Saturday 22 June 2013

पहाड़ों के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान

उत्तराखंड आपदा पर शशांक द्विवेदी का विशेष लेख 
उत्तराखंड और  हिमाचल प्रदेश  में प्रकृति की विनाशलीला में अब तक 530  लोग मारे जा चुके है,हजारों लापता है  और लगभग 40 हजार लोग अलग-अलग जगहों पर फंसे हुए हैं। बारिश और भूस्खलन के कहर से नदियाँ उफान पर है और बादल फटने के बाद नदी की तेज धार में इमारतें और घर ताश के पत्तों की धराशाई हो गए । सबसे अधिक नुकसान केदारनाथ में हुआ है जहां मंदिर के आसपास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गया । जाहिर है उत्तराखंड में इस जल प्रलय के लिए सिर्फ कुदरत जिम्मेदार नहीं है हम भी इसके लिए जिम्मेदार है । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के अनुसार राज्य में 500 सड़कें और 175 पुल बह गए हैं। फिलहाल प्रशासन 530 के मरने और 5000 से अधिक के गायब होने की बात मान रहा है। लेकिन वास्तविक संख्या इससे भी कहीं अधिक हो सकती है ।
 भूस्खलन पहाड़ो की एक बड़ी समस्या हे..जहाँ भी भूमि कटाव और स्खलन हुवा । बाढ़ का पानी जलजले की तरह मिटटी पथ्थर बहा ले  गया । इसका  वेग इतना तेज था की इसने रास्ते  में जो भी पड़ा उसे बहा दिया । वहां ज्यादा मात्रा में पेड़ और वनस्पतियाँ नहीं थी  । अगर होती तो वेग कम हो सकता था । पहाड़ो पर आंधाधुंध पेड़ो की कटाई ,पर्वतीय स्थलों पर पर्यावरण के नियमो को ताक में रख कर हो रहे निर्माण और पर्यटकों की बढ़ती  भीड़ ने पहाड़ो की सेहत बिगाड़ दी है  । ये त्रासदी मानव निर्मित भी हे अगर इतने ज्यादा पेड़ नहीं कटे होते और अँधा धुंध निर्माण नहीं हुवे होते तो ये जन हानि कम होती ।
इस साल मानसून की रफ्तार काफी तेज रही और यह अपने निर्धारित समय से कम से कम पंद्रह दिन पहले पूरे भारत में छा गया । समय से पहले और औसत से ज्यादा बारिश ने उत्तराखंड में इस विनाशलीला को रचने में अपनी अहम भूमिका निभायी । उत्तराखंड में 16 जून को ही 24 घंटे के भीतर 220 मिलीलीटर से ज्यादा बारिश हुई, जो सामान्य से 300 फीसदी ज्यादा है. लेकिन मौजूदा तबाही की वजह सिर्फ ज्यादा बारिश नहीं है । विकास के मौजूदा पैटर्न ने पहाड. के पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचाया है और उसे एक हद तक खोखला किया है । पेडों को काटकर, ढलान पर मकान और होटलों के निर्माण ने पहाड. पर प्रकृति के संतुलन को नष्ट कर दिया है ।
बड़ी मात्रा में सड.क निर्माण के कारण पहाडियां अस्थिर हो रही है डाउन टू अर्थ में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक सड.कों के विस्तार ने हिमालय में एक नयी किस्म की परिघटना को जन्म दिया है, जो पहाड. के विघटन का व्यापक कारक बनते जा रहे हैं । उत्तराखंड राज्य परिवहन विभाग के आंकड़ों से इस बात की पुष्टि होती है. वर्ष 2005-06 में राज्य में पंजीकृत वाहनों की संख्या 83000 थी, जो 2012-13 में बढ. कर एक लाख अस्सी हजार तक पहुंच चुकी है । इसमें वैसे कार, जीप एवं टैक्सी आदि शामिल नहीं है हैं जो बाहर से आनेवाले पर्यटकों के लिए यातायात के साधन का प्रमुख जरिया हैं । पर्यटकों के लिए वर्ष 2005-06 में ऐसे पंजीकृत वाहनों की संख्या तकरीबन चार हजार थी, जो 2012-13 में एकदम से 40 हजार के आंकडे. पर पहुंच गयी- यानी इसमें दस गुना बढोत्तरी  हो गयी । यह सर्वविदित तथ्य है कि पर्यटन में वृद्धि का भूस्खलनों की बढ.ती संख्या से सीधा संबंध है ।  उत्तराखंड में हर साल पर्यटकों की संख्या लगातार बढ. रही है । इनके लिए नये-नये होटलों का निर्माण किया जा रहा है. पहाड़ों  की भंगुर संरचना का ख्याल किये बगैर कई-कई मंजिलों की इमारतों का निर्माण किया जा रहा है, जबकि पहाड़ों पर अधिक से अधिक दो मंजिले घर ही बनाये जा सकते हैं.  उत्तराखंड में बड़ी  संख्या में हो रहे बांधों के निर्माण ने भी वहां की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाया है । आंकड़ों  के मुताबिक उत्तराखंड में इस समय भी 500 से ज्यादा बांध निर्माण परियोजनाएं कार्यरत हैं. इन परियोजनाओं के द्वारा नदी की धारा को कृत्रिम तरीके से बांधने का काम किया जा रहा है । इसने भी वहां की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाया है.
उत्तराखंड में बारिश और भूस्खलन के कहर ने देश में आपदा प्रबंधन की तैयारियों की पोल खोल दी है। हजारों लोग रास्ते में फंसे हैं लेकिन सरकार इन्हें निकालने में नाकाम साबित हुई है। ये हाल तब है जब पिछले साल भी उत्तराखंड में ऐसी ही बारिश हुई थी। लेकिन पुरानी घटनाओं से सबक लेना हमारे सिस्टम ने कभी सीखा ही नहीं। आपदा प्रबंधन की नाकाम तैयारियों पर इसी साल अप्रैल में आई कैग  की रिपोर्ट में भी निशान साधा गया है। रिपोर्ट में कहा गया कि आपदाओं से निपटने की हमारी तैयारी बेहद खराब है। 2005 में बनाई गई नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी नाकाम रही है। 8 साल में भी एनडीएमए कोई नेशनल प्लान तैयार नहीं कर पाई है। ये हाल तब रहा जब इसके चेयरमैन खुद पीएम होते हैं। कैग के मुताबिक 8 सालों में एनडीएमए ने एक भी प्रोजेक्ट पूरा नहीं किया है।
प्राकृतिक आपदाओं के वजह से उत्ताराखंड अत्यंत संवेदनशील राज्यों की श्रेणी में शामिल है। 13 साल पहले जब साल 2000 में उत्तराखंड नया राज्य बना था तभी आपदा प्रबंधन मंत्रालय भी गठित किया गया था । ऐसा करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बना गया था लेकिन आपदा प्रबंधन मंत्रालय को बने 13 साल हो गयें है लेकिन इसने आज तक कोई भी उल्लेखनीय कार्य नहीं किये है ।ये विभाग भी पूरी तरह से सरकारी लालफीताशाही का शिकार बना रहा । आपदा प्रबंधन तंत्र की विफलता पिछले कई सालों   के दौरान मानसून सत्र  में दिख चुकी है।लेकिन कभी भी इन विफलताओं से सीख नहीं ली गयी । भूकंप, भूस्खलन, अतिवृष्टि व बाढ़ जैसी आपदाएं के बारे में कभी कोई सटीक भविष्यवाणी नहीं की गयी । इसके लिए वैज्ञानिक ढाँचा भी नहीं बनाया गया जिससे समय रहते कुछ किया जा सके ।
राज्य में आपदा प्रबंधन की तस्वीर इतनी खोखली है कि साल 2010 में राज्य में आपदा के लिहाज से अत्यंत संवेदनशील घोषित 233 गांवों में से एक का भी सरकार विस्थापन नहीं कर पाई। जबकि इस बार मानसून सत्र के पहले ही इस तरह के गावों की संख्या  साढे चार सौ के पार पहुंच गयी थी । मानसून खत्म होने के बाद इस आंकड़े में भी अप्रत्याशित बढोत्तरी होगी । कुल मिलाकर प्रदेश में आपदा प्रबंधन विभाग की पोल खुल चुकी है और सरकार ने समय रहते इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो हमें और भी भीषण हादसों के लिए तैयार रहना चाहिए ।
देश के कई राज्यों में आपदा प्रबंधन की कोई नीति ही नहीं है और वहां आपदा आने पर ही चर्चा या कार्रवाई होती है। इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर केंद्र और राज्यों में कोई समन्वय ही नहीं दिखता है।  पिछली कुछ आपदाओं और उनके प्रबंधन पर नजर डालें  तो हमें  निराशा हाथ लगेगी। हमारे देश में आपदा के बाद रेड अलर्ट शुरू होता है। आपदा आने पर ही हलचल होती है । पूरे साल इस विभाग में क्या काम होता है ये लोग कौन सी प्रणाली विकसित करतें है ये तो वही जाने लेकिन आपदा के समय इनकी पोल खुल जाती है ,पूरा तंत्र नाकाम साबित होता है । जबकि हमारी आपदा नीति वर्तमान तंत्र के लिए बोझ नहीं होनी चाहिए। इसका स्वरूप ही ऐसा हो, जो कि हमारे रोजमर्रा के कार्य का हिस्सा हो। वास्तव में आपदा प्रबंधन हमारी प्राथमिक शिक्षा का एक हिस्सा होना चाहिए तभी हमें इस दिशा में बेहतर परिणाम हासिल होंगे ।
उत्तराखंड और  हिमाचल प्रदेश  में प्रकृति का जो कहर हम देख रहें है  ये आपदा प्रबंधन की नाकामियों के साथ साथ हमारे कथित  विकास और लालच का नतीजा  भी है । पिछले 100 सालों में भी केदार नाथ में इतनी बड़ी तबाही नहीं आयी थी ,लेकिन आज मुख्य मंदिर के अलावा सब कुछ तबाह हो गया है । हम में से अधिकांश लोग इस गलतफहमी में जी रहें है कि ये तबाही तो उत्तराखंड में आयी है और हम सुरक्षित है ..तो वो लोग अच्छी तरह से जान ले कि हम सभी बारूद के ढेर पर बैठे है कभी भी प्रकृति के विनाश का बम फट सकता है और हम तिनके की तरह उड़ जायेंगे । हमें तो बचाने वाला भी कोई नहीं होगा इसलिए अभी भी समय है हम अपनी बेहोशी से जाग जाएँ ,अपने आस पास पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान दे।
इस कथित विकास की बेहोशी से जगने का बस एक ही मूल मंत्र है कि विश्व में  सह अस्तित्व की संस्कृति का निर्वहन हो । सह अस्तित्व का मतलब प्रकृति के  अस्तित्व को सुरक्षित रखते हुए मानव विकास करे ।प्रकृति और मानव दोनों का ही अस्तित्व एक दूसरें पर निर्भर है इसलिए प्राकृतिक संसाधनों का क्षय  न हो ऐसा संकल्प और ऐसी ही व्यवस्था की जरुरत है । अभी तक इस सिद्धांत को पूरे विश्व ने खासतौर पर  विकसित देशों ने विकासवाद की अंधी दौड़ की वजह से भुला रखा है । पूरी दुनियाँ जिस तरह कथित विकास की दौड़ में अंधी हो चुकी है उसे देखकर तो यही लगता है कि आज नहीं तो कल मानव सभ्यता का विनाश निश्चित है । प्राकृतिक आपदाओं का  बार बार आना हमें चेतावनी दे रहा है कि अभी भी समय है और हम अपनी बेहोशी से जाग जाये नहीं तो कल कुछ भी नहीं बचने वाला । हिमालयी क्षेत्र को बिना संरक्षित किये तबाही को बचाना नामुमकिन है, ग्रैंड केन्यान और दूसरी प्राकृतिक साइट्स की तरह हिमालय में भी पर्यटन के नाम पर कंस्ट्रक्शन खत्म किया जाएँ, जिन्हें घूमना है, वो अपने तम्बू लेकर घूमे और अपना खाना खुद बनाए या ले जाए ।  पहाड़ नहीं बचेंगे तो मैदान भी देर सबेर डूब जायेंगे. पहाड़ ही नहीं रहेंगे तो पहाड़ की बिजली से चलने वाले  उद्योग  भी प्रभावित होंगें और विकास की ये हवस उन्हें भी डूबने से नहीं बचा सकेगी ।
कुलमिलाकर हिमालयी क्षेत्र में हमें पर्यावरण संरक्षण और  बेहतर आपदा प्रबंधन तंत्र दोनों पर ध्यान देने की जरुरत है । सरकार के साथ साथ  ये एक सामुदायिक जिम्मेदारी है जिसे हम सब को समझना होगा और मिल कर काम करना होगा तभी बेहतर नतीजें  आयेंगे नहीं तो हर बार की तरह एक बार फिर हमें किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा का इंतजार करना पड़ेगा ।

Wednesday 19 June 2013

आईआईटी फीस बढ़ोत्तरी -गरीब छात्रों के सपनों से खिलवाड़


शशांक द्विवेदी
देश में उच्च और तकनीकी शिक्षा के खराब हालातों और बढ़ती चुनौतियों के  बावजूद मानव संसाधन विकास मंत्री एम. एम. पल्लमराजू की अध्यक्षता में आयोजित आईआईटी काउंसिल की बैठक में शैक्षिक सत्र 2013 से आइआइटी में ग्रेजुएट स्तर पर दाखिला लेने वाले छात्रों की फीस   सालाना 50 हजार से बढ़ाकर 90 हजार रुपये (80 फीसद) की वृद्धि  करने का निर्णय लिया है । एक तरफ देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री 100 वे विज्ञान कांग्रेस में उच्च शिक्षा में बड़े सुधार की वकालत करते हुए उसमें ज्यादा सरकारी निवेश की बात कर रहें है वही दुसरी तरफ सरकार आइआइटी की फीस लगभग दुगनी कर रही है । यहाँ पर यह जानना भी जरूरी है कि सरकार ने इसके पहले यह फीस बढोत्तरी 2009 में की थी तब आइआइटी की फीस 25 हजार रुपये सालाना से बढ़ाकार 50 हजार रुपयें किया था । इसका मतलब यह हुआ कि 4 साल में फीस में लगभग 4 गुने की बढ़ोत्तरी जबकि छात्रों-अभिभावकों पर बोझ बढ़ाने वाला यह कदम किसी भी तरह से न्यायसंगत और तर्कसंगत नहीं है ।
आईआईटी  की बढ़ी फीस को लेकर छात्र अभिभावक सब परेशान हैं, मध्यम व गरीब घर के बच्चे जो कर्ज लेकर, माँ के गहने गिरवी रख, एजुकेशन लोन आदि लेकर पढ़ाई कर रहे हैं वे तो मानसिक तनाव में आ गए हैं कि आखिर कैसे पूरा होगा इंजीनियरिंग का सपना । क्योंकि पहले से तय फीस को लेकर उनके घरों में जो बजट तैयार है वह फीस वृद्धि के फैसले की वजह से अचानक गड़बड़ा सकता है। देश में  लाखों गरीब बच्चे-बच्चियाँ स्कूली जीवन में ही इंजीनियर-डॉक्टर बनने के सपने देखते हैं लेकिन  देश में महगीं तकनीकी शिक्षा की वजह से उनकी  इच्छाओं  और सपनों पर पानी फिर जाता है ।  क्या केंद्रीय सरकार को गरीब प्रतिभावान छात्रों की कोई फिक्र है ? किसी देश या समाज के सर्वांगीण विकास  में उच्च और तकनीकी शिक्षा का सबसे बड़ा योगदान होता है । गौर से देखा जाए, तो दुनिया के ताकतवर व समृद्ध देशों की सफलता का एक बड़ा कारण विश्वस्तरीय उच्च शिक्षा ही है। अमेरिका, चीन, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, जमर्नी, दक्षिण कोरिया, ताईवान, सिंगापुर, मलेशिया, हांगकांग, आॅस्ट्रेलिया आदि देशों की आर्थिक प्रगति को उनकी विश्वस्तरीय उच्च शिक्षा से जोड़कर ही समझा जा सकता है। लेकिन हमारे देश के नीति नियंताओं को यह बात समझ में नहीं आती । देश में उच्च और तकनीकी शिक्षा की स्तिथि अत्यंत दयनीय है वर्तमान सत्र में ही पूरे देश में इंजीनियरिंग की 4 लाख से ज्यादा सीटें खाली है इनमें से कुछ आइआइटी भी शामिल है जहाँ 2012 में 300 सीटें और 2011 में 700 सीटें खाली रह गई थीं ।
सरकार आइआइटी में फीस बढ़ाने के निर्णय को तो इसी सत्र से तुरंत क्रियांवित कर रही है लेकिन आइआइटी की गुणवत्ता ,जवाबदेही व पारदर्शिता के लिए गंभीर नहीं है । पिछले दिनों उच्च शिक्षा के क्षेत्र में रैंकिंग बताने वाली क्यूएस वल्र्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग की ताजा सूची में आईआईटी सहित भारत के किसी भी संस्थान या विश्वविद्यालय को दुनिया के शीर्ष दो सौ संस्थानों में भी जगह नहीं मिली है। देश में अपनी गुणवत्ता के लिए विख्यात आईआईटी की भी साख  विश्व स्तर पर धूमिल होती जा रही है । विश्व के सात सौ संस्थानों पर किए गए इस सर्वे में भारतीय संस्थानों की रैंकिंग लगातार नीचे  ही गिर रही हैं। आईआईटी, दिल्ली 202 से गिरकर अब 218वें स्थान पर है और आईआईटी, मुंबई 187 से 225 वें स्थान पर। इस सूची में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले अमेरिकी मैसाच्युसेट इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी (एमआईटी) से आईआईटी की तुलना ही नहीं की जा सकती है। दोनों में शिक्षा, शोध और फैकल्टी के मामले में जमीन-आसमान का अंतर है। इसका प्रमाण तो यही है कि एमआईटी की फैकल्टी में 77 नोबल पुरस्कार विजेता संबद्ध हैं। देश में अनुसंधान की स्तिथि,गुणवत्ता और अंतरराष्ट्रीयकरण के पैमाने पर भी आईआईटी कमतर ही साबित हुए हैं । यह चिंतनीय विषय है कि हमारे आईआईटी इनोवेशन  क्यों नहीं कर पा रहे हैं । लेकिन इस तरफ सरकार का ध्यान ही नहीं जाता
दुर्भाग्य से देश में जो तकनीकी शिक्षा का स्तर है वह ठीक नहीं है । अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो देश को इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे । देश की मौजूदा नीतियों के आधार पर  उच्च और तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में सुधार असंभव है । शिक्षा हर बच्चे का बुनियादी हक है इसे निशुल्क या बहुत कम फीस पर छात्रों को उपलब्ध करना सरकार की जिम्मेदारी है । आईआईटी में फीस बढ़ोत्तरी से कमजोर वर्गो के उन छात्रों के लिए दिक्कत बढ़ जाएगी, जिनमें प्रतिभा है और वे आइआइटी से पढ़कर आगे जाना चाहते हैं।इतना ही नहीं, बल्कि इससे सामान्य छात्र भी प्रभावित होंगे। वे कर्ज लेकर पढ़ने को भी आसान रास्ता नहीं मानते। क्या हम अपने बच्चों, देश की आने वाली पीढ़ी के लिए ऐसी कोई सोच विकसित कहीं कर सकते कि फीस आदि को लेकर उनमें अवसाद या तनाव न पैदा होने पाएँ। 

चांद पर जल्द ही रहने लगेगा मानव


अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने बताया है कि एयरोस्पेस क्षेत्र में सक्रिय निजी कंपनियां कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को लेकर बेहद उत्साहित है। अगर सब कुछ सही रहता है तो जब नासा के एस्ट्रोनॉट एक क्षुद्रग्रह का मुआयना करने की यात्रा पर रवाना होंगे तो बहुत मुमकिन है कि निजी अंतरिक्षयात्री चन्द्रमा पर बसी मानव बस्ती में रह रहे हो।


नासा द्वारा कमीशन किए गए बिगेलो एयरोस्पेस द्वारा कराए गए एक शोध में यह बात सामने आई है। संस्थान के निदेशक राबर्ट बिगेलो ने बताया कि निजी कंपनियों ने इन परियोजनाओं को लेकर काफी रुचि दिखाई है। इन परियोजनाओं में आसपास के ग्रहों पर फार्माक्यूटिकल शोधों का माहौल तलाशना तथा चन्द्रमा पर जाने वाले मानवीय मिशनों से जुड़ी परियोजनाएं शामिल है। नासा का खुद का इरादा भी वर्ष 2025 तक अपने अंतरिक्ष स्टेशन कार्यक्रम में विस्तार करते हुए अंतरिक्षयात्रियों को एक क्षुद्रग्रह की यात्रा पर रवाना करने का है और इसके एक दशक बाद अंतरिक्ष यात्री मंगल ग्रह की यात्रा पर जा रहे होंगे। उल्लेखनीय है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस वर्ष नासा के लिए 10.5 करोड़ डॉलर के बजट की घोषणा की है जिसके तहत इसे एक क्षुद्रग्रह को चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित किया जाएगा और भविष्य में अंतरिक्ष यात्री इसके अध्ययन के लिए इसकी यात्रा पर जा रहे होंगे। (भाषा)

Friday 7 June 2013

देश भर में गर्मी का कहर


भीषण गर्मी /तापमान में वृद्धि पर शशांक द्विवेदी का शोधपरक विशेष लेख (हीट वेव क्या है ,बनने के कारण ,प्रभाव ,इस पर नया शोध और पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट ..कई ब्लाक में ...और भी बहुत कुछ इस लेख में ) 
  राजधानी दिल्ली सहित उत्तर भारत के कई प्रमुख शहरों में लोग भीषण गर्मी व लू से परेशान हैं। दिन में झुलसा देने वाली धूप हो रही है, जिससे लोगों का घर से बाहर निकलना दूभर हो गया है। जगह-जगह गर्म हवाएं भी चल रही हैं। भीषण गर्मी और बढ़ते तापमान से जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है । अभी जून ने दस्तक दी भी नहीं दी है कि गर्मी सिर चढ़कर बोलने लगी। आने वाले दिनों में पारा 47 डिग्री के पार जाने की संभावनाएं जताई जा रही है। 19 मई रविवार को नागपुर देश का सबसे गर्म शहर बन गया।यहाँ 19 मई का दिन 19 सालों में सबसे अधिक गर्म दिन रहा। इस दिन यहां पारा 48 के पार चला गया।
मैदानी राज्यों में कई स्थानों पर पारा 47 डिग्री सेल्सियस के पार चला गया। पिछले एक सप्ताह से गर्मी की भीषण मार झेल रही राजधानी दिल्ली में अधिकतम तापमान 47.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। पंखे के नीचे बैठे लोगों को पसीने छूटते रहे। जो धूप में बाहर निकला उसका सिर चकराने लगा। यहां पड़ोसी राज्य हरियाणा व पंजाब गर्मी के मामले में दिल्ली से आगे नजर आए। अमृतसर अपने अधिकतम तापमान 47.7 डिग्री सेल्सियस के साथ पंजाब सबसे ऊपर रहा। जबकि हरियाणा में हिसार का अधिकतम तापमान 47.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। उत्तर प्रदेश में भी गर्मी से जनजीवन अस्त-व्यस्त है। लू के थपेड़े भी खूब चले। यहां बांदा में सबसे अधिक तापमान 47.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। इतना ही तापमान राजस्थान के चुरू का रहा। जम्मू में दिन भर चले लू के थपेड़ों के बीच अधिकतम तापमान 45.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो इस मौसम में सबसे अधिक रहा। मध्यप्रदेश राज्य के सभी हिस्सों में अधिकतम तापमान 40 से 45 डिग्री सेल्सियस के बीच और रात का तापमान भी 25 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच बना हुआ है। न्यूनतम तापमान में एक से तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है।
जिन हिल स्टेशनों पर गर्मियों में अधिकतम तापमान 25 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया जाता था वहां रोजाना पारा 30 डिग्री के पार जा रहा है। उत्तराखंड के प्रसिद्ध हिल स्टेशनों पर तो जैसे आग बरस रही है। देहरादून में पारा 38 के पार चला गया। जबकि रुड़की में सबसे ज्यादा तापमान 42.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। हिमाचल में ऊना का पारा 45 डिग्री पार कर गया। जबकि पूरे राज्य में तापमान समान्य से 6 से 7 डिग्री तक अधिक बना हुआ है। बिहार में राजधानी पटना सहित सभी इलाके भीषण गर्मी और लू की चपेट में हैं। बौद्ध तीर्थस्थल गया का अधिकतम तापमान मंगलवार को 45 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच गया। पटना और पूर्णिया का न्यूनतम तापमान 25.8 डिग्री तथा 25.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि गया में न्यूनतम तापमान 27.5 डिग्री और भागलपुर में 27.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। मौसम विभाग के अनुसार, गर्मी से फिलहाल राहत की कोई सम्भावना नहीं है। झारखंड में कई जगहों पर टेंप्रेचर नॉर्मल से चार से पांच डिग्री ऊपर है. राजधानी रांची का अधिकतम तापमान 40.4 डिग्री सेसि रिकॉर्ड किया गया यह सामान्य से तीन डिग्री सेसि ऊपर है
उड़ीसा के हाल बेहाल
गर्मी की चपेट से सिर्फ लोगों का हाल ही बेहाल नहीं है, बल्कि इस गर्मी ने कितने लोगों की जान भी ले ली है। तापमान ने 40 डिग्री सेल्सियस का पारा पार करते हुए देश के कई हिस्सों को झुलसा दिया हैं। उत्तरी राज्यों में बढ़ी तपिश ने ओडिशा में अब तक 13 लोगों की जान ले ली है। शुक्रवार को ओडिशा के तटीय बालेश्वर जिले में लू लगने से तीन और लोगों की मौत हो गई है। ओडिशा सरकार अंगुल, बारगढ़, बोलागीर, बौध, गंजाम, जाजपुर और सोनपुर में लू से मरने वाले लोगों की जाच कर रही है। भुवनेश्वर में अधिकतम तापमान 40.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। जबकि टीटलागढ़ व संबलपुर में तापमान 45.5 डिग्री सेल्सियस रहा,हीराकुंड में 44.8 डिग्री और झारसुगुडा में 44.6 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया।
ओडिशा ही नहीं झारखंड,उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश भी गर्मी की तपिश से झुलसते रहे। इन सभी राज्यों के विभिन्न हिस्सों में तापमान 40 से 47 डिग्री सेल्सियस के बीच रहा।
टूट सकते हैं सारे पुराने रिकॉर्ड
 क्या इस बार गर्मी के तमाम पिछले रिकॉर्ड्स पीछे छूट जाएंगे? देशभर में जिस तरह पारा लगातार चढ़ता जा रहा है उससे तो यही लगता है कि इस बार तपता सूरज और जलती धरती से जल्द निजात नहीं मिलने वाली। पारा 40 से 45 डिग्री के बीच बना हुआ है और दूर दूर तक राहत की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही। मई महीने में गर्मी सारे रिकॉर्ड तोड़ती नजर आ रही है जबकि जून अभी बाकी है जिसमें सूरज की तपिश झुलसाने लगती है। लिहाजा गर्मी से अभी राहत की उम्मीद बेमानी ही लगती है। मई में गर्मी का ये हाल कई साल के अधिकतम तापमान को पीछे छोड़ सकता है। 1998 में दिल्ली के पालम में 41 डिग्री सेल्सियस और 1944 में सफदरजंग में 47.2 डिग्री सेल्सियस अधिकतम तापमान रिकॉर्ड किया गया था। गर्मी का ये हाल साफ आसमान-तेज धूप और उत्तर-पश्चिम गर्म हवाओं की वजह से है। इसी वजह से अब लू भी चलने लगी है।

पश्चिमी देशों में भी पारा नई ऊंचाई पर
पश्चिमी देशों में इन दिनों जबरदस्त गर्मी पड़ रही है। कुछ जगहों पर हालत यहां तक जा पहुंची है कि दफ्तरों में काम करने वाले लोगों से कहा गया है कि वे नदी के किनारे जा कर गर्मी से राहत पाने की कोशिश कर सकते हैं। इस हीट वेव की शुरुआत मैनहट्टन, न्यूयॉर्क, लंदन में तापमान में वृद्धि की वजह से हो गयी है जिसने पिछले कई सालों के रिकार्ड तोड़ दिए .कई शहरों में तापमान 30-40 डिग्री सेल्सियस की सीमा में है ,जिसके ऊपर पहुँचने की पूरी सम्भावना है । इस बार अनुमान यह है कि यहां 1985 का रेकॉर्ड टूट जाएगा। कैलिफोर्निया में हालत यह है कि अधिकारियों ने पहले ही चेतावनी दे डाली है कि मौसम का कहर बढ़ सकता है और टेंप्रेचर बढ़ कर 46 डिग्री तक पहुंच सकता है। वर्ष 2003 में एक अभूतपूर्व घटना देखी गई कि यूरोप विशेषकर फ्रांस में गर्मी की लहर या हीट वेव में हजारों लोग मारे गए, जिनमें अधिकतर वृद्ध थे। उस समय इस हीट वेव में बीस हजार लोगों के मरने की बात स्वीकार की गई थी, पर न्यूजवीक पत्रिका ने पिछले वर्ष अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि इस हीट वेव में यूरोप में मरने वाले लोगों की संख्या चालीस हजार तक पहुंच गई थी।
हीट वेव क्या है
हीट वेव (लू और गरम हवाओं की मार) अधिकतम तापमान सामान्य से पांच डिग्री सेल्सियस अधिक होने पर हीट वेव की स्थिति बनती है. तेज धूप के साथ ही नमी भी काफी कम हो जाती है, ऐसे में सूरज की तपिश और जमीन गर्म होने पर हवा के गर्म थपेड़े परेशानी की वजह बनते हैं. हीट वेव कंडीशन (यानि तीव्र लू) ने गर्मी के प्रकोप को और बढ़ा दिया है. अब हालात यह है कि बढ़े हुए पारे के बीच लू का सामना भी करना पड़ रहा है. भारत में लू लगने से हाइपोथेमिया (हीट वेव) और हृदय और सांस से संबंधित रोगी बढ़ रहे हैं। देश के अधिकतर शहरों का अधिकतम तापमान 40-47 डिग्री सेल्सियस के बीच है .सुबह से लेकर शाम तक हवा ऐसी चल रही है जैसे आग की लपटें निकल रही हो। अधिकतर जगहों पर दक्षिण-पश्चिम हवाएं चल रही है, जिनकी रफ्तार 12 से 20 किलोमीटर प्रति घंटा है, इससे गर्मी का असर और तेज होता जा रहा है।
हीट वेव की वजह
उत्तर भारत में जमीन से पांच किलोमीटर ऊपर मौजूद एक एंटीसाइक्लोन गर्मी को और गरम बनाने का काम कर रहा है . जानकारों के मुताबिक एंटीसाइक्लोन में हवाएं एंटीक्लॉकवाइज चलती हैं. यानी हवाएं ऊपर से नीचे की ओर आती हैं. इस स्थिति में वायुमंडलीय दाब बढ़ जाता है. वायुमंडलीय दाब बढ़ने के साथ ही तापमान भी बढ़ता है. इस स्थिति में गरम हवाएं और भी गरम हो गईं हैं. जहां एक तरफ समूचे मैदानी इलाकों में पछुआ हवाओं ने तापमान ऊपर उठा दिया है. वहीं दूसरी तरफ कमजोर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस चढ़े हुए पारे को लगातार ऊपर ही रहने दे रहे हैं. उत्तरी पाकिस्तान तथा इसके आसपास पश्चिमी विक्षोभ बना हुआ है। दक्षिणी राजस्थान और आस पास के इलाकों में चक्रवाती हवा चल रही है।
मौसम विभाग के मुताबिक अगले कुछ हफ्तों में वेस्टर्न डिस्टरबेंस की वजह से एंटी साइक्लोन कमजोर पड़ सकता है जिससे लोगों को थोड़ी राहत मिल सकती है. लेकिन ये राहत मामूली होगी और एक दो दिन के लिए होगी. इसलिए ये कहा जा सकता है कि अगले हफ्तों में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश से हीटवेव की स्थिति हटने की संभावना है. लेकिन इन सभी इलाकों में अधिकतम तापमान सामान्य से ऊपर बना रहेगा.
जलवायु परिवर्तन /तापमान ने वृद्धि खतरनाक स्तर पर
नया शोध
अमेरिका में हुए नए शोध के मुताबिक आर्कटिक क्षेत्र में पिछले दो हजार सालों में ताममान सबसे अधिक हो गया है जो इस बात का संकेत है कि मानवीय गतिविधियों के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।वैज्ञानिकों का कहना है कि आर्कटिक में पूरे उत्तरी गोलार्ध की तुलना में तीन गुना तेजी से तापमान बढ़ रहा है और इसकी वजह मानवीय गतिविधियों से पैदा हो रही कार्बन डाई ऑक्साइड है। ये शोध अमेरिकी पत्रिका जर्नल साइंस में छपा है। शोध के अनुसार पिछले सात हजार वर्षों में एक ऐसी प्राकृतिक स्थिति बननी थी जिसमें आर्कटिक के क्षेत्र को सूरज की कम से कम रोशनी मिलनी चाहिए थी। इस प्रक्रिया के तहत आर्कटिक को अब भी ठंडा होते रहना था। हालाँकि ऐसा हुआ नहीं। वर्ष 1900 के बाद आर्कटिक का तापमान बढ़ता जा रहा है और 1950 के बाद इसमें और अधिक तेजी आ गई है। पिछले 2000 वर्षों में आर्कटिक का तापमान अभी सबसे अधिक है। पिछली एक सदी में आर्कटिक का तापमान पूरे उत्तरी गोलार्ध की तुलना में तीन गुना तेजी से बढ़ा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इसमें अब कोई शक नहीं रह गया है कि तापमान बढ़ने की वजह सिर्फ़ और सिर्फ मानवीय गतिविधियों के कारण पैदा होने वाला कार्बन डाई आक्साइड है। वैज्ञानिकों ने भूगर्भीय रिकार्डों और कंप्यूटरों की मदद से पिछली दो शताब्दियों में तापमानों का खाका तैयार किया है. वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर आर्कटिक का तापमान बढ़ता ही रहा तो इससे समुद्र के जल स्तर में तेजी से बढ़ोतरी हो सकती है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून भी आर्कटिक के दौरे से लौटे हैं और उन्होंने भी इस पर चिंता जताई है। उनका कहना था, 'आर्कटिक में हो रहा बदलाव जलवायु परिवर्तन है। आईपीसीसी ने जो कल्पनाएँ की थीं वो सही साबित हो रही हैं। आर्कटिक गर्मी को सोख रहा है और बर्फ खत्म हो रही है। गर्मी बढ़ रही है। इससे समुद्र का जल स्तर बढ़ेगा। हम लोग गंभीर खतरे की तरफ बढ़ रहे हैं।' महासचिव ने जेनेवा में दिए भाषण में कहा कि अगर विश्व भर के नेताओं ने जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए तो दुनिया को सर्वनाश से कोई नहीं बचा सकता है।

भारत पर असर
पिछले दिनों पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने जलवायु परिवर्तन पर इंडियन नेटवर्क फॉर क्लायमेट चेंज असेसमेंट की रिपोर्ट जारी करते हुए चेताया है कि यदि पृथ्वी के औसत तापमान का बंढना इसी प्रकार जारी रहा तो अगामी वर्षों में भारत को इसके दुष्परिणाम झेलने होंगे। विभिन्न स्थलाकृतियां (पहाड़, रेगिस्तान, दलदली क्षेत्र पश्चिमी घाट जैसे समृद्ध क्षेत्र) ग्लोबल वार्मिंग के कहर की शिकार होंगी।
120 संस्थाओं एवं लगभग 500 वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार भारत में कृषि, जल, पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैव विविधता व स्वास्थ्य ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न समस्याओं से अछूते नहीं रहेंगे। वर्ष 2030 तक औसत सतही तापमान में 1.7 से 2.0 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। इस रिपोर्ट में चार भौगोलिक क्षेत्रों - हिमालय क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, पश्चिमी घाट व तटीय क्षेत्र - के आधार पर पूरे देश पर जलवायु परिवर्तन का अध्ययन किया गया है। इन चारों क्षेत्रों में तापमान में वृद्धि के कारण बारिश और गर्मी-ठंड पर पंडने वाले प्रभावों का अध्ययन कर संभावित परिणामों का अनुमान लगाया गया है।  यह रिपोर्ट बढ़ते तापमान के कारण समुद्री जलस्तर में वृद्धि एवं तटीय क्षेत्रों में आने वाले चक्रवातों पर भी प्रकाश डालती है।
आईपीसीसी चेयरमैन आरके पचौरी का कहना है कि मई महीने में पारा 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाना, एक गंभीर संकेत है और इसका संबंध ग्लोबल वार्मिंग से हो सकता है. इस तरह का 'हीट वेव' अब पहले के मुक़ाबले लंबा खिंच सकता है और इससे सतर्क रहने की ज़रूरत है. जलवायु परिवर्तन के अंतरराष्ट्रीय पैनल के मुताबिक विश् के औसत तापमान में एक डिग्री सेल्शियस की वृद्धि हुई है। पैनल का मानना है कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में रुकावट नहीं आने के कारण जलवायु में कई परिवर्तन आए हैं, जो कि स्वास्थ् पर बुरा प्रभाव डाल रहे हैं। इस बात की आशंका जताई जा रही है कि आने वाले 90 वर्षों में तापमान में 1.8 से 4 डिग्री सेल्शियस तक की वृद्धि हो जाएगी। ग्लोबल वार्मिंग और बेमौसम होने वाली बारिश के कारण बीमारियों में इफाजा हुआ है। साथ ही कुपोषण के मामले भी बढ़े हैं। 
जलवायु परिवर्तन के कारण सर्दी और गरमी के मौसम में मरने वालों की संख्या बढ़ी है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में बदलते मौसम के दौरान हजारों लोगों ने अपनी जान गवांई है। भारत में लू लगने से हाइपोथेमिया (हीट वेव) और हृदय और सांस से संबंधित रोगी बढ़ रहे हैं। भारत, बांग्लादेश और मलेशिया में जलवायु परिवर्तन के कारण हर साल डेंगू, मलेरिया, डायरिया, चिकनगुनिया और जापानी इंसेफ्लाइटिस के कारण काफी तादात में मौत होती है। वहीं वायरल हेपेटाइटिस के मरीजों की संख्या में तेजी आई है। बदलते मौसम के कारण बीमारियों के प्रति मनुष् का शरीर संतुलन नहीं बना पा रहा है, जिससे हर साल मौतों का आँकड़ा बढ़ता जा रहा है। भारत में बदलते मौसम की मार अन् देशों की अपेक्षा ज्यादा है सरकार को अपनी योजना में इस ओर भी ध्यान देना होगा कि जलवायु बदलाव के इस दौर में उसकी मशीनरी गंभीर आपदाओं प्रतिकूल मौसम के लिए कहीं अधिक तैयार रहे।

अच्छे मानसून के संकेत
मानसून के इस साल सामान्य रहने का अनुमान लगाया गया है। तय ढर्रे के आधार पर मौसम विभाग ने अपनी भविष्यवाणी में दक्षिण पश्चिम मानसून के दौरान सामान्य बारिश की उम्मीद जताई है। जून से सितंबर के बीच देश में 89 सेंटीमीटर बारिश का अनुमान है
केंद्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री एस जयपाल रेड्डी ने कहा कि 'मेरे पास किसानों के लिए खुशखबरी है। मानसून इस साल सामान्य रहेगा।' यह लगातार चौथा साल है जब मौसम विभाग ने पहले दीर्घानुमान में सामान्य बारिश की भविष्यवाणी की है। रेड्डी के अनुसार दीर्घकालिक अनुमानों के अनुसार मानूसन के सामान्य रहने की उम्मीद 46 फीसद है, जबकि अल्प वर्षा की आशंका 27 फीसद है। खाद्यान्न के बढ़ते दामों के बीच खरीफ की फसलों के लिए यह अच्छी खबर है। खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने सामान्य मानसून की उम्मीदों पर संतोष जताते हुए कहा कि देश में खाद्यान्न उत्पादन अच्छा रहेगा और गेंहू की फसल पिछले साल जितनी ही रहने की उम्मीद है।
पिछले साल 2012 में भी मौसम विभाग ने ऐसी ही भविष्यवाणी की थी। लेकिन दर्ज हुई बारिश सात फीसद कम रही। गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल सूखे की मार झेल रहे हैं जहां 20 प्रतिशत से कम बारिश हुई। वैसे मौसम विभाग का दावा है कि 2012 में बारिश पर उसके अनुमान काफी हद तक सही रहे और देश में सामान्य 89 सेंटीमीटर की तुलना में 83 सेंटीमीटर बारिश रिकार्ड हुई।
अल नीनो प्रभाव नहीं
मौसम विभाग के महानिदेशक डॉ. एल.एस. राठौर के मुताबिक सूखा प्रभावित दक्षिण भारत के राज्यों में भी सामान्य बारिश की आशा है। हालांकि उनके मुताबिक मानसून की असली स्थिति जून में पता चलेगी। मौसम विभाग 15 मई को मानसून की आमद की तारीख बताएगा। मौसम विज्ञानियों ने मानूसन की तबियत को प्रभावित करने वाले अल नीनो प्रभाव से भी इस बार राहत की उम्मीद जताई है। इस बार अल नीनो इफेक्ट ऐक्टिव नहीं है। प्रशांत महासागर में पानी का असामान्य रूप से गर्म होना अल नीनो कहलाता है। इसके कारण भारत आने वाले बादलों का रुख बदल जाता है। पिछली बार सामान्य मॉनसून की भविष्यवाणी के बावजूद अल नीनो की वजह से कम बारिश हुई थी।
विज्ञान प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव शैलेष नायक का कहना है कि प्रशांत महासागर में अल नीनो के लिहाज से स्थितियां स्थिर बनी हुई हैं और 2013 में इसके सक्रिय होने की आशंका नहीं है।
सन स्ट्रोक का खतरा
देश के कई शहरों में सन-स्ट्रोक का अटैक हो रहा है। टेंपरेचर लगातार बढ़ रहा है और अधिकतम तापमान 40 से 45 डिग्री तक पहुंच चुका है।
चिंता की बात यह है कि मौसम विभाग ने फिलहाल गर्मी का अटैक इसी तरह जारी रहने की संभावना जताई है।

क्या है सन स्ट्रोक

ब्रेन में हाइपोथैलेमस पार्ट होता है
, जो बॉडी के टेंपरेचर को 95 से 98.6 फारनहाइट के बीच में कंट्रोल करता है। लेकिन जब हीट की वजह से हाइपोथैलेमस एबनॉर्मल काम करने लगता है, तो बॉडी का टेंपरेचर बढ़ने लगता है, जिसे मेडिकल भाषा में सन स्ट्रोक (लू लगना) कहते हैं। क्योंकि बॉडी का टेंपरेचर बढ़ने की वजह गर्मी होती है। डॉक्टर का कहना है कि जब हीट बढ़ती है, तब बॉडी से इसे बाहर निकालना जरूरी होता है। आमतौर पर यह हीट पसीने के जरिए बाहर निकलती है। जब सन स्ट्रोक होता है, तब यह हैम्पर कर जाता है, जिसकी वजह से हाइग्रेड फीवर हो जाता है। कई बार सन स्ट्रोक की वजह से बॉडी के ऑर्गन पर भी प्रभाव पड़ता है। डॉक्टर के मुताबिक, गर्मी की वजह से कुछ लोगों में ब्लड का आरबीसी टूटने लगता है, जिसे हाइपरथर्मिया कहते हैं। कुछ लोगों के ब्लड में पोटैशियम की मात्रा बढ़ जाती है, जिसे हाइपरक्लेमिया कहा जाता है। इसकी वजह से हार्ट का रिदम डिसऑर्डर हो जाता है।
बचाव के उपाय

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तेज गर्म हवाओं में बाहर जाने से बचें। नंगे बदन और नंगे पैर धूप में न निकलें।

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घर से बाहर पूरे और ढीले कपड़े पहनकर निकलें
, ताकि उनमें हवा लगती रहे।
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खाली पेट बाहर न जाएं और ज्यादा देर तक धूप में रहने से बचें।

चेहरे को ढक कर बाहर निकलें और हो सके तो चश्मे का प्रयोग करें।

बहुत ज्यादा पसीना आ रहा हो तो तुरंत ठंडा पानी न पीएं। सादा पानी धीरे
-धीरे पीएं।
दिनभर में करीब 
10-12 गिलास पानी पीएं।
गर्म और भारी भोजन से बचें
इससे शरीर की गर्मी बढ़ती है।
भरपूर मात्रा में लिक्विड फूड लें। अपने शरीर में सॉल्ट और मिनरल्स की कमी न होने दें।

बच्चों और पालतू जानवरों को गाड़ी में न छोड़ें।

गर्म हवाओं और पसीने से होने वाली परेशानी से बचने के लिए साफ
धुले हुए सूती कपड़े ही पहनें।
दिन में दो बार ठंडे पानी से नहाएं।

शरीर में पानी की कमी दूर करने और स्किन की चमक बनाए रखने के लिए पानी के साथ
-साथ रस भरे फलोंका सेवन करें।
जिम न जाने की हालत में घर पर ही एक्सरसाइज या योग करें।

सुबह खुली हवा में टहलना इस मौसम में हेल्दी रहने में मददगार होता है।

आंखों के इन्फेक्शन और धूल
-मिट्टी से बचने के लिए सनग्लासेज लगाएं।
ब्लैक की जगह हल्के रंग के छाते का इस्तेमाल करें।