वैज्ञानिक उपलब्धियों के हिसाब से साल 2011 भी बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ। पार्टिकल फिजिक्स, एस्ट्रोनॉमी और जीव-विज्ञान के क्षेत्र में नई खोजों ने हमें सबसे ज्यादा चौंकाया। जिनेवा स्थित सर्न लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों ने इस ब्रह्मांड की ईंट समझे जाने वाले हिग्स-बोसोन अथवा ‘गॉड पार्टिकल’ की एक झलक देखने का दावा किया।
सर्न के ही वैज्ञानिकों एक अन्य
प्रयोग में यह भी साबित करने की कोशिश की कि न्यूट्रिनो कणों की रफ्तार प्रकाश से
भी ज्यादा है। यह खोज अल्बर्ट आइन्स्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत के एकदम विपरीत
है, जो यह कहता है कि प्रकाश से ज्यादा तेज कुछ नहीं। अगर यह
खोज पूरी तरह से स्थापित हो जाती है, तो हमें
फिजिक्स की किताबें फिर से लिखनी पड़ेंगी।
सौर मंडल के बाहर पृथ्वी जैसे
कुछ नए ग्रहों की खोज से इस साल मनुष्य पर-ग्रही जीवन की तलाश में कुछ कदम और आगे
बढ़ा। इस साल के लिए प्रतिष्ठित साइंस पत्रिका ने जिन बड़ी उपलब्धियों की सूची
तैयार की है, उसमें उसने एड्स वायरस के संक्रमण को रोकने में
एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग्स के सफल परीक्षण को वर्ष की सबसे बड़ी उपलब्धि माना है।
साइंस अपने विशेषज्ञों की राय
के आधार पर पिछले 12 महीने की दस महत्वपूर्ण उपलब्धियों का चुनाव करती है। सबसे
ज्यादा वोट अर्जित करने वाली उपलब्धि को ‘द साइंटिफिक
ब्रेकथ्रू ऑफ 2011’ कहा जाता है। साइंस के मुताबिक, इस साल जापान
के हायाबूसा मिशन की सफलता भी एक बड़ी उपलब्धि रही। तकनीकी खराबियों के बावजूद
हायाबूसा अंतरिक्ष यान एक बड़े एस आकार के क्षुद्र ग्रह से धूलकण एकत्र कर पृथ्वी
पर लौट आया। पिछले 35 वर्षों में यह पहला अवसर है, जब कोई यान
किसी खगोलीय पिंड से नमूने एकत्र करके पृथ्वी पर लौटा है।
एस्ट्रोनॉमर्स ने इस साल बाहरी
सौर मंडलों का ज्यादा गहराई से अध्ययन किया और वहां बहुत-सी विचित्र बातें नोट
कीं। उन्हें एक ऐसा तारमंडल दिखा, जहां ग्रह कुछ अलग अंदाज में परिक्रमा करते नजर आए। एक ग्रह
उलटी कक्षा में घूमता हुआ दिखा और एक अन्य को दो ‘सूर्यों’ का चक्कर लगाते देखा गया। इनके अलावा एस्ट्रोनॉमर्स ने दस
ग्रहों को अंतरिक्ष में आवारा घूमते हुए देखा। सुदूर ब्रह्मांड में हाइड्रोजन के
दो ऐसे बादलों का भी पता लगाया, जो बिग बैंग की घटना के दो अरब साल बाद भी अपना मूल
रासायनिक स्वरूप बनाए हुए हैं।
अमेरिका में मेयो क्लिनिक के
रिसर्चरों ने प्रयोग के दौरान पता लगाया कि बूढ़ी कोशिकाओं को दवा के जरिये नष्ट
करके वृद्ध होने की प्रक्रिया के कुछ पहलुओं को रोका जा सकता है। इससे एक बात तो
साफ हो गई है कि यदि पुरानी कोशिकाओं की समय-समय पर सफाई होती रहे, तो आदमी वृद्धावस्था की ओर बढ़ते हुए भी स्वस्थ रह सकता है।
इंसान अमर नहीं, तो कम से कम अजर तो हो ही सकता है।
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