चंद्रभूषण
मन में गमकता नीम चमकते जुगनू
इंसान अपने दिमाग का दस प्रतिशत हिस्सा ही इस्तेमाल करता है- ऐसी किंवदंती लगभग एक सदी से चल रही है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इसे सही या गलत साबित करने का कोई तरीका भी नहीं है। लेकिन इसे आधार बनाकर हॉलिवुड ने कई सारी कामयाब फिल्में जरूर बना डाली हैं। अभी सिनेमाहॉलों में चल रही फिल्म ‘लूसी’ में भी इसी थीम को निचोड़ा गया है। एक नशीले केमिकल का ओवरडोज एक लड़की के दिमाग को शत-प्रतिशत सक्रियता में ला देता है और अपनी सुपरह्यूमन दिमागी ताकत के बल पर वह कहर मचा देती है।
कहना मुश्किल है कि यह दस पर्सेंट वाला मिथक कहां से शुरू हुआ। शायद फ्रायड द्वारा अवचेतन पर किए गए काम से, जिसने साबित किया कि लोगों के ज्यादातर क्रिया-कलाप उनके मन के अंधेरे कोनों से संचालित होते हैं, जिनके बारे में खुद उन्हें भी कुछ पता नहीं होता। या यूरोप में ओरिएंटलिज्म को लेकर गाई जाने वाली गाथाओं से, जो बताती थीं कि भारत के ऋषि-मुनि योग-ध्यान के जरिये अपने मस्तिष्क की पूरी क्षमता जगाकर तरह-तरह के चमत्कार कर डालते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि इंसानी दिमाग को विज्ञान के लिए ‘फाइनल फ्रंटियर’ माना जाता है। पिछले तीस-चालीस वर्षों में इस पर काफी सारा ठोस काम हुआ है और इसकी कई गुत्थियां सुलझाई गई हैं। लेकिन इन खोजों में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो बताता हो कि मानव मस्तिष्क का 90 फीसदी हिस्सा आम तौर पर बेकार पड़ा रहता है। हां, इधर इसके बारे में ‘यूज इट ऑर लूज इट’ की बात जरूर कही जाने लगी है। यानी अगर आप ढर्रे के ही कामों में उलझे रहे, नई चीजें सीखने और उलझनें सुलझाने का सिलसिला बिल्कुल ही बंद कर दिया तो धीरे-धीरे आपकी बुद्धि कुंद हो जाएगी और उम्र आने से पहले ही आप सठिया जाएंगे।
वैसे, फिल्मी चमत्कारों को एक तरफ रख दें तो दिमाग का छोटा हिस्सा ही इस्तेमाल करने वाली बात एक अलग नजरिये से काफी काम की है। सोचें कि बिल्कुल बुनियादी स्तर पर हमारी दिमागी क्षमताएं किस तरह की हैं और उनका हम कितना इस्तेमाल कर पा रहे हैं। जैसे सूंघने की क्षमता। इस मामले में हमारा मुकाम जीव जगत में काफी नीचे है। अपनी सोसाइटी के सबसे ऊंचे फ्लोर की छत पर चीनी के कुछ दाने डाल दीजिए। दस मिनट के अंदर पता नहीं कहां से उसे सूंघती हुई चींटियां पहुंच जाएंगी और आधे घंटे में वहां कुछ नहीं बचेगा। जाहिर है, चींटियां इस मामले में हमसे कहीं सुपीरियर हैं। लेकिन गंध के साथ अनुभवों की कड़ियां जोड़ने में हम चीटियों से ही नहीं, अपने से छह हजार गुनी सूंघने की ताकत रखने वाले कुत्तों से भी बेहतर हैं।
रात में राह चलते आम के बौर, नीम के फूल, या रातरानी की गमक हमें हाईस्कूल बोर्ड की छुट्टियों में लौटा ले जाती है। यहां से कोई कविता शुरू हो सकती है, या किसी बिछड़े हुए दोस्त को फेसबुक पर ढूंढ़ निकालने की इच्छा जन्म ले सकती है। कोई भीनी गंध, कोई अटपटा स्वाद, घुप्प बरसाती अंधेरे में पेड़ों पर गुंछे जुगनुओं की चकमक हमारे दिमाग की कोई सोई हुई क्षमता जगा सकती है। लेकिन दिनोंदिन इनसे दूर होकर हम कंप्यूटर की कच्ची नकल बनते जा रहे हैं। यह तो अपनी दिमागी क्षमता का एक पर्सेंट भी इस्तेमाल नहीं हुआ।(Ref-nbt.in)
इंसान अपने दिमाग का दस प्रतिशत हिस्सा ही इस्तेमाल करता है- ऐसी किंवदंती लगभग एक सदी से चल रही है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इसे सही या गलत साबित करने का कोई तरीका भी नहीं है। लेकिन इसे आधार बनाकर हॉलिवुड ने कई सारी कामयाब फिल्में जरूर बना डाली हैं। अभी सिनेमाहॉलों में चल रही फिल्म ‘लूसी’ में भी इसी थीम को निचोड़ा गया है। एक नशीले केमिकल का ओवरडोज एक लड़की के दिमाग को शत-प्रतिशत सक्रियता में ला देता है और अपनी सुपरह्यूमन दिमागी ताकत के बल पर वह कहर मचा देती है।
कहना मुश्किल है कि यह दस पर्सेंट वाला मिथक कहां से शुरू हुआ। शायद फ्रायड द्वारा अवचेतन पर किए गए काम से, जिसने साबित किया कि लोगों के ज्यादातर क्रिया-कलाप उनके मन के अंधेरे कोनों से संचालित होते हैं, जिनके बारे में खुद उन्हें भी कुछ पता नहीं होता। या यूरोप में ओरिएंटलिज्म को लेकर गाई जाने वाली गाथाओं से, जो बताती थीं कि भारत के ऋषि-मुनि योग-ध्यान के जरिये अपने मस्तिष्क की पूरी क्षमता जगाकर तरह-तरह के चमत्कार कर डालते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि इंसानी दिमाग को विज्ञान के लिए ‘फाइनल फ्रंटियर’ माना जाता है। पिछले तीस-चालीस वर्षों में इस पर काफी सारा ठोस काम हुआ है और इसकी कई गुत्थियां सुलझाई गई हैं। लेकिन इन खोजों में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो बताता हो कि मानव मस्तिष्क का 90 फीसदी हिस्सा आम तौर पर बेकार पड़ा रहता है। हां, इधर इसके बारे में ‘यूज इट ऑर लूज इट’ की बात जरूर कही जाने लगी है। यानी अगर आप ढर्रे के ही कामों में उलझे रहे, नई चीजें सीखने और उलझनें सुलझाने का सिलसिला बिल्कुल ही बंद कर दिया तो धीरे-धीरे आपकी बुद्धि कुंद हो जाएगी और उम्र आने से पहले ही आप सठिया जाएंगे।
वैसे, फिल्मी चमत्कारों को एक तरफ रख दें तो दिमाग का छोटा हिस्सा ही इस्तेमाल करने वाली बात एक अलग नजरिये से काफी काम की है। सोचें कि बिल्कुल बुनियादी स्तर पर हमारी दिमागी क्षमताएं किस तरह की हैं और उनका हम कितना इस्तेमाल कर पा रहे हैं। जैसे सूंघने की क्षमता। इस मामले में हमारा मुकाम जीव जगत में काफी नीचे है। अपनी सोसाइटी के सबसे ऊंचे फ्लोर की छत पर चीनी के कुछ दाने डाल दीजिए। दस मिनट के अंदर पता नहीं कहां से उसे सूंघती हुई चींटियां पहुंच जाएंगी और आधे घंटे में वहां कुछ नहीं बचेगा। जाहिर है, चींटियां इस मामले में हमसे कहीं सुपीरियर हैं। लेकिन गंध के साथ अनुभवों की कड़ियां जोड़ने में हम चीटियों से ही नहीं, अपने से छह हजार गुनी सूंघने की ताकत रखने वाले कुत्तों से भी बेहतर हैं।
रात में राह चलते आम के बौर, नीम के फूल, या रातरानी की गमक हमें हाईस्कूल बोर्ड की छुट्टियों में लौटा ले जाती है। यहां से कोई कविता शुरू हो सकती है, या किसी बिछड़े हुए दोस्त को फेसबुक पर ढूंढ़ निकालने की इच्छा जन्म ले सकती है। कोई भीनी गंध, कोई अटपटा स्वाद, घुप्प बरसाती अंधेरे में पेड़ों पर गुंछे जुगनुओं की चकमक हमारे दिमाग की कोई सोई हुई क्षमता जगा सकती है। लेकिन दिनोंदिन इनसे दूर होकर हम कंप्यूटर की कच्ची नकल बनते जा रहे हैं। यह तो अपनी दिमागी क्षमता का एक पर्सेंट भी इस्तेमाल नहीं हुआ।(Ref-nbt.in)
बहोत बढ़िया , मुझे आपका लेख पसंद आया
ReplyDeleteबहोत बढ़िया , मुझे आपका लेख पसंद आया
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeletethanks for these valuable informations..
ReplyDeleteHi iam Bhupendra Mai ye banana chahta Hu Ki ye dimak ko kaise kantro kare
ReplyDeleteHi iam Bhupendra Mai ye banana chahta Hu Ki ye dimak ko kaise kantro kare
ReplyDeleteHum agar apne 100 present brain use kare to
ReplyDeleteKai baar aapne anubhav Kia hoga,,,k. Aap kisi kareebi dost k baare me sochte Hai,,,or uska call AA jata Hai,,,ya fir wo khud Milne AA jata Hai,,,ASA Ku hota Hai???? Kabhi socha Hai,,,,ye hamari dimagi chhamta Hai jise hum jante hi nahi Hai,,,dhyanyog SE ise kai guna badaya ja sakta Hai,,,,jai hind
ReplyDeleteKai baar aapne anubhav Kia hoga,,,k. Aap kisi kareebi dost k baare me sochte Hai,,,or uska call AA jata Hai,,,ya fir wo khud Milne AA jata Hai,,,ASA Ku hota Hai???? Kabhi socha Hai,,,,ye hamari dimagi chhamta Hai jise hum jante hi nahi Hai,,,dhyanyog SE ise kai guna badaya ja sakta Hai,,,,jai hind
ReplyDeleteहसते हुवे व्यक्ति के कितने अंग काम
ReplyDeleteकरते है
Agar sach m insaan ky dimaag ka lok hissa unlock ho zaay tab kyahoga ? Kise ko koi idea h
ReplyDeleteMujhe bhut aacha laga sach mai
ReplyDeletePta nhi
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