भीषण गर्मी /तापमान में वृद्धि पर शशांक
द्विवेदी का शोधपरक विशेष लेख (हीट वेव क्या है ,बनने के कारण ,प्रभाव ,इस पर
नया शोध और पर्यावरण मंत्रालय की रिपोर्ट ..कई ब्लाक में ...और भी बहुत कुछ
इस लेख में )
राजधानी
दिल्ली सहित उत्तर भारत के
कई प्रमुख शहरों में लोग भीषण
गर्मी व लू से परेशान हैं। दिन
में झुलसा देने वाली धूप हो
रही है,
जिससे
लोगों का घर से बाहर निकलना
दूभर हो गया है। जगह-जगह
गर्म हवाएं भी चल रही हैं।
भीषण गर्मी और बढ़ते तापमान
से जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया
है । अभी जून ने दस्तक दी भी
नहीं दी है कि गर्मी सिर चढ़कर
बोलने लगी। आने वाले दिनों
में पारा 47
डिग्री
के पार जाने की संभावनाएं जताई
जा रही है। 19
मई
रविवार को नागपुर देश का सबसे
गर्म शहर बन गया।यहाँ 19
मई
का दिन 19
सालों
में सबसे अधिक गर्म दिन रहा।
इस दिन यहां पारा 48
के
पार चला गया।
मैदानी
राज्यों में कई स्थानों पर
पारा 47
डिग्री
सेल्सियस के पार चला गया।
पिछले एक सप्ताह से गर्मी की
भीषण मार झेल रही राजधानी
दिल्ली में अधिकतम तापमान
47.2
डिग्री
सेल्सियस दर्ज किया गया। पंखे
के नीचे बैठे लोगों को पसीने
छूटते रहे। जो धूप में बाहर
निकला उसका सिर चकराने लगा।
यहां पड़ोसी राज्य हरियाणा व
पंजाब गर्मी के मामले में
दिल्ली से आगे नजर आए। अमृतसर
अपने अधिकतम तापमान 47.7
डिग्री
सेल्सियस के साथ पंजाब सबसे
ऊपर रहा। जबकि हरियाणा में
हिसार का अधिकतम तापमान 47.3
डिग्री
सेल्सियस दर्ज किया गया। उत्तर
प्रदेश में भी गर्मी से जनजीवन
अस्त-व्यस्त
है। लू के थपेड़े भी खूब चले।
यहां बांदा में सबसे अधिक
तापमान 47.4
डिग्री
सेल्सियस दर्ज किया गया। इतना
ही तापमान राजस्थान के चुरू
का रहा। जम्मू में दिन भर चले
लू के थपेड़ों के बीच अधिकतम
तापमान 45.8
डिग्री
सेल्सियस दर्ज किया गया जो
इस मौसम में सबसे अधिक रहा।
मध्यप्रदेश राज्य के सभी
हिस्सों में अधिकतम तापमान
40
से
45
डिग्री
सेल्सियस के बीच और रात का
तापमान भी 25
से
30
डिग्री
सेल्सियस के बीच बना हुआ है।
न्यूनतम तापमान में एक से तीन
डिग्री सेल्सियस की वृद्धि
दर्ज की गई है।
जिन
हिल स्टेशनों पर गर्मियों
में अधिकतम तापमान 25
डिग्री
सेल्सियस दर्ज किया जाता था
वहां रोजाना पारा 30
डिग्री
के पार जा रहा है। उत्तराखंड
के प्रसिद्ध हिल स्टेशनों पर
तो जैसे आग बरस रही है। देहरादून
में पारा 38
के
पार चला गया। जबकि रुड़की में
सबसे ज्यादा तापमान 42.8
डिग्री
सेल्सियस दर्ज किया गया।
हिमाचल में ऊना का पारा 45
डिग्री
पार कर गया। जबकि पूरे राज्य
में तापमान समान्य से 6
से
7
डिग्री
तक अधिक बना हुआ है। बिहार में
राजधानी पटना सहित सभी इलाके
भीषण गर्मी और लू की चपेट में
हैं। बौद्ध तीर्थस्थल गया का
अधिकतम तापमान मंगलवार को 45
डिग्री
सेल्सियस के करीब पहुंच गया।
पटना और पूर्णिया का न्यूनतम
तापमान 25.8
डिग्री
तथा 25.8
डिग्री
सेल्सियस दर्ज किया गया,
जबकि
गया में न्यूनतम तापमान 27.5
डिग्री
और भागलपुर में 27.4
डिग्री
सेल्सियस दर्ज किया गया। मौसम
विभाग के अनुसार,
गर्मी
से फिलहाल राहत की कोई सम्भावना
नहीं है। झारखंड
में कई जगहों पर टेंप्रेचर
नॉर्मल से चार से पांच डिग्री
ऊपर है.
राजधानी
रांची का अधिकतम तापमान 40.4
डिग्री
सेसि रिकॉर्ड किया गया।
यह सामान्य से तीन डिग्री सेसि
ऊपर है।
उड़ीसा
के हाल बेहाल
गर्मी
की चपेट से सिर्फ लोगों का हाल
ही बेहाल नहीं है,
बल्कि
इस गर्मी ने कितने लोगों की
जान भी ले ली है। तापमान ने 40
डिग्री
सेल्सियस का पारा पार करते
हुए देश के कई हिस्सों को झुलसा
दिया हैं। उत्तरी राज्यों
में बढ़ी तपिश ने ओडिशा में
अब तक 13
लोगों
की जान ले ली है। शुक्रवार को
ओडिशा के तटीय बालेश्वर जिले
में लू लगने से तीन और लोगों
की मौत हो गई है। ओडिशा सरकार
अंगुल,
बारगढ़,
बोलागीर,
बौध,
गंजाम,
जाजपुर
और सोनपुर में लू से मरने वाले
लोगों की जाच कर रही है। भुवनेश्वर
में अधिकतम तापमान 40.2
डिग्री
सेल्सियस दर्ज किया गया। जबकि
टीटलागढ़ व संबलपुर में तापमान
45.5
डिग्री
सेल्सियस रहा,हीराकुंड
में 44.8
डिग्री
और झारसुगुडा में 44.6
डिग्री
सेल्सियस तापमान दर्ज किया
गया।
ओडिशा
ही नहीं झारखंड,उत्तर
प्रदेश,
राजस्थान,
दिल्ली,
पंजाब,
हरियाणा
और हिमाचल प्रदेश भी गर्मी
की तपिश से झुलसते रहे। इन सभी
राज्यों के विभिन्न हिस्सों
में तापमान 40
से
47
डिग्री
सेल्सियस के बीच रहा।
टूट
सकते हैं सारे पुराने रिकॉर्ड
क्या
इस बार गर्मी के तमाम पिछले
रिकॉर्ड्स पीछे छूट जाएंगे?
देशभर
में जिस तरह पारा लगातार चढ़ता
जा रहा है उससे तो यही लगता है
कि इस बार तपता सूरज और जलती
धरती से जल्द निजात नहीं मिलने
वाली। पारा 40
से
45
डिग्री
के बीच बना हुआ है और दूर दूर
तक राहत की कोई उम्मीद नजर
नहीं आ रही। मई महीने में गर्मी
सारे रिकॉर्ड तोड़ती नजर आ
रही है जबकि जून अभी बाकी है
जिसमें सूरज की तपिश झुलसाने
लगती है। लिहाजा गर्मी से अभी
राहत की उम्मीद बेमानी ही लगती
है। मई में
गर्मी का ये हाल कई साल के
अधिकतम तापमान को पीछे छोड़
सकता है। 1998
में
दिल्ली के पालम में 41
डिग्री
सेल्सियस और 1944
में
सफदरजंग में 47.2
डिग्री
सेल्सियस अधिकतम तापमान
रिकॉर्ड किया गया था। गर्मी
का ये हाल साफ आसमान-तेज
धूप और उत्तर-पश्चिम
गर्म हवाओं की वजह से है। इसी
वजह से अब लू भी चलने लगी है।
पश्चिमी देशों में भी पारा नई ऊंचाई पर
पश्चिमी
देशों में इन दिनों जबरदस्त
गर्मी पड़ रही है। कुछ जगहों
पर हालत यहां तक जा पहुंची है
कि दफ्तरों में काम करने वाले
लोगों से कहा गया है कि वे नदी
के किनारे जा कर गर्मी से राहत
पाने की कोशिश कर सकते हैं।
इस हीट वेव की शुरुआत मैनहट्टन,
न्यूयॉर्क,
लंदन
में तापमान में वृद्धि की वजह
से हो गयी है जिसने पिछले कई
सालों के रिकार्ड तोड़ दिए .कई
शहरों में तापमान 30-40
डिग्री
सेल्सियस की सीमा में है ,जिसके
ऊपर पहुँचने की पूरी सम्भावना
है । इस बार अनुमान यह है कि
यहां 1985 का
रेकॉर्ड टूट जाएगा। कैलिफोर्निया
में हालत यह है कि अधिकारियों
ने पहले ही चेतावनी दे डाली
है कि मौसम का कहर बढ़ सकता
है और टेंप्रेचर बढ़ कर 46
डिग्री
तक पहुंच सकता है। वर्ष 2003
में
एक अभूतपूर्व घटना देखी गई
कि यूरोप विशेषकर फ्रांस में
गर्मी की लहर या हीट वेव में
हजारों लोग मारे गए,
जिनमें
अधिकतर वृद्ध थे। उस समय इस
हीट वेव में बीस हजार लोगों
के मरने की बात स्वीकार की गई
थी, पर
न्यूजवीक पत्रिका ने पिछले
वर्ष अपनी एक रिपोर्ट में
बताया कि इस हीट वेव में यूरोप
में मरने वाले लोगों की संख्या
चालीस हजार तक पहुंच गई थी।
हीट
वेव क्या है
हीट
वेव (लू
और गरम हवाओं की मार)
अधिकतम
तापमान सामान्य से पांच डिग्री
सेल्सियस अधिक होने पर हीट
वेव की स्थिति बनती है.
तेज
धूप के साथ ही नमी भी काफी कम
हो जाती है,
ऐसे
में सूरज की तपिश और जमीन गर्म
होने पर हवा के गर्म थपेड़े
परेशानी की वजह बनते हैं.
हीट
वेव कंडीशन (यानि
तीव्र लू)
ने
गर्मी के प्रकोप को और बढ़ा
दिया है.
अब
हालात यह है कि बढ़े हुए पारे
के बीच लू का सामना भी करना
पड़ रहा है.
भारत
में लू लगने से हाइपोथेमिया
(हीट
वेव)
और
हृदय और सांस से संबंधित रोगी
बढ़ रहे हैं। देश के अधिकतर
शहरों का अधिकतम तापमान 40-47
डिग्री
सेल्सियस के बीच है .सुबह
से लेकर शाम तक हवा ऐसी चल रही
है जैसे आग की लपटें निकल रही
हो।
अधिकतर
जगहों पर दक्षिण-पश्चिम
हवाएं चल रही है,
जिनकी
रफ्तार 12
से
20
किलोमीटर
प्रति घंटा है,
इससे
गर्मी का असर और तेज होता जा
रहा है।
हीट
वेव की वजह
उत्तर
भारत में जमीन से पांच किलोमीटर
ऊपर मौजूद एक एंटीसाइक्लोन
गर्मी को और गरम बनाने का काम
कर रहा है .
जानकारों
के मुताबिक एंटीसाइक्लोन में
हवाएं एंटीक्लॉकवाइज चलती
हैं.
यानी
हवाएं ऊपर से नीचे की ओर आती
हैं.
इस
स्थिति में वायुमंडलीय दाब
बढ़ जाता है.
वायुमंडलीय
दाब बढ़ने के साथ ही तापमान
भी बढ़ता है.
इस
स्थिति में गरम हवाएं और भी
गरम हो गईं हैं.
जहां
एक तरफ समूचे मैदानी इलाकों
में पछुआ हवाओं ने तापमान ऊपर
उठा दिया है.
वहीं
दूसरी तरफ कमजोर वेस्टर्न
डिस्टर्बेंस चढ़े हुए पारे
को लगातार ऊपर ही रहने दे रहे
हैं.
उत्तरी
पाकिस्तान तथा इसके आसपास
पश्चिमी विक्षोभ बना हुआ है।
दक्षिणी राजस्थान और आस पास
के इलाकों में चक्रवाती हवा
चल रही है।
मौसम
विभाग के मुताबिक अगले कुछ
हफ्तों में वेस्टर्न डिस्टरबेंस
की वजह से एंटी साइक्लोन कमजोर
पड़ सकता है जिससे लोगों को
थोड़ी राहत मिल सकती है.
लेकिन
ये राहत मामूली होगी और एक दो
दिन के लिए होगी.
इसलिए
ये कहा जा सकता है कि अगले
हफ्तों में जम्मू-कश्मीर,
हिमाचल,
उत्तराखंड,
पंजाब,
हरियाणा,
दिल्ली
और उत्तर प्रदेश से हीटवेव
की स्थिति हटने की संभावना
है.
लेकिन
इन सभी इलाकों में अधिकतम
तापमान सामान्य से ऊपर बना
रहेगा.
जलवायु
परिवर्तन /तापमान
ने वृद्धि खतरनाक स्तर पर
नया
शोध
अमेरिका
में हुए नए शोध के मुताबिक
आर्कटिक क्षेत्र में पिछले
दो हजार सालों में ताममान सबसे
अधिक हो गया है जो इस बात का
संकेत है कि मानवीय गतिविधियों
के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़
रहा है।वैज्ञानिकों का कहना
है कि आर्कटिक में पूरे उत्तरी
गोलार्ध की तुलना में तीन गुना
तेजी से तापमान बढ़ रहा है और
इसकी वजह मानवीय गतिविधियों
से पैदा हो रही कार्बन डाई
ऑक्साइड है। ये शोध अमेरिकी
पत्रिका जर्नल साइंस में छपा
है। शोध के अनुसार पिछले सात
हजार वर्षों में एक ऐसी प्राकृतिक
स्थिति बननी थी जिसमें आर्कटिक
के क्षेत्र को सूरज की कम से
कम रोशनी मिलनी चाहिए थी। इस
प्रक्रिया के तहत आर्कटिक को
अब भी ठंडा होते रहना था।
हालाँकि ऐसा हुआ नहीं। वर्ष
1900 के
बाद आर्कटिक का तापमान बढ़ता
जा रहा है और 1950
के
बाद इसमें और अधिक तेजी आ गई
है। पिछले 2000
वर्षों
में आर्कटिक का तापमान अभी
सबसे अधिक है। पिछली एक सदी
में आर्कटिक का तापमान पूरे
उत्तरी गोलार्ध की तुलना में
तीन गुना तेजी से बढ़ा है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि
इसमें अब कोई शक नहीं रह गया
है कि तापमान बढ़ने की वजह
सिर्फ़ और सिर्फ मानवीय
गतिविधियों के कारण पैदा होने
वाला कार्बन डाई आक्साइड है।
वैज्ञानिकों ने भूगर्भीय
रिकार्डों और कंप्यूटरों की
मदद से पिछली दो शताब्दियों
में तापमानों का खाका तैयार
किया है.
वैज्ञानिकों
ने चेताया है कि अगर आर्कटिक
का तापमान बढ़ता ही रहा तो
इससे समुद्र के जल स्तर में
तेजी से बढ़ोतरी हो सकती है।
संयुक्त
राष्ट्र महासचिव बान की मून
भी आर्कटिक के दौरे से लौटे
हैं और उन्होंने भी इस पर चिंता
जताई है। उनका कहना था,
'आर्कटिक
में हो रहा बदलाव जलवायु
परिवर्तन है। आईपीसीसी ने जो
कल्पनाएँ की थीं वो सही साबित
हो रही हैं। आर्कटिक गर्मी
को सोख रहा है और बर्फ खत्म हो
रही है। गर्मी बढ़ रही है।
इससे समुद्र का जल स्तर बढ़ेगा।
हम लोग गंभीर खतरे की तरफ बढ़
रहे हैं।'
महासचिव
ने जेनेवा में दिए भाषण में
कहा कि अगर विश्व भर के नेताओं
ने जलवायु परिवर्तन को रोकने
के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए
तो दुनिया को सर्वनाश से कोई
नहीं बचा सकता है।
भारत
पर असर
पिछले
दिनों
पर्यावरण
एवं
वन
मंत्रालय
ने
जलवायु
परिवर्तन
पर
इंडियन
नेटवर्क
फॉर
क्लायमेट
चेंज
असेसमेंट
की
रिपोर्ट
जारी
करते
हुए
चेताया
है
कि
यदि
पृथ्वी
के
औसत
तापमान
का
बंढना
इसी
प्रकार
जारी
रहा
तो
अगामी
वर्षों
में
भारत
को
इसके
दुष्परिणाम
झेलने
होंगे।
विभिन्न
स्थलाकृतियां
(पहाड़,
रेगिस्तान,
दलदली
क्षेत्र
व
पश्चिमी
घाट
जैसे
समृद्ध
क्षेत्र)
ग्लोबल
वार्मिंग
के
कहर
की
शिकार
होंगी।
120
संस्थाओं
एवं लगभग 500
वैज्ञानिकों
द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट
के अनुसार भारत में कृषि,
जल,
पारिस्थितिकी
तंत्र एवं जैव विविधता व
स्वास्थ्य ग्लोबल वार्मिंग
से उत्पन्न समस्याओं से अछूते
नहीं रहेंगे। वर्ष 2030
तक
औसत सतही तापमान में 1.7
से
2.0
डिग्री
सेल्सियस की वृद्धि हो सकती
है। इस रिपोर्ट में चार भौगोलिक
क्षेत्रों -
हिमालय
क्षेत्र,
उत्तर-पूर्वी
क्षेत्र,
पश्चिमी
घाट व तटीय क्षेत्र -
के
आधार पर पूरे देश पर जलवायु
परिवर्तन का अध्ययन किया गया
है। इन चारों क्षेत्रों में
तापमान में वृद्धि के कारण
बारिश और गर्मी-ठंड
पर पंडने वाले प्रभावों का
अध्ययन कर संभावित परिणामों
का अनुमान लगाया गया है।
यह रिपोर्ट बढ़ते तापमान के
कारण समुद्री जलस्तर में
वृद्धि एवं तटीय क्षेत्रों
में आने वाले चक्रवातों पर
भी प्रकाश डालती है।
आईपीसीसी
चेयरमैन
आरके
पचौरी
का
कहना
है
कि
मई
महीने
में
पारा
40
डिग्री
सेल्सियस
को
पार
कर
जाना,
एक
गंभीर
संकेत
है
और
इसका
संबंध
ग्लोबल
वार्मिंग
से
हो
सकता
है.
इस
तरह
का
'हीट
वेव'
अब
पहले
के
मुक़ाबले
लंबा
खिंच
सकता
है
और
इससे
सतर्क
रहने
की
ज़रूरत
है.
जलवायु
परिवर्तन
के
अंतरराष्ट्रीय
पैनल
के
मुताबिक
विश्व
के
औसत
तापमान
में
एक
डिग्री
सेल्शियस
की
वृद्धि
हुई
है।
पैनल
का
मानना
है
कि
ग्रीन
हाउस
गैसों
के
उत्सर्जन
में
रुकावट
नहीं
आने
के
कारण
जलवायु
में
कई
परिवर्तन
आए
हैं,
जो
कि
स्वास्थ्य
पर
बुरा
प्रभाव
डाल
रहे
हैं। इस
बात
की
आशंका
जताई
जा
रही
है
कि
आने
वाले
90
वर्षों
में
तापमान
में
1.8
से
4
डिग्री
सेल्शियस
तक
की
वृद्धि
हो
जाएगी।
ग्लोबल
वार्मिंग
और
बेमौसम
होने
वाली
बारिश
के
कारण
बीमारियों
में
इफाजा
हुआ
है।
साथ
ही
कुपोषण
के
मामले
भी
बढ़े
हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण सर्दी और गरमी के मौसम में मरने वालों की संख्या बढ़ी है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में बदलते मौसम के दौरान हजारों लोगों ने अपनी जान गवांई है। भारत में लू लगने से हाइपोथेमिया (हीट वेव) और हृदय और सांस से संबंधित रोगी बढ़ रहे हैं। भारत, बांग्लादेश और मलेशिया में जलवायु परिवर्तन के कारण हर साल डेंगू, मलेरिया, डायरिया, चिकनगुनिया और जापानी इंसेफ्लाइटिस के कारण काफी तादात में मौत होती है। वहीं वायरल हेपेटाइटिस के मरीजों की संख्या में तेजी आई है। बदलते मौसम के कारण बीमारियों के प्रति मनुष्य का शरीर संतुलन नहीं बना पा रहा है, जिससे हर साल मौतों का आँकड़ा बढ़ता जा रहा है। भारत में बदलते मौसम की मार अन्य देशों की अपेक्षा ज्यादा है। सरकार को अपनी योजना में इस ओर भी ध्यान देना होगा कि जलवायु बदलाव के इस दौर में उसकी मशीनरी गंभीर आपदाओं व प्रतिकूल मौसम के लिए कहीं अधिक तैयार रहे।
जलवायु परिवर्तन के कारण सर्दी और गरमी के मौसम में मरने वालों की संख्या बढ़ी है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में बदलते मौसम के दौरान हजारों लोगों ने अपनी जान गवांई है। भारत में लू लगने से हाइपोथेमिया (हीट वेव) और हृदय और सांस से संबंधित रोगी बढ़ रहे हैं। भारत, बांग्लादेश और मलेशिया में जलवायु परिवर्तन के कारण हर साल डेंगू, मलेरिया, डायरिया, चिकनगुनिया और जापानी इंसेफ्लाइटिस के कारण काफी तादात में मौत होती है। वहीं वायरल हेपेटाइटिस के मरीजों की संख्या में तेजी आई है। बदलते मौसम के कारण बीमारियों के प्रति मनुष्य का शरीर संतुलन नहीं बना पा रहा है, जिससे हर साल मौतों का आँकड़ा बढ़ता जा रहा है। भारत में बदलते मौसम की मार अन्य देशों की अपेक्षा ज्यादा है। सरकार को अपनी योजना में इस ओर भी ध्यान देना होगा कि जलवायु बदलाव के इस दौर में उसकी मशीनरी गंभीर आपदाओं व प्रतिकूल मौसम के लिए कहीं अधिक तैयार रहे।
अच्छे
मानसून के संकेत
मानसून
के इस साल सामान्य रहने का
अनुमान लगाया गया है। तय ढर्रे
के आधार पर मौसम विभाग ने अपनी
भविष्यवाणी में दक्षिण पश्चिम
मानसून के दौरान सामान्य बारिश
की उम्मीद जताई है। जून से
सितंबर के बीच देश में 89
सेंटीमीटर
बारिश का अनुमान है
केंद्रीय
विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री
एस जयपाल रेड्डी ने कहा कि
'मेरे
पास किसानों के लिए खुशखबरी
है। मानसून इस साल सामान्य
रहेगा।'
यह
लगातार चौथा साल है जब मौसम
विभाग ने पहले दीर्घानुमान
में सामान्य बारिश की भविष्यवाणी
की है। रेड्डी के अनुसार
दीर्घकालिक अनुमानों के अनुसार
मानूसन के सामान्य रहने की
उम्मीद 46
फीसद
है,
जबकि
अल्प वर्षा की आशंका 27
फीसद
है। खाद्यान्न के बढ़ते दामों
के बीच खरीफ की फसलों के लिए
यह अच्छी खबर है। खाद्य मंत्री
केवी थॉमस ने सामान्य मानसून
की उम्मीदों पर संतोष जताते
हुए कहा कि देश में खाद्यान्न
उत्पादन अच्छा रहेगा और गेंहू
की फसल पिछले साल जितनी ही
रहने की उम्मीद है।
पिछले
साल 2012
में
भी मौसम विभाग ने ऐसी ही
भविष्यवाणी की थी। लेकिन दर्ज
हुई बारिश सात फीसद कम रही।
गुजरात,
महाराष्ट्र,
तमिलनाडु
और केरल सूखे की मार झेल रहे
हैं जहां 20
प्रतिशत
से कम बारिश हुई। वैसे मौसम
विभाग का दावा है कि 2012
में
बारिश पर उसके अनुमान काफी
हद तक सही रहे और देश में सामान्य
89
सेंटीमीटर
की तुलना में 83
सेंटीमीटर
बारिश रिकार्ड हुई।
अल
नीनो प्रभाव नहीं
मौसम
विभाग के महानिदेशक डॉ.
एल.एस.
राठौर
के मुताबिक सूखा प्रभावित
दक्षिण भारत के राज्यों में
भी सामान्य बारिश की आशा है।
हालांकि उनके मुताबिक मानसून
की असली स्थिति जून में पता
चलेगी। मौसम विभाग 15
मई
को मानसून की आमद की तारीख
बताएगा। मौसम विज्ञानियों
ने मानूसन की तबियत को प्रभावित
करने वाले अल नीनो प्रभाव से
भी इस बार राहत की उम्मीद जताई
है। इस बार अल नीनो इफेक्ट
ऐक्टिव नहीं है। प्रशांत
महासागर में पानी का असामान्य
रूप से गर्म होना अल नीनो कहलाता
है। इसके कारण भारत आने वाले
बादलों का रुख बदल जाता है।
पिछली बार सामान्य मॉनसून की
भविष्यवाणी के बावजूद अल नीनो
की वजह से कम बारिश हुई थी।
विज्ञान प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव शैलेष नायक का कहना है कि प्रशांत महासागर में अल नीनो के लिहाज से स्थितियां स्थिर बनी हुई हैं और 2013 में इसके सक्रिय होने की आशंका नहीं है।
विज्ञान प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव शैलेष नायक का कहना है कि प्रशांत महासागर में अल नीनो के लिहाज से स्थितियां स्थिर बनी हुई हैं और 2013 में इसके सक्रिय होने की आशंका नहीं है।
सन
स्ट्रोक का खतरा
देश
के कई शहरों में सन-स्ट्रोक
का अटैक हो रहा है। टेंपरेचर
लगातार बढ़ रहा है और अधिकतम
तापमान 40
से
45
डिग्री
तक पहुंच चुका है।
चिंता
की बात यह है कि मौसम विभाग ने
फिलहाल गर्मी का अटैक इसी तरह
जारी रहने की संभावना जताई
है।
क्या
है सन स्ट्रोक
ब्रेन में हाइपोथैलेमस पार्ट होता है, जो बॉडी के टेंपरेचर को 95 से 98.6 फारनहाइट के बीच में कंट्रोल करता है। लेकिन जब हीट की वजह से हाइपोथैलेमस एबनॉर्मल काम करने लगता है, तो बॉडी का टेंपरेचर बढ़ने लगता है, जिसे मेडिकल भाषा में सन स्ट्रोक (लू लगना) कहते हैं। क्योंकि बॉडी का टेंपरेचर बढ़ने की वजह गर्मी होती है। डॉक्टर का कहना है कि जब हीट बढ़ती है, तब बॉडी से इसे बाहर निकालना जरूरी होता है। आमतौर पर यह हीट पसीने के जरिए बाहर निकलती है। जब सन स्ट्रोक होता है, तब यह हैम्पर कर जाता है, जिसकी वजह से हाइग्रेड फीवर हो जाता है। कई बार सन स्ट्रोक की वजह से बॉडी के ऑर्गन पर भी प्रभाव पड़ता है। डॉक्टर के मुताबिक, गर्मी की वजह से कुछ लोगों में ब्लड का आरबीसी टूटने लगता है, जिसे हाइपरथर्मिया कहते हैं। कुछ लोगों के ब्लड में पोटैशियम की मात्रा बढ़ जाती है, जिसे हाइपरक्लेमिया कहा जाता है। इसकी वजह से हार्ट का रिदम डिसऑर्डर हो जाता है।
बचाव के उपाय
- तेज गर्म हवाओं में बाहर जाने से बचें। नंगे बदन और नंगे पैर धूप में न निकलें।
- घर से बाहर पूरे और ढीले कपड़े पहनकर निकलें, ताकि उनमें हवा लगती रहे।
- खाली पेट बाहर न जाएं और ज्यादा देर तक धूप में रहने से बचें।
- चेहरे को ढक कर बाहर निकलें और हो सके तो चश्मे का प्रयोग करें।
- बहुत ज्यादा पसीना आ रहा हो तो तुरंत ठंडा पानी न पीएं। सादा पानी धीरे-धीरे पीएं।
- दिनभर में करीब 10-12 गिलास पानी पीएं।
- गर्म और भारी भोजन से बचें, इससे शरीर की गर्मी बढ़ती है।
- भरपूर मात्रा में लिक्विड फूड लें। अपने शरीर में सॉल्ट और मिनरल्स की कमी न होने दें।
- बच्चों और पालतू जानवरों को गाड़ी में न छोड़ें।
- गर्म हवाओं और पसीने से होने वाली परेशानी से बचने के लिए साफ, धुले हुए सूती कपड़े ही पहनें।
- दिन में दो बार ठंडे पानी से नहाएं।
- शरीर में पानी की कमी दूर करने और स्किन की चमक बनाए रखने के लिए पानी के साथ-साथ रस भरे फलोंका सेवन करें।
- जिम न जाने की हालत में घर पर ही एक्सरसाइज या योग करें।
- सुबह खुली हवा में टहलना इस मौसम में हेल्दी रहने में मददगार होता है।
- आंखों के इन्फेक्शन और धूल-मिट्टी से बचने के लिए सनग्लासेज लगाएं।
- ब्लैक की जगह हल्के रंग के छाते का इस्तेमाल करें।
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