है अत सैद्धांतिक रूप से यह समाप्त हो जाएगा जिससे पोलियो माइलिटिस पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा।
भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन  से जुड़े 192 सदस्य देशों के साथ 1988 से  वैश्विक पोलियो उन्मूलन का लक्ष्य् पूरा करने के लिए वचनबद्ध रहा  है। भारत ने डब्यूएचओ वैश्विक पोलियो उन्मूलन प्रयास के परिणाम स्वरूप 1995 में पल्स  पोलियो टीकाकरण (पीपीआई) कार्यक्रम आरंभ किया था । इस कार्यक्रम के तहत 5 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों  को पोलियो समाप्त होने तक हर वर्ष दिसम्बर और जनवरी माह में ओरल पोलियो टीके (ओपीवी) की दो खुराकें दी जाती हैं। यह अभियान सफल सिद्ध हुआ है और भारत में पोलियो माइलिटिस की दर अब लगभग खत्म हो गयी है । देश में ग्रामीण क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का प्रयास एक वरदान सिद्ध हुआ ।
पीपीआई की शुरुआत ओपीवी के तहत शत प्रतिशत कवरेज प्राप्त करने के उद्देश्य से की गई थी। जिसकी वजह से  पोलियो वायरस लगभग गायब हो चुका है और इससे देश की  जनता का  उच्च मनोबल बना हुआ है । वर्ष 1995 से देश में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय पोलियो वायरस को समाप्त  करने के लिए  सघन टीकाकरण और निगरानी गतिविधियों का आयोजन करता रहा है। सरकार को तकनीकी और रसद संबंधी सहायता प्रदान करने के लिए 1997में राष्ट्रीय पोलियो निगरानी परियोजना  आरंभ की गई और अब यह राज्ये सरकारों के साथ समन्वय से कार्य करती है और देश में पोलियो उन्मूलन का लक्ष्य पूरा करने के लिए भागीदारी एजेंसियों की एक बड़ी श्रृंखला इसमें संलग्न है। देश में  डब्यूएचओ के समर्थन के साथ राज्य सरकार के नेतृत्वो में यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एण्ड प्रीवेंशन , यूनिसेफ और  बिल एण्डम मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने पोलियो उन्मूलन में  महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
2009 के दौरान भारत में विश्व  के पोलियो के मामलों का उच्चहतम भार (741) था।, यहां तीन अन्ये महामारियों से पीडित देशों की संख्या से अधिक मामले थे। यह टीका बच्चों तक पहुंचाने के असाधारण उपाय अपनाने से भारत में पश्चिम बंगाल राज्य  की एक दो वर्षीय बालिका के अलावा कोई अन्य मामला नहीं देखा गया जिसे 13 जनवरी 2011 को लकवा हो गया था। आज भारत ने पोलियो के खिलाफ अपने संघर्ष में एक महत्वबपूर्ण पड़ाव प्राप्ता किया है, चूंकि अब पोलियो का अन्य कोई केन्द्र नहीं है।
देश में पोलियो से जुड़ा  आखिरी मामला 13 जनवरी, 2011 को पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में रुखसार खातून के रूप में सामने आया था। वर्ष  1999 में भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में पोलियो वायरस-दो  पाया गया था जिसकी चर्चा पूरी दुनिया में  हुई थी।
भारत में 13 जनवरी 2011 के बाद से सीवेज के नमूनों में कोई पोलियो वायरस का मामला दर्ज नहीं किया गया है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, नवंबर, 2010 के बाद भारत में पहली बार हवा में पोलियो वायरस की मौजूदगी के बारे में पर्यावरण से लिए गए अधिकांश नमूनों की जांच रिपोर्ट नकारात्मक आई है।
देश में 1988 से पोलियो के मामलों में 100 प्रतिशत की कमी आई है, जब महामारी से पीडित 125 देशों में इनकी संख्याम 350000से कम होकर 2010 में 1349 बताई गई। 2011 में दुनिया के तीन देशों के कुछ हिस्सेै रोग से प्रभावित रहे  यह इतिहास का सबसे छोटा भौगोलिक क्षेत्र रहा और यहां वन्यु प्रकार के पोलियो वायरस टाइप 3 के मामलों की संख्या  अब तक के अल्पतम स्तर पर बताई गई है।
समकालीन रूप से पोलियो केवल तीन देशों में महामारी बना हुआ है अफगानिस्तान, नाइजीरिया और पाकिस्तान - जिसके साथ चार देशों में पोलियो वायरस के फैलने की शंका (अंगोला, चाड और कोंगो लोक तांत्रिका गणतंत्र) या जिसके दोबारा फैलने की शंका (सूडान) है। अन्यल अनेक देशों में पोलियो वायरस के आने के कारण 2010 में इसका प्रकोप हुआ था।
वास्तव में पोलियो के खिलाफ यह असाधारण उपलब्धि लाखों टीका लगाने वालों, स्वयंसेवकों, सामाजिक प्रेरणादायी व्यीक्तियों, अभिनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और धार्मिक नेताओं के साथ सरकार द्वारा लगाई गई ऊर्जा, समर्पण और कठोर प्रयास का परिणाम है। वास्तव में अगर लक्ष्य स्पष्ट हो और प्राथमिकताये निश्चित हो तो कोई भी मंजिल दूर नहीं होती । पोलियो जैसी भयंकर बीमारी से देश  को मुक्ति मिलने जा रही है, तो यह समाज के सभी वर्गों की कोशिशों का ही नतीजा है।
लेकिन इस कामयाबी से जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ गयी है क्योंकि दुनिया के  कुछ  देशों में पोलियो  अभी खत्म  नहीं किया जा सका है, अभी  ऐसे केवल तीन देश ही बचे हैं, जहां पोलियो वायरस मूल रूप से पनपा है। इनमें नाइजीरिया, पाकिस्तान और अफगानिस्तान शामिल हैं। इन देशों से पोलियो के वायरस का फिर भारत पहुंचने का खतरा है। इसलिए अभी इस पर ध्यान देने की जरूरत है । अब जरुरत है इस कामयाबी को बनाये रखने कि जिससे पोलियो हमारे देश में सदा सर्वदा के लिए समाप्त हो जाये ।
लेखक शशांक द्विवेदी (दैनिक भास्कर में 29/02/12 को प्रकाशित

इसरों-देवास डील

बड़े मामलों के ये महज छोटे किरदार
 
शशांक द्विवेदी 
दैनिक भास्कर  (राष्ट्रीय संस्करण ) में ०७ /०२/२०१२ को प्रकाशित  
आखिरकार भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एंट्रिक्स-देवास मुद्दे पर अपनी जाँच रिपोर्ट सार्वजानिक कर दी । जिसमे पूर्व इसरो प्रमुख जी माधवन नायर और तीन अन्य वरिष्ठ वैज्ञानिकों को इस सौदे में भारी अनिमितताओं का दोषी पाया गया गया है । पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त प्रत्यूष सिन्हा की अध्यक्षता  में गठित समिति  की रिपोर्ट के अनुसार  एंट्रिक्स-देवास सौदे में पारदर्शिता की कमी थी।  इस मामले में गंभीर प्रशासनिक और प्रक्रियागत  गलती के साथ साथ जानबूझकर कर देवास को फायदा पहुँचाया गया ।
इसी वजह से एंट्रिक्स-देवास विवाद के मद्देनजर केंद्र सरकार ने यह फैसला लिया की भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष और पद्मविभूषण से सम्मानित वैज्ञानिक जी माधवन नायर को अब कोई भी सरकारी जिम्मेदारी नहीं सौंपी जाएगी। सरकार ने नायर समेत इसरो के चार अधिकारियों को भी  ब्लैक लिस्ट कर दिया है।
इसरो की व्यवसायिक शाखा एंट्रिक्स और देवास मल्टीमीडिया के बीच हुए एस बैंड स्पेक्ट्रम सौदे को सरकार द्वारा रद्द किए जाने के बाद सवाल उठता है कि पहले चरण में ही इस सौदे पर हस्ताक्षर क्यों किए गए और इसे रद्द करने में इतना समय क्यों लगा।
देश के लोगों को साफ साफ यह समझाना चाहिए कि अंतरिक्ष आयोग की सिफारिश के बावजूद यह सौदा रद्द करने में सरकार को कई माह का समय क्यों लगा। जब अंतरिक्ष आयोग ने सौदा रद्द करने की सिफारिश की थी, तब ही इसे रद्द क्यों नहीं किया गया। इसकी पूरी जाच होनी चाहिए और इससे जुड़े लोगों को देश के सामने जवाब देना चाहिए।
एस बैंड स्पेक्ट्रम के 70 मेगा हर्ट्ज  को 1000 करोड़ रूपये में निजी कंपनी को देने का यह सौदा विवादों में घिर गया था जिसके बाद इसे रद्द कर दिया गया। सीएजी इस मामले में कार्रवाई शुरू कर चुका है। महत्वपूर्ण सवाल है कि  सौदे को एक महत्वपूर्ण चरण में क्यों रद्द किया गया जबकि कुछ माह में यह प्रभावी होने वाला था। समझौते के वक्त राधाकृष्णन भी एंट्रिक्स बोर्ड के सदस्य थे, लेकिन उन्होंने उस समय कुछ भी नहीं कहा था। आज वह समझौते को गलत कैसे बता सकते हैं?
देश यह जानना चाहता है कि ऐसा क्या गलत हुआ जिससे समझौता रद्द किया गया। देश का आम आदमी जानना चाहता है कि जिस क्षेत्र में अब तक निजी कंपनियों को अनुमति नहीं दी गई वहा क्या सरकार पिछले दरवाजे से विदेशी कंपनियों को आने की अनुमति दे रही थी। स्पेक्ट्रम के बेचे जाने वाले बैंड का इस्तेमाल तटरक्षक जैसी एजेंसिया करती हैं। निश्चित रूप से इससे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठता है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन की व्यावसायिक इकाई अंतरिक्ष और देवास मल्टीमीडिया के बीच सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के हुए  सौदे में जो  अनियमितता बरती गयी वे देश का भरोसा हिलाने वाले हैं। एक देश  के रूप में भारत जिन कुछ उपलब्धियों पर नाज करता रहा है, इसरो और परमाणु अनुसन्धान संस्थानों का नाम प्रमुख रहा है। पिछले कुछ समय, खासकर एंट्रिक्स -देवास डील से जुड़ी खबरों के सामने आने के बाद से इसरो की ओर लोगों का ध्यान गया है। वास्तव में इसरो और परमाणु-अनुसन्धान से जुड़ी संस्थाओं के बारे में समाचार माध्यमों में अधिकतर अच्छी खबरें ही प्रकाशित होती रही हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का उपग्रह बनाने और उन्हें प्रक्षेपित करने का शानदार रिकॉर्ड रहा है इसलिए इसरो से  जुड़े वैज्ञानिकों पर भी देश को गर्व है। लेकिन देवास डील की इस अनियमितता ने लोगो को चौंका दिया है ।
एंट्रिक्स इसरो की कारोबारी इकाई है, जो मुख्यतः उपग्रह  के स्पेक्ट्रम निजी क्षेत्र की कंपनियों को किराये  पर देने तथा सैटेलाइट इमेजरी को बेचने का काम करती है। अन्त्रिक्स और चेन्नई की निजी कंपनी देवास मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड के बीच २००५ में एक  अनुबंध हुआ था। इस अनुबंध के तहत अंतरिक्ष द्वारा देवास को एस. बैंड स्पेक्ट्रम देने थे, जिसके बदले देवास १२ वर्षों में किस्तों पर कुल ३० करोड़ रुपए एंट्रिक्स को देता।
अनुबंध के समय प्रतिष्ठित अंतरिक्ष वैज्ञानिक जी. माधवन नायर इसरो के भी अध्यक्ष थे और अनुबंध को अंतिम रूप देने वाले अंतरिक्ष बोर्ड के भी। उनकी अध्यक्षता में अंतरिक्ष बोर्ड ने देवास के साथ करार को मंजूरी दी थी।
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) के अनुसार इस करार से सरकार को दो लाख करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। देवास प्रकरण भी  २जी स्पेक्ट्रम घोटाले जैसा ही है। साल २०१० के अंतिम महीनों  में आई नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट से इसका खुलासा होने के बाद से यह प्रकरण पूरे देश में  काफी चर्चित  रहा  और संसद में भी इस पर बहस हुई । साल २०११ के फरवरी  में सरकार ने यह करार रद्द कर दिया था।
अभी तक की जांच में जो सामने आया है उससे लगता है की  इस सौदे में माधवन नायर और उनके कुछ सहयोगियों की भूमिका संदेहास्पद रही है। पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त प्रत्यूष सिन्हा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार ने माधवन नायर समेत इसरो के चार पूर्व अधिकारियों को ब्लैक लिस्ट कर दिया है। ष्ब्लैक लिस्टष् करने का मतलब अब  इन चारों अधिकारियों को  कोई सरकारी जिम्मेदारी नहीं सौंपी जाएगी। प्रसिद्द वैज्ञानिक जी  माधवन नायर ने भारत के चंद्रयान-मिशन जैसी कई महत्वाकांक्षी परियोजना में अहम भूमिका निभाई है। इसकी वजह से  उनका काफी सम्मान भी है और सरकार द्वारा  उन्हें  पद्म श्री और पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। लेकिन केंद्र सरकार की मौजूदा  कार्रवाई से उनका दामन दागदार हुआ है और इससे नाराज  माधवन ने इस कार्रवाई को विभागीय राजनीति की वजह से  बताया है। वो केंद्र  सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती देने की बात भी तैयारी कर रहे है । माधवन को अदालत में जाने का पूरा अधिकार है, लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर  सकता कि एस बैंड स्पेक्ट्रम आवंटन का मामला भी देश की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा और   देश के संसाधनों की लूट जैसा ही है। यह मामला देश में  खनन परियोजनाएं निजी क्षेत्र को लीज पर देने जैसा हैं। जहाँ बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार फैला है ।
इस तरह के प्रकरणों में  भ्रष्टाचार की वजह यह है कि हमारे देश में राष्ट्रीय संसाधनों के निजी क्षेत्र में इस्तेमाल की कोई स्पष्ट नीति ही नहीं है। अंतरिक्ष-देवास करार, २जी स्पेक्ट्रम घोटाला, खनन परियोजनाएं निजी क्षेत्र को लीज पर देने का मामला  हो या, इस तरह के सभी मामले राष्ट्रीय संसाधनों के उपयोग के बारे में देश में स्पष्ट और  पारदर्शी नियम-कायदे बनाने की मांग करते हैं।
इस मामले पर जारी ताजा घटनाक्रम में अब केंद्रीय मंत्री वी नारायणसामी यह कह रहे हैं कि सरकार उनकी बात सुनने को तैयार है?अब एक प्रश्न उठता है की यदि इन वैज्ञानिकों पर प्रतिबंध लगाने के पहले उनका पक्ष जानना जरूरी नहीं था तो फिर क्या कारण है कि अब सरकार उनकी बात सुनने को तैयार है? सीधी सी बात है की इस मामले में सरकार पर भी दबाव है ।
दबाव की सबसे बड़ी वजह प्रधानमंत्री की वैज्ञानिक सलाहकार परिषद के प्रमुख प्रो. सीएनआर राव  ने  इस मामले में सरकार के फैसले की ने तीखी आलोचना की है। उनका कहना है की माधवन नायर सहित उनके तीन सहयोगी वैज्ञानिकों को कचरे की तरह फेंक दिया गया। उनका सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है जिसने सारे देश का ध्यान आकृष्ट किया है वह है कि आखिर सरकार ऐसी ही कार्रवाई भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ क्यों नहीं करती? यह सामान्य बात नहीं कि प्रधानमंत्री की वैज्ञानिक सलाहकार परिषद के प्रमुख वैज्ञानिकों संबंधी सरकार के किसी फैसले की इतनी कठोर आलोचना करें।
इस मामले में यह भी सार्वजनिक होना चाहिए कि क्या एंट्रिक्स-देवास करार के लिए सिर्फ यही चार वैज्ञानिक जिम्मेदार थे? यह सवाल इसलिए, क्योंकि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र सीधे प्रधानमंत्री के तहत काम करता है। क्या यह संभव है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत कार्य करने वाला कोई संगठन इतना बड़ा फैसला ले ले और उसे इसकी जानकारी किसी को न हो ?इस मामले का सच पूरे देश के सामने आना ही चाहिए ।
इसरो से जो भी वैज्ञानिक जुड़े हैं या जुड़े रहे हैं, उन पर पूरा देश गर्व करता है। ऐसी संस्था पर जब कीचड़ उछलता है, तो उसके दाग पूरे देश के भरोसे पर लगते हैं। अभी तक इसरो जिस माहौल में काम कर रहा था, वह पूरी तरह से सरकारी माहौल था। उसे सरकार द्वारा व सरकार के लिए ही सब कुछ करना होता था। लेकिन अब पूरी दुनिया की तरह ही उपग्रह सेवाएं भारत में भी निजी क्षेत्रों के पास आ रही हैं। पहले इन उपग्रहों का इस्तेमाल सिर्फ सरकारी एजेंसियां करती थीं, लेकिन अब आम नागरिक भी करता है। अब यह कल्पना भी नहीं की जा सकती कि इंटरनेट सेवा से लेकर टीवी चौनल दिखाने का काम सिर्फ सरकारी कंपनियों के भरोसे ही हो। ऐसे में, सरकारी संगठनों को आप निजी क्षेत्र से व्यवहार करने से तो नहीं रोक सकते।
लेकिन ऐसे पारदर्शी प्रावधान जरूर बनाए जा सकते हैं, जिनके कारण कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह राष्ट्रीय संसाधनों को लूटने या लुटाने की कोशिश न कर सके। ऐसे प्रावधानों का अभाव ही देश को अपने संसाधनों का सही मूल्य हासिल करने से वंचित रखता है।
बेशक कोई व्यक्ति देश से बड़ा नहीं होता और अगर माधवन सचमुच अपनी ख्याति की आड़ में भ्रष्टाचार कर रहे थे तो उनके खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन उन्हें भी अपनी बात कहने का पूरा मौका मिलना चाहिए ,कोई भी कार्यवाही एकतरफा नहीं होनी चाहिए । सबसे बड़ी बात तो यह है कि वर्ष 2005 में हुए इस सौदे को जब रद्द किया गया था तो इसके पीछे सरकार ने प्राथमिकताएं बदल जाने जैसी कमजोर  दलील दी थी और कहा था कि एस बैंड की जरूरत उसे अब सेना के लिए पड़ रही है। कहीं भी इस सौदे की वैधता पर सवाल नहीं उठाए गए थे। इसरो ने यह सौदा अपनी व्यापारिक कंपनी एंट्रिक्स के माध्यम से उसी रूप में किया था जिसके आधार पर वह पहले भी ट्रांसपोंडरों को निजी कंपनियों को दिया करती थी। ऐसे में जरूरी है कि प्रधानमंत्री खुद मामले में हस्तक्षेप करें ताकि असलियत देश के सामने आए और इसरो के वैज्ञानिकों का मनोबल भी न टूटे।
शशांक द्विवेदी  (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
दैनिक भास्कर  (राष्ट्रीय संस्करण )में ०७ /०२/२०१२ को प्रकाशित