चंद्रभूषण
स्टीफन हॉकिंग का आखिरी शोधपत्र प्रकाशित होने की चर्चा
गरम है। बेल्जियन भौतिकशास्त्री टॉमस हर्टोग के साथ उनका यह काम कॉस्मॉलजी के ‘इन्फ्लेशन’
मामले से संबंधित है, जिस पर हम यहां थोड़ी
चर्चा करेंगे। लेकिन इससे पहले यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि 14 मार्च 2018 को दिवंगत हुए बहुचर्चित थिअरेटिकल
फिजिसिस्ट स्टीफन हॉकिंग का यह अंतिम रिसर्च पेपर नहीं है।
उनके प्रिय शोध क्षेत्र ब्लैकहोलों पर केंद्रित कई और शोधपत्र आने
वाले दिनों में भी प्रकाशित होते रहेंगे। यह बात और है कि ये सारे पेपर किसी न
किसी के साथ मिलकर ही लिखे हुए हैं। 75 साल की उम्र पाए स्टीफन के लिए अपने
अंतिम वर्षों में अकेले दम पर पर्याप्त सामग्री जुटाकर उसपर फैसलाकुन ढंग से काम
करना संभव नहीं था, हालांकि इसका दूसरा पहलू यह भी था कि
उनके साथ अपना नाम जोड़ना नई पीढ़ी के हर भौतिकशास्त्री का सपना हुआ करता था।
बहरहाल, बड़े फलक की विषयवस्तु इन्फ्लेशन पर
टॉमस हर्टोग के साथ मिलकर किया हुआ उनका यह काम कॉस्मॉलजी से जुड़े
भौतिकशास्त्रियों और उनके करीब पड़ने वाले गणितज्ञों के बीच चर्चा का विषय बनेगा।
खासकर इस शोधपत्र की यह प्रस्थापना कि बिग बैंग के बाद गुजरे एक सेकंड के बहुत ही
छोटे हिस्से में- जिसे इन्फ्लेशन का समय कहा जाता है- समय जैसी किसी चीज का कोई
अस्तित्व नहीं था।
किसी को यह बात अटपटी लग सकती है, क्योंकि बात चाहे
सेकंड के कितने भी छोटे हिस्से की क्यों न हो, समय तो समय
है। उसके न होने की बात का भला क्या मतलब है? यहां आपको इस
बात का मतलब समझाने का दावा इन पंक्तियों का लेखक नहीं कर सकता, क्योंकि सीमावर्ती भौतिकी की बहुत सारी बातों का कोई व्यावहारिक मतलब समझ
पाना आला से आला दर्जे के भौतिकशास्त्रियों के भी बूते से बाहर की बात हुआ करती
है। वहां सारा मतलब गणित की भाषा में ही समझना पड़ता है।
तो सवाल यह बचता है कि क्या हॉकिंग और हर्टोग ने सृष्टि के
प्रारंभिक क्षणों का कोई ऐसा गणितीय समीकरण ढूंढ निकाला है, जो समय
जैसी किसी चीज के बिना भी सफलतापूर्वक काम कर सकता हो? जवाब
नहीं में है। उन्होंने एक प्रस्थापना भर दी है, जिसका खंडन-मंडन
होना अभी बाकी है।
अब थोड़ी बात इन्फ्लेशन के बारे में, जिसे 1979 से ब्रह्मांड के निर्माण से जुड़ी दूसरी सर्वाधिक महत्वपूर्ण मान्यता जैसी
प्रतिष्ठा प्राप्त है। पहली मान्यता 1927 में दी गई,
1929 में लगभग और 1964 में पूरी तरह पुष्ट मान
ली गई बिग बैंग की प्रस्थापना की है। इस प्रस्थापना के मुताबिक बिग बैंग वह बिंदु
है, जहां से देशकाल की शुरुआत होती है।
ब्रह्मांड में आकाशगंगाओं के एक-दूसरे से दूर भागने की दर का
अध्ययन करके यह नतीजा निकाला गया है कि अनंत विस्तार का सारा किस्सा दरअसल 13.8 अरब
साल पहले एक बिंदु से शुरू हुआ था, जिसके पहले आकाश और समय
नहीं था, और अगर रहा भी हो तो उसके बारे में जाना नहीं जा
सकता।
1964
में कॉस्मिक बैकग्राउंड रेडिएशन (सीआरबी) की खोज से बिग बैंग पर तो
पक्की मोहर लग गई लेकिन दो नए सवाल भौतिकशास्त्रियों को परेशान करने लगे। पहला यह
कि ब्रह्मांड हर तरफ एक जैसा क्यों है, और दूसरा यह कि
ब्रह्मांड में कहीं द्रव्य के होने और कहीं न होने की गुंजाइश कैसे पैदा होती है।
इन दोनों सवालों का जवाब 1979 में एलन गुथ ने इन्फ्लेशन की
थीसिस के जरिये दिया।
इसके मुताबिक बिग बैंग के समय को शून्य समय नहीं बल्कि क्वांटम समय
माना जाए, यानी 1 के बाद 36 शून्य लगाकर एक बहुत बड़ी संख्या बनाई जाए, फिर एक
सेकंड समय को उससे भाग देने पर जो आए, उतना समय। क्वांटम
थिअरी की अनिवार्य प्रस्थापना 'अनिश्चितता का सिद्धांत'
पर बिग बैंग की खरा उतरने के लिए ऐसा करना जरूरी है।
10
की ऋण 36 घात सेकंड वाले इस क्वांटम समय से
लेकर 10 की ऋण 33 घात वाले समय के बीच
ब्रह्मांड अपने सूक्ष्म आकार का कम से कम साठ बार दो गुना होता चला गया- यह
इन्फ्लेशन का सिद्धांत है। समय का यह इतना छोटा हिस्सा भी समय ही कहलाएगा, लेकिन हॉकिंग और हर्टोग की प्रस्थापना के मुताबिक यह समय न होकर स्पेस की
तीन विमाओं में ही समाहित है। यानी शून्य समय।
अच्छा होगा कि हम इस प्रस्थापना के खंडन-मंडन का इंतजार करें। वैसे, स्टीफन
हॉकिंग के ही कद के, बल्कि अपने शास्त्र में उनसे कहीं
ज्यादा कद्दावर गणितज्ञ रॉजर पेनरोज शुरू से ही इन्फ्लेशन की धारणा को ही खारिज
करते आए हैं। बाल की खाल निकालने वाली इन बहसों के देर-सबेर कुछ व्यावहारिक अर्थ
भी निकलेंगे। तब तक चीजों और सिद्धांतों के नामों का आनंद लेते रहें।
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