Tuesday 21 April 2020

शुगर की लत छुड़ाना है जरूरी

...गर है शुगर की लत,
इन दिनों है छुटकारे का बेहतरीन मौका
Get rid of Sugar Addiction during Lockdown

शुगर अडिक्शन के शिकार हम लोगों के लिए लॉकडाउन के ये दिन अच्छे नहीं चल रहे। मिठाई की दुकानें बंद हैं तो दिन बेचैनी में कट रहे हैं। हालांकि एक्सपर्ट का मानना है कि इस आदत से छुटकारा पाने का यह बेहतरीन मौका है और अगले कुछ दिनों में आप इससे मुक्ति के लिए पूरी कोशिश कर सकते हैं और संभव है कि आप इसमें सफल भी रहें। इस आदत को छोड़ने के बारे में एक्सपर्ट लोगों से बात कर पूरी जानकारी दे रहे हैं लोकेश के. भारती

मीठा पसंद करने वालों की भी अपनी मजबूरी होती है। मिठाई न मिले तो ऐसे लोग परेशान हो जाते हैं। 'शुगर अडिक्शन' के शिकार ऐसे लोगों को अगर मीठा न मिले तो उन्हें लगता है कि कुछ खाया ही नहीं। कई लोग तो मिठाई देखते ही उस पर टूट पड़ते हैं और कितना भी खा लें, उनका मन नहीं भरता। बेशक ऐसे लोगों के लिए आजकल मिठाई के ऑप्शन काफी कम हैं। सारे होटल और रेस्तरां बंद हैं और घरों में इतनी मिठाइयां तो बन नहीं सकतीं। ऐसे में वे परेशान तो हैं, लेकिन अगर इस समय वे खुद को मिठाई से दूर कर लें और उसकी जगह फ्रूट्स जैसे ऑप्शन को आदत में शामिल कर लें तो इस लॉकडाउन में यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।

क्या है शुगर अडिक्शन
खाना खाने के बाद मीठा खाने का मन लगभग सभी का करता है। अगर आपको लगता है कि मीठा नहीं खाया तो खाना पूरा नहीं हुआ और हर बार खाने के बाद कुछ मीठा होना ही चाहिए तो आप शुगर अडिक्ट हैं। लेकिन जिन लोगों को मीठा न मिलने पर इसकी जरूरत महसूस नहीं होती या जिन्हें मीठा खाना याद भी नहीं रहता, उन्हें शुगर अडिक्ट नहीं माना जा सकता।

क्यों होती है लोगों में यह समस्या
अगर किसी को शुगर अडिक्शन की परेशानी है तो इसका सीधा-सा मतलब है कि उसकी आंत में गुड और बैड बैक्टीरिया का अनुपात सही नहीं है। हमारे गलत खानपान (ज्यादा तेल मसाला, जंक फूड आदि) की वजह से अमूमन ऐसा होता है। इससे आंत सही तरीके से काम नहीं करती। पाचन ठीक तरीके से नहीं होता। इस समस्या से निपटना भी इस लॉकडाउन में मुमकिन है। हम अगर हर दिन सुबह में खाली पेट एक गिलास गुनगुने पानी में आधा नीबू निचोड़ कर पिएं तो फर्क 10 दिनों में ही दिखने लगेगा। हमारी आंत में गुड बैक्टीरिया की संख्या बढ़ने लगेगी और पाचन क्रिया सही होने लगेगी। इसलिए शुगर की आदत को छोड़ने के लिए शरीर को नीबू पानी से डिटॉक्सिफाई करना भी जरूरी है।

अडिक्शन को क्यों करें नमस्ते
आजकल हर शख्स को मिठाई और नमक से दूरी बनाने की सलाह डॉक्टर और डायटिशन देते हैं क्योंकि इनसे शुगर, मोटापा और बीपी जैसी परेशानी पैदा होती हैं।
-अगर कोई नियमित रूप से मिठाई खाए तो यह मोटापा और डायबीटीज का कारण बन सकता है।
- कई लोगों को दिन में खाने के बाद अगर मिठाई न मिले तो काम में मन नहीं लगता है।
- रात में खाना के बाद मीठा खाने को न मिले तो अच्छी नींद नहीं आती।

लॉकडाउन में छोड़ना आसान
आजकल हम लोगों के पास वक्त की कोई कमी नहीं है। ऐसे में किसी भी आदत को छोड़ना दूसरे दिनों की तुलना में अभी आसान है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि चीजों की उपलब्धता ही नहीं है। फिर घर से बाहर निकलना ही मुश्किल है। अगर कोई बाहर निकल भी गया तो शराब और सिगरेट की दुकानें बंद हैं। इसलिए ऑप्शन बहुत कम हैं। सिर्फ शुगर ही क्यों, शराब, सिगरेट जैसी बुरी आदतों को भी इस लॉकडाउन के दौरान छोड़ा जा सकता है।
यहां एक सवाल उठना लाजमी है कि अगर कोई घर में ही मीठा बनवाकर खाए तो फिर उसका क्या? हां, यह मुमकिन है लेकिन किसी रेस्तरां से या होटल से खरीदकर खाने की तुलना में इतनी तरह के व्यंजन घर बनाना बहुत मुश्किल है।

चीनी की लत छोड़ने के 5 बेहतरीन तरीके

 1.
खाने के बाद ब्रश करें

यह सच है कि जब हम कुछ नमकीन खाते हैं तो हमें मीठा खाने की तलब ज्यादा होती है। ऐसे में इससे बचने का सबसे बेहतरीन तरीका है कि खाने के बाद फौरन ही ब्रश कर लें। इससे एकतरफ जहां दांतों की सफाई हो जाएगी, वहीं मुंह का स्वाद भी बदल जाएगा। एक बार जब स्वाद बदल जाता है तो मीठा खाने की तलब भी काफी कम हो जाती है। खाने के फौरन बाद ब्रश करना वैसे अच्छा नहीं होता क्योंकि हमारी लार पाचन में मदद करती है। इसलिए ऐसा शुरू के 5-10 दिन ही करें। यानी जब तक आदत छूट न जाए तब ब्रश के ऑप्शन को आजमा सकते हैं।

 2.
नींद कुछ खराब होने दें

डिनर के बाद मीठा अगर नहीं खाएंगे तो मुमकिन है कि नींद कुछ देर में आए। पर, आजकल यह चल सकता है। जब ऑफिस जाना होता था तो एक रात नींद न आने से अगले दिन ऑफिस जाना मुश्किल हो जाता था। चूंकि आजकल ऑफिस नहीं जाना है तो सुबह में सफर के एक-दो घंटे बचते ही हैं। ऐसे में अगर रात में नींद नहीं आएगी तो सुबह में नींद पूरी कर सकते हैं और थोड़ा लेट भी उठ सकते हैं।

 3.
खा सकते हैं ड्राई फ्रूट्स भी

किशमिश हो या फिर खजूर, मिठाई की जगह हम इन्हें ले सकते हैं। 10 से 12 किशमिश या फिर 2 से 3 खजूर दिनभर में लेना सही रहता है। एक बार खाने के बाद 5 से 6 किशमिश और एक खजूर पर्याप्त है। ऐसे में इन ड्राई फ्रूट्स को घर पर जरूर रखना चाहिए। अच्छी बात यह है कि इनकी लाइफ भी काफी लंबी होती है और इन्हें खाने से सेहत पर भी कोई समस्या नहीं आती।

 4.
फ्रूट्स की आदत डालें

किसी को बार-बार मीठा खाने की आदत है तो उसे छोड़ने के लिए वह फल का सहारा ले सकता है। मौसमी फल (अंगूर, पपीता, सेब, शहतूत, संतरा आदि) के एक-दो पीस ही मीठा खाने की आपकी इच्छा को खत्म कर सकते हैं। ऐसे में घर में फल रखें। इन्हें अच्छी तरह धोकर और ढककर रखें। जब भी मीठा खाने का मन करे, फल खा लें। ध्यान दें कि अगर आपको जुकाम या बुखार है तो रात में फल कम खाएं, केले तो न ही खाएं। कारण, केला बलगम पैदा कर सकता है। और हां, कोशिश हो कि खाने के फौरन बाद ही फ्रूट्स नहीं खाएं। कम से 2 घंटे का गैप दें। अगर 2 घंटा नहीं बर्दाश्त कर सकते तो 1 घंटा जरूर रूकें।

 5.
सौंफ भी है अच्छा विकल्प

खाना खाने के बाद मीठा खाने का मन करे तो सौंफ खाना एक अच्छा ऑप्शन है। यह हल्की मीठी होती है और इससे सांस की बदबू भी दूर होती है। हकीकत यह है कि होटल और रेस्तरां में भी खाना खत्म होने के बाद सौंफ और मिश्री दी जाती है। इसकी सबसे बड़ी वजह सौंफ की खासियत ही है। दरअसल, सौंफ सांस की बदबू को पूरी तरह खत्म कर देती है। लेकिन यहां इस बात का ध्यान रखें कि सौंफ के साथ मिश्री न हो।
....................................

ऐसा सोचना नहीं है सही
मिथ: मिठाई या चीनी की जगह गुड़ खाना ठीक रहता है।
सचाई: यह सही नहीं है। अगर हमने मिठाई की जगह गुड़ का सेवन किया तो भले ही कैलरी कम हो जाए, लेकिन मीठे की आदत नहीं जाएगी। हां, चीनी की तुलना में बेहतर ऑप्शन जरूर है, लेकिन शुगर अडिक्शन छोड़ने के लिए सही नहीं है।

मिथ: मिठाइयों का शौक अडिक्शन नहीं है।
सचाई: खुद की आदतों पर अगर गौर करेंगे तो संदेह कहीं रह नहीं जाता कि आप अडिक्ट हैं। एक सिंपल फंडा है: अगर कोई शख्स बिना मिठाई के 10 दिन रह ले और इस दौरान उसे मीठा खाने की जरूरत महसूस न हो तो वह शुगर अडिक्ट नहीं है। इस फंडे पर आदतों को देखें और तय करें कि अडिक्शन है या नहीं।

मिथ: रोटी-चावल का ज्यादा सेवन शुगर अडिक्शन में नहीं आता।
सचाई: हां, यह सच है कि कार्बो यानी रोटी या चावल का स्वाद मीठा नहीं होता, लेकिन पचने के बाद ये भी ग्लूकोज ही बनाते हैं और फैट के रूप में बदलकर शरीर में जमा हो जाते हैं। यही कारण है कि शुगर पेशंट या फिर जिन्हें अपना वजन कम करना होता है, उन्हें रोटी-चावल से दूरी बनाकर रखने के लिए कहा जाता है। सच तो यह है कि हम इन्हें सीधे तौर पर तो मिठाई नहीं कह सकते, लेकिन जब हम शुगर अडिक्शन को छोड़ने की बात करते हैं तो इन पर निर्भरता कम जरूर करनी चाहिए। दिन में अगर 3 चपाती या 2 कटोरी चावल खाते हैं तो रात में 1 चपाती और आधी कटोरी चावल से ज्यादा नहीं खाना चाहिए।

मिथ: चाय या कॉफी में चीनी से दिक्कत नहीं है।
सचाई: कई लोगों को खाने के बाद मीठे के रूप में चाय या कॉफी पीना अच्छा लगता है। उन्हें यह सेहत के लिहाज से सही लगता है क्योंकि इसमें कैलरी की मात्रा मिठाई की तुलना में काफी कम होती है। 1 कप चाय या कॉफी में 50 से 70 कैलरी तक होती है, जबकि 1 गुलाब जामुन में 300 से 350 कैलरी होती है। यह सच है कि चाय या कॉफी में कैलरी कम है, लेकिन खाने के बाद इन्हें पीने पर दूसरे नुकसान बहुत ज्यादा हैं:
- खाने के फौरन बाद इन्हें पीने पर खाना पचने में परेशानी होती है, इसलिए पेट में गैस की समस्या हो सकती है।
- ये डाययूरेटिक (ज्यादा यूरिन बनाने वाले) होती हैं यानी शरीर से ज्यादा मात्रा में पानी को यूरिन बनाकर निकालते हैं। ऐसे में शरीर की कोशिकाओं में पानी की कमी होती रहती है।
- भले ही इसमें कैलरी कम हो, लेकिन चाय या कॉफी में भी चीनी ही ली जा रही है। यह भी उसी तरह है, जैसे एक मिठाई। मिठाई में भी चीनी तो सीधे तौर पर कोई खाता नहीं है।

मिथ: आर्टिफिशल स्वीटनर से नुकसान नहीं।
सचाई: इस तरह की सोच ज्यादातर लोग रखते हैं कि आर्टिफिशल स्वीटनर में कैलरी नहीं होती, इसलिए चाय या कॉफी में मिलाकर पीने से समस्या नहीं है। लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि यह कोई नेचरल चीज नहीं है। शुगर-फ्री चीजों (चॉकलेट, डाइट कोक, बेकरी आइटम आदि) में शुगर अल्कोहल, फ्रक्टोस, सैक्रीन, मैल्टोडेक्सट्रिन आदि होते हैं जोकि शुगर नहीं हैं, लेकिन इनमें कार्बोहाइड्रेट काफी ज्यादा होते हैं, जिससे ब्लड ग्लूकोज़ लेवल पर असर पड़ता है। प्रेग्नेंट महिलाएं, बच्चे को दूध पिलाने वाली मांएं और बच्चे आर्टिफिशल स्वीटनर का इस्तेमाल न करें। यह बात कोरी अफवाह है कि आर्टिफिशल स्वीटनर्स से कैंसर, सदमा, दौरा, मेमरी लॉस जैसे समस्याएं हो सकती हैं। किसी भी रिसर्च में यह साबित नहीं हुआ है। हालांकि एक स्टडी में कहा गया है कि जिन लोगों को डायबीटीज नहीं है और उन्हें वजन कम करने में मदद नहीं मिलती, उलटे डायबीटीज जैसी मेटाबॉलिक बीमारियां होने का खतरा होता है। बेहतर है कि इन स्वीटनर्स को कम मात्रा में ही इस्तेमाल किया जाए।

एक्सपर्ट पैनल
डॉ. समीर पारिख, सीनियर साइकाइट्रिस्ट
रेखा शर्मा, पूर्व चीफ डाइटिशन,एम्स
परमीत कौर, चीफ, डाइटिशन, एम्स
डॉ. शिखा शर्मा, न्यूट्री-डायट एक्सपर्ट
ईशी खोसला, सीनियर डायट एक्सपर्ट
प्रेरणा कोहली, सीनियर क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट
रामरोशन शर्मा, प्रिंसिपल साइंटिस्ट, पूसा इंस्टिट्यूट

संडे नवभारत टाइम्स में प्रकाशित 19.04.2020

No comments:

Post a Comment