मुकुल व्यास
नासा के शोधकर्ता ऐसी रोबोटिक मक्खियों का
डिजाइन तैयार कर रहे हैं जो मंगल पर उड़कर वहां के बारे में नई जानकारियां जुटा
सकें। अमेरिकी अंतरिक्ष प्रशासन एजेंसी ने पिछले दिनों इस परियोजना के बारे में
खुलासा किया। यह परियोजना अभी आरंभिक अवस्था में है, लेकिन इसका मकसद मंगल के अन्वेषण के लिए इस
समय प्रयुक्त की जा रही रोवर का बेहतर विकल्प खोजना है। रोवर के साथ सबसे बड़ी
दिक्कत यह है कि एक यह आकार में बड़ी और भारी भरकम होती है तथा बहुत ही सुस्त चाल
से मंगल की सतह पर सरकती है। इस वजह से इसके कार्यक्षेत्र का दायरा बहुत सीमित हो
जाता है। इसके अलावा रोवर के निर्माण में खर्चा भी बहुत आता है। यदि रोवर की जगह
मंगल पर सेंसरों से युक्त सूक्ष्म रोबोटों को भेजा जाए तो वे सतह पर तेजी के साथ
दूसरे इलाकों में जाकर कारगर ढंग से सूचनाएं एकत्र कर सकेंगे। 1इस तरह के सूक्ष्म
रोबोटों के निर्माण की लागत भी बहुत कम आएगी। नासा के अधिकारियों के अनुसार इन
रोबोटों का आकार अमेरिका में पाई जाने वाली ‘बंबलबी’ जैसा होगा। मंगल पर भेजी जाने वाली रोबोटिक मक्खी ‘मार्सबी’ कहलाएगी। मंगल पर
मक्खियां भेजना ज्यादा व्यावहारिक है, क्योंकि मंगल का गुरुत्वाकर्षण कम है। पृथ्वी की
तुलना में मंगल का गुरुत्वाकर्षण सिर्फ एक-तिहाई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि
वहां के पतले वायुमंडल को देखते हुए रोबोट-मक्खी अन्वेषण के लिहाज से ज्यादा बेहतर
स्थिति में होंगी। ये मक्खियां न सिर्फ मंगल की सतह को नापेंगी, बल्कि उसके वायुमंडल
के नमूने भी एकत्र करेंगी। उनका मुख्य लक्ष्य वहां मीथेन गैस की मौजूदगी का पता लगाना
होगा। मीथेन गैस की मौजूदगी जीवन की संभावना की ओर इशारा करती है। इस समय मंगल पर
सक्रिय क्यूरियोसिटी रोवर को मीथेन गैस की उपस्थिति के कुछ संकेत मिले हैं, लेकिन इस बात का कोई
प्रमाण नहीं मिला कि यह गैस किसी जैविक गतिविधि से उत्पन्न हो रही है या इसका
निर्माण किसी और वजह से हो रहा है।रोबोट मक्खियों का इस्तेमाल मंगल पर ही नहीं, बल्कि पृथ्वी पर भी
होगा। हम सभी जानते हैं कि फसलों और फल-सब्जियों के परागण में मक्खियों और
कीट-पतंगों की बड़ी भूमिका होती है। दुनिया में मक्खियों की आबादी घट रही है जिसका
फसल उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। इस समस्या से निपटने के लिए शोधकर्ता
ऐसी रोबोटिक मक्खियां विकसित कर रहे हैं जो पौधों का परागण कर सकें। पिछले कुछ
वषों से वैज्ञानिक मधुमक्खियों की आबादी में गिरावट रोकने के उपाय खोज रहे हैं।
हमारे भोजन में प्रयुक्त एक-तिहाई पेड़-पौधों का परागण मधुमक्खियों द्वारा किया
जाता है, लेकिन इन मधुमक्खियों की संख्या तेजी से कम हो रही है। हार्वर्ड
यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों ने 2013 में पहली रोबोट मक्खी बनाई थी जो बिजली के स्नोत से
जुड़ने के बाद हवा में मंडरा सकती थी। इसके बाद यह टेक्नोलॉजी तेजी से विकसित हुई।
आज ये रोबोट-मक्खियां सतह पर चिपक सकती हैं और पानी में भी तैर सकती हैं और अब
इनका प्रयोग मंगल ग्रह पर भी किए जाने की तैयारी है।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 18 अप्रैल - विश्व विरासत दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeletenice post
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