Tuesday 17 April 2018

Facebook के सही उपयोग के कुछ सूत्र:

Dr. Avyact Agrawal

Facebook पर मैं लगभग एक वर्ष से हूँ। इस बीच ज़हाँ आप सबने बहुत प्यार दिया, मेरी किताब आपकी वज़ह से आयी और बिकी। कुछ बेहद अच्छे मित्र मिले। कुछ गहरे लेखक मिले। फिर मेरे यूट्यूब चैनल को भी एक अच्छी शुरुआत आपने
दिलवाई।

वहीँ मेरा इनबॉक्स रोज़ाना लोगों की मानसिक और शारीरिक समस्याओं  से भरा रहने लगा।

कुछ समस्याएं तो लोगों की पोस्ट और बातें सुनकर मुझे फेसबुक की ही दी हुई लगने लगीं। तो सोचा मेरे एक वर्ष के अनुभव, मनोविज्ञान और व्यक्तित्वों की समझ के अनुरूप फेसबुक का खुशहाल उपयोग के कुछ सूत्र लिखूँ। शायद कुछ लोगों के काम आएं।

1. पहला सूत्र तो यही है कि इस बात को दिल की गहराइयों तक स्वीकार कर लें कि फेसबुक आपके रोज़मर्रा के जीवन में 0.1 प्रतिशत से ज़्यादा अहमियत नहीं रखता। इसे एक मनोरंजन और ज्ञान अर्जित का अच्छा साधन मानें लेकिन रिश्ते ढूँढने और बनाने का बिल्कुल नहीं।

2. हमेशा आइडियाज़, विचार, विचार धारा  की बातें करें और ज़हन में रखें किसी व्यक्ति की बातें न करें तीसरे से। खासकर नकारात्मक चर्चा से बचें। जो पसंद नहीं उसे इग्नोर कर दें, unfriend कर दें , ब्लॉक कर दें लेकिन नकारात्मक पोस्ट करना ,स्क्रीनशॉट पब्लिक करने का अर्थ यह है कि उस व्यक्ति को आप अपने खूबसूरत ज़हन में ज़रूरत से ज़्यादा महत्त्व और ज़गह दे रहे हैं।

3. रिश्तों  और मित्रता के दो अर्थ मैं देखता हूँ,  पहला यह कि
मित्र या रिश्ता आपको यह अहसास और विश्वास दिला सके कि आपकी किसी मुश्किल में वह साथ देगा अपनी सामर्थ्य अनुसार दूसरा यह कि आपको वह आगे बढ़ते देखना चाहेगा और इसके लिए आपके मिशन या प्रोजेक्ट में अपनी सामर्थ्य अनुसार मदद करेगा। फेसबुक पर आपसे जुड़े  मित्र या कथित रिश्ते का रवैया आपके प्रति उस व्यक्ति के व्यक्तित्व की भीतर तक पड़ताल कर सकता है। इन दो criteria के अलावा मित्रता या रिश्ते के दावे झूठे होते हैं। Facebook friend से ये अपेक्षाएं नहीं होतीं लेकिन कोई दावा करे मित्रता या रिश्ते का तो इन दो पहलुओं पर उसकी परीक्षा ले लेना।
उदाहरण के लिए, मेरे किसी मित्र ने मुझसे इनबॉक्स पर किताब लिखने या स्वास्थ्य सम्बंधित जानकारी पर कोई सलाह मांगी और मैं उसे ज़वाब तक न दूं लेकिन कहूँ कि मैं तो सबका हूँ।
एक जनरल रूल यह भी है कि जो सबका हो , कम ही सम्भावना है कि वो किसी का भी होगा। क्योंकि हम मनुष्य सीमित क्षमता लिए हुए होते हैं निभाने की। हर वक़्त नए रिश्तों की तलाश में लगे लोग लाज़िमी है पुराने रिश्तों की उपेक्षा कर ही ऐसा कर सकते हैं। माँ तक 5 बच्चे पैदा कर ले तो नए पर ज़्यादा ध्यान देगी, बड़ा बच्चा माँ के समय और गोद के लिए तरसेगा, कभी पिट भी जायेगा। यह तब जब वह बराबरी से प्यार करने वाली माँ है। गुणा भाग ,हैसियत देख मित्रता करने वाला कोई व्यक्ति नहीं।
पहले तो मैं कहूँगा फेसबुक पर रिश्ते मत तलाशिये असल जीवन के रिश्ते मज़बूत कीजिये और अपने खालीपन को भरिये। हाँ कोई बहुत अच्छा मिल ही जाये तो जुड़िये लेकिन रिश्तों की फ़ौज़ नहीं होती, भगवान की तक रिश्तों की फ़ौज़ नहीं होती। राधा राधा थीं और बाक़ी गोपियाँ गोपी।

प्रकृति ने आप जैसा पूरी इंसानी सभ्यता के इतिहास में दूसरा कोई नहीं बनाया। आप बेहद uniqe हैं। इसलिए स्वाभिमान का ख़याल हमेशा रखें किसी भी रिश्ते में।

3. आपकी timeline आपके मस्तिष्क का extention है।
 उद्वेलित मन की अवस्था में कुछ भी न लिखें। लोग भले वाह वाह कह दें लेकिन आपके व्यक्तित्व का कोई भीतरी कमज़ोर हिस्सा लोगों को दिख जायेगा। और आपकी इमेज से चिपक जायेगा।

4. फेसबुक जब तक मनोरंजन करे खुशी और ज्ञान दे इस पर रहें। लेकिन दुःख देने लगे, ईर्ष्या,कुंठा,जोड़ तोड़ , recognition पाने की अदम्य इक्छा जैसी बातें मन में आने लगे तो कुछ दिन के लिए इससे दूर हो जाएं।

5. आपकी पारिवारिक जिम्मेदारी, और व्यावसायिक जिम्मेदारी
को उपेक्षित कर कभी इसे समय न दें।

6. फेसबुक पर कुछ लोग ज़्यादा लोकप्रिय हो जाते हैं। यदि आप हो गए हैं तो ज़्यादा खुश मत हो जाइए। इसका प्रभाव असल जीवन में नगण्य है। कोई भी 'फेसबुक सेलिब्रिटी' असल जीवन में एक अलग जीवन जीता है।
उदाहरण के लिए मेरी पहचान असल जीवन में मेरे शहर में एक चिकत्सक के रूप में है फेसबुक पर लिखने वाले लेखक के रूप में नहीं। आपका प्रमुख काम ही आपकी पहचान है इसलिए मुगालते मत पालिए। follower की संख्या दरअसल आपसे प्रभावित लोगों का प्रतिबिम्ब बिल्कुल भी नहीं।

7. हालाँकि यह व्यक्तिगत मसला है कि कौन क्या पोस्ट करता है और सभी मुद्दों की ज़रूरत है लेकिन फ़िर भी मुझे लगता है हिन्दू मुस्लिम , जात पात के मसले इतने जटिल हैं कि फेसबुक पर नहीं सॉल्व किये जा सकते वरन् उल्टा होता है इसका, लोग और भी नफ़रत से भर जाते हैं तार्किक दृष्टि की ज़गह। लिखना भी है तो अपने विचारों और अनुभवों को एक विनम्र, तर्कपूर्ण और विस्तारित पोस्ट का रूप दें और सही मंशा से करें जैसा कि
Tabish Siddiqui करते हैं। क्योंकि ये विषय विरोध आमंत्रित करते हैं।

8. बेहद अहम् यह कि इनबॉक्स पर चैट करने से बचें। और chat की भी है तो कम से कम् उन स्क्रीन शॉट्स को औरों को न भेजें न ही पोस्ट करें। यह व्यक्तित्व का बड़ा नकारात्मक पहलू दिखाता है। और आपकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।

9. बहसीले और नकारात्मक कमेंट करने वालों से बहस में उलझने की ज़गह सीधे ब्लॉक करें।

10. स्वाभिमान अवश्य रखें। कोई भी इतना बड़ा नहीं कि आपकी किसी भी पोस्ट को 'कभी भी' लाइक तक करने में कष्ट महसूस करे , गुणा भाग करे और आप उस पर वारे वारे जाओ।
दरअसल यह व्यव्हार एक बेहद calculatIive और स्वार्थी व्यक्तित्व की निशानी होती है। साथ ही व्यक्ति के स्वयं को आपसे बहुत ऊपर समझने के दम्भ को भी यह व्यव्हार प्रदर्शित करता है। छोटे छोटे क्लू  आपको व्यक्ति की भीतरी कोशिकाओं तक का प्रतिबिम्ब बता देते हैं बशर्ते कि आपमें नज़र हो यह देख सकने की।

11. जो अच्छा लिखे अच्छा काम करे उसकी दिल खोल कर प्रशंसा कीजिये,शेयर करिये,लाइक करिये, छोटे छोटे साथ दीजिये। जैसे मैं विजय सिंह ठकुराय का फैन उनकी किताब का इंतज़ार कर रहा हूँ जिससे मैं उसे खूब प्रमोट कर सकूं। प्रशंसा जैसी मुफ़्त की चीज़ में क्या कंजूसी करना। किसी अच्छे की प्रशंसा हमारे भीतर के अहम्,ईर्ष्या ,कुंठा को धोने का काम करती है मन साफ़ करती है। और साफ मन सुन्दर चमकते चेहरे और अच्छे स्वास्थ्य के लिए बेहद ज़रूरी है। मतलब मुफ़्त की चीज़ और बेहतरीन कॉस्मेटिक है किसी अच्छे की प्रशंसा।

12. महिलाएं वैसे तो बेहद बुद्धिमान हैं फिर भी अज़नबी पुरुषों से चैटिंग अवॉयड करें तो ज़्यादा सुख है।

13. अंत में बाहर के सुन्दर मौसम का आनंद लीजिये, ठंडी हवा को गालों से टकराने दीजिये घर की बालकनी में बैठे।
किसी बच्चे के संग खेलिए,उसे बॉल स्पिन करना सिखाइये कभी बैट पकड़ना, किसी पपी को दुलारिये, किसी पौधे को पानी दीजिये, फूल को निहारिये, नीले आसमान को देखिये, रात को तारे गिनिये, कुछ अच्छी डिश बनाइये, डांस करिये

मोबाइल स्क्रीन के परे अपनी असल दुनिया के मुद्दे ही आपके मन में  घूमना चाहिए मोबाइल से नज़र हटते ही।

मैं या मुझसा कोई कितना भी अच्छा दिखे फेसबुक पर perfect नहीं।

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