हिंदी दिवस पर विशेष
शशांक द्विवेदी
डिप्टी डायरेक्टर, मेवाड़ यूनिवर्सिटी

इस सबके बीच एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी है
कि हिंदी में विज्ञान या विज्ञान संचार की स्तिथि देश में क्या है ?क्या इस पर भी
सरकार ने या हिंदी चिंतकों ने कभी ध्यान दिया है । देश में हिंदी में विज्ञान
संचार बहुत उन्नत स्तिथि में नहीं है । इसकी
सबसे बड़ी वजह शायद हिंदी में विज्ञान संचार रोजी -रोटी से नहीं जुड़ पाया है ।
इसमें कैरियर की दृष्टि से भी पूर्णकालिक रूप में बहुत ज्यादा अवसर नहीं है । देश
के अधिकांश हिंदी अखबारों और इलेक्ट्रानिक चैनलों में विज्ञान पत्रकार नहीं है । न
ही इन माध्यमों में निकट भविष्य में विज्ञान पत्रकारों के लिए कोई संभावनाएं दिखती
है । देश में इस समय जितना भी विज्ञान लेखन और पत्रकारिता हो रही है अधिकांशतया
पार्ट टाइम हो रही है । वही लोग ज्यादातर विज्ञान लेखन कर रहें है जो हिंदी के
उत्थान के लिए सरकारी विभागों से जुड़े है या वो लोग जो पद और पैसे से सम्रद्धिशाली
है । कहने का मतलब आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्ति ही हिंदी में विज्ञान लेखन कर
रहें है ।कुछ सार्थक करने का प्रयास स्वतंत्र और पूर्णकालिक रूप से हिंदी में
विज्ञान लेखन के लिए बहुत कम अवसर है । इसलिए हिंदी में विज्ञान संचार या
पत्रकारिता को सबसे पहले आकर्षक रोजगार से
जोड़ना पड़ेगा तभी यह उन्नत दिशा में पहुचेगा ।
देश में विज्ञान ,अनुसंधान और
शोध से सम्बंधित कुछ ही खबरे मीडिया में जगह बना रही है सिर्फ विज्ञान और
तकनीक से जुड़ी सनसनीखेज खबरें ही खबरिया चैनलों में जगह बना पाती है । जबकि देश की
प्रगति और आर्थिक सुरक्षा से जुड़ा यह क्षेत्र देश में पूरी तरह से उपेक्षित है ।
वैज्ञानिक जागरूकता और जन सशक्तीकरण के परिप्रेक्ष्य में हिंदी में विज्ञान
पत्रकारिता की महत्वरपूर्ण भूमिका हो सकती है। हिंदी में विज्ञान संचार और स्थानीय
स्तर पर देशी वैज्ञानिकों की जानकारी देने वाले लेखन का सामने आना जरूरी है।
अमेरिका में दस परिवारों में से एक परिवार जरूर अपनी भाषा में वैज्ञानिक पत्रिका पढ़ता
है। अमेरिका में वैज्ञानिक लेख नहीं लिखते। विज्ञान पत्रकार ही लेख लिखते हैं।
हमारे देश में वैज्ञानिक पत्रकारिकता अभी
भी शैशव अवस्था में है ,इसे ज्यादा
प्रोत्साहन की जरुरत है तभी स्वस्थ व जनहितकारी विज्ञान पत्रकारिता हर माध्यम से
आम लोगों के सामने आएगी।
हमारे देश में 3500 से भी अधिक हिन्दी
विज्ञान लेखकों का विशाल समुदाय है परन्तु प्रतिबद्ध लेखक मुश्किल से 5 या 7 प्रतिशत ही होंगे।
इन लेखकों ने विज्ञान के विविध विषयों और विधाओं में 8000 से भी अधिक
पुस्तकें लिखी हैं परन्तु इनमें से अधिकतर पुस्तकों में गुणवत्ता का अभाव है।
मौलिक लेखन कम हुआ है और संदर्भ ग्रंथ न के बराबर हैं। लोकप्रिय विज्ञान साहित्य
सृजन में प्रगति अवश्य हुई है परन्तु सरल , सुबोध विज्ञान साहित्य जो जन साधारण की समझ में आ सके कम लिखा गया है।
इंटरनेट पर आज हिन्दी में विज्ञान सामग्री अति सीमित है। विश्वविद्यालयों तथा
राष्ट्रीय वैज्ञानिक संस्थानों में कार्यरत विषय विशेषज्ञ अपने आलेख शोधपत्र अथवा
पुस्तकें अंग्रेजी में लिखते हैं। वह हिन्दी अथवा अन्य भारतीय भाषा में विज्ञान
लेखन में रुचि नहीं रखते। संभवत भाषागत कठिनाई तथा वैज्ञानिक समाज की घोर उपेक्षा
उन्हें आगे नहीं आने देती। हिन्दी में विज्ञान विषयक शोधपत्रों आलेखों को प्रस्तुत
करने के लिए अंग्रेजी के समकक्ष विज्ञान मंचों की स्थापना की आवश्यकता है। अकादमिक
संस्थाओं के माध्यम से भी विज्ञान लेखन को दृढ़ता देने के प्रयास सुनिश्चित करने
होंगे। किसी शोधार्थी का मूल्यांकन सिर्फ उसके शोध प्रबंध से प्रकाशित शोधपत्रों
से ही नहीं, बल्कि विज्ञान को
आम जनता के बीच पंहुचाने में सफलता के पैमाने पर रखकर भी होना चाहिए ।
कुलमिलाकर सही मायनों में हिंदी विज्ञान
की भाषा तभी हो सकती है जब उसे शैक्षणिक
स्तर पर ठीक से बढ़ावा मिलें मतलब स्नातक और शोध स्तर पर हिंदी के काम को
स्वीकार्यता हो । साथ में हिंदी में विज्ञान संचार रोजगारपरक भी हो,दुसरी बात अपनी
भाषा में विज्ञान को लोगों तक पहुँचाने के लिए वैज्ञानिक समाज को भी आगे आना होगा ।संचार
माध्यमों के साथ-साथ वैज्ञानिकों की भी जिम्मेदारी है कि वो हिंदी में विज्ञान की
सामग्री को लोगों तक पहुंचाने में सहयोग करें। इंटरनेट
और डिजीटल क्रांति के जरिए हिंदी सहित क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान को और प्रभावी
बनाया जा सकता है। इसके लिये हमें हर स्तर पर सकारात्मक और सार्थक कदम उठाने होंगे
।
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