सुशोभित
शायद ही कोई होगा, जो यह दावा कर सकता होगा कि आइज़ैक न्यूटन उसका दोस्त था। लेकिन चंद ज़रूर ऐसे थे, जो भरोसे से कह सकते थे कि वो आइज़ैक न्यूटन के दोस्त थे। एडमण्ड हैली उन विरलों में शुमार था।
न्यूटन और एडमण्ड हैली के रिश्ते की कहानी बड़ी दिलचस्प है। इस कहानी से न्यूटन- और प्रकारान्तर से आधुनिक भौतिकी- की नियति गहरे तक जुड़ी हुई है।
एडमण्ड हैली हर लिहाज़ से ज्ञानोदय के युग की उपज था। उस युग के नौजवान नेचरल-साइंस के सवालों में उलझे रहते थे। उन्हें आकाश में टंगे ग्रह और पिंड आकृष्ट करते थे। प्रत्यक्ष-सृष्टि के रहस्य अभी पूरी तरह से जाने नहीं जा सके थे, किंतु उन्हें जानने की ललक जीवन की एक बड़ी प्रेरणा थी। यह प्रेरणा प्रबुद्धों को आपादमस्तक मथते रहती थी।
एडमण्ड हैली महज़ 22 साल की उम्र में लंदन की प्रतिष्ठित रॉयल सोसायटी में फ़ेलो बन चुका था। वह ऑक्सफ़र्ड में विख्यात खगोलविद् जॉन फ़्लैम्स्टेड के साथ काम कर चुका था और केवल 20 वर्ष की आयु में सेंट हेलेना में एक ऑब्ज़र्वेटरी स्थापित करके दक्षिणी गोलार्द्ध से दिखलाई देने वाले तारों का कैटलॉग बनाने के काम में जुट चुका था।
वर्ष 1686 : एक सवाल एडमण्ड हैली को रात-दिन परेशान किए रहता था, लेकिन उसे इसका उत्तर कहीं मिलता नहीं था। वो जानना चाहता था कि क्या प्लैनेट्स के एलिप्टिकल ओर्बिट्स और इनवर्स स्क्वेयर लॉ के बीच कोई नाता है। वो लंदन की रॉयल सोसायटी में इस पर बात कर रहा था। उस समय के चर्चित खगोलविदों रॉबर्ट हूक और क्रिस्टोफ़र वेन ने शेख़ी बघारते हुए कहा- "तुम्हें इतना भी नहीं पता, यह तो बहुत पहले ही साबित किया जा चुका है!" हैली ने कहा- "अच्छा? तो क्या मैं कैलकुलेशंस देख सकता हूँ?" इसका कोई उत्तर हूक और वेन के पास नहीं था। मैथेमैटिक्स में कोई हाइपोथिसीस तब तक हवा-हवाई ही मानी जाती है, जब तक कि उसे गणितीय-अनुशासन से सिद्ध नहीं कर दिया जाए। हूक ने कहा, मैं जल्द ही इसका साक्ष्य दूँगा, लेकिन वो वैसा नहीं कर सका। हैली समझ गया कि हूक के पास इसका उत्तर नहीं है।
किसी ने हैली से कहा- "कैम्ब्रिज में एक पागल गणितज्ञ है, जो तुम्हारे इस सवाल का जवाब दे सकता है। उसका नाम है आइज़ैक न्यूटन! अलबत्ता हो सकता है वो तुम्हारे ख़त का जवाब ना दे, तुम्हें वहाँ जाकर उससे मिलना होगा।"
हैली फ़ौरन घोड़ागाड़ी पर सवार हुआ और लंदन से कैम्ब्रिज की यात्रा पर निकल पड़ा। वो बहुत सौजन्य से- जो कि सत्रहवीं सदी के इंग्लैंड की पहचान थी- न्यूटन से मिला। इधर-उधर की बातें होती रहीं। न्यूटन ने परख लिया कि यह नौजवान प्रतिभावान होने के साथ ही सच्चे मायनों में जिज्ञासु है और इसे समय दिया जा सकता है। समय मिलते ही हैली ने न्यूटन से पूछा- "एलिप्टिकल ओर्बिट्स और इनवर्स स्क्वेयर लॉ के बारे में आप क्या सोचते हैं।" न्यूटन ने जवाब दिया- "सोचना क्या है, मैं इसे साबित कर चुका हूँ।" हैली ने कहा- "कैसे?" न्यूटन ने कहा- "कैसे का मतलब क्या? मेरे पास तमाम कैलकुलेशंस हैं!"
हैली को हर्ष के मारे रोमांच हो आया। कांपती हुई आवाज़ से उसने कहा- "क्या मैं वो कैलकुलेशंस देख सकता हूँ?" न्यूटन ने कहा- "क्यों नहीं, अभी लो!"
इस कहानी के दो संस्करण मिलते हैं। पहला संस्करण यह है कि हैली के कहने पर न्यूटन कई घंटों तक अपने पेपर्स खंगालता रहा, लेकिन उसे वो कैलकुलेशंस नहीं मिले। कारण, न्यूटन की यह प्रवृत्ति थी कि बड़ी से बड़ी खोज करने के बाद भी उसे कहीं रखकर भूल जाए। न्यूटन कहता था कि प्लेटो और एरिस्टोटल मेरे दोस्त हैं, लेकिन सबसे बड़ा दोस्त है- सत्य! वो इसी सत्य की तलाश में रात-दिन डूबा रहता था- किसी और के लिए नहीं बल्कि ख़ुद के लिए। वो कई महीनों की मेहनत के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुँचता था, कैलकुलेशंस तैयार करता था और फिर उसे छोड़कर किसी और काम में लग जाता था। इसी के चलते कालान्तर में लाइबनीज़ से उसका मतभेद हुआ। लाइबनीज़ ने दावा किया था कि कैलकुलस की खोज उसने की है, जबकि न्यूटन 1666 में ही कैलकुलस को आविष्कृत कर चुका था। फ़र्क़ इतना ही है कि उसने इसके बारे में किसी को भी बतलाया नहीं था। यह 1666 का वही जादुई साल था, जब वूल्सथोर्प में वह सेब धरती पर गिरा था, जिसने लॉ ऑफ़ यूनिवर्सल ग्रैविटेशन की बुनियाद रखी थी, जबकि न्यूटन पहले ही अपने लॉ ऑफ़ ऑप्टिक्स को अंतिम रूप दे चुका था। तब वह कुलजमा 24 साल का ही था।
जब एडमण्ड हैली न्यूटन से मिलने पहुँचा, तब न्यूटन स्वयं को खगोल-भौतिकी और गणित से दूर कर चुका था और अल्केमी (कीमियागिरी) के अनुसंधान में डूबा हुआ था। हैली की प्रखर-जिज्ञासा ने उसे आंदोलित कर दिया। उसमें प्रेरणा जाग उठी। उस पहली न्यूटन-हैली भेंट की कहानी का दूसरा संस्करण यह है कि अपने बेतरतीब पेपर्स के बीच न्यूटन को वो काग़ज़ात मिल गए थे जिनमें हैली की दिलचस्पी थी, लेकिन न्यूटन ने पाया कि अभी इनमें थोड़ा काम बाक़ी है। उसने हैली से कहा, तुम कुछ दिन रुको, मैं तुम्हें वो पेपर्स भेजता हूँ। यह अगस्त 1686 की बात है। हैली लंदन लौट गया। नवम्बर में उसे न्यूटन की तरफ़ से एक रिसर्च-पेपर मिला। यह पेपर लातीन भाषा में लिखा गया था और इसका शीर्षक था- 'दे मोत्यू कोर्पोरम इन जाइरम' (ऑन द मोशंस ऑफ़ ऑब्जेक्ट्स इन एन ओर्बिट)। हैली ने उसे पढ़ा, और अपनी आँखों पर वह एकबारगी यक़ीन नहीं कर पाया!
न्यूटन ने प्लैनेट्स के एलिप्टिकल ओर्बिट्स और इनवर्स स्क्वेयर लॉ के सम्बंधों के एक-एक कोण को मापकर, बाक़ायदा उनके गणितीय-समीकरणों के साथ, उनकी व्याख्याओं को काग़ज़ पर उतार दिया था! यह कोई ग्यारह पन्नों का पेपर था। हैली ने इसे प्रकाशित कराया। न्यूटन की धाक जम गई। हूक और वेन अपना-सा मुँह लेकर रह गए।
लेकिन बात यहीं पर समाप्त नहीं हुई। न्यूटन के भीतर अब समूचे ज्ञात-ब्रह्मांड के गतिशीलता के नियमों को जानने की भूख जाग गई। हैली के उस्ताद फ़्लैमस्टेड को एक चिट्ठी लिखकर न्यूटन ने कहा- "अब जब मैं इसमें मसरूफ़ हो गया हूँ तो इसकी तह में जाकर ही दम लूँगा!" न्यूटन ने वैसा ही किया। उसने ढाई सालों के लिए ख़ुद को अपने घर में क़ैद कर लिया। इस अवधि में वो केवल दो बार बाहर निकला, दोनों ही बार लिंकनशायर की ज़रूरी यात्राओं के लिए, जहाँ उसका पैतृक निवास था। वो ख़ुद में खोया रहता और अकसर खाना भी भूल जाता। वो कमरे में चहलक़दमी कर रहा होता और अचानक उसे कुछ सूझता। वह मेज़ पर जाता और खड़ा-खड़ा ही लिखने लगता, उसको लगता कि अगर उसने कुर्सी पर बैठने की ज़हमत उठाई तो इतने भर से उसके कैलकुलेशंस उससे गुम जाएंगे। जब उसे याद दिलाया जाता कि उसने शाम का खाना नहीं खाया है तो वह चौंककर कहता- क्या सच? जब उसके सामने भोजन प्रस्तुत किया जाता तो वह खड़ा-खड़ा ही कुछ कौर खाता और फिर काम में जुट जाता।
इस अथक तपस्या का परिणाम था वो किताब, जिसने आधुनिक भौतिकी को हमेशा के लिए बदलकर रख दिया। इस किताब का नाम है- 'प्रिंकिपिया मैथेमैटिका!'
एडमण्ड हैली ने न्यूटन के भीतर जो चिंगारी जगाई थी, अब वह एक दावानल बन चुकी थी। बात एलिप्टिकल ओर्बिट से बहुत आगे बढ़ चुकी थी। अपनी इस किताब में न्यूटन ने यूनिवर्सल ग्रैविटेशन और सेलेस्टियल डायनेमिक्स के तमाम सूत्रों और समीकरणों को खंगालकर लिख डाला था। इसी किताब में उसने अपने थ्री लॉज़ ऑफ़ मोशंस दुनिया के सामने रखे। आज भी गणित और खगोल-भौतिकी की दुनिया इन नियमों का अनुपालन करती है- ईश्वर के अटल वाक्यों की तरह।
जब न्यूटन ने 'प्रिंकिपिया मैथेमैटिका' की पाण्डुलिपि लिखकर पूरी की तो उसने उसे सबसे पहले किसे पढ़ने के लिए भेजा? जवाब है- एडमण्ड हैली को। हैली ने पाण्डुलिपि मिलते ही न्यूटन को चिट्ठी लिखी और कहा- "आपकी 'डिवाइन ट्रिटी' (अलौकिक ग्रंथ) मुझे मिली, एक दिन दुनिया को इस बात पर नाज़ होगा कि उनके बीच के किसी व्यक्ति ने यह किताब रची है।!" 'प्रिंकिपिया मैथेमैटिका' के पहले संस्करण की प्रूफ़ रीडिंग एडमण्ड हैली ने ही की थी, इतना ही नहीं उसने उस किताब को अपने पैसों से छपवाया भी।
क्या आपको लगता है 'प्रिंकिपिया मैथेमैटिका' ने न्यूटन को हमेशा के लिए अमर कर दिया है? शायद हाँ, लेकिन उसने एडमण्ड हैली को भी हमेशा-हमेशा के लिए अमर कर दिया है। जानते हैं कैसे?
न्यूटन के प्लैनेटरी मोशंस के सिद्धांत ग्रहों पर ही नहीं, कॉमेट्स पर भी लागू होते थे। इसी की मदद से एडमण्ड हैली ने वर्ष 1707 में पूर्वानुमान लगाया कि वर्ष 1531, 1607 और 1682 में ठीक 76 वर्षों के अंतराल पर जो धूमकेतु बार-बार दिखलाई दिया था, वह वर्ष 1758 में फिर से दिखलाई देगा। वैसा ही हुआ भी। वर्ष 1758 में- एडमण्ड हैली की मृत्यु के पूरे 16 साल बाद- आकाश में वही धूमकेतु फिर से दिखलाई दिया।
एडमण्ड को आदरांजलि देने की मंशा से उसे 'हैली'ज़ कॉमेट' कहकर पुकारा गया- हैली का पुच्छल तारा!
कुछ तो कारण होगा कि एडमण्ड हैली का धूमकेतुओं से इतना गहरा नाता था। एक धूमकेतु आकाश में था, और दूसरा धरती पर, जिसका नाम था- आइज़ैक न्यूटन!
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-05-2021को चर्चा – 4,078 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
आभार
Deleteबहुत रोचक आलेख
ReplyDeleteआभार
Deleteसुंदर जानकारी ज्ञानवर्धक पोस्ट।
ReplyDeleteआभार
Delete