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Saturday, 12 September 2015

डिजिटल इंडिया से बनेगा स्मार्ट इंडिया

शशांक द्विवेदी
दैनिक जागरण 
डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च), मेवाड़ यूनिवर्सिटी
दैनिक जागरण में प्रकाशित 
शहरी भारत की नई तस्वीर
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र सरकार की 2 सबसे महत्वपूर्ण और महत्वकांक्षी परियोजना “डिजिटल इंडिया “ और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को लॉन्च किया। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट  के अंतर्गत देश भर में 100 स्मार्ट सिटी का निर्माण किया जाएगा इसके साथ ही 500 नगरों के लिए अटल शहरी पुनर्जीवन एवं परिवर्तन मिशन और 2022 तक शहरी क्षेत्रों में सभी के लिए आवास योजना भी लॉन्च हुई । इन  परियोजनाओं के परिचालन दिशा-निर्देश, नियमों, लागू करने के ढांचे को केंद्र द्वारा राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, स्थानीय शहरी निकायों के साथ पिछले एक साल के दौरान की गई चर्चा के आधार पर तैयार की गई हैं। पीएम मोदी ने कहा कि हर शहरी गरीब को इस लायक बनाया जाएगा कि उनके पास अपना घर होगा। स्मार्ट सिटी प्रॉजेक्ट के कई फायदे हैं, एक ओर जहां इससे वर्ल्ड क्लास शहरों का निर्माण होगा, जीवन स्तर में सुधार आएगा वहीं रोजगार की दृष्टि से भी यह काफी अहम है। केंद्र सरकार ने डिजिटल इंडिया मिशन के लिए 1,13,000 करोड़ का बजट रखा है जबकि देशभर में 100 स्मार्ट सिटी बनाने के लिए 48000 करोड़ का बजट प्रस्तावित है
पीएम मोदी ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि स्मार्ट सिटी परियोजना किसी भी राज्य पर थोपी नहीं जाएगी। बल्कि उस शहर के लोगों को खुद फैसला करना होगा। सच्चाई यह है कि भारत की 40 फीसदी आबादी या तो शहरी केंद्रों में रहती है या आजीविका के लिए इन पर निर्भर रहती है। शहरीकरण पर 25-30 साल पहले भी काम हो सकता था। शहरीकरण को एक अवसर के रूप में अगर देखा गया होता तो आज स्थिति कुछ और होती। स्मार्ट सिटी परियोजना का मकसद उपलब्ध संसाधनों और ढांचागत सुविधाओं का कुशल और स्मार्ट निदान अपनाने को प्रोत्साहित करना है ताकि शहरी जीवन को बेहतर बनाया जा सके तथा स्वच्छ एवं बेहतर परिवेश उपलब्ध कराया जा सके
स्मार्ट सिटी मॉडल :स्मार्ट लोग स्मार्ट शहर
दुनियाँ तेजी से बदल रही है,ऐसे में शहर भी बदल रहें है अब शहर भी स्मार्ट होते जा रहे है या फिर सरकार उन्हें स्मार्ट बनाना चाहती है ऐसे में सवाल उठता है कि   स्मार्ट सिटी आखिर होता क्या है? शायद ऐसी टाउनशिप जहां आपकी सभी जरूरतें पूरी हो जायें। आबू धाबी में मसदर से लेकर दक्षिण कोरिया के सोंगदो तक दुनियाभर में ऐसे शहरों के निर्माण पहले ही शुरू हो चुका है। हो सकता है कि आप जिस शहर में रह रहे हैं वो भी स्मार्ट करवट ले रहा हो। भविष्य के शहर में बिजली के ग्रिड से लेकर सीवर पाइप, सड़कें, कारें और इमारतें हर चीज एक नेटवर्क से जुड़ी होगी। बिल्डिंग की बिजली अपने-आप बंद हो जायेगी, ऑटोनोमस कार खुद पार्क हो जायेगी और यहां तक कि कूड़ादान भी स्मार्ट होगा। लेकिन सवाल यह है कि हम इस स्मार्ट भविष्य में कैसे पहुंच सकते हैं? शहर में हर इमारत, बिजली के खंभे और पाइप पर लगे सेंसरों पर कौन निगरानी रखेगा और कौन उन्हें नियंत्रित करेगा। आईबीएम, सीमन्स, माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल और सिस्को जैसी तकनीकी कंपनियां शहर में पानी के लीकेज से लेकर वायु प्रदूषण और ट्रेफिक जाम तक हर समस्या को सुलझाने के लिए सॉफ्टवेयर बेच रही हैं।
 सिंगापुर, स्टॉकहोम और कैलिफोर्निया में आईबीएम यातायात के आंकड़े जुटा रही है और जाम लगने के बारे में एक घंटे पहले ही भविष्यवाणी कर रही है। रियो में आईबीएम ने नासा की तरह एक कंट्रोल रूम बना रखा है जहां स्क्रीनें पूरे शहर में लगे सेंसरों और कैमरों से आंकड़े जुटाती हैं। आईबीएम के पास कुल मिलाकर दुनियाभर में 2500 स्मार्ट शहरों के प्रॉजेक्ट हैं। कंपनी का कहना है कि वो स्मार्ट शहर की अपनी परियोजनाओं में लोगों को साथ लेकर चलती है। डबलिन में कंपनी ने सिटी काउंसिल के साथ मिलकर पार्कया एप तैयार किया है जो लोगों को शहर में पार्किंग की जगह ढूंढने में मदद करता है। अमरीकी शहर डुबुक में कंपनी स्मार्ट वाटर मीटर बना रही है और कम्यूनिटी पोर्टल के जरिये लोगों को डेटा उपलब्ध करा रही है ताकि वे पानी की अपनी खपत को देख सकें। चीन दर्जनों ऐसे नए शहर बसा रहा है जिसमें रियो की तरह कंट्रोल रूम स्थापित किए जा रहे हैं।
स्मार्ट शहर की कहानी में एक और अध्याय है और इसे एप, डीआईवाई सेंसर, स्मार्टफोन तथा वेब इस्तेमाल करने वाले लोग लिख रहे है। डॉन्ट फ्लश मी एक छोटा डीआईवाई सेंसर और एप है जो अकेले दम पर न्यूयॉर्क की पानी से जुड़ी समस्याओं को सुलझा रहा है। इसी तरह सेंसर नेटवर्क एग लोगों को शहर की समस्याओं के प्रति सचेत कर रहा है। शोधों के मुताबिक हर साल 20 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण होती है। एग लोगों को सस्ते सेंसर बेचकर वायु की गुणवत्ता के बारे में आंकड़े जुटा रहा है। लोग इन सेंसरों को अपने घरों के बाहर लगाकर हवा में मौजूद ग्रीन हाउस गैसों, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड के स्तर का पता लगा सकते हैं। इन आंकड़ों को इंटरनेट पर भेजा जाता है जहां इन्हें एक नक्शे से जोड़कर दुनियाभर में प्रदूषण के स्तर को दिखाया जाता है। अनुमान के मुताबिक साल 2050 तक दुनिया की 75 प्रतिशत आबादी शहरों में निवास करेगी जिससे यातायात व्यवस्था, आपातकालीन सेवाओं और अन्य व्यवस्थाओं पर जबर्दस्त दबाव होगा। इस समय जो  स्मार्ट शहर बन रहे हैं वो बहुत छोटे हैं जैसे कोई नमूना हो।
स्मार्ट सिटी बनानें में समस्याएं
भारतीय शहरों को स्मार्ट सिटीबना पाना आसान काम तो बिल्कुल नहीं होगा सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि हमारे ज्यादातर पुराने शहर अनियोजित हैं, उनकी सही मैपिंग उपलब्ध नहीं है इन शहरों की 70 से 80 फ़ीसदी आबादी अनियोजित इलाकों में रहती है इन इलाकों में लगातार आवाजाही होती रही है ऐसे में काम की शुरूआत भी कैसे कर पाएंगे इससे तो लगता है कि नए शहर ही बसाए जाएँ, जहां हर चीज़ कि प्लानिंग पहले से की गई हो हमारे शहरों की संरचना और लोगों के रहन-सहन में बड़ी जटिलता है शहर की एक बड़ी आबादी पक्के मकानों में रहती है, जबकि लगभग उतनी ही आबादी सड़कों और झुग्गी-झोपड़ियों में रहती है सरकार को ऐसे शहर बनाने चाहिए, जहां लोगों के रहन-सहन में थोड़ी समानता दिखे
डिजिटल इंडिया से बनेगा स्मार्ट इंडिया
डिजिटल इंडिया के सपने को साकार किये बिना स्मार्ट सिटी योजना को मूर्त रूप नहीं दिया जा सकता । आनलाइन और डिजिटल तकनीक मदद से न सिर्फ शहरी क्षेत्रों में प्राप्त होने वाली सुविधाओं की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकेगा बल्कि साथ ही साथ उपयोग के संसाधनो के खर्च को घटाया जा सकेगा तथा अधिक से अधिक लोगों तक इन सेवाओं को पहुंचाना भी आसान हो सकेगा।   भारत में  बनने  जा रहे स्मार्ट सिटी में सरकारी सेवाओ की कार्यप्रणाली, परिवहन एवं ट्रैफिक व्यवस्था, विद्युत एवं पानी व्यवस्था, मेडिकल सेक्टर की सेवाओं और कूड़े कचरे आदि के प्रबंधन को तकनीक की मदद से बेहतर बनाया जाएगा। सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग स्मार्ट सिटी में विधुत उपयोग एवं इसके वितरण को बेहतर बनाने, शहर की सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने, शहरो के बिज़नेस क्षेत्रो एवं कुछ खुले क्षेत्रो में वाई-फाई व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए किया जाएगा। 

स्मार्ट मीटर, क्लाउड कंप्यूटिंग तकनीक एवं वायरलेस सेंसर तकनीक की मदद से बिजली  खपत की व्यवस्था को बेहतर बनाना एवं इसका सही से प्रबंधन  करना संभव हो सकेगा। बिजली खपत जानने के लिए उपलब्ध स्मार्ट मीटर की मदद से बिजली प्रदानकर्ता और ग्राहक दोनों तरफ की सही सही जानकरी मिल सकेगी, जिसकी मदद से उपयोगकर्ता अपनी आवश्यकता के अनुसार ही बिजली खर्च कर पायेंगे। पावर प्लांट से शहरी  क्षेत्रो में बिजली भेजने  के लिए सामान्य पावर ग्रिड के स्थान पर पर 'स्मार्ट पावर ग्रिड' का उपयोग किया जाएगा। जिसकी मदद से न सिर्फ बिजली का सही प्रकार से वितरण हो सकेगा बल्कि कटौती के समय बिजली का संग्रहण भी संभव हो सकेगा एवं इसके परिचालन, प्रबंधन में आने वाले खर्च को भी कम किया जा सकेगा। स्मार्ट सिटी में सूचना एवं संचार तकनीक की मदद से सभी प्रकार के परिवहन नेटवर्क जैसे रेल, मेट्रो, बस, कार एवं अन्य को जोड़ा जा सकेगा, ताकि इनसे सम्बंधित जानकारी सही-सही मिल सके और शहर की ट्रैफिक व्यवस्था को बेहतर बनाया जा सके।    

Thursday, 3 September 2015

क्रायोजेनिक तकनीक में आत्मनिर्भरता

शशांक द्विवेदी
डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च), मेवाड़ यूनिवर्सिटी
जीएसएलवी डी- 6 के जरिये अत्याधुनिक संचार उपग्रह जीसैट-6 का सफल प्रक्षेपण
दैनिक जागरण 
लगभग 20 साल की कड़ी मेहनत और कई असफल अभियानों के बाद आखिरकार भारत क्रायोजेनिक तकनीक में आत्मनिर्भर हो गया है । पिछले दिनों इसरो ने देश में निर्मित क्रायोजेनिक इंजन के जरिये रॉकेट जीएसएलवी डी- 6 का सफल प्रक्षेपण कर अंतरिक्ष के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाकर नया इतिहास रच दिया। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित 49.1 मीटर लंबा यह रॉकेट 2117 किलोग्राम वजनी अत्याधुनिक और सबसे बड़े संचार उपग्रह जीसैट-6 को उसकी वांछित कक्षा में स्थापित करने में कामयाब रहा।  जीएसएलवी डी-6 के इस सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारत विश्व का ऐसा छठा देश बन गया, जिसके पास अपना देसी क्रायोजेनिक इंजन है। अमेरिका, रूस, जापान, चीन और फ्रांस के पास पहले से ही यह तकनीक है। क्रायोजेनिक इंजन तकनीक से लैस चुनिंदा राष्ट्रों के क्लब में शामिल होने के बाद भारत को अपने भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इसरो अब वह दूसरे देशों के भारी उपग्रहों का प्रक्षेपण कर और विदेशी मुद्रा अर्जित कर सकेगा ।
कई नाकामियों के बाद मिली सफलता
इससे पहले स्वदेशी तकनीक से विकसित क्रायोजेनिक इंजन युक्त जीएसएलवी का मात्र एक प्रक्षेपण सफल रहा है। पिछले साल 5 जनवरी 2014 को जीएसएलवी डी-5 ने संचार उपग्रह जीसैट-14 को पृथ्वी की कक्षा में सटीकता के साथ पहुंचाया था। जबकि इसके पहले जीएसएलवी के कुछ अभियान नाकाम रहें थे । इसलिए पिछले कुछ  नाकामियों के बाद देसी क्रायोजेनिक इंजन के साथ जीएसएलवी डी-6  रॉकेट के सफल प्रक्षेपण से भारतीय वैज्ञानिकों में खुशी की लहर दौड़ गयी । प्रक्षेपण में सफलता क्रायोजेनिक तकनीक में महारत हासिल करने की गारंटी भी है । यह जीएसएलवी के वाणिज्यिक उड़ानों के लिए तैयार होने का उद्घोष भी है और भारी संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण में देश को आत्मनिर्भर बना देगा।

जीएसएलवी मिशन

मिशन
लॉन्च की तिथि
पेलोड
कक्षा
मिशन स्थिति
जीएसएलवी F06
25-Sep-2010
जीसैट-5P
जीटीओ
विफलता
जीएसएलवी डी 3
15-Nov-2010
जीसैट -4
जीटीओ
विफलता
जीएसएलवी F04
02-Sep-2007
इनसैट -4 सीआर
जीटीओ
आंशिक सफलता
जीएसएलवी F02
10-Sep-2006
इनसेट -4 सी
जीटीओ
विफलता
जीएसएलवी-F01
20-Sep-2004
एडुसैट
जीटीओ
सफलता
जीएसएलवी डी 2
08 मई, 2003
जीसैट-2
जीटीओ
सफलता
जीएसएलवी डी 1
18-Nov-2001
जीसैट-1
जीटीओ
सफलता
जीएस एल वी डी 5
05-JAN-2014
जीसैट-14
जीटीओ
सफलता
प्रभातखबर 


जीसैट-6
जीसैट-6 भारत का सबसे बड़ा अत्याधुनिक संचार उपग्रह है .जीसैट-6 का वजन 2117 किलोग्राम है जिसमें प्रोपेलेटों का वजन 1132 किलोग्राम और उपग्रह का शुद्ध भार 985 किलोग्राम है और ये सैटेलाइट अपने साथ 6 मीटर चौड़ा एक एंटिना ले जा रहा है, जिसका मकसद छोटे हैंडसेट के जरिये डाटा, वीडियो या आवाज को एक जगह से दूसरी जगह भेजना है। इसका इस्तेमाल डिफेंस यानी सामरिक सेक्टर में होगा ताकि दूर-दराज के इलाके में भी छोटे हैंडसेट के जरिये संपर्क साधा जा सके। जीसैट-6 एस बैंड और सी बैंड के माध्यम से संचार मुहैया कराएगा। इस उपग्रह की जीवन अवधि नौ वर्ष है।


जीसैट-6 इसरो का बनाया 25वां भू-स्थैतिक संचार उपग्रह है जबकि  जीसैट श्रृंखला का यह 12वां उपग्रह है। इसका सामरिक उपयोग करने वाले इसके सी बैंड में राष्ट्रीय बीम और एस बैंड में पांच स्पॉट बीमों जरिए संचार सुविधा ले सकेंगे। इसका एंटिना इसरो द्वारा बनाया गया अब तक का सबसे बड़ा एंटिना है।
वाकई में ये एक बड़ी कामयाबी है क्योंकि  इस मिशन के लिए जैसे मानक तय किए गए थे, उस पर भारतीय क्रायोजेनिक इंजन सौ फीसद खरा उतरते हुए जीसैट-6  को सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया । अभी तक भारत दूसरे देशों की मदत से अपने 3.5 टन के संचार उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए 500 करोड़ की फीस चुकाया करता था । जबकि जीएसएलवी यह काम लगभग 200 करोड़ में ही कर देगा । क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने में बीस वर्षो की मेहनत रंग लाई है । भारत के लिए यह ऐतिहासिक दिन है। 2001 से ही देसी क्रायोजेनिक इंजन के माध्यम से जीएसएलवी का प्रक्षेपण इसरो के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ था। जीएसएलवी के कई परीक्षणों में हमें असफलता मिल चुकी है इसलिए ये कामयाबी खास है ।
क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन
राष्ट्रीय सहारा 
असल में जीएसएलवी में प्रयुक्त होने वाला  द्रव्य ईंधन इंजन में बहुत कम तापमान पर भरा जाता है, इसलिए ऐसे इंजन क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन कहलाते हैं। इस तरह के रॉकेट इंजन में अत्यधिक ठंडी और द्रवीकृत गैसों को ईंधन और ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस इंजन में हाइड्रोजन और ईंधन क्रमश ईंधन और ऑक्सीकारक का कार्य करते हैं। ठोस ईंधन की अपेक्षा यह कई गुना शक्तिशाली सिद्ध होते हैं और रॉकेट को बूस्ट देते हैं। विशेषकर लंबी दूरी और भारी रॉकेटों के लिए यह तकनीक आवश्यक होती है।
क्रायोजेनिक इंजन के थ्रस्ट में तापमान बहुत ऊंचा (2000 डिग्री सेल्सियस से अधिक) होता है। अत ऐसे में सर्वाधिक प्राथमिक कार्य अत्यंत विपरीत तापमानों पर इंजन व्यवस्था बनाए रखने की क्षमता अर्जित करना होता है। क्रायोजेनिक इंजनों में -253 डिग्री सेल्सियस से लेकर 2000 डिग्री सेल्सियस तक का उतार-चढ़ाव होता है, इसलिए थ्रस्ट चौंबरों, टर्बाइनों और ईंधन के सिलेंडरों के लिए कुछ विशेष प्रकार की मिश्र-धातु की आवश्यकता होती है।  फिलहाल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बहुत कम तापमान को आसानी से झेल सकने वाली मिश्रधातु विकसित कर ली है।
अन्य द्रव्य प्रणोदकों की तुलना में क्रायोजेनिक द्रव्य प्रणोदकों का प्रयोग कठिन होता है। इसकी मुख्य कठिनाई यह है कि ये बहुत जल्दी वाष्प बन जाते हैं। इन्हें अन्य द्रव प्रणोदकों की तरह रॉकेट खंडों में नहीं भरा जा सकता। क्रायोजेनिक इंजन के टरबाइन और पंप जो ईंधन और ऑक्सीकारक दोनों को दहन कक्ष में पहुंचाते हैं, को भी खास किस्म के मिश्रधातु से बनाया जाता है।, द्रव हाइड्रोजन और द्रव ऑक्सीजन को दहन कक्ष तक पहुंचाने में जरा सी भी गलती होने पर कई करोड़ रुपए की लागत से बना जीएसएलवी रॉकेट रास्ते में जल सकता है। इसके अलावा दहन के पूर्व गैसों (हाइड्रोजन और ऑक्सीजन) को सही अनुपात में मिश्रित करना, सही समय पर दहन प्रारंभ करना, उनके दबावों को नियंत्रित करना, पूरे तंत्र को गर्म होने से रोकना जरूरी है ।
जीएसएलवी (जियो सिंक्रोनस लॉन्च वीकल )
जीएसएलवी ऐसा मल्टीस्टेज रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक वजनी उपग्रह को पृथ्वी से 36000 किमी. की ऊंचाई पर भू स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है ,जो विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा के ऊपर होता है। ये अपना कार्य तीन चरण में पूरा करते हैं। इनके आखिरी यानी तीसरे चरण में सबसे अधिक बल की जरूरत पड़ती है। रॉकेट की यह जरूरत केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकते हैं। इसलिए बगैर क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रॉकेट बनाया जा सकना मुश्किल होता है।  दो टन से अधिक वजनी उपग्रह ही हमारे लिए ज्यादा काम के होते हैं इसलिए दुनिया भर में छोड़े जाने वाले 50 प्रतिशत उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं। जीएसएलवी रॉकेट इस भार वर्ग के दो तीन उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में ले जाकर 36000 किमी. की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है। यही जीएसएलवी रॉकेट की प्रमुख विशेषता है।

अंतरिक्ष बाजार में भारत की धमक
पिछले दिनों पांच ब्रिटिश उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण के साथ ही भारत अब तक 19 देशों के 45 उपग्रहों को अंतरिक्ष भेज चुका है और भविष्य में नासा के कुछ उपग्रह भी प्रक्षेपित करने वाला है भारत इस .यह भारत की अंतरिक्ष बाजार में बढ़ती हुई धमक का स्पष्ट संकेत है क्योकि इतने कम बजट में भी इसरो बेहतरीन प्रदर्शन कर रहा है .भारत इस तरह के व्यावसायिक प्रक्षेपण करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया है । वास्तव में विदेशी उपग्रहों का यह सफल प्रक्षेपण भारत की अंतरिक्ष क्षमता की वैश्विक अभिपुष्टिहै। वास्तव में ये सफलता कई मायनों में बहुत खास है क्योंकि एक समय था जब भारत अपने उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए दूसरे देशों पर निर्भर था और आज भारत विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण से अरबों डालर की विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहा है । जिससे भारत को वाणिज्यिक फायदा हो रहा है । इसरो के कम प्रक्षेपण लगत की वजह से दूसरे देश भारत की तरफ लगातार आकर्षित हो रहें है । इसरो द्वारा 45 विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण से देश के पास काफी विदेशी मुद्रा आई है।  इसके साथ ही अरबों डॉलर के अंतरिक्ष बाजार में भारत एक महत्वपूर्ण देश बनकर उभरा है ।   फ़िलहाल इसरो के कामर्शियल विंग का टर्नओवर 13 अरब रुपये हो गया है। चाँद और मंगल अभियान सहित इसरो अपने 100 से ज्यादा अंतरिक्ष अभियान पूरे करके पहले ही इतिहास रच चुका है ।
संभावनाओं के नए दरवाजें

जीसैट-6 प्रक्षेपण को लेकर इसरो के अध्यक्ष ए.एस. किरन कुमार ने कहा, ' रॉकेट का प्रदर्शन आशा के अनुरूप रहा और यह पूरी टीम के जबर्दस्त प्रयासों का परिणाम है । अब हमें क्रायोजेनिक इंजन की पेचीदगियां समझ में आ गई हैं।' इसरो प्रमुख के अनुसार भविष्य में हम जीएसएलवी के जरिये कई और संचार उपग्रहों का प्रक्षेपण करेंगे साथ ही इस रॉकेट का इस्तेमाल दूसरे चंद्रयान मिशन और जीआइसेट की लांचिंग में भी किया जाएगा । जीएसएलवी की यह सफलता इसरो के लिए बेहद ख़ास है क्योंकि दूरसंचार उपग्रहों, मानव युक्त अंतरिक्ष अभियानों या दूसरा चंद्र मिशन जीएसएलवी के विकास के बिना संभव नहीं था । इस प्रक्षेपण की सफलता से इसरो के लिए संभावनाओं के नए दरवाजें खुलेगे ।

Tuesday, 28 July 2015

101 इन्डियन साइंस कांग्रेस में डॉ कलाम के साथ जुड़ा हुआ संस्मरण

देश के पूर्व राष्ट्रपति ,मिसाइलमैंन डॉ ए .पी .जे अब्दुल कलाम को भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करता हुआ मेरा यह संस्मरण देश के कुछ प्रमुख अख़बारों (दैनिक जागरण ,लोकमत ,डीएनए,जन्संदेश टाइम्स,आज,अजीत समाचार ,हिमाचल दस्तक ,जनवाणी ,डेली न्यूज  ) में प्रकाशित हुआ  ...सिस्टम बदलना नहीं है बल्कि इस सिस्टम में रहकर इसे सुधारना है-डॉ कलाम
शशांक द्विवेदी
डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च), मेवाड़ यूनिवर्सिटी
देश के पूर्व राष्ट्रपति ,मिसाइलमैंन डॉ ए .पी .जे अब्दुल कलाम चिर निद्रा में विलीन हो गए है लेकिन अपने पीछे वो एक बड़ी वैज्ञानिक विरासत छोड़ कर गएँ है और उनकी इस विरासत और उनके विजन को पूरा करने की जिम्मेदारी अब देश के युवाओं के कन्धों पर है .उन्होंने भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए विजन 2020 का नारा दिया था जिसपर अब गंभीरता के साथ काम करने की जरुरत है .कलाम साहब न सिर्फ एक उम्दा वैज्ञानिक थे बल्कि एक सीधे ,सरल और सहज इन्सान भी थे जिन्होंने राष्ट्रपति रहते हुए भी जनता से खासकर देश के युवाओं  और बच्चों से सीधा संवाद स्थापित किया ..उनका एक संस्मरण मुझे भी याद आत है 
पिछले साल  101 विज्ञान कांग्रेस में आमंत्रित वक्ता के रूप में मुझे भी जम्मू जम्मू जाने का अवसर मिला .इन्डियन साइंस कांग्रेस चूँकि देश का सबसे बड़ा वैज्ञानिक आयोजन होता है जहाँ देश –विदेश के हजारों वैज्ञानिक भाग लेते है .इसका उद्घाटन हर साल खुद देश के प्रधानमंत्री करते है ,पिछले साल भी इसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने किया था .इस आयोजन में ही पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए .पी .जे अब्दुल कलाम साहब भी आये थे .  उद्घाटन सत्र के बाद पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए .पी .जे अब्दुल कलाम का सेशन था मै पूरी तल्लीनता और बेसब्री से उनका इन्तजार कर रहा था .पूरा हाल खचाखच भरा था जिसमें अधिकांशतया स्कूली बच्चे थे ,जैसे ही कलाम साहब आये तालियों की गडगडाहट के साथ उनका संबोधन शुरू हुआ ,.ऐसा संबोधन ,ऐसा प्रेरणादायक भाषण मैंने आज तक जिंदगी में कभी किसी का नहीं सुना ,मै उनके पूरे भाषण में या यो कहें कि पब्लिक इंटरेक्शन के दौरान अपनी सीट पर बैठा नहीं ,खड़ा ही रहा ,उनके एक एक शब्द की रिकार्डिंग करता रहा जिससे कि कुछ छुट ना जाएँ साथ में कुछ जरुरी चीजें लिखता भी रहा .उनके पूरे संबोधन और इंटरेक्शन के दौरान बच्चे काफी खुश नजर आयें और पूरे समय बिना शोर मचाये उन्हें सुनते रहें .
जन्संदेश टाइम्स
उन्होंने कहा कि कल्पना ,ज्ञान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है,,इसलिए कल्पनाशील बनो और सपने जरुर देखने चाहिए ,बिना सपनों के इन्सान कुछ बड़ा हासिल नहीं कर सकता . उन्होंने कहा कि छोटा सपना एक अपराध की तरह है इसलिए हमेशा बड़े  सपने देखो ,हमेशा आगे बढ़ो चाहे कितनी भी मुश्किलें आये आगे बढ़ो .इनोवेशन ही सफल जीवन जीने की कुंजी है ..आप अच्छा करेंगे तो देश का अच्छा  अपने आप हो जाएगा इसलिए पहले खुद को ईमानदार और मजबूत बनाये अपने कर्म , अपने सपनो के प्रति दृढ रहें .
अपने संबोधन के दौरान ही उन्होंने कई बच्चों के साथ सीधा संवाद स्थापित करते हुए उनके सवालों के सीधे जवाब भी दिए ..ज्यादा सवाल होने पर उन्होंने बच्चों को अपनी ईमेल आईडी और संपर्क सूत्र देते हुए कहा कि वो बाद में उन्हें संपर्क कर सकते है . लगभग 2 घंटे तक कलाम साहब का ये सत्र चलता रहा जहाँ बैठा हुआ हर व्यक्ति और बच्चा खुद को गौरान्वित महसूस कर रहा था .उन्होंने अपने सपनों के लिए, अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने की शपथ भी सबको दिलाई .
दैनिक जागरण 
संबोधन के बाद उन्होंने देश के हर राज्य और हर हिस्से से आये स्कूली बच्चों के प्रोजेक्ट और उनके काम को देखा .उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी किया और कुछ अच्छे प्रोजेक्ट्स के लिए कुछ काम आगे भी करने को कहा .इस दौरान मै पूरे समय उनके साथ ही था ,उनसे बातचीत में मैंने कहा कि कि सर देश में अभी भी विज्ञान संचार का माहौल नहीं है लोगों के शोध उनके काम बड़े पैमाने पर आम जनता तक नहीं पहुँच पाते ना ही ऐसी कोई पुख्ता  सरकारी व्यवस्था है जिससे बच्चों के ये प्रोजेक्ट इस हाल से बाहर  जाकर आगे कुछ कर पायें . उन्होंने मेरी बात बहुत ध्यान  से सुनी और कहा कि शशांक जी इतनी समस्याएं है तभी तो आप जैसे विज्ञान संचारकों की जरुरत है जो विज्ञान को मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुचाएं .साथ में उन्होंने कहा कि हर सरकार एक जैसी ही होगी कोई थोडा ज्यादा अच्छी हो सकती है लकिन अल्टीमेटली हम सब को जमीनी स्तर पर विज्ञान को बढ़ावा देना होगा इसके लिए सिर्फ सरकारों के भरोसे नहीं रह सकते .हम सब को मिलकर काम करना होगा .
कुलमिलाकर उनका पूरा सकारात्मक व्यक्तित्व  देखकर मै दंग रह  गया था कि कहीं भी उन्होंने सिस्टम के प्रति कोई निराशा व्यक्त नहीं की बलिक इस सिस्टम में रहकर ही कुछ बेहतर करने को प्रेरित किया ..उन्होंने कहा कि सिस्टम बदलना नहीं है बल्कि इस सिस्टम में रहकर इसे सुधार  कर ही आगे बढ़ना है .कुलमिलाकर विज्ञान कांग्रेस में इतने अद्भुत व्यक्तित्व के धनी कलाम साहब से मिलकर बहुत अच्छा लगा .ऐसा प्रेरक सीधा ,सरल और सहज व्यक्तित्व मिलना आज की इस दुनिया में मिलना असंभव है  .

लोकमत 
डेली न्यूज 
वो देश के राष्ट्रपति भी बने लेकिन फिर भी  राजनीति के कीचड में कभी नहीं फसे ,वो देश में आम आदमी के राष्ट्रपति के रूप में हमेशा जानें गए ..आज वो हमारे बीच नहीं है लेकिन उनका विराट व्यक्तितिव हमेशा  जिन्दा रहेगा ,उनके विचार हमेशा प्रासंगिक रहेंगे ,अब देश के नौजवानों को उनके दिए गए विजन पर काम करते हुए इस देश को विकसित देश बनाना होगा .उनके 2020 मिशन को पूरा करने में अपना सहयोग देना ही उनके प्रति सच्ची श्रधांजली होगी .