Friday, 15 September 2017

बिना हुनर के कैसी इंजीनियरिंग ?

न कौशल न विकास :क्या करें इस डिग्री-डिप्लोमा का
शशांक द्विवेदी
डिप्टी डायरेक्टर , मेवाड़ यूनिवर्सिटी, (राजस्थान )

पिछले दिनों एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि युवाओं में प्रतिभा का विकास होना चाहिए । उन्होंने डिग्री के बजाय योग्यता को महत्त्व देते हुए कहा था कि छात्रों को स्किल डेवलपमेंट पर ध्यान देना होगा । आज देश में बड़ी संख्या में इंजीनियर पढ़ लिख कर निकल तो रहें है लेकिन उनमे स्किलकी बहुत बड़ी कमी है इसी वजह से लाखों इंजीनियर हर साल बेरोजगारी का दंश झेल रहें है । इंडस्ट्री की जरुरत के हिसाब से उन्हें काम नहीं आता । एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल देश में लाखों इंजीनियर बनते है लेकिन उनमें से सिर्फ 15 प्रतिशत को ही अपने काम के अनुरूप नौकरी मिल पाती है बाकी सभी बेरोजगारी का दंश झलने को मजबूर है । इसीलिए देश में इंजीनियरिंग का करियर तेजी से आकर्षण खो रहा है । देश के राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के अनुसार सिविल, मैकेनिकल और इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग जैसे कोर सेक्टर के 92 प्रतिशत इंजीनियर और डिप्लोमाधारी रोजगार के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं. इस सर्वे ने भारत में उच्च शिक्षा की शर्मनाक तस्वीर पेश की है । यह आंकड़ा चिंता बढ़ाने वाला भी है, क्योंकि स्थिति साल दर साल खराब ही होती जा रही है ।
देश में इंजीनियरिंग को नई सोच और दिशा देने वाले महान इंजीनियर भारत रत्न मोक्षगुण्डम् विश्वेश्वरैया की जयंती 15 सितम्बर को देश में इंजीनियरस डे या अभियंता दिवस के रूप में मनाया जाता है । मैसूर राज्य(वर्तमान कर्नाटक )के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया अपने समय के सबसे प्रतिभाशाली  इंजीनियर  थे । जिन्होंने बांध और सिंचाई व्यवस्था के लिए नए तरीकों का इजाद किया। उन्होंने आधुनिक भारत में सिंचाई की बेहतर व्यवस्था और नवीनतम तकनीक पर आधारित नदी पर बांध बनाए तथा पनबिजली परियोजना शुरू करने की जमीन तैयार की। सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण की तकनीक में उनके योगदान को भूलाया नहीं जा सकता। आज से लगभग 100 साल पहले जब साधन और तकनीक इतनी ज्यादा उन्नत नहीं थी । विश्वेश्वरैया ने आम आदमी की समस्याओं को सुलझाने के लिए इंजीनियरिंग में कई तरह के इनोवेशन किये और व्यवहारिक तकनीक के माध्यम आम आदमी की जिंदगी को सरल बनाया । असल में इंजीनियर वह नहीं है जो सिर्फ मशीनों के साथ काम करें बल्कि वह है जो किसी भी क्षेत्र में अपने मौलिक विचारों और तकनीक के माध्यम मानवता की भलाई के लिए काम करे ।
देश और समाज के निर्माण में एक इंजीनियर की रचनात्मक भूमिका कैसे होनी चाहिए इस बात को विश्वेश्वरैया के प्रेरणादायक जीवन गाथा से जाना और समझा जा सकता है । विश्वेश्वरैया न केवल एक कुशल इंजीनियर थे  बल्कि देश के सर्वश्रेष्ठ योजना शिल्पी, शिक्षाविद् और अर्थशास्त्री भी थे । तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) द्वारा वर्ष 1928 में तैयार पंचवर्षीय योजना से भी आठ वर्ष पहले 1920 में अपनी पुस्तक रिकंस्ट्रक्टिंग इंडिया में उन्होंने भारत में पंचवर्षीय योजना की परिकल्पना प्रस्तुत कर दिया था । 1935 में उनकी एक  पुस्तक प्लान्ड इकॉनामी फॉर इंडिया देश के विकास के लिए योजना बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी । वह 98 वर्ष की उम्र में भी उन्होंने प्लानिंग पर एक पुस्तक लिखा । ईमानदारी और कर्त्तव्य के प्रति अपनी वचनबध्दता उनके जीवन की सबसे बड़ी विशेषता थी।  बंगलुरू स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स की स्थापना में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही ।
आज से कई दशक पहले गाँधी जी ने कहा था की देश की समग्र उन्नति और आर्थिक विकास के लिए तकनीकी शिक्षा का गुणवत्ता पूर्ण होना बहुत जरुरी है उन्होंने इसको प्रभावी बनाने के  लिए कहा था की कॉलेज में हाफ-हाफ सिस्टम होना चाहिए मतलब की आधे समय में किताबी ज्ञान दिया जाये और आधे समय में उसी ज्ञान का व्यावहारिक पक्ष बताकर उसका प्रयोग सामान्य जिन्दगी में कराया जाये । भारत में तो गाँधी जी की बाते ज्यादा सुनी नहीं गई पर चीन ने उनके इस प्रयोग को पूरी तरह से अपनाया  और आज स्तिथि यह है की चीन  उतपादन की दृष्टि में चीन भारत से बहुत आगे है ,भारतीय बाजार चीनी सामानों से भरे पड़े है दिवाली ,रक्षाबंधन हमारे देश के प्रमुख त्यौहार है पर आज बाजार में सबसे ज्यादा पटाखे और राखिया चीन की ही बनी हुई मिलती है ।
वास्तव में हम अपने ज्ञान को बहुत ज्यादा व्यावहारिक नहीं बना पाए है । नंबर होड़ युक्त शिक्षा प्रणाली ने मौलिकता को ख़त्म कर दिया । इस तरह की मूल्यांकन और परीक्षा प्रणाली नई सोच और मौलिकता के लिए ठीक नहीं है। आज तकनीकी शिक्षा में खासतौर पर इंजीनियरिंग में इनोवेशन की जरुरत है सिर्फ रटें रटाए ज्ञान की बदौलत हम विकसित राष्ट्र बनने का सपना साकार नहीं कर सकते । देश की आतंरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी । क्योंकि भारत  पिछले छह दशक के दौरान अपनी अधिकांश प्रौद्योगीकीय जरूरतों की पूर्ति दूसरे देशों से कर रहा है । हमारे घरेलू उद्योगों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज करायी है इसलिए देश  की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय उद्योग के कौशल संसाधनों एवं प्रतिभाओं का बेहतर उपयोग करना जरुरी है । क्योंकि आयातित टेक्नोलॉजी  पर हम  ब्लैकमेल का शिकार भी हो सकते  है।  
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हमारा इंजीनियरिंग व प्रौद्योगिकी ढाँचा न तो विकसित देशों जैसा मजबूत था और न ही संगठित। इसके बावजूद   प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमने काफी कम समय में बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की । स्वतंत्रता के बाद भारत का प्रयास यही रहा है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन भी लाया जाए। जिससे देश के जीवन स्तर में संरचनात्मक सुधार हो सके । इस उद्देश्य में  हम कुछ  हद तक सफल भी रहें है लेकिन अभी भी इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी को आम जन मानस से पूरी तरह से जोड़ नहीं पाये है ।
आज देश को विश्वेसरैया जैसे इंजीनियरों की जरुरत है जो देश को एक नई दिशा दिखा सके क्योंकि आज के आधुनिक विश्व में विज्ञान,तकनीक और इंजीनियरिंग के क्रमबद्ध विकास के बिना विकसित राष्ट्र का सपना नहीं सच किया जा सकता । इसके लिए देश में इंजीनियरिंग की पढाई को और आकर्षक ,व्यवहारिक और रोजगारपरक बनाने की जरुरत है ।

(लेखक शशांक द्विवेदी चितौड़गढ, राजस्थान में मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डिप्टी डायरेक्टर हैं और  टेक्निकल टूडे पत्रिका के संपादक हैं। 12 सालों से विज्ञान विषय पर लिखते हुए विज्ञान और तकनीक पर केन्द्रित विज्ञानपीडिया डॉट कॉम के संचालक है  । एबीपी न्यूज द्वारा विज्ञान लेखन के लिए सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर का सम्मान हासिल कर चुके शशांक को विज्ञान संचार से जुड़ी देश की कई संस्थाओं ने भी राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया है। वे देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लगातार लिख रहे हैं।)

2 comments:

  1. धन्यवाद हर्षवर्धन जी ..

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  2. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 20 सितंबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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