Showing posts with label Technology. Show all posts
Showing posts with label Technology. Show all posts

Tuesday, 31 July 2018

आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर है CSIR

आमतौर पर फंड के दबाव से जूझते रहने और सरकारी अनुदानों पर आश्रित होने का तगमा झेल रही केंद्र सरकार के कई संस्थाओं से अलग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की महत्वपूर्ण संस्था सीएसआईआर (CSIR) ने विगत 3 सालों में कैसे अपनी कमाई को दोगुना कर लिया है और कैसे आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही है ये एक पहेली से कम नहीं। यहां ये जानना जरूरी है कि सीएसआईआर ने बाहरी कैश-फ्लो बढ़ाकर ये चमत्कार किया है। सीएसआईआर निजी(प्राइवेट) कंपनियों के हाथों अपनी लाइसेंसिंग पेटेंटेड टेक्नोलॉजी साझा या बेचकर ही आत्मनिर्भर बना है।कैसे किया कायाकल्प?
विगत वर्ष की तुलना में सीएसआईआर ने इस वर्ष (2017-18) निजी क्षेत्र की कंपनियों को अपनी तकनीक देकर करीब 70% ज्यादा कमाई की है। सीएसआईआर के डायरेक्टर जनरल गिरीश साहनी इसे संस्था के आत्मनिर्भर बनने की दिशा में सबसे अहम करार देते हैं। चालू वित्त वर्ष में कुल कमाई लगभग 963 करोड़ रुपये रहा, जिसमें 515 करोड़ रुपये की आय निजी क्षेत्र की कंपनियों को टेक्नोलॉजी का लाइसेंसिंग हस्तांतरण करके हुई है, जबकि 448 करोड़ की आय सरकारी कंपनियों से हुई है। सीएसआईआर के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि सरकारी कंपनियों की तुलना में निजी कंपनियों से आय ज्यादा हुई है। इससे पहले सीएसआईआर ने वर्ष 2016-17 में 727 करोड़ रुपये कमाए थे मगर उसमें प्राइवेट कंपनियों से की गयी कमाई 302 करोड़ था, जबकि सरकारी संस्थाओं से हुई कमाई 424.45 करोड़ रुपए था। इससे पहले 2015-16 और 2014-15 में निजी कंपनियों से हुई कमाई 100-200 करोड़ रुपए से ज्यादा कभी नहीं रही। सीएसआईआर के डीजी गिरीश साहनी कहते हैं कि प्राइवेट कंपनियों से 500 करोड़ रुपये की कमाई ज्यादा नहीं है, बल्कि ये इस बात का संकेत है कि सीएसआईआर अपने पेटेंट के जरिए निजी कंपनियों से अब ज्यादा से ज्यादा धन कमा रहा है और आगे और भी धन कमा सकता है।
व्यावसायिक सोच और परिणाम प्राप्ति पर जोर:           
वर्ष 2015 में सीएसआईआर की देहरादून में आयोजित बैठक इसके कायाकल्प में निर्णायक साबित हुआ। जहां ये तय किया गया कि आगामी 2-3 सालों में संस्था के सभी 38 लैब को आत्मनिर्भर बनाया जायेगा। ये भी तय किया गया कि संस्था के वैज्ञानिकों द्वारा गरीब वर्ग को ध्यान में रखकर प्रतिवर्ष कम से कम 12 गेम चेंजिंग टेक्नोलॉजी का निर्माण किया जायेगा।
सीएसआईआर के सूत्र बताते हैं कि संस्था को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 26 सितम्बर 2016 को सीएसआईआर फाउंडेशन दिवस कार्यक्रम में संस्थान के वैज्ञानिकों से “पेटेंट लाइसेंसिंग की जगह टेक्नोलॉजी निर्माण पर विशेष ध्यान देने पर बल दिया। इससे संस्थान के वैज्ञानिकों को और भी जनोपयोगी शोध, निर्माण और उसका उपयोग बढ़ाने की दिशा में बल मिला। मोदी के एक सुझाव से वैज्ञानिकों में सालों से अपने शोध को पेटेंट कराकर लाइसेंस रखने की प्रवृति से अलग अब अमल में लाने योग्य तकनीक बनाने और उसके उपयोगी बनाने की प्रथा का तेजी से विकास हुआ।
विगत 4 सालों में सीएसआईआर ने 600 विभिन्न टेक्नोलॉजी का लाइसेंस किया है। इस दिशा में महज 1 मिनट में दूध में मिलावट का पता लगा लेने वाला मशीन “क्षीर टेस्टर” और “क्षीर स्कैनर” का निर्माण किया है जिसके जरिए मिलावट में प्रयुक्त यूरिया, साल्ट, डिटर्जेंट,साबुन,सोडा, बोरिक एसिड और हाइड्रोजन पेरोक्साइड आदि का पता लग जाता है।
सीएसआईआर ने “दृष्टि ट्रांसमिसोमीटर” का निर्माण पूर्णतः
देशी तकनीक के जरिए सिविल एविएशन सेक्टर को विजिबिलिटी मापने का एक पूर्ण घरेलू यंत्र मिल गया है जिससे विमानों की आवाजाही आसान हुई है। अबतक देशभर के 21 एयरपोर्ट पर इसका सफल उपयोग हो रहा है। इसी तरह डायबिटिज की बढ़ती समस्या से लड़ने के लिए जड़ी-बूटियों पर आधारित पूर्णतया घरेलू तकनीक से एंटी-डायबिटिक दवा “बीजीआर-34” बनाया है जिसे एक देशी प्राइवेट कंपनी को सस्ता दवा निर्माण के लिए दिया है,उस कंपनी ने महज 2 साल में 100 करोड़ से ज्यादा का व्यवसाय किया है। अब इस तरह के सैकड़ों जनोपयोगी पेटेंट को तकनीक का रूप देकर धनोपार्जन किया जाना संभव हो रहा है।
सीएसआईआर ने व्यावसायिक प्रवृति को ध्यान में रखते हुए अपने सभी 38 लैब्स को साफ-साफ निर्देश दिए है कि अपना खर्च स्वयं वहन करने की दिशा में काम करें और सरकारी अनुदान की बजाए स्वपोषित व्यवस्था का निर्माण किया जाना चाहिए। सीएसआईआर ने अब अपना अप्रोच पूरी तरह परिवर्तित करते हुए सिर्फ कागजी रिसर्च की बजाए अब उपयोग में लाए जाने और लाइसेंस प्राप्त करने योग्य रिसर्च पर ध्यान बढ़ा दिया है।
अपनी बदले सोच की वजह से ही सीएसआईआर की वर्ष 2017 की विश्व रैंकिंग में भारी उछाल आया है। शिमागो इंस्टिट्यूट रैंकिंग वर्ल्ड रिपोर्ट में पिछले 2 सालों में 30 पोजिशन उछाल लेकर 1207 देशी सरकारी संस्थाओं में से 9वें स्थान पर रहा, जबकि विश्वभर के 5250 संस्थानों में से सीएसआईआर 75वें स्थान पर रहा।
सीएसआईआर की बाहरी कैश फ्लो ने नई ऊंचाई को छुआ है। वर्ष 2017-18 के दौरान 235 टेक्नोलॉजी और उत्पाद को निजी कंपनियों को लाइसेंस दिया है। विगत वित्त वर्ष में बाहरी कैश-फ्लो को नीचे दिए गए चार्ट से बखूबी समझा जा सकता है।
ये सीएसआईआर की सोच में बदलाव का ही नतीजा है कि विगत 2 सालों में इसने अपनी इंडस्ट्रियल आय को लगभग तीन गुना कर एक नए इतिहास को रचने में सफल हुआ है लेकिन संस्था में ही कुछ वैज्ञानिकों द्वारा दबी जुबान से सीएसआईआर के पूर्ण व्यावसायिक सोच का विरोध भी होने लगा है। वैसे वैज्ञानिकों का मानना है कि ज्यादा प्रोडक्ट ओरिएंटेड अप्रोच संस्था के अनुसंधान को दीर्घ काल में प्रभावित कर 

Tuesday, 7 April 2015

भविष्य की तकनीक और तकनीक का भविष्य

आनेवाले समय में टेक्नोलॉजी का विस्तार किस हद तक होगा, यह जानने की उत्सुकता दुनियाभर में है. इस संबंध में लोगों की जिज्ञासा को कुछ हद तक दूर करने के लिए डिजिटल तकनीक के बड़े नामों में से एक बिल गेट्स ने एक सोशल मीडिया साइट पर खास सत्र के दौरान लोगों द्वारा पूछे गये सवालों के जवाब दिये हैं. इन जवाबों और इनसे निकलते संकेतों तथा तकनीक के भविष्य पर आधारित है ये लेख  
मौजूदा दौर तकनीक का है और दुनियाभर में इसकी तूती बोल रही है. हमारे रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी शायद ही कोई ऐसी चीज है, जिसमें तकनीक का इस्तेमाल न होता हो. कहा जा सकता है कि तकनीक ने हमारे जीवन से जुड़े विभिन्न आयामों को पूरी तरह से बदल दिया है. 
इसकी बदौलत आसान होती हमारी जीवनशैली की निर्भरता दिन-ब-दिन तकनीक पर बढ़ती जा रही है. भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों समेत कंपनियां नयी-नयी तकनीकों का इजाद कर रही हैं और हम उनका इस्तेमाल कर रहे हैं. इतना ही नहीं, इस क्षेत्र में परिवर्तन भी अब काफी तेजी से होने लगा है. यानी पुरानी तकनीक को चलन से हटाने और नयी तकनीक के चलन में आने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. लोग हमेशा यह जानने की कोशिश करते हैं कि किस क्षेत्र में कौन सी नयी तकनीक आ चुकी है और भविष्य में कैसी तकनीक आने वाली है.
लोगों की इन्हीं जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए दुनिया के प्रसिद्ध तकनीकी विशेषज्ञ बिल गेट्स ने, जो आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, हाल ही में एक खास सत्र का आयोजन किया. पॉलिगॉन डॉट कॉमकी एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘आस्क मी एनीथिंगयानी मुझसे कुछ भी पूछियेनामक इस सत्र में बिल गेट्स ने भविष्य में कैसी होगी तकनीकविषय पर लोगों की तमाम जिज्ञासाओं को शांत करने की अच्छी कोशिश की है. इस सत्र में उन्होंने खास तौर पर तकनीक और मनोरंजन के भविष्य पर खुल कर अपने विचार रखे हैं. लोगों ने बिल गेट्स से तरह-तरह के सवाल पूछे. क्रेवऑनलाइन डॉट कॉमने उनमें से कुछ चुनिंदा सवाल-जवाब के बारे में जिक्र किया है. प्रस्तुत हैं इस सत्र के कुछ प्रमुख सवाल और गेट्स द्वारा दिये गये उनके जवाब :

आयु में बढ़ोतरी और इंसान की अमरता

जहां तक जीवन संभाव्यता यानी इंसान की उम्र में बढ़ोतरी और अमरत्व की प्राप्ति के संबंध में रिसर्च का सवाल है तो इस बारे में हमें अभी थोड़ा सोचना होगा. मेरा मानना है कि यह थोड़ा आत्मकेंद्रित होगा, खासक र ऐसे दौर में जब हम मलेरिया और टीबी जैसी बीमारी से जूझ रहे हों. मेरा मानना है कि इंसान की अमरता के संबंध में शोध से ज्यादा इन बीमारियों को खत्म करने पर जोर होना चाहिए और धनी व्यक्तियों को इसके लिए आगे आना चाहिए. बेहतर यह होगा कि हमलोग एकसाथ जीवन जीयें.

माइक्रोसॉफ्ट का होलोलेंस

होलोलेंस बेहद आश्चर्यजनक चीज है. माइक्रोसॉफ्ट इस सॉफ्टवेयर को विकसित करने पर काम कर रहा है. वाकई में यह एक तरह से वचरुअल रियलिटी यानी आभासी वास्तविकता की शुरुआत है. इसकी स्पीड सुपर सुपर फास्ट होगी. हालांकि इसे साकार होने में यानी सॉफ्टवेयर को विकसित होने में कुछ वर्षो का समय लगेगा.

प्रोग्रामिंग में जॉब का आइडिया..

यह अब भी सुरक्षित है. साथ ही यह बेहद मजेदार है और हमें अन्य सभी मसलों पर ज्यादा तर्कसंगत तरीके से सोचने का मौका देता है. हालांकि अगली पीढ़ी के लिए इस क्षेत्र में बदलाव लाने का बेहतर अवसर है, लेकिन यह भी सत्य है कि ज्यादातर विषयों या क्षेत्रों में यह समझ होनी चाहिए कि प्रोग्राम को कैसे उपयोगी बनाये रखा जाये.

थोरियम आधारित न्यूक्लियर पावर

सुरक्षित और सस्ती परमाणु ऊर्जा के लिए अब तक पर्याप्त शोध और विकास (रिसर्च एंड डेवलपमेंट) कार्य को अंजाम नहीं दिया गया है. मैं टेरापावरके इजाद के समर्थन में हूं, जो चौथी पीढ़ी का एक बेहतर साधन साबित हो सकता है. इसमें थोरियम का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इसमें 97 फीसदी यूरेनियम का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे सामान्य रूप से रिएक्टर में ब्रीडिंग या बर्निग के द्वारा इस्तेमाल में नहीं लाया जाता है. इसका मतलब यह हुआ कि यह ईंधन हमेशा सस्ता होगा. हालांकि इस दिशा में अब तक अनेक इनोवेशन किये गये हैं, लेकिन इतना तय है कि आज हमारे पास इसके जो भी विकल्प मौजूद हैं, उन सभी से यह ज्यादा सुरक्षित है.

बिटक्वॉइन और क्रिप्टोकरेंसी

बिटक्वॉइन एक बेहद दिलचस्प नयी तकनीक है. हमारे फाउंडेशन से जुड़े कार्यो में यह भी शामिल है और बैंकिंग सुविधाएं मुहैया कराने के लिए गरीबों को हम डिजिटल करेंसी की मदद कर रहे हैं. दो कारणों से हम खास तौर पर बिटक्वॉइन का इस्तेमाल नहीं करते हैं. एक तो यह कि गरीबों के पास इस करेंसी के होने की दशा में स्थानीय मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव होने से उन्हें नुकसान हो सकता है. दूसरा भुगतान की प्रक्रिया में कोई गलती होने पर उसकी वापसी मुश्किल है. हालांकि बिटक्वॉइन संबंधी प्रक्रिया को ज्यादा तर्कसंगत बनाने से वित्तीय लेन-देन की प्रक्रिया सस्ती होगी, लेकिन हमारे लिए यह बड़ी चुनौती होगी कि इसे आतंकियों के लिए मददगार साबित होने से बचाया जा सके. अन्यथा यह तकनीक घातक साबित हो सकती है.

सुपर इंटेलिजेंस

मैं उस समूह में शामिल हूं जो सुपर इंटेलिजेंस को लेकर परेशान हैं. पहले मशीन हमारे लिए बहुत काम करती थी, लेकिन उसमें सुपर इंटेलिजेंस नहीं था. यदि हम इसे बेहतर ढंग से मैनेज करते तो यह हमारे लिए पॉजीटिव होता. मेरा मानना है कि कुछ दशकों के बाद यह इंटेलिजेंस बहुत शक्तिशाली हो जायेगा.

जल- मल की समस्या

सीवेज यानी गंदे जल की निकासी आज दुनियाभर में एक बड़ी समस्या है. चूंकि इसका बेहतर तरीके से निस्तारण करना खर्चीला है, इसलिए गरीब देशों और खास कर मलिन बस्तियों में इसकी निकासी बड़ी समस्या है. धनी लोग साफ पानी की जरूरतों के लिए जिन तरीकों का इस्तेमाल करते हैं वह बेहद खर्चीली है. इसलिए मैंने इंजीनियरों के समक्ष यह चुनौती पेश की और उनको एक ऐसे प्रोसेसर के इजाद का लक्ष्य दिया, जो सीवेज यानी नाली के पानी को साफ कर उसे पीने लायक बना सके. साथ ही ख्याल रखा गया कि लागत कम हो, ताकि गरीब देशों में ज्यादा से ज्यादा लोग उसका फायदा उठा सकें.

मुङो यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि हमलोग इस कोशिश में काफी आगे बढ़ चुके हैं. हमारी टीम ने इस मशीन का प्रोटोटाइप विकसित कर लिया है और उसे संबंधित एजेंसी को मंजूरी के लिए भेज दिया गया है. उम्मीद है कि इस तकनीक के कामयाब होने से विकासशील देशों में बीमारियों को कम करने और लोगों के रहन-सहन के स्तर को बढ़ाने में मदद मिलेगी.

बीमारियों का उन्मूलन

पोलियो उन्मूलन पर हमने बहुत काम किया है. मैंने इसे ज्यादा फोकस किया है. इसका सबसे आखिरी मामला करीब छह माह पहले अफ्रीका में सामने आया था और अब हम उम्मीद करते हैं कि कोई अन्य मामला सामने नहीं आयेगा. हालांकि, इसे सुनिश्चित होने में अभी एक साल का समय लगेगा. अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अब तक पूरी तरह से इस बीमारी का उन्मूलन नहीं हुआ है. इसलिए जब तक पूरी दुनिया से इसका नाश नहीं होगा, तब तक इसके अन्य देशों में फैलने का जोखिम बरकरार रहेगा. हालांकि पाकिस्तान में सेना और सरकार दोनों ही ने इस मसले को गंभीरता से लिया है और नाइजीरिया की तर्ज पर ही वे अपने यहां इस बीमारी से निपटना चाहते हैं. लेकिन तालिबान इनकी राह में एक बड़ी बाधा बन कर खड़ा हुआ है. कई बार ऐसे मामले सामने आये हैं, जिनमें बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने जा रही माताओं का तालिबानियों ने कत्ल कर दिया है.


Monday, 6 April 2015

क्या है ' इंटरनेट न्यूट्रैलिटी' ?

आजकल देश में नेट न्यूट्रैलिटी' की बहुत चर्चा है ये क्या है आइये इसको जानते है
इंटरनेट पर की जाने वाली फोन कॉल्स के लिए टेलीकॉम कंपनियां अलग कीमत तय करने की कोशिशें कर चुकी हैं. कंपनियां इसके लिए वेब सर्फिंग से ज़्यादा दर पर कीमतें वसूलना चाहती थीं. इसके बाद टेलीकॉम सेक्टर की नियामक एजेंसी 'ट्राई' ने आम लोगों से 'नेट न्यूट्रैलिटी' या 'इंटरनेट तटस्थता' पर राय मांगी है. देश भर में इस सवाल पर बहस छिड़ी हुई है. ऐसे में इससे संबंधित कुछ बातों को हर इंटरनेट यूजर को समझना चाहिए. पढ़ें लेख विस्तार से नेट न्यूट्रैलिटी(इंटरनेट तटस्थता) वो सिद्धांत है जिसके तहत माना जाता है कि इंटरनेट सर्विस प्रदान करने वाली कंपनियां इंटरनेट पर हर तरह के डाटा को एक जैसा दर्जा देंगी. इंटरनेट सर्विस देने वाली इन कंपनियों में टेलीकॉम ऑपरेटर्स भी शामिल हैं. इन कंपनियों को अलग अलग डाटा के लिए अलग-अलग कीमतें नहीं लेनी चाहिए. चाहे वो डाटा भिन्न वेबसाइटों पर विजिट करने के लिए हो या फिर अन्य सेवाओं के लिए. उन्हें किसी सेवा को न तो ब्लॉक करना चाहिए और न ही उसकी स्पीड स्लो करनी चाहिए. ये ठीक वैसा ही है कि सड़क पर हर तरह की

ट्रैफिक के साथ एक जैसा बर्ताव किया जाए. जैसे कारों से उनके मॉडल या ब्रांड के आधार पर पेट्रोल की अलग-अलग कीमतें या अलग रेट पर रोड टैक्स नहीं वसूले जाते हैं. नई संकल्पना ये विचार उतना ही पुराना है जितना कि इंटरनेट लेकिन 'इंटरनेट तटस्थता' शब्द दस साल पहले चलन में आया. सामान्य तौर पर बराबरी या तटस्थता जैसे शब्द तभी ज्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं जब किसी ख़ास मुद्दे पर कोई मुश्किल हो. उदाहरण के लिए जब आप 'औरतों के लिए बराबरी की बात' करते हैं. इसीलिए ट्रैफिक के संदर्भ में 'सड़क यातायात तटस्थता' जैसे किसी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाता है क्योंकि सभी तरह के ट्रैफिक के साथ एक जैसा ही बर्ताव किया जाता है. लेकिन अगर कंपनियां आपकी गाड़ी के मॉडल के हिसाब से पेट्रोल की अलग-अलग कीमतें वसूलने लगें तो आप किसी दिन इस मुहावरे तक पहुंच सकते हैं. कंपनियां खिलाफ क्यों? सवाल उठता है कि टेलीकॉम कंपनियां इंटरनेट नेटवर्क की तटस्थता के खिलाफ क्यों हैं? वे इस बात से परेशान हैं कि नई तकनीकी ने उनके कारोबार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. उदाहरण के लिए एसएमएस सेवा को व्हॉट्स ऐप जैसे लगभग मुफ़्त ऐप ने लगभग मार ही डाला है. इसलिए वे ऐसी सेवाओं के लिए ज्यादा रेट वसूलने की कोशिश में हैं जो उनके कारोबार और राजस्व को नुकसान पहुंचा रही हैं. हालांकि इंटरनेट सर्फिंग जैसी सेवाएं कम रेट पर ही दी जा रही हैं. ये अहम क्यों? एक सवाल ये भी है कि इंटरनेट तटस्थता आपके लिए महत्वपूर्ण क्यों है? इससे मुकरने का एक मतलब ये भी है कि आपके खर्च बढ़ सकते हैं और विकल्प सीमित हो सकते हैं. उदाहरण के लिए स्काइप जैसी इंटरनेट कॉलिंग सुविधा की वजह से मोबाइल कॉलों पर असर पड़ सकता है क्योंकि लंबी दूरी की फोन कॉल्स के लिहाज से वे कहीं अधिक सस्ती हैं. ये टेलीकॉम सर्विस देने वाली कंपनियों के राजस्व को नुकसान पहुंचा रहा था. इस नई हक़ीक़त के मुताबिक खुद को ढालने की बजाय कंपनियों ने स्काइप पर किए जाने वाले फोन कॉल्स के लिए डाटा कीमतें बेतहाशा बढ़ा दीं. इंटरनेट पर फोन कॉल की क्रांति नहीं होती. लेकिन पिछली दिसंबर में एयरटेल ने कहा कि वह इंटरनेट कॉल के लिए थ्री-जी यूजर से 10 केबी के चार पैसे या दो रुपये प्रति मिनट की दर से शुल्क वसूलेगा. इंटरनेट पर एक मिनट के कॉल में तकरीबन 500 केबी डाटा खर्च होता है. इससे उपजी आलोचनाओं की बाढ़ के बाद कंपनी ने बढ़ी दरों को वापस ले लिया और इसके ठीक बाद ट्राई ने इंटरनेट की तटस्थता के सवाल पर एक कंसल्टेशन पेपर जारी कर दिया. खिलाफ तर्क इंटरनेट की तटस्थता के खिलाफ क्या तर्क दिए जाते हैं? इंटरनेट की तटस्थता को संभवतः सरकारी कानून की जरूरत होगी. एक मजबूत तर्क ये दिया जा रहा है कि सरकार को मुक्त बाजार के कामकाज में दखल नहीं देना चाहिए. प्रतिस्पर्धा वाले मुक्त बाज़ार में जो सबसे कम कीमतों पर सबसे अच्छी सेवाएं देगा, उसे जीतना चाहिए. हालांकि इस बात के खतरे भी हैं कि कंपनियां अपना एकाधिकार बनाए रखने के लिए गठजोड़ कर लें खासकर उन बाजारों में जहां प्रतिस्पर्धा कम है, जैसे मोबाइल डाटा का बाजार. ऑपरेटर्स का दूसरा तर्क ये है कि उन्होंने अपना नेटवर्क खड़ा करने में हज़ारों करोड़ रुपये खर्च किए हैं जबकि व्हॉट्स ऐप जैसी सेवाएं जो मुफ्त में वॉइस कॉल की सर्विस देकर उनके उन्हीं नेटवर्क्स का मुफ्त में फायदा उठा रही हैं. इससे टेलीकॉम कंपनियों के कारोबार को नुकसान पहुंच रहा है. अब आगे क्या? ट्राई ने स्काइप, वाइबर, व्हॉट्स ऐप, स्नैपचैट, फेसबुक मैसेंजर जैसी सेवाओं के नियमन से जुड़े 20 सवालों पर भी जनता से फीडबैक मांगा है. इनमें से एक सवाल ये भी है कि क्या इस तरह की कॉलिंग सर्विस देने वाली कंपनियों को टेलीकॉम ऑपरेटर के नेटवर्क के इस्तेमाल के लिए अतिरिक्त कीमत चुकानी चाहिए? यह कीमत यूजर की ओर से दिए गए डाटा शुल्क के अतिरिक्त होगी. इसके बगैर क्या? इंटरनेट तटस्थता को लागू नहीं किया गया तो क्या होगा? अगर ऐसा होता है तो ऑपरेटर इंटरनेट कॉलिंग सर्विस की एवज में डाटा कीमतों के अलावा इसके लिए ज्यादा पैसे वसूल सकते हैं. या फिर इन सेवाओं के लिए अलग से डाटा कीमतें तय की जा सकती हैं. वे कुछ सेवाओं को ब्लॉक कर सकते हैं या उनकी स्पीड को सुस्त कर सकते हैं ताकि यूजर के लिए इनका इस्तेमाल मुश्किल हो जाए. उदाहरण के लिए व्हॉट्स ऐप की डाटा स्पीड को धीमा करके या फिर इसे महंगा करके यूज़र के लिए इसकी कॉलिंग सर्विस का मजा किरकिरा किया जा सकता है. उपभोक्ता की आवाज़ क्या होगा अगर ट्राई इंटरनेट तटस्थता को लागू करती है? अगर व्हॉट्स ऐप या स्काइप या फेसबुक मैसेंजर जैसे खिलाड़ियों के लिए अतिरिक्त चार्ज को ट्राई इजाजत देती है तो आप अपनी सेवाओं में थोड़ा बदलाव देखेंगे. फेसबुक या गूगल से करार करने वाले ऑपरेटर्स की स्पेशल पेशकशें वापस ली जा सकती हैं. जैसे रिलायंस के नेटवर्क पर फेसबुक जैसी कुछ वेबसाइट फ्री में उपलब्ध हैं. या फिर ये भी हो सकता है कि टेलीकॉम कंपनियां अपने घाटे की भरपाई के लिए डाटा टैरिफ में इजाफा कर दें. कुछ लोगों का कहना है कि ट्राई का कदम इंडस्ट्री के लिए सहानुभूति की ओर इशारा करता है. ऐसे लोगों को फिक्र है कि ट्राई को उपभोक्ताओं के बनिस्बत इंडस्ट्री की आवाज़ ज्यादा जोर से सुनाई देगी. यानी इंटरनेट तटस्थता के बरकरार रहने की कम ही उम्मीद है.

Thursday, 22 November 2012

उम्मीदों का नया “आकाश”


आकाश-2 टैबलेट पर विशेष 
लंबे इंतजार और तमाम विवादों के बाद आखिरकार दुनियाँ का सबसे सस्ता आकाश टैबलेट पीसी के नयें संस्करण आकाश 2 को पिछले दिनों  देश के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम में लॉन्च किया।  आकाश का मुख्य संस्करण पिछले साल अक्टूबर में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा आकाश लॉन्च किया गया था । देश के युवाओं के लिए महत्वपूर्ण यह प्रोजेक्ट  तभी से विवादों और लालफीताशाही से घिर गया था । आकाश के मुख्य संस्करण में कुछ शिकायतों के बाद सरकार ने अब इसका उन्नत वर्जन आकाश 2 लॉन्च किया है । इसमें ज्यादातर शिकायतें कम बैटरी लाइफ और स्लो प्रोसेसर की थी । नए संस्करण में एंड्रायड-4 है। इसमें एक गीगाहट्र्ज का प्रोसेसर तथा चार घंटे तक चलने वाली बैटरी है। 
भारत के साथ साथ पूरे विश्व की निगाहे अब आकाश पर टिक गई है। आकाश-2 टैबलेट को इसी महीने 28 नवंबर को संयुक्त राष्ट्र में भी प्रदर्शित किया जाएगा । देश में आकाश टैबलेट की जबरदस्त माँग को देखकर लग रहा है कि  युवाओं में इसे लेकर काफी उत्साह और उत्तेजना का माहौल है । देश में कंप्यूटर शिक्षा के क्षेत्र में ये एक तकनीकी क्रांति के सफल या असफल  होने के पहले की उत्तेजना है, क्योकि इस क्रांति के सूत्रधार देश के गांव ,कसबे और शहरों सभी से जुड़े है । हर आम और खास में इसे पाने और देखने की ललक है। भारत में आकाश के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में यह क्रांति सफल हो पायेगी या नहीं। यह तो भविष्य बतायेगा लेकिन यह तो तय है कि इस प्रोजेक्ट में काफी संभावनाएं है ।
लेकिन यह इस देश का दुर्भाग्य है कि सरकार लोगो को सपने तो दिखाती है लेकिन उनको पूरा करने की दिशा में ठीक ढंग से काम नहीं होता ।आकाश परियोजना के शुरू होते ही इस पर सवाल उठने लगे थे लेकिन सरकार ने उस समय इन बातो को अनसुना कर दिया था। अगर उसी  समय आकाश की कमियों को अपग्रेड कर दिया गया होता तो आज नए आकाश 2 को लाँच करने की नौबत नही आती। अब मानव संसाधन विकास मंत्री कह रहें है कि आकाश की भारी मांग को पूरा करने के लिए इसको बनाने में कई निर्माताओं को लगाया जायेगा और इसमें सुधार कर इसे लगातार अपग्रेड किया जायेगा ।
आकाश के मुख्य संस्करण में जो कमियाँ थी वो आकाश 2 में दूर करने का प्रयास किया गया है । मसलन  आकाश-2 का प्रोसेसर काफी तेज है और इसमें यू-टयूब से वीडियो डाउनलोड करने के साथ एंड्रॉयाड एप्लीकेशन की भी सुविधा है। इससे छात्रों को काफी सहूलियत होगी। आकाश-1 का टच पैनल इलेक्ट्रानिक   प्रतिरोधक प्रकृति का है जबकि आकाश-2 में मल्टी टच पैनल है। आकाश के प्रथम प्रारूप का प्रोसेसर 366 से 512  मेगाहर्टज का था जबकि आकाश-2 का प्रोसेसर 1 गीगाहर्टज का है। देश के सुदूर क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी के जरिये उच्च शिक्षा को जोड़ने की कवायद के तहत सरकार ने आकाश परियोजना शुरू की थी। आकाश-1 की मेमोरी 2 जीबी है जबकि आकाश-2 की मेमोरी 4 जीबी क्षमता की है। आकाश के पहले प्रारूप का ऑपरेटिंग सिस्टम एंड्रॉयड 2.2 दर्जे का है जबकि आकाश-2 का ऑपरेटिंग सिस्टम एंड्रॉयड 4.03 दर्जे का है। आकाश-1 में कोई सेंसर नहीं है जबकि आकाश-2 में जी सेंसर जोड़ा गया है। आकाश-1 की बैटरी 2100 एमएएच क्षमता की है जबकि आकाश-2 की बैटरी की क्षमता 3000 एमएएच है। आकाश के पहले प्रारूप में कोई कैमरा नहीं है जबकि आकाश-2 में  वीजीए कैमरा और  वाईफाई कनेक्शन की सुविधा है।
वास्तव में इतने कम मूल्य में आकाश को एक अच्छा उपकरण माना जा सकता है। लिहाजा आगे आकाश जैसे और इनोवेशन की गुंजाइश बनी रहेगी। यह उपयोगी उपकरण हो सकता है, खासकर ई-बुक रीडिंग जैसी इंटरनेट रहित एप्लीकेशन के लिए। आनेवाले दिनों में आइपैड का कांसेप्ट हमारे आदतों को बदल सकता है। मसलन कागज के अखबार पढ़ने की जगह लोग इस पर ही देश-दुनिया की खबरें पढ़ा करेंगे।
यह महगें आईपैड का मुकाबला नहीं तो कर सकता लेकिन डिजिटल क्रांति से महरूम लोगों खास कर युवा पीढ़ी के लिए अहम साबित हो सकता है। वास्तव में आकाश टेबलेट लाने का मुख्य मकसद कंप्यूटिंग और इंटरनेट एक्सेस के लिए प्राइस बैरियर को तोडना है। इतने कम दाम में इतनी सारी चीजें समाहित करना कोई आसान काम नहीं है। अगर इस परियोजना के संचालक देश भर से उभरने वाली विशाल मांग को पूरा कर पाते हैं और यह परियोजना जमीनी स्तर पर सही ढंग से लागू की जाती है तो आने वाले वर्षो में कंप्यूटर शिक्षा और साक्षरता दोनों ही मोर्चो पर बड़ी उपलब्धियां अर्जित की जा सकती हैं इस साल के अंत तक उम्मीद है कि आकाश-2 एक लाख छात्रों को सब्सिडी दर पर 1132 रुपए में उपलब्ध कराया जाएगा, जबकि इसका बाजार मूल्य 2999 रुपए होगा। सरकार और आकाश बनाने वाली कंपनी डेटाविंड के बीच विवाद के बाद अब आकाश का पहला माँडल  बनाने वाली कंपनी डाटाविंड इस प्रोजेक्ट से  जुड़ी नहीं रहेगी और सरकार आकाश टैबलेट कंप्यूटर के विकास के लिये आईआईटी, सी-डैक तथा आईटीआई की सेवा ले रही है । मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अनुसार दुनिया का सबसे सस्ता टैबलेट कंप्यूटर पूरी तरह स्वदेशी है और इसका उन्नत संस्करण मौजूदा कीमत 2276 पर ही उपलब्ध होगा।
वास्तव में आकाश एक सस्ता टैबलेट ही नहीं है बल्कि यह इस बात की मिसाल भी बन सकता है कि भारत इस तकनीक का उपयोग कर देश के 22 करोड़ छात्रों को गरीबी से पार पाने व कमजोर शिक्षा का सामना करने का तकनीकी हथियार मुहैया कराने में सक्षम है। आकाश दरअसल भारत के लिए उपलब्धि है तो यह पश्चिमी देशों के लिए चुनौती भी है कि आखिरकार भारत ने इसे कैसे संभव कर दिखाया। आकाश के बारे में कई अनुपम आशाएं भी हैं। इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों का व्यक्तिगत और शैक्षणिक रिकॉर्ड आकाश टैबलेट के जरिए रखा जाएगा। इसके लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय इंजीनियरिंग कॉलेजों को आकाश टैबलेट देगा।  इसका जिम्मा मंत्रालय ने आईआईटी मुंबई को सौंपा है। इसी को लेकर मंत्रालय ने पिछले दिनों देश के 245 इंजीनियरिंग कालेजों में  एक साथ  दो दिवसीय कार्यशाला आकाश  शिक्षा के लिए शुरू किया था । वास्तव में यह एक सकारात्मक प्रयास है जिससे इस परियोजना को व्यवहारिक तरीके से  शुरू करने में मदत मिलेगी ।
महत्वपूर्ण बात यह है कि दुनिया के सबसे सस्ते टेबलेट आकाश के विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भारत से जुड़ना चाहती हैं।क्योकि आकाश ने अंतरराष्ट्रीय नेताओं और कंपनियों का ध्यान आकर्षित किया है। आइबीएम और इंटेल जैसी कंपनियां बिना इसकी कीमत बढ़ाए आकाश की क्षमता बढ़ाने के लिए भारत के साथ भागीदारी करना चाहती हैं। इतने कम दाम में इस समय बाजार में आपको इंटरनेट कनेक्टिविटी वाले सस्ते फोन भी नहीं मिलेंगे, ऐसे में इसे टचस्क्रीन और टैबलेट एक्सपीरियंस के लिए बहुत बढ़िया एंट्री लेवल प्रॉडक्ट माना जा सकता है।
देश में परियोजनाएँ तो अच्छी सोच के साथ बनाई जाती है लेकिन उनका क्रियान्वयन ठीक ढंग से नहीं हो पता। यही वजह है कि इस प्रोजेक्ट पर विवादों के साथ काफी देर भी हुई । देश में आकाश की बढती मांगो को देखते हुए आपूर्ति के साथ साथ गुणवत्ता बनाये रखना सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है। ये आगे आने वाला वक्त ही बताएगा कि सरकार इन चुनौतियो का सामना ठीक ढंग से करती है या अन्य परियोजनाओ की तरह इसे भी सिर्फ निजी कंपनियों या कुछ संस्थाओ के भरोसे छोंड दिया जायेगा।

Tuesday, 26 June 2012

गूगल की खास विशेषता


याददाश्त के मामले में हर इंसान एक-दूसरे से अलग होता है। कुछ लोगों को ऐतिहासिक तारीखें सारे ब्यौरों के साथ याद रहती हैं, पर कई ऐसे भी होते हैं जिनके लिए रोजमर्रा की चीजें याद रखना ही एक बड़ी चुनौती है। अक्सर ऐसा होता है कि वे कोई चीज कहीं रखकर ऐसे भूल जाते हैं कि उसे खोजना लगभग नामुमकिन हो जाता है। कई दफा ऐसा भी होता है कि जिस चश्मे की खोज में सारा घर उलट-पुलट दिया हो, वह हमारी नाक पर ही मौजूद हो। जरूरी नहीं कि याददाश्त की यह कमजोरी किसी बीमारी का संकेत हो। ऐसा हमारी अत्यधिक व्यस्तता की वजह से भी हो सकता है। ऐसे में हम कई बार उन चीजों को भी ढूंढने में आसपास मौजूद लोगों की मदद लेते हैं, जिन्हें हमने काफी सहेज कर रखा होता है। 

ऐसे लोगों को यह जानकार तसल्ली होगी कि साइंटिस्टों ने उनकी समस्या का एक समाधान खोज लिया है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जिनिया के दो साइंटिस्टों ने एक ऐसा सिस्टम तैयार किया है जो घरेलू सामानों का हिसाब रख कर बता सकता है कि कौन सा सामान कहां रखा गया है। यह असल में गूगल जैसा एक घरेलू सर्च इंजन है जिसमें कई सेंसरों को कंप्यूटर के एक खास सॉफ्टवेयर से जोड़ा गया है। कैमरे के जरिए चीजों की मौजूदगी दर्ज करने वाला काइनेट नामक यह सिस्टम इस सिद्धांत पर काम करता है कि चीजें तभी अपनी जगह बदलती हैं जब कोई उन्हें वहां से हटाता है। इस सिस्टम को चलाने वाले सॉफ्टवेयर में वे बेसिक बातें पहले से दर्ज हैं जिनसे चीजों को ढूंढने में आसानी होती है। जैसे चाय-कॉफी का प्याला डायनिंग टेबल, पढ़ाई की मेज या किचन के सिंक में खोजना होगा, न कि बाथरूम में। 


जब सिस्टम यह तय नहीं कर पा रहा हो कि कोई चीज कहां हो सकती है, तो यह बेसिक समझ उसे उन चीजों के मिलने की संभावित जगहों के बारे में अलर्ट करेगी। यह सचमुच खुशी की बात है कि अटॉमिक एनर्जी और स्पेस रिसर्च जैसे बड़े-बड़े मोर्चे लेने के साथ साइंटिस्टों की नजर जिंदगी आसान बनाने वाले उन नुस्खों पर भी है जिन्हें घर का वैद्य जैसी कटिगरी में रखा जा सकता है। लेकिन हमें यह भी याद रखना होगा कि यह उपाय याददाश्त के मामले में भी कहीं हमें उसी तरह कमजोर न बना दे, जैसे बच्चे मैथ्स के बेसिक सवालों को हल करने के लिए कैलकुलेटर पर निर्भर हो गए हैं।

Wednesday, 23 May 2012

भविष्य के कम्प्यूटर



सन् 2030 अथवा उसके आसपास आपके डेस्क पर रखा हुआ कम्प्यूटर ट्रांजिस्टरों और चिपों के स्थान पर द्रव से भरा हो सकता है। यह क्वांटम कम्प्यूटर होगा। यह भौतिक नियमों के द्वारा संचालित नहीं होगा। आपका यह कम्प्यूटर अपने ऑपरेशंस के लिए क्वांटम यांत्रिकी (Quantum Mechanics) का प्रयोग करेगा। क्वांटम यांत्रिकी ही टेलीपोर्टेशन (किसी वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर बिना स्थान परिवर्तन के पहुँचाना) और सामानांतर ब्रह्मड (Parallel universe) जैसी सैद्धांतिक संकल्पनाओं का आधार है।

आपका यह क्वांटम कम्प्यूटर एक डाटा रॉकेट होगा। यह शायद पेन्टियम III पर्सनल कम्प्यूटर से 1 अरब गुना ज्यादा तेजी से गणना करने में सक्षम होगा। यह सन् 2030 में पलक झपकते ही पूरे इंटरनेट को खँगाल सकने में सक्षम होगा और सबसे एडवांस सिक्योरिटी कोड को आसानी से तोड़ देगा। यह कोई साइंस फिक्शन नहीं है बल्कि आने वाले कुछ वर्षों में सच्चाई की दुनिया में संभव होने वाला है।

क्वांटम कम्प्यूटर, कम्प्यूटर चिपों के स्थान पर परमाणुओं का प्रयोग गणना के लिए करते हैं।प्रारंभिक क्वांटम कम्प्यूटर काफी पुरातन, खर्चीले और परीक्षण के स्तर पर ही हैं। किंतु उनके निर्माण ने सिद्ध कर दिया है कि आने वाला समय इन्हीं कम्प्यूटरों का है। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी की प्रयोगशालाओं में क्वांटम कम्प्यूटर से सम्बंधित प्रोजेक्टों पर जोर-शोर से कार्य जारी है। अमेरिकी सरकार ने लॉस अलामॉस नेशनल प्रयोगशाला में क्वांटम कम्प्यूटिंग लैब की स्थापना की है।

मगर यहां पर एक समस्या है कि सैद्धांतिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से क्वांटम कम्प्यूटिंग काफी कठिन कार्य है। व्यावहारिक रूप से ऐसी परिस्थिति पैदा करना जहाँ परमाणु गणना कर सकें और उनसे परिणाम प्राप्त हो, यह वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौती है। सिद्धांत के दृष्टिïकोण से क्वांटम यांत्रिकी उन क्षेत्रों में डुबकी लगाती है जो सोचने के दायरे से लगभग बाहर हैं। उदाहरण के लिए यह संभव है कि क्वांटम कम्प्यूटर के पास अनंत संख्याओं वाले समानांतर ब्रह्मडों के लिए अनंत संख्या के सही उत्तर हों। आप जिस ब्रह्मïांड में इस समय हैं  क्वांटम कम्प्यूटर उसके लिए सही उत्तर दे सकता है। दुनिया के सबसे विख्यात क्वांटम कम्प्यूटिंग वैज्ञानिक आई बी एम के चाल्र्स बेनेट का इस बारे में कहना है कि इन चीजों को स्वीकार करने के लिए काफी साहस की जरूरत है। यदि आप इन चीजों में विश्वास करते हैं तो आपको कई विचित्र चीजों पर विश्वास करना होगा।

इसका परिणाम है कि व्यावहारिक क्वांटम कम्प्यूटिंग अभी भी दशकों दूर है। वर्तमान में वैज्ञानिकों के क्वांटम कम्प्यूटिंग प्रयास उसी तरह के हैं जैसे विद्युत के सिद्धांतों के परीक्षण के लिए बेंजामिन फ्रैंकलीन ने कड़कती बिजली में पतंग उड़ाई थी। प्रयोगशालाओं में कार्यरत् वैज्ञानिकों के लिए अगला चरण इस अविश्वसनीय शक्ति को नियंत्रित और उपयोग करने का है।

क्वांटम कम्प्यूटर के मूलभूत सिद्धांत
किसी गैर वैज्ञानिक व्यक्ति के लिए क्वांटम कम्प्यूटिंग की कार्य-प्रणाली को समझना काफी कठिन कार्य है। क्वांटम कम्प्यूटिंग का ख्याल वैज्ञानिकों के दिमाग में उस वक्त आया जब उन्होंने समझा कि परमाणु प्राकृतिक रूप से सूक्ष्म कैल्कुलेटर हैं। इस बारे में एमआईटी के नील गेर्शेनफेल्ड का कहना है कि ''प्रकृति को गणना करना मालूम है। गेर्शेनफेल्ड ने आई बी एम के आइज़क चुआँग के साथ मिलकर अभी तक के सबसे सफल क्वांटम कम्प्यूटर का निर्माण किया है।

परमाणुओं का एक प्राकृतिक चक्रण (Spin) अथवा ओरिएन्टेशन (orientation) होता है, जिस तरह से किसी दिक् सूचक (compass) में सुई का एक ओरिएन्टेशन होता है। यह चक्रण अप (ऊपर) या डाउन (नीचे) हो सकता है। यह डिजीटल तकनीक के साथ खूब मेल खाता है, जो प्रत्येक चीज को 1 या 0 की श्रेणी में निरूपित करती है। किसी परमाणु में ऊपर की ओर निर्देशित करने वाला चक्रण 1 हो सकता है; नीचे की ओर निर्देशित करने वाला चक्रण 0 हो सकता है। चक्रण को ऊपर या नीचे करना किसी सूक्ष्म ट्रांजिस्टर पर स्विच को ऑन या ऑफ करने के समान है (अथवा 1 और 0 के बीच)। एक परमाणु जो नँगी आँखों से दिखाई नहीं देता है, जब तक आप उसका मापन करें एक ही समय में ऊपर या नीचे दोनों जगह हो सकता है। यह अत्यन्त ही विस्मयकारी है। यह क्वांटम यांत्रिकी का हिस्सा है जो आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत की तरह नियमों का समुच्चय है- जिससे ब्रह्मïांड की कार्य प्रणाली समझी जा सकती है। क्वांटम यांत्रिकी के द्वारा सूक्ष्म अर्थात् अणु, परमाणु, क्वार्क इत्यादि के संसार को समझा जा सकता है। इसके नियम इतने विचित्र हैं कि उनको समझना आसान नहीं है। लेकिन उन्हें बार-बार सिद्ध किया जा चुका है। क्योंकि किसी परमाणु का चक्रण एक ही समय में ऊपर या नीचे दोनों हो सकता है, इसलिए ये पारम्परिक कम्प्यूटर के एक बिट के बराबर नहीं होता है। यह कुछ अलग है। वैज्ञानिक इसे क्यूबिट (Qubit) कहते हैं। यदि आप क्यूबिट्स के एक समूह को एक साथ रखें तो वे वर्तमान कम्प्यूटरों की तरह एकरेखीय (linear) गणनाएं नहीं करते हैं। वे एक ही समय में सभी संभावित गणनाएँ करते हैं। एक तरह से वे सभी संभावित उत्तरों की छानबीन करते हैं। क्यूबिट्स के मापन का कार्य गणना प्रक्रिया को रोक देता है और उन्हें एक विशेष उत्तर को चुनने पर मजबूर करता है।

चालीस क्यूबिट्स वाले क्वांटम कम्प्यूटर की गणना शक्ति वर्तमान के सुपर कम्प्यूटरों के बराबर होगी। वर्तमान का कोई भी सुपर कम्प्यूटर विश्व की सभी फोन बुकों के डाटाबेस से एक नम्बर ढूंढने में एक माह का वक्त लेगा, जबकि भविष्य के क्वांटम कम्प्यूटर इस कार्य को मात्र 27 मिनट में सम्पन्न कर देंगे।

विभिन्न प्रकार के चक्रण
क्वांटम यांत्रिकी का एक अन्य पहलू कम्प्यूटिंग के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसे इंटेंगलमेंट (Entanglement) कहते हैं। दो परमाणुओं पर लगने वाला बाह्यबल उन दोनों को एक दूसरे में फंसा अथवा उलझा सकता है। इसे ही इंटेंगलमेंट कहते हैं। वे दो परमाणु ब्रह्मïांड में चाहे कई प्रकाशवर्ष दूर ही क्यों न स्थित हों, आपस में उलझे ही रहेंगे। उनके चक्रण एक ही समय में सभी स्थितियों में होंगे। लेकिन जिस क्षण उलझे हुए कण का अवलोकन किया जाता है, उसका चक्रण एक तरफ दिखाई देता है। उसी क्षण दूसरे कण का चक्रण विपरीत दिशा में होता है।

एक तरह से यह सँचार (communication) है। यदि आप किसी उलझे हुए कण के चक्रण को एक तरफ ऊपर की स्थिति में देखें, तो आप अपने आप जान जाएंगे कि दूसरी ओर इसका चक्रण नीचे की ओर है। यह घटना तत्कालिक रूप से घटती है इसलिए यह प्रकाश की गति  के नियमों का उल्लंघन करती हुआ दिखाई देती है। इंटेंगलमेंट के सिद्धांतों से वैज्ञानिकों को विश्वास हो गया है कि इससे गणना की गति को बढ़ाया जा सकता है। वर्तमान के कम्प्यूटरों के साथ यह समस्या है कि उनकी गति प्रकाश की गति से निर्धारित होती है। चाहे वह क्वांटम या पारम्परिक कम्प्यूटर हों, इंटेंगलमेंट इस गति सीमा को पार कर सकता है।

क्वांटम कम्प्यूटर के लिए सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग की संकल्पना भी काफी अजूबी है। क्वांटम कम्प्यूटर के लिए प्रोग्रामिंग करने के लिए वर्तमान कम्प्यूटरों के कदम-दर-कदम तर्क का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। इसके लिए क्यूबिट्स के विशिष्टï गुणों का प्रयोग करने वाले तर्क की जरूरत है। इसी कार्य को एटीएंड टी बेल लैब्ज़ के लव ग्रोवर ने किया जब उन्होंने एक विधि-विशेष (algorithm) अथवा गणितीय प्रोग्राम का आविष्कार किया जो डाटाबेस को सर्च करने के लिए क्वांटम कम्प्यूटिंग का प्रयोग करता है। वे इस तथ्य की तालाब में कई कंकड़ एक साथ गिराने से तुलना करते हैं जिससे तरंगें एक विशेष तरीके से एक-दूसरे को काटती हैं व असर डालती हैं। ग्रोवर की विधि-विशेष से गणना के बहुमार्गों की स्थापना होती है, जिससे सभी एक दूसरे के लिए व्यतिकारी (interferring) हो जाते हैं। ग्रोवर का कहना है, ''सही उत्तर रचनात्मक रूप से व्यक्तिकरण (interferrence) करते हैं और जुड़ जाते हैं।" यह एक प्रकार की पश्च गणन (backward computing) है। इसमें आप मान लेते हैं कि कम्प्यूटर सभी संभावित उत्तरों को जानता है और इसे उचित उत्तर ढूंढना है।

1990
के दशक के दौरान ग्रोवर, बेनेट और गेर्शेनफेल्ड मात्र सिद्धांत के स्तर पर ही हाथ-पैर मारते रहे। लेकिन अहम प्रश्न है कि कैसे कार्यशील क्वांटम कम्प्यूटर का निर्माण किया जाए? हाल के वर्षों में इसके कुछ उत्तर मिले हैं। गेर्शेनफेल्ड-चुआँग द्वारा निर्मित क्वांटम कम्प्यूटर पारम्परिक कम्प्यूटरों की भांति बिल्कुल नहीं लगता है। यह एक न्यूक्लियर टोस्टर (Nuclear toaster) ज्यादा लगता है। क्वांटम कम्प्यूटिंग की सबसे बड़ी समस्या है कि गणना करने वाले परमाणुओं को उनके चारों ओर के वातावरण से पूर्णतया पृथक करना होता है। किसी अन्य परमाणु अथवा प्रकाश के कण के साथ किसी भी प्रकार का संबंध उपकरण के परमाणु के चक्रण की दिशा पर प्रभाव डालता है, जिससे गणना पर प्रभाव पड़ता है। फिर भी यदि क्वांटम कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग करना है तो ऐसा होना असंभव है।

क्लोरोफॉर्म के परमाणु
कुछ समय पूर्व गेर्शेनफेल्ड और चुआँग ने ब्रेन स्कैन के लिए प्रयोग किए जाने वाली न्यूक्लियर मेग्नेटिक रेज़ोनेंस मशीन (NMR) का प्रयोग क्वांटम कम्प्यूटर के निर्माण के लिए किया। उन्होंने एक टेस्ट ट्यूब को क्लोरोफॉर्म द्रव से भरा। क्लोरोफॉर्म का निर्माण कार्बन और हाईड्रोजन परमाणुओं से होता है। फिर उन्होंने इस टेस्ट ट्यूब को नियंत्रित चुम्बकीय स्पंदन उत्सर्जित करने वाले मेग्नेटिक क्वायल के पास रखा। क्लोरोफॉर्म परमाणुओं की विशेषता होती है कि वे अपने चक्रण के साथ नाचते हैं। ऐसा प्राकृतिक है। न्यूक्लियर मेग्नेटिक रेज़ोनेंस द्वारा उत्सर्जित स्पंदन क्लोरोफार्म परमाणुओं के नृत्य के दौरान कुछ परमाणुओं को धक्का देते हैं, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से अन्य परमाणुओं के चक्रण प्रभावित होते हैं। इस तरह से बिना किसी संपर्क के कार्बन परमाणु के चक्रणों को प्रोग्राम किया जा सकता है, जिससे वे क्वांटम कम्प्यूटरों की तरह कार्य करते हैं। नर्तन से चुम्बकीय क्षेत्र में हल्का कूजन (slight warbling) उत्पन्न होती है। इस कूजन के मापन से वैज्ञानिक क्वांटम गणनाओं के परिणाम को पढ़ सकते हैं। एनएमआर चक्रणों को निश्चित अंतराल में धक्का लगाता है। चुआँग के अनुसार ''उछालों (flips) के अनुक्रम (sequence) ही प्रोग्राम हैं।"
प्रोग्राम में ग्रोवर की विधि विशेष समाहित है। उन्होंने साधारण सर्च किया, उन्होंने एक चरण में चार में से एक आइटम ढूंढा (एक पारम्परिक कम्प्यूटर तीन या चार कोशिशें करेगा)। इस तरह से गेर्शेनफेल्ड और चुआँग ने प्रथम 2-क्यूबिट क्वांटम कम्प्यूटर का निर्माण करने में सफलता प्राप्त की। इस पर लगभग 10 लाख अमेरिकी डॉलर खर्च आया। तब से उन्होंने एक 3-क्यूबिट क्वांटम कम्प्यूटर के निर्माण में भी सफलता प्राप्त की है।

क्वांटम कम्प्यूटर बनाने के और भी कई तरीके हैं। ऑस्ट्रेलिया में एक वैज्ञानिक ग्रुप ऐसा क्वांटम कम्प्यूटर बनाने की कोशिश कर रहा है जिसमें द्रव का प्रयोग नहीं किया जाएगा। एक अन्य वैज्ञानिक ग्रुप ने 'आयन ट्रैप्स' (ion traps) का प्रयोग किया है, जो एक समय में एक क्वांटम कम्प्यूटिंग कण का निर्माण करता है।
कम्प्यूटर कंपनियाँ भी क्वांटम कम्प्यूटर के निर्माण में काफी दिलचस्पी दिखाती हैं। इस बारे में गेर्शेनफेल्ड का कहना है कि यदि ट्रांजिस्टर पर लगे कम्प्यूटर चिप इसी तरह छोटे होते गए तो लगभग 2020 के आसपास कम्प्यूटर चिप पर लगे तार की मोटाई परमाणु की मोटाई के बराबर हो जाएगी। ऐसे में वर्तमान चिप डिजाइन प्रयोग करने वाले कम्प्यूटर और अधिक तेज रफ्तार के नहीं किए जा सकेंगे। इसके लिए कोई विकल्प आवश्यक है। ऐसे में क्वांटम कम्प्यूटर ही एकमात्र आकर्षक विकल्प दिखाई देता है। क्वांटम कम्प्यूटर के लिए सिलिकॉन की अपेक्षा सप्लाई मैटीरियल की मात्रा भी अक्षय है।

क्वांटम कम्प्यूटरों के लिए प्रोग्रामिंग लैंग्वेज का विकास
क्वांटम कम्प्यूटर जो समान्तर में बहुत सी गणना करने के लिए क्वांटम यांत्रिकी (Quantum Mechanics) के रहस्य पर आधारित हैं, का अभी व्यावहारिक पक्ष उभरकर सामने आना बाकी है। इन कम्प्यूटरों का सैद्धान्तिक पक्ष ही उजागर हुआ है। लेकिन भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए इन लगभग अस्तित्वहीन मशीनों के लिए शोधकर्ताओं ने प्रोग्रामों को लिखने की कोशिश आरंभ कर दी है। वैज्ञानिकों का विश्वास है कि क्वांटम कम्प्यूटरों के लिए प्रोग्राम लिख जाने से ऐसा कम्प्यूटर तैयार करने में आसानी होगी जो काफी उपयोगी हो। इस विषय में फ्रांस की सबाटियर यूनीवर्सिटी के स्टेफनो बेट्टेली के एक शोधपत्र को यूरोपियन फिजिक्स जर्नल द्वारा स्वीकार कर लिया गया है। 
वर्तमान कम्प्यूटरों की गणना का आधार द्विआधारी अंक (binary digit) अथवा 'बिट' है, जिसका 0 अथवा 1 मूल्य हो सकता है। क्वांटम कम्प्यूटर में बिट्स का स्थान 'क्यूबिट्स' ले लेती हैं, जो अध्यारोपण (superimposition) की अवस्थाओं में होती हैं- आंशिक 0 और आंशिक 1। इसी अध्यारोपण की वजह से गणना का समान्तर में होना संभव होता है। एक क्यूबिट के मूल्य का मापन करने से अंतोगत्वा इसे दो द्विआधारी अंकों 0 अथवा 1 में ही परिवर्तित करना होगा। किसी भी सुसंगठित क्वांटम गणना में ऐसा होना आवश्यक नहीं होना चाहिए।

कम से कम यही सिद्धान्त है। लेकिन इसे व्यावहारिक रूप देना काफी कठिन है। डा. बेट्टïेल्ली और उनके सहयोगियों ने फिर भी इसे व्यावहारिक बनाने का प्रयास किया है। उनकी लैंग्वेज के मुख्य तत्व 'क्वांटम रजिस्टर्स' (Quantum Registers) और 'क्वांटम ऑपरेटर्स' (Quantum operators) हैं। क्वांटम रजिस्टर्स प्रोग्राम के लिए वह मार्ग हैं जिनसे वे किसी क्यूबिट विशेष से परस्पर क्रिया करते हैं। वह मशीन के अंदर क्यूबिट्स के स्थान के लिए 'प्वाइंटर्स' (Pointers) का कार्य करते हैं। इस तरह से उन क्यूबिट्स में प्रोग्राम के द्वारा फेरबदल किया जा सकता है।

यह फेरबदल 'क्वांटम ऑपरेटर्स' के द्वारा किया जाता है। ये लॉजिकल ऑपरेटर्स (Logical Operators) के समतुल्य होते हैं, जैसे कि ''एंड",''नॉट" और ''अथवा", जो कि परंपरागत् प्रोग्रामिंग का आधार हैं (जिसमें एक निर्देश कह सकता है कि ''जब A अथवा B और C सत्य नहीं हैं "D" करें) । क्वांटम ऑपरेटर्स यूनीटरी ट्राँसफॉर्मेशन" (unitary  transformation) पर निर्भर करते हैं। (नाम की उत्पत्ति बीजगणित के व्यूहों में दबा रहता है)। यहाँ पर यह आवश्यक है कि युक्तिपूर्ण तरीके से प्रोग्राम को रेखांकित करने वाले यूनीटरी ट्रांसफॉर्मेशंस की व्याख्या इस तरह की जाए कि वह कम्प्यूटर वैज्ञानिकों के लिए उपयोगी हो। डा. बेट्टïेल्ली ने ऑब्जेक्ट ओरिएण्टेड प्रोग्रामिंग का प्रयोग करते हुए इस कार्य में सफलता प्राप्त की है।

ऑब्जेक्ट ओरिएण्टेड प्रोग्रामिंग कमांड और डाटा दोनों को, इंडिविजुअल बंडल्स जिन्हें ऑब्जेक्ट कहते हैं, को संयुक्त करके कार्य करती है। ये ऑब्जेक्ट पारम्परिक और क्वांटम कम्प्यूटरों के बीच की दूरी को मिटाने में प्रयोग किए जा सकते हैं। ऐसी संभावना है कि कार्यशील क्वांटम कम्प्यूटर बड़े परम्परागत कम्प्यूटर का एक विशेष हिस्सा होगा, इसलिए किसी भी सफल लैंग्वेज़ को रजिस्टर्स और ऑपरेटर्स को इस तरह से संभालना होगा कि वे परम्परागत् संगणना के साथ एकीकृत की जा सके।

क्वांटम कम्प्यूटर
की ओर एक कदम अमेरिकी वैज्ञानिकों ने क्वांटम कम्प्यूटर को बनाने की दिशा में एक कदम बढ़ाया है। अभी तक वैज्ञानिकों ने अपना ध्यान उन मूलभूत तत्वों के विकास पर लगाया है जो क्वांटम बिट्स अथवा क्यूबिट्स कहलाने वाली सूचनाओं को स्टोर करने में सक्षम हों। विज्ञान पत्रिका 'नेचरÓ में प्रकाशित लेखों के अनुसार शोधकर्ताओं ने ऐसा तरीका ढूंढ लिया है जिससे यह क्यूबिट्स आपस में सम्प्रेषण (Communicate) कर सकें। उदाहरण के लिए एक कम्प्यूटर चिप के आरपार। अभी तक क्यूबिट्स केवल अपनी पड़ोसी क्यूबिट्स से ही संप्रेषण करने में सक्षम थे। लेकिन अब येल यूनीवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ऐसी तकनीक का विकास कर लिया है जिससे एक ही चिप में एक स्टेशनरी क्वांटम बिट से सूचना दूसरी स्टेशनरी क्वांटम बिट तक सम्प्रेषित की जा सकती है। इसके लिए माइक्रोवेब फोटॉन को माध्यम बनाया जाता है। यह तकनीक क्वांटम कम्प्यूटर बनाने की दिशा में प्रारम्भिक, किंतु एक महत्वपूर्ण कदम है। इसी तरह के प्रयास दुनिया के कई हिस्सों में किए जा रहे हैं।