Monday 21 May 2012

सौर ऊर्जा का सार्थक इस्तेमाल

जलवायु परिवर्तन के संकट का मुकाबला करने के लिए पवन सौर्य ऊर्जा के इस्तेमाल की बात की जाती है। इसके लिए विकसित देशों को बार-बार कहा गया है कि वे अपनी नवीनतम तकनीक निर्धन देशों को नि:शुल्क उपलब्ध करवाएं। उन्होंने तो यह उम्मीद पूरी नहीं की, पर भारत ने इस दिशा में एक पहल जरूर शुरू की है। इसके तहत 25 अल्प विकसित देशों (अधिकांश अफ्रीकी) की महिलाओं को राजस्थान के तिलोनिया गांव में बने बेयरफुट कॉलेज में सौर ऊर्जा का प्रशिक्षण दिया गया है।
बेयरफुट कॉलेज ने सौर ऊर्जा को गांवों में स्थापित करने के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं, जिनमें सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही है कि प्रतिभाशाली ग्रामीण महिलाओं को बेयरफुट सोलर इंजीनियर के रूप में प्रशिक्षित किया गया। इन महिलाओं ने काफी कम समय में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल लीं और बाहर से आने वाली महिलाओं को भी प्रशिक्षण देना आरंभ किया। यहां तक कि उन विदेशी महिलाओं को भी, जिनकी भाषा तक उनके लिए अनजानी थी।
विदेश मंत्रालय के एक कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षण देने वाली इन महिलाओं ने बताया कि शुरू में भाषा की समस्या तो आती है, पर कुछ संकेत भाषा के आधार पर और कुछ हिंदी-अंग्रेजी भाषाओं के गिने-चुने शब्दों के इस्तेमाल से हम संवाद स्थापित कर लेते हैं। बहुत कम समय में ही यह शुरुआती झिझक दूर हो जाती है। अफ्रीकी व अन्य देशों की महिलाएं यहां तेजी से सौर ऊर्जा का काम सीखने में लगी हैं।
अफ्रीका के अतिरिक्त लैटिन अमेरिका (जैसे बोलीविया) व एशिया (जैसे अफगानिस्तान) की अनेक महिलाओं ने भी इस कार्यक्रम के तहत तिलोनिया में प्रशिक्षण प्राप्त किया है। अब तक ऐसे प्रशिक्षण के कई दौर चले हैं और लगभग 250 महिलाएं प्रशिक्षण लेकर अपने देश लौट चुकी हैं। लौटते वक्त उन्हें अपने गांवों में सौर ऊर्जा स्थापित करने के लिए जरूरी साजो-सामान दिए जाते हैं, ताकि वे वहां पहुंचकर तुरंत काम शुरू कर सकें।
इथियोपिया के बेयाहिले गांव से आई फातुमा अबबकर इब्राहिम ने तिलोनिया से लौटकर अपने गांव में 90 सोलर यूनिटों की स्थापना की और अपने गांव में ही एक इलेक्ट्रॉनिक वर्कशाप शुरू करने में भी मदद की। तंजानिया से आई मोनिका ने टूटी-फूटी भाषा में बताया कि उन्होंने बहुत कम समय में सब कुछ सीख लिया है।
छह महीने का यह प्रशिक्षण जलवायु बदलाव के संकट से निपटने और जरूरी तकनीक को आपस में बांटने की भारत की प्रतिबद्धता का अच्छा उदाहरण है। ये सभी ऐसे देश हैं, जहां प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत काफी कम है और यदि इन निर्धन देशों को तरक्की करनी है, तो उन्हें उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिक ऊर्जा की जरूरत पड़ेगी। अत: जरूरी है कि वे ग्रीनहाउस गैस पैदा करने वाले परंपरागत तरीके अपनाने की बजाय इस तरह की अक्षय ऊर्जा का सहारा लें।

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