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Tuesday, 17 April 2018

Facebook के सही उपयोग के कुछ सूत्र:

Dr. Avyact Agrawal

Facebook पर मैं लगभग एक वर्ष से हूँ। इस बीच ज़हाँ आप सबने बहुत प्यार दिया, मेरी किताब आपकी वज़ह से आयी और बिकी। कुछ बेहद अच्छे मित्र मिले। कुछ गहरे लेखक मिले। फिर मेरे यूट्यूब चैनल को भी एक अच्छी शुरुआत आपने
दिलवाई।

वहीँ मेरा इनबॉक्स रोज़ाना लोगों की मानसिक और शारीरिक समस्याओं  से भरा रहने लगा।

कुछ समस्याएं तो लोगों की पोस्ट और बातें सुनकर मुझे फेसबुक की ही दी हुई लगने लगीं। तो सोचा मेरे एक वर्ष के अनुभव, मनोविज्ञान और व्यक्तित्वों की समझ के अनुरूप फेसबुक का खुशहाल उपयोग के कुछ सूत्र लिखूँ। शायद कुछ लोगों के काम आएं।

1. पहला सूत्र तो यही है कि इस बात को दिल की गहराइयों तक स्वीकार कर लें कि फेसबुक आपके रोज़मर्रा के जीवन में 0.1 प्रतिशत से ज़्यादा अहमियत नहीं रखता। इसे एक मनोरंजन और ज्ञान अर्जित का अच्छा साधन मानें लेकिन रिश्ते ढूँढने और बनाने का बिल्कुल नहीं।

2. हमेशा आइडियाज़, विचार, विचार धारा  की बातें करें और ज़हन में रखें किसी व्यक्ति की बातें न करें तीसरे से। खासकर नकारात्मक चर्चा से बचें। जो पसंद नहीं उसे इग्नोर कर दें, unfriend कर दें , ब्लॉक कर दें लेकिन नकारात्मक पोस्ट करना ,स्क्रीनशॉट पब्लिक करने का अर्थ यह है कि उस व्यक्ति को आप अपने खूबसूरत ज़हन में ज़रूरत से ज़्यादा महत्त्व और ज़गह दे रहे हैं।

3. रिश्तों  और मित्रता के दो अर्थ मैं देखता हूँ,  पहला यह कि
मित्र या रिश्ता आपको यह अहसास और विश्वास दिला सके कि आपकी किसी मुश्किल में वह साथ देगा अपनी सामर्थ्य अनुसार दूसरा यह कि आपको वह आगे बढ़ते देखना चाहेगा और इसके लिए आपके मिशन या प्रोजेक्ट में अपनी सामर्थ्य अनुसार मदद करेगा। फेसबुक पर आपसे जुड़े  मित्र या कथित रिश्ते का रवैया आपके प्रति उस व्यक्ति के व्यक्तित्व की भीतर तक पड़ताल कर सकता है। इन दो criteria के अलावा मित्रता या रिश्ते के दावे झूठे होते हैं। Facebook friend से ये अपेक्षाएं नहीं होतीं लेकिन कोई दावा करे मित्रता या रिश्ते का तो इन दो पहलुओं पर उसकी परीक्षा ले लेना।
उदाहरण के लिए, मेरे किसी मित्र ने मुझसे इनबॉक्स पर किताब लिखने या स्वास्थ्य सम्बंधित जानकारी पर कोई सलाह मांगी और मैं उसे ज़वाब तक न दूं लेकिन कहूँ कि मैं तो सबका हूँ।
एक जनरल रूल यह भी है कि जो सबका हो , कम ही सम्भावना है कि वो किसी का भी होगा। क्योंकि हम मनुष्य सीमित क्षमता लिए हुए होते हैं निभाने की। हर वक़्त नए रिश्तों की तलाश में लगे लोग लाज़िमी है पुराने रिश्तों की उपेक्षा कर ही ऐसा कर सकते हैं। माँ तक 5 बच्चे पैदा कर ले तो नए पर ज़्यादा ध्यान देगी, बड़ा बच्चा माँ के समय और गोद के लिए तरसेगा, कभी पिट भी जायेगा। यह तब जब वह बराबरी से प्यार करने वाली माँ है। गुणा भाग ,हैसियत देख मित्रता करने वाला कोई व्यक्ति नहीं।
पहले तो मैं कहूँगा फेसबुक पर रिश्ते मत तलाशिये असल जीवन के रिश्ते मज़बूत कीजिये और अपने खालीपन को भरिये। हाँ कोई बहुत अच्छा मिल ही जाये तो जुड़िये लेकिन रिश्तों की फ़ौज़ नहीं होती, भगवान की तक रिश्तों की फ़ौज़ नहीं होती। राधा राधा थीं और बाक़ी गोपियाँ गोपी।

प्रकृति ने आप जैसा पूरी इंसानी सभ्यता के इतिहास में दूसरा कोई नहीं बनाया। आप बेहद uniqe हैं। इसलिए स्वाभिमान का ख़याल हमेशा रखें किसी भी रिश्ते में।

3. आपकी timeline आपके मस्तिष्क का extention है।
 उद्वेलित मन की अवस्था में कुछ भी न लिखें। लोग भले वाह वाह कह दें लेकिन आपके व्यक्तित्व का कोई भीतरी कमज़ोर हिस्सा लोगों को दिख जायेगा। और आपकी इमेज से चिपक जायेगा।

4. फेसबुक जब तक मनोरंजन करे खुशी और ज्ञान दे इस पर रहें। लेकिन दुःख देने लगे, ईर्ष्या,कुंठा,जोड़ तोड़ , recognition पाने की अदम्य इक्छा जैसी बातें मन में आने लगे तो कुछ दिन के लिए इससे दूर हो जाएं।

5. आपकी पारिवारिक जिम्मेदारी, और व्यावसायिक जिम्मेदारी
को उपेक्षित कर कभी इसे समय न दें।

6. फेसबुक पर कुछ लोग ज़्यादा लोकप्रिय हो जाते हैं। यदि आप हो गए हैं तो ज़्यादा खुश मत हो जाइए। इसका प्रभाव असल जीवन में नगण्य है। कोई भी 'फेसबुक सेलिब्रिटी' असल जीवन में एक अलग जीवन जीता है।
उदाहरण के लिए मेरी पहचान असल जीवन में मेरे शहर में एक चिकत्सक के रूप में है फेसबुक पर लिखने वाले लेखक के रूप में नहीं। आपका प्रमुख काम ही आपकी पहचान है इसलिए मुगालते मत पालिए। follower की संख्या दरअसल आपसे प्रभावित लोगों का प्रतिबिम्ब बिल्कुल भी नहीं।

7. हालाँकि यह व्यक्तिगत मसला है कि कौन क्या पोस्ट करता है और सभी मुद्दों की ज़रूरत है लेकिन फ़िर भी मुझे लगता है हिन्दू मुस्लिम , जात पात के मसले इतने जटिल हैं कि फेसबुक पर नहीं सॉल्व किये जा सकते वरन् उल्टा होता है इसका, लोग और भी नफ़रत से भर जाते हैं तार्किक दृष्टि की ज़गह। लिखना भी है तो अपने विचारों और अनुभवों को एक विनम्र, तर्कपूर्ण और विस्तारित पोस्ट का रूप दें और सही मंशा से करें जैसा कि
Tabish Siddiqui करते हैं। क्योंकि ये विषय विरोध आमंत्रित करते हैं।

8. बेहद अहम् यह कि इनबॉक्स पर चैट करने से बचें। और chat की भी है तो कम से कम् उन स्क्रीन शॉट्स को औरों को न भेजें न ही पोस्ट करें। यह व्यक्तित्व का बड़ा नकारात्मक पहलू दिखाता है। और आपकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।

9. बहसीले और नकारात्मक कमेंट करने वालों से बहस में उलझने की ज़गह सीधे ब्लॉक करें।

10. स्वाभिमान अवश्य रखें। कोई भी इतना बड़ा नहीं कि आपकी किसी भी पोस्ट को 'कभी भी' लाइक तक करने में कष्ट महसूस करे , गुणा भाग करे और आप उस पर वारे वारे जाओ।
दरअसल यह व्यव्हार एक बेहद calculatIive और स्वार्थी व्यक्तित्व की निशानी होती है। साथ ही व्यक्ति के स्वयं को आपसे बहुत ऊपर समझने के दम्भ को भी यह व्यव्हार प्रदर्शित करता है। छोटे छोटे क्लू  आपको व्यक्ति की भीतरी कोशिकाओं तक का प्रतिबिम्ब बता देते हैं बशर्ते कि आपमें नज़र हो यह देख सकने की।

11. जो अच्छा लिखे अच्छा काम करे उसकी दिल खोल कर प्रशंसा कीजिये,शेयर करिये,लाइक करिये, छोटे छोटे साथ दीजिये। जैसे मैं विजय सिंह ठकुराय का फैन उनकी किताब का इंतज़ार कर रहा हूँ जिससे मैं उसे खूब प्रमोट कर सकूं। प्रशंसा जैसी मुफ़्त की चीज़ में क्या कंजूसी करना। किसी अच्छे की प्रशंसा हमारे भीतर के अहम्,ईर्ष्या ,कुंठा को धोने का काम करती है मन साफ़ करती है। और साफ मन सुन्दर चमकते चेहरे और अच्छे स्वास्थ्य के लिए बेहद ज़रूरी है। मतलब मुफ़्त की चीज़ और बेहतरीन कॉस्मेटिक है किसी अच्छे की प्रशंसा।

12. महिलाएं वैसे तो बेहद बुद्धिमान हैं फिर भी अज़नबी पुरुषों से चैटिंग अवॉयड करें तो ज़्यादा सुख है।

13. अंत में बाहर के सुन्दर मौसम का आनंद लीजिये, ठंडी हवा को गालों से टकराने दीजिये घर की बालकनी में बैठे।
किसी बच्चे के संग खेलिए,उसे बॉल स्पिन करना सिखाइये कभी बैट पकड़ना, किसी पपी को दुलारिये, किसी पौधे को पानी दीजिये, फूल को निहारिये, नीले आसमान को देखिये, रात को तारे गिनिये, कुछ अच्छी डिश बनाइये, डांस करिये

मोबाइल स्क्रीन के परे अपनी असल दुनिया के मुद्दे ही आपके मन में  घूमना चाहिए मोबाइल से नज़र हटते ही।

मैं या मुझसा कोई कितना भी अच्छा दिखे फेसबुक पर perfect नहीं।

Wednesday, 25 March 2015

शुरू करें सोशल मीडिया उपवास

सोशल मीडिया और स्मार्ट फोन के एडिक्शन पर रेशू वर्मा का शानदार लेख 
गौर से देखिए, आपके आसपास कोई बेचैन युवक या युवती जरूर होगी जो अपने स्मार्टफोन पर हर दो मिनट पर फेसबुक चेक कर रही होगी कि थोड़ी देर पहले की गई उसकी पोस्ट पर कोई नया लाइक या कॉमेंट आया कि नहीं। फेसबुक से मुक्त हुए तो वॉट्सऐप भी देख लें और वॉट्सऐप के बाद ई-मेल देखना तो बनता ही है। थोड़ी-थोड़ी देर पर नॉर्मल एसएमएस देख लेना तो खैर आम बात है। हर पांच मिनट या इससे भी कम में मेसेज देखने की बेचैनी हमारी युवा-पीढ़ी का खास लक्षण बन गया है। युवा ही नहीं, कई अधेड़ भी ऐसा करते नजर आ सकते हैं।
अपनी एकाग्रता भंग करके मेसेज देखने का मतलब साफ है। स्मार्टफोन हमारी कुशलता को बेहतर नहीं बना रहे। वे लोगों को मन लगा कर कोई भी काम करने से रोकने वाली एक बड़ी डिवाइस बन गए हैं। इससे अटेंशन स्पैन यानी ध्यान देने की अवधि बहुत कम हो गई है। आधा घंटा लगातार एक ही विषय पर टिककर सोचने, पढ़ने के रास्ते में न जाने कितने मेसेज कितना व्यवधान पैदा करते हैं, अब इस विषय पर सोचना आवश्यक हो गया है।
लाइफ स्टाइल में जगह 
इंटरनेट का आविष्कार हुए 50 साल से भी अधिक हो गए हैं, लेकिन हमारी लाइफस्टाइल का जरूरी हिस्सा बने इसको कुछ ही साल हो रहे हैं। हर किसी के जीवन का एक अभिन्न अंग यह तब से बना है, जब से मोबाइल इंटरनेट सस्ता हुआ और फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया का आगमन हुआ। अभी एक तरफ सोशल मीडिया के सकारात्मक पहलू पर किताबें लिखी जा रही हैं, तो दूसरी तरफ इसके नकारात्मक पहलू परेशान भी कर रहे हैं। साइबर सिकनेस, फेसबुक डिप्रेशन और इंटरनेट अडिक्शन डिसऑर्डर जैसी मनोवैज्ञानिक बीमारियां सोशल मीडिया की ही देन हैं। हर वक़्त अपडेट देखना, क्या नया अपलोड करना है, किसने क्या कॉमेंट किया है, ये ऐसी चीजें हो गई हैं जो हर समय दिमाग में घूमती रहती हैं। इसके चलते लोगों का काम में ध्यान लगना काफी कम हो गया है।
एक वक्त हम अपना खाली समय किताब पढ़ने में बिताते थे। सफर में सोचते थे कि कितनी जल्दी कुछ पढ़ लिया जाए। अभी वही समय अपने मोबाइल फोन पर सोशल मीडिया के मेसेज और स्टेटस अपडेट देखते निकल जाता है। किसी भी मीडिया से सूचना और ज्ञान हासिल करने में कोई बुराई नहीं, लेकिन वह अगर हमारा अटेंशन स्पैन कम कर रहा हो, एकाग्रता भंग करने का स्थायी स्त्रोत ही बनता जा रहा हो तो सोचना बनता है। 
आप किसी भी क्षेत्र में हों, काम तो एक एकाग्रता की मांग करता ही है। इसके बिना आप अपने काम में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकते। घड़ी-घड़ी मोबाइल निकाल कर देखना, बेमतलब मेसेज बॉक्स में झांकना एक बीमारी है। समस्या यह है कि अन्य मनोवैज्ञानिक बीमारियों की तरह सोशल मीडिया से होने वाली बीमारियों से ग्रस्त लोग भी यह मानने को तैयार नहीं होते कि वे बीमार हैं। हकीकत यह है कि अगर शुरुआती लक्षणों पर ध्यान न दिया गया तो ये बीमारियां काफी गंभीर रूप ले सकती हैं।
भारत में ऐसी बीमारियों के बारे में ज्यादा जागरूकता नहीं है, लेकिन अमेरिका जैसे देशों में एक बड़ी आबादी मोटी फीस देकर इनका इलाज करवा रही है। वहां इसके लिए दवाएं और चिकित्सीय सहायता मौजूद है। इस समस्या को जितनी जल्दी समझ लिया जाए, इलाज उतना ही आसान हो जाता है। एकाग्रता में कमी कोई छोटी बात नहीं। आगे चलकर यही बड़ी मानसिक और अन्य बीमारियों को जन्म देती है। आभासी दुनिया कितनी भी काम की हो, लेकिन जब वह खुद के लिए नुकसानदेह साबित होने लगे तो उससे एक दूरी बना लेने में ही अक्लमंदी है। अभी तो हम ऑफिस में अपने काम के बीच भी मोबाइल देखते रहते हैं। क्लास में टीचर की नजरें बचाकर सोशल मीडिया के भी एक-दो चक्कर मार ही लेते हैं। जब हमारा दिमाग कई जगह बंटा होता है, तो वह किसी भी जगह अपना सौ फीसदी नहीं दे सकता। जाहिर है, यह समस्या बेहतर उत्पादकता की राह में रोड़े अटकाती है। 
सोशल नेटवर्क उपवास
पहले तो सोशल मीडिया तक पहुंच सिर्फ लैपटॉप और डेस्कटॉप कंप्यूटर द्वारा ही संभव थी। अभी स्मार्टफोन ने सोशल मीडिया तक पहुंच को ऑल टाइम ईजी बना दिया है। इसके चलते टेलिकॉम कंपनियों का कारोबार बहुत तेजी से बढ़ा है। देश की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनी भारती एयरटेल का शेयर पिछले एक साल में करीब 36 फीसदी ऊपर गया है। इन कंपनियों के लगातार उछलते मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा सोशल नेटवर्किंग साइटों पर युवाओं की बेचैन और लगातार उपस्थिति से आता है। कंपनियां मुनाफा कमाएं, इसमें कोई हर्ज नहीं है। हर्ज तब है, जब एकाग्रता में कमी युवाओं का परफॉर्मेंस खराब करने लगे। तो अब सोचने की जरूरत है कि क्या हफ्ते में एक या दो दिन सोशल नेटवर्क उपवास की एक नई परंपरा शुरू की जाए? यानी इन दिनों में फेसबुक, ट्विटर या वॉट्सऐप पर न जाने का प्रण लिया जाए, और उस पर कायम भी रहा जाए!

साभार –NBT)

Monday, 24 February 2014

वॉट्सएप खरीदने के लिए क्यों मजबूर हुए जुकरबर्ग

शशांक द्विवेदी 
सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक टेक गैजेट की दुनिया का सबसे बड़ा सौदा करते हुए 19 अरब अमेरिकी डॉलर (करीब 1182 अरब रुपए) में मोबाइल मैसेजिंग सर्विस वॉट्सएप को खरीदने जा रही है। सोशल नेटवर्किंग टेक गैजेट की दुनियाँ में इतनी बड़ी डील गूगल,  माइक्रोसॉफ्ट और एपल ने भी आज तक नहीं की।
आखिर वॉट्सएप में ऐसी क्या खासियत है जो जुकरबर्ग इतनी बड़ी डील कर रहें है । इस बात को समझने के लिए वॉट्सएप को ठेक से समझना पड़ेगा । वॉट्सएप स्मार्टफोन मोबाइल मैसेजिंग सर्विस है। वॉट्सएप के जरिए टेक्स्ट मैसेज, इमेज, वीडियो और ऑडियो मीडिया मैसेज भेजे जाते हैं। गूगल एंड्राएड, ब्लैकबेरी ओएस, एपल आईओएस, नोकिया आशा फोन के चुनिंदा प्लेटफॉर्म और माइक्रोसॉफ्ट विंडोज जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करने वाले स्मार्टफोन पर वॉट्सएप डाउनलोड किया जा सकता है।  वॉट्सएप के प्लेटफॉर्म पर रोजाना एक अरब से ज्यादा मैसेज भेजे या रिसीव किए जाते हैं। वॉट्सएप की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगता है कि दुनिया में 24 करोड़ लोग ट्विटर पर एक्टिव हैं जबकि वॉट्सएप पर यह संख्या 45 करोड़ है। वाट्सएप के जरिए टेक्स्ट मैसेज, इमेज, वीडियो और ऑडियो भेजने की सहूलियत के चलते यह तेजी से पॉपुलर हुआ। वॉट्सएप पेड मोबाइस मैसेजिंग सर्विस है। मतलब इसके इस्तेमाल के एवज में आपको एक तय रकम चुकानी होती है। भारत में इस सर्विस के लिए आप रजिस्टर करते हैं तो पहले महीने यह मुफ्त उपलब्ध है और दूसरे महीने से 15 रुपए महीने के हिसाब से रकम अदा कर आप इस सर्विस का मजा ले सकते हैं। इस सर्विस ने टेलीकॉम कंपनियों के एसएमएस मार्केट को बुरी तरह से प्रभावित करना शुरू कर दिया है। 
वॉट्सएप फेसबुक से इस मायने में अलग हैं कि मैसेजिंग एप पर आप अपने करीबियों और दोस्तों से उनके मोबाइल नंबर के जरिए सीधे तौर पर बातचीत कर पाते हैं। असल जिंदगी में आप जिन लोगों के दोस्त हैं या जिन्हें जानते हैं उनसे प्राइवेट बातचीत का मौका देते हैं। बजाय इसके आप फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर उन लोगों से परोक्ष रूप से संवाद करते हैं, जिन्हें आप बमुश्किल जानते हैं। वॉट्सएप के सीईओ जन कूम के अनुसार वॉट्सएप में यह कूव्वत है कि वह लोगों को जोड़े रखता है। पांच साल पहले हमने वॉट्सएप को बहुत ही साधारण सोच के साथ शुरू किया था। वह सोच थी-एक ऐसा कूल प्रॉडक्ट बनाने की जिसका इस्तेमाल दुनिया भर में लोग हर रोज करें। इसके अलावा हमारे लिए कुछ भी अहम नहीं था। वॉट्सएप की विशेषता है कि वह ग्राहकों के पते, उनके लिंग या उनकी उम्र तक दर्ज नहीं करती है। 


वॉट्सएप को खरीदने के लिए फेसबुक मजबूर हो गया था क्योंकि  किशोर और युवा यूजर की गिरती संख्या फेसबुक के लिए लंबे समय से समस्या बनी हुई है। फेसबुक के सीएफओ डेविड एबर्समैन ने पिछले साल अक्टूबर में यह एलान किया था कि कंपनी के टीनेज मार्केट सेगमेंट में गिरावट आ रही है। इस एलान से कंपनी के शेयर में हलचल पैदा हो गई थी। फेसबुक की तुलना में वॉट्सएप पर युवाओं की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। 
जूकरबर्ग को वॉट्सएप पर विश्वास के कई प्रमुख कारण है जिनसे उन्हें लगता है ये सौदा उनके और फेसबुक दोनों के लिए भविष्व में दूरगामी सिद्ध हो सकता है। जूकरबर्ग को इस बात का विश्वास है कि बहुत जल्द वॉट्सएप से 1 अरब लोग जुड़ जाएंगे। मौजूदा 45 करोड़ यूजर के दम पर ही वॉट्सएप का ग्रोथ रेट फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्काइप और जीमेल से कहीं अधिक है।  वॉट्सएप के हर महीने के 45 करोड़ एक्टिव यूजर में हर दिन 70 फीसदी यूजर वापस आते हैं। इस तरह का ट्रेंड बहुत कम देखने को मिलता है। जूकरबर्ग को इस बात पर गर्व है कि फेसबुक पर हर रोज 62 फीसदी लोग वापस आते हैं। लेकिन यह आंकड़ा भी वॉट्सएप के आंकड़े के आगे फीका है।  जूकरबर्ग को लगता है कि वॉट्सएप टेंसेंट, गूगल सर्च, यूट्यूबू और फेसबुक की तरह बहुत ही शानदार प्रॉडक्ट साबित होगा।   वॉट्सएप के कई यूजर को इस बात की आशंका है कि कहीं फेसबुक में मर्जर के बाद वॉट्सएप की सब्सक्रिप्शन फी न बढ़ जाए। फिलहाल इस सौदे से भारत में वॉट्सएप के करीब 3 करोड़ यूजर को डरने की जरुरत नहीं है। सौदे की घोषणा के दौरान जूकरबर्ग और कूम-दोनों ने कहा है कि उनका ध्यान पैसे कमाने से ज्यादा भविष्य में ग्रोथ पर रहेगा। यह बयान अहम है। हालांकि, फेसबुक या वॉट्सएप की ओर से दाम बढ़ाए या घटाए जाने के बारे में कुछ नहीं गया है। 
वॉट्सएप की शुरुआत 2009 में अमेरिका के ब्रायन एक्टन और उक्रेन के जन कूम ने की थी। जन कूम कंपनी के सीईओ हैं। दोनों ही पहले याहू में नौकरी करते थे। इस कंपनी में मालिकों को मिलाकर कुल 55 लोग काम करते हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि वॉट्सएप के सीईओ जन कूम और उनके साथी ब्रायन एक्टन को फेसबुक ने कुछ साल पहले नौकरी देने से मना कर दिया था। लेकिन अब फेसबुक ने जन कूम को फेसबुक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में शामिल करने का फैसला किया है। फेसबुक के सौदे से अकेले जन कूम करीब 42160 करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक बन जाएंगे। जन कूम ने फेसबुक के साथ सौदे के कागजों पर दस्तखत वॉट्सएप के दफ्तर में नहीं बल्कि वहां से कुछ दूरी पर मौजूद एक सफेद इमारत का चुनाव किया जो पहले नॉर्थ काउंटी सोशल सर्विस का दफ्तर था। इसी दफ्तर में कई साल पहले कूम खाने का कूपन लेने के लिए लाइन लगाते थे। जन कूम ने जिंदगी में कई उतार चढ़ाव देखे हैं। इस डील के तहत 19 अरब अमेरिकी डॉलर की रकम में 12 अरब अमेरिकी डॉलर के फेसबुक के शेयर, 4 अरब अमेरिकी डॉलर की रकम नकद और 3 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के शेयर वॉट्सएप के मालिक और कर्मचारियों को डील के चार साल बाद दिए जाएंगे। 19 अरब अमेरिकी डॉलर की रकम फेसबुक के कुल बाजार कीमत की 9 फीसदी रकम के बराबर है। इस सौदे के बाद भी वॉट्सएप की सुविधा इसी ब्रैंड नेम के साथ बाजार में उपलब्ध रहेगी। सौदे की वजह से सिर्फ इसके मालिकाना हक में बदलाव होगा। 
वॉट्सएप और फेसबुक के बीच हो रही इतनी बड़ी डील के भविष्य पर कुछ विशेषज्ञ  सवाल भी उठा रहें है और उनकी चिंताए जायज भी है । विशेषज्ञों के मुताबकि, वॉट्सएप और फेसबुक के बीच सौदे की रकम बहुत बड़ी है। इससे सोशल मीडिया का गुब्बारा फूटने जैसी बातें शुरू हो सकती हैं। यह सौदा फेसबुक के लिए बहुत बड़ा जोखिम है क्योंकि सोशल मीडिया में मौसम के साथ प्रॉडक्ट बदलता रहता है। हो सकता है कि अगले साल कोई और अच्छा एप आ जाए। फेसबुक की तरफ से इतनी बड़ी रकम लगाने के पीछे कंपनी का स्नैपचैट को न खरीद पाने का मलाल भी हो सकता है। इसके अलावा यूथ फैक्टर भी अहम है।कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक  इस सौदे से  फेसबुक का भविष्य जरुर सुरक्षित हो गया है । फेसबुक की इस रणनीति से साफ हो गया है कि अब कंपनी अलग-अलग तरह के सोशल मीडिया प्रॉपर्टी को अपने साथ जोड़े रखना चाहने वाली कंपनी बन गई है।

Friday, 31 August 2012

खुद से खतरा है सोशल मीडिया को

सोशल मीडिया 
गौतम चिकरमने, एग्जीक्यूटिव एडीटर, बिजनेस, हिन्दुस्तान टाइम्स
आपमें से ज्यादातर लोगों की तरह ही, जो आर्थिक या राजनीतिक, घरेलू या अंतरराष्ट्रीय, प्रशासनिक या भ्रष्टाचार या फिर आस्था या तर्क के मुद्दों पर अपनी एक राय रखते हैं, मैं भी उन लोगों का शिकार हूं, जो नफरत फैलाते हैं, लोगों पर ठप्पे लगाते हैं, अश्लीलता परोसते हैं और सबका अपमान करते हैं। ऐसे काम वे इतने जोर-शोर से करते हैं, जैसे उनके पास कोई और काम हो ही नहीं। यह किसी बात को तथ्यों के साथ, आंकड़ों के साथ तर्कपूर्ण ढंग से रखने से अलग है। मुझे इसी तरह का विमर्श अच्छा लगता है और मैं उसी में शामिल होता हूं। लेकिन ये लोग कुछ भी कहते हैं, कुछ भी करते हैं, नफरत, यहां तक कि देशद्रोह जैसी भावनाएं फैलाते हैं और बच निकलते हैं। इसका कारण है उन्हें मिली अनाम रहने की सुविधा। अनाम रहने की इसी सुविधा का लाभ उठाकर इंटरनेट पर और खासतौर पर सोशल मीडिया पर लोग किसी को भी निशाना बनाते हैं, नुकसान पहुंचाते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। यह ऐसा काम है, जिसे हकीकत की दुनिया में आप नहीं कर सकते।
वर्चुअल दुनिया में इन्फ्रास्ट्रचर चलाने वाली गूगल, ट्विटर और फेसबुक जैसी कंपनियां ऐसे लोगों के अकाउंट बंद करने में आनाकानी करती हैं। जब वे ऐसे लोगों के अकाउंट बंद करती हैं, तो वे कई तरह के आरोपों में घिर जाती हैं। अगर नहीं करतीं, तो सरकार उन पर शिंकजा कसने लगती है। जैसे कि हाल ही में भारत सरकार ने ट्विटर पर दबाव डालकर ऐसे लोगों के अकाउंट बंद करवाए, जो विभिन्न समुदायों के खिलाफ नफरत फैलाने का काम कर रहे थे। लेकिन इसी प्रक्रिया में कुछ ऐसे नामचीन लोगों के जायज अकाउंट भी बंद हो गए, जो सिर्फ सरकार के आलोचक थे। वैसे जिनसे शिकायत है, उनके खिलाफ सरकार भी कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं है। अनाम रहने में तब तक कोई दिक्कत नहीं है, जब तक कि आपका अनाम रहना किसी को आहत न कर रहा हो। मसलन, अगर आप निजी बातचीत में यह कहते हैं कि फलां मंत्री भ्रष्ट है, तो इसमें कोई दिक्कत नहीं है। अगर आप यही बात ट्विटर पर या किसी ब्लॉग में कहते हैं, तो इसका अर्थ है कि यह निजी बातचीत नहीं है और आप इसे सार्वजनिक मंच से कह रहे हैं।
पिछले हफ्ते हुए हिन्दुस्तान टाइम्स के डिजिटल लिटरेसी सम्मेलन में सूचना तकनीकी राज्यमंत्री सचिन पायलट ने कहा था कि सरकार चाहती है कि हर परिवार में कम से कम एक शख्स ऐसा जरूर हो, जो डिजिटल साक्षर हो। विडंबना यह है कि जब हम इस बात को कर रहे थे, तभी ट्विटर पर लगाम कसने की खबर भी आ गई। डिजिटल साक्षरता एक ऐसा औजार हो सकता है, जिससे आर्थिक विकास के मोर्चे पर हम एक या दो पीढ़ी में लंबी छलांग लगा सकते हैं। लेकिन यह सब जो चल रहा है, उससे तो इसमें बाधा ही आएगी। और काफी अजीब तरीके से आएगी। नतीजा यह हुआ है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र दुनिया के सबसे बड़े एकदलीय व्यवस्था वाले देश चीन के साथ खड़े होकर संयुक्त राष्ट्र से फेसबुक और ट्विटर पर लगाम लगाने की मांग कर रहा था। अभी साल-दो साल पहले तक टय़ूनीशिया, मिस्र और लीबिया जैसे देशों के तानाशाहों का तख्ता पलट हुआ, सोशल नेटवर्किग पर इस तरह की पाबंदियां लगाने से वहां की सरकारों को कई तरह के दमनकारी अधिकार मिल सकते थे। अगर भारत सरकार की यह योजना आगे बढ़ती है, तो सरकार को पूरी सावधानी से साथ अपने घरेलू दिशा-निर्देश बनाने पड़ेंगे। बहुत सारा काम तो हो भी चुका है। अब जो स्थिति है, उसमें आपको तथा आपकी बातों को आपके आईपी एड्रेस, फोन व सिग्नल के जरिये ट्रैक किया जा सकता है।
अनाम बने रहने के अपने फायदे हैं। इसमें उन लोगों को अवाज मिल जाती है, जो सामने आने से घबराते हैं या मनोवैज्ञानिक रूप से अपने भीतर ही सिमटे रहते हैं। ऐसे लोगों को दूसरों तक अपनी आवाज पहुंचाने का जरिया मिल जाता है। लेकिन जब अनाम रहने की सुविधा को लोगों को नुकसान पहुंचाने के औजार में बदल देते हैं, तो यह तय है कि समाज यह सुविधा आपके पास ज्यादा समय तक नहीं रहने देगा। कुछ सिरफिरे आतंकवादियों ने विमान को अमेरिका के ट्विन टॉवर से टकरा दिया था और उसके बाद हवाई अड्डों में सुरक्षा जांच के ढेर सारे चरण बना दिए गए, इसका नतीजा यही हुआ कि लागत बढ़ी और विमान यात्रा बहुत महंगी हो गई। यही इंटरनेट के मामले में भी होगा। अनाम रहने की सुविधा का गलत फायदा अगर एक हद से ज्यादा उठाया गया, तो नतीजा यहां भी लागत का बढ़ जाना ही होगा।
आइए, अब हकीकत की दुनिया में अपना अक्स देखते हैं। हम प्रशासन के मामले में सरकार से पारदर्शिता की उम्मीद करते हैं। जब चुनाव होते हैं, तो हम चाहते हैं कि हमें राजनेताओं की संपत्ति की पूरी जानकारी मिले। जनता से पैसे इकट्ठा करने के लिए जब कोई कंपनी पूंजी बाजार में आती है, तो हम उससे हर चीज के खुलासे की उम्मीद रखते हैं। सूचना के अधिकार से आप अधिकारियों और नौकरशाहों के बारे में बहुत छोटी से छोटी चीज भी जान सकते हैं। तो क्यों नहीं वचरुअल दुनिया में हमारा व्यवहार भी पारदर्शी हो?
वैसे पिछले कुछ दिनों से मैं सोशल मीडिया और अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी के आर्थिक विकास से रिश्ते को पता लगाने की कोशिश कर रहा हूं। लेकिन लगता है कि इनके बीच में कोई रिश्ता है ही नहीं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना पिछले तीन दशक से आर्थिक कामयाबी के झंडे गाड़ने वाला चीन अगर एक तरफ है, तो दूसरी तरफ उत्तर कोरिया है। इसी तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले देशों में अगर एक तरफ अमेरिका है, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान भी है।