Sunday 9 May 2021

मंगल पर क्यों है इतनी गहमागहमी

 चंद्रभूषण

सौरमंडल में भीतर से बाहर की तरफ जाने के क्रम में चौथे नंबर पर पड़ने वाले ग्रह मंगल की खोजबीन के लिए यह असाधारण समय चल रहा है। इसी साल मंगल की कक्षा में पहुंचे अमेरिका, चीन और संयुक्त अरब अमीरात के अंतरिक्ष यान उसकी परिक्रमा करते हुए लगातार उसके बारे में सूचनाएं भेज रहे हैं। इस सूची में संभवतः हमारा अपना मंगलयान भी शामिल है, जिसके पूर्णतः स्वस्थ होने और लगातार डेटा भेजने की बात बीती फरवरी में इसरो द्वारा कही गई थी, हालांकि खबर जारी करने लायक कोई बात मंगलयान के हवाले से आखिरी बार 2018 में ही सुनी गई थी। अमेरिकी गाड़ी पर्सीवरेंस ढाई महीने से मंगल की सतह पर उतरी हुई है जबकि उससे निकला ताकतवर कैमरे वाला पौने दो किलो का छोटा सा हेलिकॉप्टर इनजेन्युइटी पिछले पंद्रह दिनों में इस पराये ग्रह पर पांच उड़ानें भर चुका है। चीन का रोवर भी तीन महीने से उतरने लायक जगह की तलाश में है। इसकी खबर मई के मध्य से अंत तक कभी भी आ सकती है।

मंगल को लेकर अभी इतनी मारामारी क्यों मची हुई है? मुख्य रूप से तीन वजहों से। एक तो धरती के अलावा इंसानों के रहने लायक अकेली जगह अगले हजार वर्षों में इसके सिवा कोई और नहीं होने वाली। चंद्रमा पर पानी की खबरें उत्साह जरूर जगाती रही हैं लेकिन व्यावहारिक स्थिति यही है कि यहां हवा और पानी से लेकर सारा कुछ ढोकर ले जाना पड़ेगा और सूरज से नजदीकी के चलते रेडिएशन यहां इतना भयानक है कि दो-चार दिन भी रहने की कल्पना किसी गहरी गुफा या बहुत विशेष बनावट वाली कोठरियों में ही की जा सकती है। अलबत्ता रोबॉट्स के लिए चंद्रमा ज्यादा बेहतर जगह है और इंसान का आना-जाना वहां प्लानिंग और कोऑर्डिनेशन जैसे कामों के लिए ही अच्छा रहेगा। इसके विपरीत मंगल की पतली हवा से ऑक्सिजन बनाने का काम पर्सीवरेंस ने अभी कुछ ही दिन पहले किया है और पानी वहां हर लैंडिंग साइट पर निकला नजर आ रहा है, भले ही उसे पीने लायक बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़े

दूसरी वजह मंगल पर जीवन की तलाश है, जो अभी तो हिसाब के मुताबिक लगभग असंभव ही नजर आती है। ध्यान रहे, धरती से मंगल की दूरी हमेशा बदलती रहती है। इसकी न्यूनतम माप पांच करोड़ 46 लाख किलोमीटर दर्ज की गई है जबकि अधिकतम माप 40 करोड़ 10 लाख किलोमीटर तक जा सकती है। इतना दूर रहकर हमारे लिए मंगल पर जीवन होने या न होने के बारे में कोई पक्की बात कहना अभी दूर की कौड़ी ही है लेकिन अगर वहां जीवन है और इसका स्वरूप धरती के जीवन जैसा कोशिका आधारित ही है, तो मंगल पर मौजूद रेडिएशन को देखते हुए उसकी मौजूदगी मंगल की सतह से कम से कम 25 फुट नीचे ही होनी चाहिए। हम उम्मीद कर सकते हैं कि वहां 25-30 फुट गहरा खोदकर बिल्कुल पैक्ड अवस्था में निकाली गई मिट्टी अगर धरती पर लाई जा सके तो उसकी जांच-पड़ताल से बहुत पुराने, आर्काइया श्रेणी के डॉर्मेंट जीवाणुओं से हमारा सामना हो सकता है। इतनी गहरी खुदाई करने वाला कोई यंत्र अभी मंगल पर नहीं भेजा जा सका है, पर यहां तक की एक्स-रे स्पेक्ट्रोग्राफी जरूर की जा सकती है।

तीसरी वजह मंगल के अध्ययन के जरिये पृथ्वी के अपने विकास को समझने की है। पृथ्वी के विकास के चार युग माने जाते हैं, जिन्हें इओन कहने का चलन है। ध्यान रहे, धरती की उम्र 4 अरब 54 करोड़ साल नापी गई और इसका पहला युग अब से कोई चार अरब साल पहले यानी धरती बनने के लगभग 60 करोड़ साल बाद समाप्त होता है। हैडियन नाम के इस युग में शुरुआती 12 करोड़ साल बिना चंद्रमा के हैं और जीवन का कोई रूप अभी कल्पना के परे है। इस युग का अंत धरती पर जीवन के प्रारंभिक रूपों के उदय के साथ हुआ माना जाता है और इन जीवों के आधार पर ही लगभग एक अरब साल चले इस युग को आर्कियन युग का नाम दिया गया है। यहां तक धरती और मंगल के ग्रहीय इतिहास में कोई बड़ा फर्क नहीं है। बल्कि धरती की तुलना में सूरज से दूर होने के चलते वहां जल्दी जीवन विकसित होने की संभावना जताई जाती रही है। लेकिन आर्कियन युग के बीच में ही दोनों की दुनिया अलग हो गई। 

धरती के बारे में धारणा यह है कि जीवाणुओं की कुछ खास किस्मों ने फोटो सिंथेसिस से ऑक्सिजन पैदा करके इस ग्रह को मौजूदा शक्ल की तरफ मोड़ दिया जबकि मंगल पर बड़े उल्कापातों के चलते उसका भू-चुंबकत्व नष्ट हो गया, पानी उड़ गया और वातावरण कमजोर पड़ते-पड़ते लगभग नगण्य हो गया। मंगल के अध्ययन के पीछे वैज्ञानिकों का एक बड़ा मकसद पृथ्वी के प्रारंभिक स्वरूप को लेकर बनाई गई अपनी अवधारणाओं को जांचने का है। इसमें सबसे बड़ा पेच मंगल पर जीवन का कोई रूप या उसका पुरातात्विक अवशेष पाने से जुड़ा है। जिंदगी के लिहाज से एक ग्रह के पास या फेल होने के लिए क्या-क्या चीजें जिम्मेदार हैं? पृथ्वी के अलावा कहीं और भी जीवन पैदा हुआ या नहीं, और अगर यह कहीं और भी, मसलन मंगल पर पैदा हुआ तो इसके बचे रहने की परिघटना केवल पृथ्वी पर ही क्यों दर्ज की जा रही है?

इन सभी सवालों से जुड़ी जांच-पड़ताल में पर्सीवरेंस ने बहुत महत्वपूर्ण काम किया है और अगले दो साल तक यह काम पूरी क्षमता के साथ करने के लिए जरूरी सारे साजो-सामान और ईंधन इसके पास मौजूद है। इसने दो मीटर खुदाई करके सतह से लेकर नीचे तक काफी नमूने इकट्ठा किए हैं। पानी गायब होने के बारे में पर्सीवरेंस के भेजे आंकड़े बताते हैं कि यह काम एक झटके में नहीं हुआ। एक लंबा सूखा, फिर कुछ समय तक नम जलवायु, फिर दोबारा सूखा और फिर नमी के कई एपिसोड इसके भेजे चित्रों में जाहिर होते हैं। चुंबकत्व नष्ट होने को लेकर अभी ब्यौरे आने बाकी हैं, हालांकि चीनी रोवर में इसके अध्ययन के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा इंतजाम हैं।           

ध्यान रहे, मंगल पर कामकाजी स्थिति में रोवर यान उतारने में अभी तक सिर्फ छह मिशन कामयाब हुए हैं, और ये सभी अमेरिका की सरकारी संस्था नासा द्वारा ही संचालित रहे हैं। यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) का एक यान मंगल पर उतरने के ठीक पहले क्षतिग्रस्त हो गया था। बाद में पता चला कि कैलकुलेशन की मामूली गड़बड़ी से यान की रफ्तार कम करने वाला उसका एक रेट्रो रॉकेट सटीक वक्त से सिर्फ आधा सेकंड पहले बंद कर दिया गया। नतीजा यह रहा कि ईएसए का यान महज किसी दोमंजिला इमारत जितनी ऊंचाई से गिरकर चकनाचूर हो गया। इसके पहले रूस ने अपना एक यान मंगल पर सकुशल उतार दिया था लेकिन सतह पर उतरने के सिर्फ 14 मिनट बाद धरती से उसका संपर्क टूट गया।

ये नाकामियां एक कठिन समस्या की ओर इशारा करती हैं। पांच करोड़ 46 लाख से लेकर 40 करोड़ 10 लाख किलोमीटर के लंबे गैप में लगातार बदलने वाली धरती और मंगल की दूरी और जब-तब दोनों के बीच में सूरज आ जाने के चलते संवेदनशील दूरसंचार यंत्रों की ट्यूनिंग बहुत मुश्किल हो जाती है। बीच में कोई बाधा न आए तो भी धरती से कोई निर्देश मंगल तक पहुंचने में कई मिनट लगते हैं। इतना ही वक्त निर्देश पर अमल हुआ या नहीं, यह जानने में भी लग जाता है। बीच में सूरज की आड़ आ गई, फिर तो कई दिन के लिए मंगल की सतह पर मौजूद यान का संपर्क पृथ्वी से बिल्कुल ही टूट जाता है।

कुछ बातें मंगल पर मानवयुक्त यान भेजने से जुड़ी मुश्किलों पर भी कर लेनी चाहिए, जिसपर इधर काफी चर्चा होने लगी है। पहली यह कि कोई यान वहां भेजने की खिड़की 26 महीने बाद ही खुलती है। विज्ञान चाहे जितनी भी तरक्की कर ले, इसमें कोई बदलाव नहीं आने वाला। वजह वही। दोनों ग्रहों के बीच की बदलती दूरियां। आप चाहें तो दस-पंद्रह दिन के अंदर कई सारे यान मंगल की तरफ रवाना कर दें, लेकिन अगला काफिला 26 महीने बाद ही जाएगा। और पहुंचने में लगने वाला टाइम? 115 से 180 दिन। अमेरिकी उद्यमी एलन मस्क का कहना है कि भविष्य में किसी एडवांस टेक्नॉलजी के जरिए इसे घटाकर एक महीने तक लाया जा सकता है। तब तक चार-पांच महीने की एकतरफा अंतरिक्ष यात्रा इंसानों को रेडिएशन से भी मार सकती है। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में इसकी तैयारी एक हद तक ही की जा सकती है, क्योंकि धरती का चुंबकीय क्षेत्र ढाल बनकर सौर तूफानों से इसको बचाए रखता है।

बहरहाल, करोड़ों रुपये का टिकट खरीदकर अगर आप मंगल पर पहुंच गए तो वहां अपना वजन आपको  एक तिहाई से भी कम महसूस होगा। यहां 75 किलो के वयस्क हैं तो वहां 25 किलो के बच्चे की तरह कुलांचें भरते फिरेंगे। सांस लेने के लिए ऑक्सीजन और पीने के लिए पानी का इंतजाम कुछ हद तक वहां हो जाएगा, लेकिन ‘मार्शियन’ फिल्म की तरह खाने भर को आलू-पालक उगा लेने का सपना छोड़ ही दें। जड़ वाले पौधों के लिए बाकी हर चीज से ज्यादा जरूरी है नाइट्रोजन, जो धरती के 78 प्रतिशत के बरक्स मंगल के वातावरण में सिर्फ दो प्रतिशत है। वहां का दिन, यानी एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय के बीच का समय हमारे यहां से करीब चालीस मिनट ज्यादा है, हालांकि साल हमारे साल का लगभग दोगुना, ज्यादा ठोस ढंग से कहें तो 1.88 गुना बड़ा है। मंगल-मध्य रेखा पर स्थायी मौसम पृथ्वी के ध्रुवीय इलाकों से भी ठंडा है, लेकिन खूब गर्मी पड़ती है तो लद्दाख के जाड़ों जैसा हो जाता है। बीच-बीच में रेतीले अंधड़ इतने भयंकर आते हैं कि इनसे बचने के लिए बहुत मजबूत आवास बनाने होंगे। 

एलन मस्क ने ठीक कहा है कि शुरुआती मंगलयात्रियों को सबसे पहले इस सवाल का जवाब देना होगा कि ‘क्या आप मरने के लिए तैयार हैं? करीब दो साल तक जिंदा रहने के लिए खाना, इमर्जेंसी के लिए पानी और ऑक्सीजन, साथ में ठहरने के लिए मजबूत डेरे लेकर जब आप दोपहर में तांबई और सुबह-शाम धुर काले आसमान वाले इस निचंट रेगिस्तानी ग्रह पर पहुंचेंगे तो वहां सिर्फ आपकी जिज्ञासा और जिजीविषा ही आपको जीवित रखेगी। धरती से किसी मदद की उम्मीद न रखें, क्योंकि यहां से कुछ टूटे-फूटे संदेशों के सिवा आपको कुछ नहीं मिलने वाला। बाकी खर्चे छोड़ दें, तो सिर्फ किराये का हिसाब एलन मस्क ने दो लाख डॉलर बताया है, हालांकि संयुक्त अरब अमीरात के उत्साही उद्यमियों ने सन 2117 तक इसके 20 हजार डॉलर हो जाने की उम्मीद बंधाई है। चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए मंगल यात्रा का प्रस्ताव पहली नजर में बचकाना ही लगेगा, लेकिन महामारी, धार्मिक उपद्रव और एटमी विनाश की आशंकाओं से घिरी दुनिया में अगर यह वैकल्पिक जीवन की एक उम्मीद जगा सके तो इससे बड़ी बात भला और क्या होगी?

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