Thursday 4 August 2022

गणना और गणितज्ञ

चंद्रभूषण

कंप्यूटर से भी तेज गणनाओं के लिए मशहूर रही शकुंतला देवी पर फिल्म बनाना जीवट का काम रहा होगा। इस मामले में सबसे अच्छी बात यह रही कि स्क्रिप्ट का आधार उनकी बेटी की किताब को बनाया गया, जिससे एक खास काम में असाधारण मानी गई इस बेचैन स्त्री के जीवन की जटिलता पर सबका ध्यान जा सका। भारत की शीर्ष गणितीय प्रतिभा श्रीनिवास रामानुजन को ऐसी कोई सुविधा नहीं प्राप्त थी, सो उनपर बनी हॉलीवुड की फिल्म बेहतर होते हुए भी शकुंतला देवी की तरह उनके जीवन की बारीकियों में नहीं जा सकी। 

उस फिल्म का अच्छा पहलू यह था कि कुछ दिलचस्पी हम रामानुजन के काम में भी ले सके, जबकि पर्दे पर शकुंतला देवी का चमत्कारी गुणा-भाग देखना दूसरी बार से ही बोर करने लगा था और पूरी फिल्म में ऐसे सीन हूबहू बहुत बार दोहराए गए। दर्शक भी सोच रहे होंगे कि 12 या 14 अंकों वाली दो संख्याओं का गुणा बार-बार देखने में भला किसी को कितना मजा आ रहा है, जो मुर्गे सी अकड़ी विद्या बालन तालियों पर तालियां बटोरती ही चली जा रही हैं! 

फिल्म की एक बड़ी गलती शकुंतला देवी को शुरू से आखिर तक मैथमेटिशियन (गणितज्ञ) बताना है। हो सकता है, उस समय कुछ अखबार उन्हें गणितज्ञ लिखते भी रहे हों। लेकिन तेज गणनाओं या एक नजर में किसी चीज का क्षेत्रफल या वजन बता देने का तमाशा मध्यकालीन यूरोप और अमेरिका में शहरी मध्यवर्ग के लिए मनोरंजन का एक जरिया हुआ करता था और यह तमाशा दिखाने वाले मैथमेटिशियन नहीं बल्कि ‘प्रॉडिगल कैलकुलेटर’ (चमत्कारिक संगणक) ही कहलाते थे।

जब-तब गणितज्ञों की दिलचस्पी भी उनमें होती थी, लेकिन उनका चमत्कार देखने के बजाय उनके काम का तरीका समझने में। हां, अगर इनमें से किसी में भी कुछ गणितीय प्रतिभा उन्हें दिख जाती थी तो उसे विकसित करने का पूरा प्रयास वे करते थे। गणनात्मक प्रतिभा और गणितीय मेधा में फर्क करना एक पेचीदा बात है, लेकिन दोनों की ठोस इंसानी शक्लें देखनी हों तो अपने यहां उन्हें हम शकुंतला देवी और श्रीनिवास रामानुजन की तस्वीरों में देख सकते हैं।

गणित की व्यापक परिभाषा पैटर्न पकड़ने और उनमें नियमों की तलाश करने के रूप में की जाती है है। ये पैटर्न संख्याओं के भी हो सकते हैं और बादलों की शक्ल या बाढ़ में पुल से गुजरने वाले पानी के भी। शकुंतला देवी अपनी गणनाओं में जो पैटर्न इस्तेमाल करती थीं, उनमें से कुछ उन्होंने बाद में शेयर किए, लेकिन गणितज्ञों की तो क्या कहें, आम आदमी के लिए भी ये किसी काम के नहीं निकले। इसके विपरीत रामानुजन का जोर पैटर्न्स में पैठे नियमों की तलाश पर था और आज भी चोटी के गणितज्ञ उनके सुझाए हुए किसी प्रमेय का प्रमाण खोजकर गौरवान्वित महसूस करते हैं। 

दुनियादारी की नजर से देखें तो पैसे-रुपये की जरूरत और कमाई के तरीकों से बेखबर रामानुजन मात्र साढ़े 32 साल की उम्र में टीबी के शिकार होकर परदेस में मरे, जबकि हर किसी पर शक करने वाली शकुंतला देवी ने अरबपति ज्योतिषी के रूप में साढ़े 83 की उम्र में प्राण त्यागे। बड़ी प्रतिभाओं का उपयोग पैसे के बजाय कुछ ज्यादा बड़ी चीजें पैदा करने में होना चाहिए, यह सोच भी अब कहां देखने को मिलती है!

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