वर्तमान में विज्ञान के क्षेत्र
में साइबरनेटिकी, सूचना सिद्धांत, कृत्रिम बुद्धि का सिद्धांत, आदि का विकास द्रुत इलैक्ट्रोनिक कंप्यूटरों के निर्माण से
जुड़ा हुआ है। इनका विशिष्ट लक्षण यह है कि अन्य यंत्रों से भिन्न इन्हें मनुष्य के
दैहिक श्रम के बजाए मानसिक श्रम को हल्का करने के लिए बनाया गया। आधुनिक कंप्यूटर
अपने पूर्वर्तियों से हजारों गुना श्रेष्ठ हैं, और एक सेकंड़ में करोड़ो संक्रियाएं कर सकते हैं। सुपर कंप्यूटर
भी हैं, जो बेहद अल्प समयावधि में ऐसी
अत्यंत जटिल तार्किक तथा संगणकीय संक्रियाएं कर सकते हैं जिनमें सूचना का विराट
परिणाम निहित होता है।
सूचना सिद्धांत और कृत्रिम बुद्धि
सिद्धांत कंप्यूटरों के लिए ऐसे जटिल प्रोग्रामों के विकास में मदद कर रहे हैं, जिन्हें विशिष्ट कृत्रिम गणितीय भाषाओं में लिखा जाता है और जो
एक समस्या का समाधान करते समय कंप्यूटर द्वारा की जाने वाली संक्रियाओं के सेट और
अनुक्रम का निर्धारण करने वाले हजारों नियमों के समुच्चय होते हैं। आधुनिक
कंप्यूटर उत्पादन प्रक्रिया की एक बड़ी संख्या तथा बेहद जटिल गणनाओं को पूर्णतः
स्वचालित करने में समर्थ होते हैं। अपने प्रोग्राम स्वयं बना सकने वाले ऐसे
कंप्यूटर हैं, जो उनमें प्रविष्ट कराये गये
प्रोग्रामों के आधार पर उनसे बेहतर प्रोग्राम बाणा लेते हैं, वे प्रोग्रामरों द्वारा की हुई ग़लतियां सुधारते हैं और अन्य
स्वचालित इलैक्ट्रोनिक यंत्रों की रचना भी कर सकते हैं। इस समय संसार में लाखों
इलैक्ट्रोनिक स्वचालित यंत्र तथा रोबोट काम कर रहे हैं। इस क्षेत्र में निरंतर
कार्य चल रहा है, नये और अधिक जटिल प्रोग्राम बन
रहे हैं और अधिक सटीक व द्रुततर कंप्यूटर तथा संचालन यंत्र बन रहे हैं।
इस सिलसिले
में अक्सर यह प्रश्न उठते हैं कि क्या कंप्यूटर सोच-विचार कर सकते हैं? क्या एक इलैक्ट्रोनिक मशीन में चेतना और चिंतन का अस्तित्व हो
सकता है? क्या वे मनुष्य की तर्कबुद्धि तथा
अक़्ल को प्रतिस्थापित कर सकती हैं? क्या वे चिंतनशील सत्व के रूप में मनुष्य को ही तो विस्थापित
नहीं कर देंगे? इन प्रश्नों की केवल दार्शनिक ही
नहीं, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक संगतता भी
है। कृत्रिम बुद्धि के सिद्धांत के क्षेत्र में खोजबीन, जटिल कार्यों को संपन्न करने में समर्थ विशेषज्ञ प्रणालियों की
रचना और स्वचालित रोबोटों के निर्माण में बहुत तरक़्क़ी हो जाने के बावज़ूद, कम से कम निकट भविष्य में, इस तरह की आशंका के लिए कोई आधार नहीं हैं।
चलिए हम इस समस्या पर चिंतन और
चेतना के स्वभाव के विश्लेषण की दृष्टि से देखते हैं। मनुष्य के मानसिक क्रियाकलाप
में उसके उच्चतम रूप, निश्चित नियमों के अनुसार होने
वाला तार्किक चिंतन ही शामिल नहीं है, बल्कि यथार्थता के परावर्तन के अनेक भावनात्मक रूप ( जैसे सुख, क्रोध, भय, संतोष, प्रेम, मैत्री, शत्रुता, भूख, तुष्टि, आदि ) और विविध प्रकार की अचेतन मानसिक प्रक्रियाएं भी शामिल
हैं।
इसी तरह मनुष्य की रचनात्मकता ( creativity
) विशेष दिलचस्पी की चीज़ है। यह एक ऐसी घटना
( phenomenon ) है, जो पहले से निर्धारित क़ायदों से संनियमित ( governed
) नहीं होती। इसके विपरीत इस रचना
प्रक्रिया में ही, इसके दौरान ही नये क़ायदे बनाए
जाते हैं, गुणात्मकतः नये विचारों तथा
सक्रियता के उसूलों को विकसित किया जाता है। यदि ऐसा न होता, तो लोग पशुओं की तरह आनुवंशिकता से उन तक संप्रेषित क्रियाकलाप
के अंतर्जात ( innate ) प्रकारों
के एक ही समुच्च्य को लगातार करते रहते। रचनात्मकता मनुष्य की मानसिक, चित्तवृतिक ( psychic ) विशेषता ही है, जो पर्यावरण को गुणात्मकतः परिवर्तित करने की, कोई सर्वथा नई चीज़ रचने की उसकी क्षमता में व्यक्त होती है और
जो उसे अन्य सारे जीवित प्राणियों से मूलतः विशिष्ट बना देती है।
यहां एक ऐसी सुस्पष्ट सीमा रेखा
है, जो सर्वोत्तम कंप्यूटरों तथा किसी
भी सामान्य व्यक्ति की संभावनाओं को विभाजित करती है। कंप्यूटर स्वयं चिंतन नहीं
कर सकता है, वह पूर्ण परिपथों और इलैक्ट्रोनिक
यांत्रिक विधियों के ज़रिए सिर्फ़ उन क़ायदों का पालन करता है, जो मनुष्य द्वारा उसमें ड़ाले गये प्रोग्रामों में शामिल होते
हैं। कंप्यूटर संक्रियाओं की गति के मामले में और अपनी स्मृति ( स्मृति की
युक्तियां ), अपनी अनथकता में और अनेक वर्षों
तक काम करने की क्षमता, आदि में मनुष्य से बेहतर होता है। किंतु, जैसा कि हम जानते हैं, रचना प्रक्रिया को पूर्णतः क़ायदों के मातहत नहीं रखा जा सकता
है और उनके जरिए वर्णित नहीं किया जा सकता है. इसलिए उसका प्रोग्रामन करके उसे कंप्यूटर
के ‘हवाले’ नहीं किया जा सकता है। जाहिर है कि विज्ञान, इंजीनियरी तथा कला को रचना के बिना विकसित नहीं किया जा सकता
है : इसी तरह, वास्तविक चिंतन भी उसके बिना
असंभव है।
कोई भी कंप्यूटर, नियत क़ायदों के मुताबिक संगीत बनाने वाला कंप्यूटर भी, ए. आर. रहमान को प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है। बोधगम्य पाठ
तैयार करने के लिए प्रोग्रामित कंप्यूटर प्रेमचंद की कृति ‘गोदान’ नहीं लिख सकता है। कुल मिला कर लाबलुब्बोआब यह कि एक कंप्यूटर
सामान्यतः ऐसी कोई समस्या नहीं सुलझा सकता है, जो उसमे प्रविष्ट कराये गए प्रोग्राम में शामिल नहीं हो।
विक्टर ह्यूगो के पंद्रहवीं सदी
के अंत की घटनाओं का वर्णन करने वाले एक उपन्यास ‘नोत्रे देम’ का एक पात्र एक पांडुलिपी तथा एक छपी हुई पुस्तक की तुलना करते
हुए यह आशंका व्यक्त करता है कि छापे की मशीन ( जिसका अविष्कार हुआ ही था ) के
कारण लोग लिखना भूल जाएंगे और साक्षरता लुप्त हो जाएगी। आज हम जानते हैं कि यह
आशंका और भविष्यवाणी सत्य साबित नहीं हुई। पढ़ना-लिखना जानने लोगों की संख्या संसार
भर में लगातार बढ़ रही है, शिक्षा का सामान्य स्तर बढ़ रहा है और ऐसा छापे की मशीन के कारण
ही हो रहा है।
‘चिंतनशील’ कंम्प्यूटरों के बारे में भी इससे मिलती जुलती कोई बात कही जा
सकती है। कुछ कलनीय तार्किक संक्रियाओं को निष्पादित करके रोबोट व कंम्प्यूटर
लोगों को दैनंदिन, उबाऊ तथा भारी काम से छुटकारा
दिलाते हैं। जिस प्रकार पुस्तक प्रकाशन से सार्वभौमिक साक्षरता में वृद्धि हुई, उसी प्रकार से कंम्प्यूटरों का फैलाव मानव चिंतन के और अधिक
विकास को बढ़ावा दे रहा है। एक सही और सामाजिक प्रतिबद्धता से सम्पन्न व्यवस्था में
इसके सदुपयोग के द्वारा लोगों की शिक्षा और संस्कृति में और उनकी रचनात्मक
क्षमताओं के विकास में छलांगनुमा प्रगति ही होगी।
कंप्यूटर के द्वारा मानवजाति को
अपने मानसिक क्रियाकलाप को विकसित और परिष्कृत बनाने की दिशा में तथा जनगण की
विशाल बहुसंख्या के हित में विश्व को समझने तथा तर्कसम्मत ढ़ंग से इसे बदलने की
दिशा में एक और कदम बढ़ाने में मदद मिलेगी। इसलिए कंम्प्यूटरों के और विशेषतः
सूक्ष्म इलैक्ट्रोनिकी के विकास में मानव चिंतन के प्रतिद्वंद्वी के ख़तरे को नहीं, बल्कि उसके और अधिक विकास तथा सुधार के आधारों को देखना चाहिए।
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