डीजल
इंजन के धुंए से कैंसर हो सकता है. और ये तंबाकू के धुएं जितनी ही खतरनाक है.
फ्रांस के लियोन में चली बैठक बाद विशेषज्ञों के एक समूह ने ये दावा किया है. ये
बैठक विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से बुलाई गई थी.
संगठन
से जुडी फ्रांसीसी एजेंसी आईएआरसी (इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर) ने अपने
एक शोध में उन तत्वों का पता लगाया जो डीजल की भभक से निकलते हैं और कैंसर फैलाते
हैं. इस शोध से जुड़े विशेषज्ञों ने दुनिया भर के लोगों को आगाह किया है कि वो
डीजल के धुएं के संपर्क में आने से बचें. विशेषज्ञों का कहना है, 'ये निष्कर्ष अकाट्य तर्क पर आधारित हैं. हमने
अपने शोध में पाया है कि डीजल के अवशेष फेफड़े का कैंसर फैलाते हैं. इसके अलावा ये
मूत्राशय के कैंसर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होता है.'
ये
निष्कर्ष स्वतंत्र विशेषज्ञों के बीच एक हफ्ते तक चली मीटिंग के बाद निकाले गए
हैं. कैंसर फैलाने के लिए डीजल और गैसोलिन किस हद तक जिम्मेदार हैं विशेषज्ञों की
इस बारे में अलग अलग राय थी. डीलज के धुएं को विशेषज्ञों ने तंबाकू, एसबेस्टस, आर्सेनिक की
ही तरह खतरनाक बताया है. आईएआरसी के अध्यक्ष क्रिस्टोफर पोर्टियर ने कहा कि
विशेषज्ञों के समूह में इस बात की सहमति थी कि डीजल के धुएं से कैंसर फैलता है. ये
निष्कर्ष पशुओं और सीमित मात्रा में इंसानों पर किए गए शोध के बाद निकाले गए हैं.
इस
बारे में पहली बार अमेरिका के राष्ट्रीय कैंसर संस्थान में रिपोर्ट भी छपी थी. 1947 के बाद कई दशकों तक चले इस शोध में कहा गया
था कि जो बच्चे डीजल इंजन से निकलने वाले धुएं के ज्यादा संपर्क में होते हैं
उन्हें फेफड़े के कैंसर का खतरा ज्यादा होता है.
ये
चेतावनी पश्चिमी यूरोप के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जा रही है. इस क्षेत्र में
डीजल कारें काफी लोकप्रिय हैं. टैंक्स छूट और तकनीकी श्रेष्ठता की वजह से डीजल
कारों की मांग भी खूब बढ़ी है. यूरोप के अलावा भारत में भी डीजल इंजन कारें खूब
खरीदी जाती हैं. हालांकि दूसरी जगहों पर इनका इस्तेमाल ज्यादातर व्यापारिक वाहनों
के लिए किया जाता है. अब जर्मन वैज्ञानिक अमेरिका में भी डीजल कार के बारे में
जागरुकता फैलाने की कोशिश में लगे हैं. अमेरिका के लंबे हाइवे के लिए डीजल कारें
सबसे ज्यादा मुफीद मानी जाती हैं.'
आइएआरसी
का कहना है कि दुनिया की बड़ी आबादी डीजल के धुएं के संपर्क में हर आती है. फिर वो
चाहे नौकरी पेशे की वजह से हो या फिर हवा में मौजूद डीजल के कण की वजह से.
विकासशील देशों में तो हालत और भी बुरी है. इन देशों में तकनीक कम विकसित है.
1998 के बाद से ही विशेषज्ञों ने इस बारे में ध्यान देना शुरु कर दिया था.
हालांकि ऑटो कंपनियों ने मांग की है कि डीजल के धुएं को कैंसर फैलाने वाली वस्तुओं
की सूची में नीचे रखना चाहिए. वाशिंगटन स्थित डीजल तकनीक फोरम के अध्यक्ष एलेन शफर
ने इस फैसले पर कडी प्रतिक्रिया दी है. उनका कहना है, ' इंजन
और दूसरे उपकरण बनाने वाली कंपनियां, ईंधन को शुद्ध करने
वाली कंपनियां और दूसरी कंपनियों ने उत्सर्जन कम करने के लिए करोड़ो डॉलर खर्च
किया है. नई तकनीक से बनाए गए डीजल इंजन हाइड्रोकार्बन और नाइट्रोजन ऑक्साइड का न
के बराबर उत्सर्जन करते हैं.' कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया
यूरोपीय संघ के ऑटोमोबाइल उद्योग की तरफ से दी गई है. इसमें कहा गया है, 'इस निष्कर्ष से उद्योग जगत सन्न रह गया है. हम उन निष्कर्षों पर गौर से
विचार करेंगे.
आईएआसी
की रिपोर्ट के बाद जनरल मोटर्स ने एक बयान जारी किया है. जिसमें कहा गया है,'हम ईंधन बचाने वाली तकनीक पर काम करते रहेंगे
और ऐसे इंजन का विकास करेंगे जो वैकल्पिक ईंधन पर चल सके.' हालांकि
आज जिन डीजल इंजनों का इस्तेमाल किया जाता है वो पहले से काफी बेहतर हैं. और उनसे
सल्फर का उत्सर्जन भी कम होता है.
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