Wednesday 24 July 2019

उड़नतश्तरी की मिस्ट्री

Do Aliens n UFO Exist?

UFO का नाम आते ही जेहन में अजब-गजब शक्लों वाले और खास तरह के एक स्पेस क्राफ्ट की शक्ल उभरती है। शायद ही कोई ऐसा हो, जिसने शरीर में झुरझुरी मचा देनेवाले यूएफओ के किस्से सुने-सुनाएं न हों। 2 जुलाई को वर्ल्ड यूएफओ डे पर विजय सिंह ठकुराय तर्क की कसौटी पर कस रहे हैं यूएफओ के किस्सों को:

रात का अंधेरा गहरा रहा है। सोने की कोशिश करते आप बिस्तर पर करवटें बदल रहे हैं। अचानक कमरे में नाइट लैंप रहस्यमय तरीके से बंद हो जाता है। बमुश्किल 3-4 फुट लंबे, अपेक्षाकृत बड़े बाल-रहित सर और बड़ी-बड़ी आंखों वाले कुछ अजीबोगरीब जीवों को आप अचानक अपने कमरे की दीवार से आर-पार गुजरते हुए पाते हैं। वे आपको सोते हुए ही उठाकर कमरे से बाहर निकलते हैं और उड़ते हुए हवा में घूम कर रहे एक तश्तरीनुमा यान में घुस जाते हैं। यान में पहुंचकर आपको एक लैब जैसे कमरे में स्ट्रेचर पर लिटाकर बांध दिया जाता है। आप हिलने-डुलने में असमर्थ होने के कारण उन दूसरे ग्रह के निवासियों को बेबसी से खुद पर टेस्ट करते हुए देखने के अलावा कुछ नहीं कर पाते। मशीनें आपके शरीर, खास तौर पर आपके प्राइवेट पार्ट, की टेस्टिंग कर रही हैं। अगर आप पुरुष हैं तो आपके स्पर्म निकाल लिए जाएंगे। अगर आप स्त्री हैं तो संभावना है कि आपके यूटरस में स्पेशल स्पर्म प्रत्यारोपित कर दिए जाएंगे। ये एलियन अक्सर आप पर उनसे सेक्स संबंध बनाने का दबाव भी डाल सकते हैं। इसके बाद आपको वापस सोते हुए ही अपने कमरे में छोड़ दिया जाएगा। उठकर आप कन्फ्यूज रहेंगे कि जो आपके साथ हुआ, वह हकीकत था या कोई सपना?

दावे फ्लाइंग सॉसर के
उड़़नतश्तरी या फ्लाइंग सॉसर शब्द चलन में तब आया था, जब 24 जून 1947 में अमेरिकी पायलट केनेथ अर्नाल्ड ने वॉशिंगटन में अजीबोगरीब 9 आकृतियों को हवा में अजीब तरीके से उड़ते हुए देखा था। मीडिया द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में अर्नाल्ड ने कहा कि ये रहस्यमयी आकृतियां उसी प्रकार हिल रही थीं जिस तरह समुद्र की लहरों में एक तश्तरी हिलती है। अर्नाल्ड की बात को समझे बिना अगले दिनों के अखबार ‘तश्तरीनुमा उड़नयंत्रों’ के वजूद की खबरों से पटे पड़े थे और दुनिया भर में तश्तरीनुमा आकृतियों के देखे जाने की खबर आम बात हो गई थी, बिना यह जाने-समझे कि अर्नाल्ड ने जो देखा, वह कोई तश्तरी नहीं बल्कि पंखों वाली हवाई जहाज जैसी संरचना थी। बाद में इन्हें यूएफओ यानी अनाइडेंटिफाइड फ्लाइंग ऑब्जेक्ट भी कहा जाने लगा। सन 1961 को एक शाम अमेरिकी कपल बैटी तथा बरनै हिल ने दफ्तर से लौटते वक्त पहाड़ों में एक चमकदार चीज देखी, जिससे आतंकित होकर उन्होंने मुख्य रास्ता छोड़ पहाड़ी तंग रास्तों से होते हुए घर पहुंचकर जान बचाई। इस घटना ने हिल दंपती को एलियंस से जुड़े दस्तावेज खंगालने के लिए प्रेरित किया और उनके अंदर यह धारणा मजबूत होती गई कि जो उन्होंने देखा था, वह असल में एक उड़नतश्तरी थी। इस घटना के कुछ दिन बाद बकौल हिल दंपती के, एलियंस ने उनके घर से उनका अपहरण कर लिया और अपने यान में ले गए जहां से बाद में उन्हें वापस घर छोड़ दिया गया और अगले कुछ साल हिल दंपती चर्चा का केंद्र बने रहे। उन पर किताबें लिखी गईं और वे टीवी कार्यक्रमों का हिस्सा बनते रहे। क्या हिल दंपती ने जो देखा, वह हकीकत था? या कोई सपना या मानसिक भ्रम? जो भी है, इतना पक्का है कि इस तरह के दावों के चलते उन्हें मिली प्रसिद्धि ने दुनिया में प्रसिद्ध होने की चाह रखनेवाले लोगों को एक आसान रास्ता दिखा दिया और तब से अब तक हजारों लोग उड़नतश्तरी देखने या एलियंस द्वारा किडनैप होने और खुद पर एलियंस द्वारा यौन प्रयोग करने का दावा कर चुके हैं।

इन सभी दावों पर अगर यकीन किया जाए तो पिछले कुछ दशकों में औसतन हर रोज एलियंस किसी न किसी इंसान के अपहरण को अंजाम दे रहे हैं। पृथ्वी पर सभी देशों की सरकारें, वैज्ञानिक समुदाय या जिम्मेदार संस्थाएं इन एलियंस की मौजूदगी से अनजान हैं या कुछ दावों के अनुसार जानबूझकर देशों की सरकारें आम जनता को एलियंस की हमारे बीच मौजूदगी से अनजान रखना चाहती हैं। ये सारे दावे गले उतरने वाले तो नहीं लगते।
एलियंस द्वारा यौन प्रयोगों के सहारे मानव नस्ल को संवर्धित करने की अफवाहें पिछले कुछ दशकों से पश्चिमी जगत में चर्चा में रही हैं। सवाल यह है कि एलियंस को आखिर हर कुछ रोज पर किसी इंसान के अपहरण करने की इतनी मशक्कत करने की जरूरत क्या है? क्यों नहीं वे किसी इंसान के स्पर्म लेकर जेनेटिक कोड पढ़कर जितनी चाहे, उतनी कॉपी तैयार कर लेते? अत्याधुनिक तकनीक से संपन्न एलियंस के मुकाबले हम इंसान तक कोशिकाओं की क्लोनिंग करने में कामयाब रहे हैं। एलियंस के साथ संपर्क होने का दावा करनेवाले और किसी भी सवाल का जवाब देने का दावा करनेवाले कई इंसानों के साथ वैज्ञानिकों ने घंटों गुजरे हैं ताकि पता लगाया जा सके कि ये अत्याधुनिक एलियंस ब्रह्मांड के विषय में तकनीकी रूप से कितनी जानकारी रखते हैं और नतीजा हमेशा सिर्फ एक आया है। कोई भी सवाल जिसका जवाब एक औसत तकनीकी ज्ञान से ऊपर की जानकारी रखनेवाले शख्स से अपेक्षित है, जवाब में हमेशा एक लंबा सन्नाटा ही मिला है। पर नैतिकता या इंसानी जिम्मेदारियों के सिलसिले में अगर कोई सवाल पूछा जाए जैसे कि ‘क्या हमें मिलजुलकर रहना चाहिए?’ तो तथाकथित एलियंस जवाब देने में कतई संकोच नहीं करते। साफ जाहिर है कि अक्सर ये कथित एलियंस उतना ही जानते हैं, जितना उनसे संपर्क होने का दावा करनेवाला शख्स जानता है।

दिल है कि मानता नहीं
एक बार एक रेस्तरां के बाहर अचानक लोगों की भीड़ लग गई। आसमान में चमकती हुई एक रहस्यमयी चीज को देख लोग तरह-तरह के कयास लगा रहे थे। किस्मत से भीड़ में एक खगोल वैज्ञानिक भी था, जिसने अपनी दूरबीन लाकर उस चमकती हुई चीज को देख कर घोषणा की कि किसी को घबराने की जरूरत नहीं। आसमान में चमकती चीज और कुछ नहीं बल्कि इंसानों द्वारा छोड़ा गया, पृथ्वी के चक्कर लगाता एक सैटलाइट है। इन सैटलाइट्स को अक्सर सूर्योदय या सूर्यास्त के वक्त अनुकूल हालात में चमकता हुआ देखा जा सकता है। खगोल वैज्ञानिक हैरान रह गया, जब उसने लोगों के चेहरे पर एक अजीब-सी मायूसी देखी। वजह पूछने पर जवाब मिला, ‘खाने की टेबल पर बैठकर एक चमकते हुए सैटलाइट के बारे में बात करने में क्या मजा आएगा?’ जबरन रोमांच खोजने के साथ-साथ इंसानी फितरत यह भी है कि वह अनसुलझे सवालों का अपने मन-मुताबिक जवाब खोज लेती है। अक्सर इंसान आसमान में चमकती हुई किसी चीज को देख रोमांचित होकर यूएफओ चिल्लाते हैं। जो आपको मालूम ही नहीं है, उसे किसी दूसरी गैलक्सी से आया यूएफओ समझ लेना कहां की समझदारी है? क्यों हम यह जानने की कोशिश नहीं करते कि आसमान में चमकती चीजें असल में असामान्य स्थितियों में चमकते नजदीकी ग्रह, सूरज की रोशनी के कारण चमकते गोलाकार बादल, वायुमंडल में प्रवेश करनेवाले धूमकेतु, उल्कापिंडों के टुकड़े तथा रॉकेट बूस्टर्स आदि दर्जन भर कारण हो सकते हैं।

कहीं यह दिमागी लोचा तो नहीं
भूख, प्यास, नींद, डिप्रेशन, ब्रेन डिसऑर्डर और लोकप्रियता की भूख के कारण अक्सर लोगों को मानसिक भ्रम हो जाता है। क्या कारण है कि एलियंस द्वारा मानवों को अक्सर उनकी नींद से उठाकर ही किडनैप किया जाता है? मानसिक भ्रम समय और काल की सीमाओं से परे हर समाज के अनिवार्य अंग रहे हैं। लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप ये मानसिक भ्रम किसी को भूत-प्रेतों का दर्शन कराते हैं तो किसी को ईश्वर के फरिश्तों का तो किसी को एलियंस का। अगर आपने किसी रहस्याकृति, रोशनी, एलियन आदि किसी चीज का साक्षात्कार किया है तो यह फैसला कैसे हो कि जो आपने देखा, वह आपका मानसिक भ्रम नहीं है? विज्ञान आपके निजी अनुभवों पर यकीन नहीं करता। वह ठोस सबूत मांगता है और आजकल दुनिया में जब दर्जनों फोटोशॉप सॉफ्टवेयर ‘Add UFO’ बटन की सुविधा देते हैं तो बेशक आपका सबूत एक फोटोग्राफ से बढ़कर होना चाहिए। एलियंस के वजूद का सवाल हमारे जमाने का सबसे असाधारण सवाल है और गौरतलब है कि असाधारण सवालों के जवाब देते वक्त पेश सबूत भी असाधारण ही होने चाहिए।

एरिया 51 की पहेली
अक्सर इंटरनेट पर नासा या दूसरी संस्थाओं के हवाले से एलियंस के अस्तित्व की पुष्टि की जाती रही है। अमेरिका द्वारा एरिया 51 में एलियंस को रखने की खबरों को हम अक्सर गॉसिपिंग साइट्स पर पढ़ते रहते हैं। देखा जाए तो ये सभी हवाई खबरें हैं। हकीकत से इनका कोई नाता नहीं है। विज्ञान एलियंस की मौजूदगी की संभावना से इनकार नहीं करता और खुद एलियन सभ्यताओं को खोज निकालने के लिए जुटा है। 16 नवंबर 1974 में नासा साइंटिस्ट कार्ल सगन और उनकी टीम ने M13 स्टार क्लस्टर की तरफ रेडियो वेव्स के रूप में मानव डीएनए, सौरमंडल का नक्शा, गणित में कुछ अंक यानी मानवता से जुड़ी कुछ बेसिक जानकारियां भेजी थीं। इस रेडियो वेव्स रूपी मेसेज को M13 तक प्रकाश गति से चलने के बावजूद पहुंचने में 25 हजार साल का समय लगेगा। अगर कोई एलियन सभ्यता वहां है और हमारे संदेशों को पकड़कर हमें जवाब भेजती है तो उनके जवाब अगले 25 हजार साल में हम तक पहुंच पाएंगे। तब तक क्या हम अपना अस्तित्व सुरक्षित रख पाएंगे? असल में ब्रह्मांड की अद्भुत विराटता दूसरी आकाशगंगाओं में कथित रूप से मौजूद एलियन सभ्यताओं से हमारे संपर्क में सबसे बड़ी चुनौती है। आज हमारे सबसे तेज चलनेवाले स्पेसशिप द्वारा भी अगर हम अपने सबसे नजदीक मौजूद तारे प्रोक्सिमा सेंचुरी पर जाने की सोचें तो यह एकतरफा यात्रा 19 हजार साल लंबी होगी। लाइट की स्पीड से संदेश भेजना भी ब्रह्मांड की विशालता के सामने नाकाफी है और गैलक्सीज के बीच संदेश के लेन-देन में भी इतनी वक्त लगेगा, जितने वक्त में न जाने कितनी सभ्यताएं पैदा होकर काल के ग्रास में समा जाती हैं।

स्पेस में धरती से संदेश
इस समय मानवता द्वारा प्रक्षेपित 5 स्पेसशिप (Pioneer 10-11, Voyager 1-2, New Horizons) सौरमंडल की सीमाओं को पार कर बाहरी ब्रह्मांड में कदम रख चुके हैं। इन सभी स्पेसशिप में हमने मानवता से संबंधित कई रेकॉर्ड्स रखे हैं। इनमें 5 सितम्बर 1977 को प्रक्षेपित और 40 साल से लगातार यात्रा कर रहा और वर्तमान में हमसे लगभग 21 अरब किलोमीटर दूर पहुच चुके यान वॉयेजर-प्रथम पर वैज्ञानिकों ने एक गोल्डन डिस्क छोड़ी है, जिसमें मानव सभ्यता से संबंधित 115 फोटोज, संगीत, हमसे जुड़ी कुछ बेसिक जानकारी और हमारी गैलक्सी का ज्ञात नक्शा भी अटैच है। कुछ और साल तक वॉयेजर में लगे प्लूटोनियम आधारित एनर्जी प्लांट कम्युनिकेशन के लिए उसे जरूरी ऊर्जा देता रहेगा। कुछ साल बाद वॉयेजर से हमारा संपर्क टूट जाएगा और वॉयेजर लगभग 40,000 किलोमीटर/घंटा की चाल से ब्रह्मांड में अपना सफर लगातार जारी रखेगा, जब तक कि कोई चीज टकरा कर इसे रोक नही देती। अगले कुछ लाख या करोड़ों सालो में वॉयेजर की यह यात्रा उसे ना जाने कितने सितारों के करीब ले जाएगी। उम्मीद है, एक दिन सुदूर ब्रह्मांड में मौजूद कोई एलियन सभ्यता वॉयेजर को ढूंढकर उसमें मौजूद रेकॉर्ड्स को देख और समझ पाए और एक दिन जान पाए कि सुदूर ब्रह्मांड के किसी कोने में हम इंसान रहते हैं या रहते थे।
साभार नवभारत टाइम्स

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