Saturday 10 April 2021

फिजिक्स की जमीन पर बड़ा भूचाल

चंद्रभूषण

भौतिकी की दुनिया में किसी बहुत बड़े बदलाव की सनसनी फैली हुई है। ठीक दो हफ्ते के अंतर पर- क्रमशः 23 मार्च और 7 अप्रैल को- दुनिया की दो सबसे बड़ी प्रयोगशालाओं एलएचसी और फर्मीलैब द्वारा एक ही मूलभूत कण म्यूऑन को लेकर दो बिल्कुल अलग संदर्भों में जारी रिपोर्टों ने सृष्टि रचना की मौजूदा समझ में कुछ ढांचागत बदलावों की ओर इशारा किया है। इस सनसनी की तुलना 2012 में हिग्स बोसॉन (गॉड पार्टिकल) खोजे जाने के बाद बने माहौल से ही की जा सकती है, लेकिन दोनों में एक बुनियादी फर्क है। हिग्स बोसॉन की खोज ने जहां कण भौतिकी के स्टैंडर्ड मॉडल को संपूर्ण बनाया था, वहीं हाल-फिलहाल म्यूऑन को लेकर मचा गदर इस मॉडल में बदलाव की गुंजाइश बनाते हुए अर्से बाद बुनियादी स्तर के गतिरोध भंग का संकेत दे रहा है।

यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) की लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (एलएचसी) लैब और अमेरिका की फर्मीलैब में हुए प्रयोगों और उनके नतीजों पर बात करने से पहले हमें थोड़ी कोशिश म्यूऑन का सिर-पैर समझने की भी कर लेनी चाहिए। भारतीय न्यूक्लियर साइंटिस्ट होमी जहांगीर भाभा ने अपने कैंब्रिज के दिनों में गुब्बारों से लिए गए कॉस्मिक किरणों के डेटा पर काम करते हुए पाया था कि आकाश के किसी अज्ञात स्रोत से आने वाली इन किरणों में इलेक्ट्रॉन एक निश्चित ऊंचाई के ऊपर ही मिलते हैं। लेकिन उन्होंने अधिक भेदक क्षमता और निगेटिव चार्ज वाले कुछ कण इससे नीचे भी दर्ज किए, और कहा कि इनपर अलग से काम किया जाना चाहिए। 1932-33 का वह दौर इलेक्ट्रॉन-प्रोटॉन-न्यूट्रॉन वाला था। परमाणु से बाहर के मूलकण अभी खोजे जाने बाकी थे।

इस काम की शुरुआत कॉस्मिक किरणों के ही अमेरिकी अध्येताओं, कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी के कार्ल डी एंडरसन और सेठ एंडरमेयर ने की। 1936-37 में उन्होंने इलेक्ट्रॉन जैसे ही चार्ज वाला लेकिन उससे 207 गुना भारी एक ऐसा कण खोजा, जो मात्र 2.2 माइक्रो सेकंड (एक सेकंड का दस लाखवां हिस्सा) में विघटित हो जाता था। बाद में पता चला, म्यूऑन नाम की यह छलना एक मूलभूत कण है, किन्हीं और कणों के मेल से इसकी रचना नहीं हुई है। इसके उलट वैज्ञानिकों की गुडबुक में छाए प्रोटॉन और न्यूट्रॉन जल्द ही मूलभूत कणों की सूची से बाहर हो गए, क्योंकि ताकतवर कोलाइडर मशीनों के उदय के साथ ही उन्हें क्वार्क नाम के मूलभूत कणों की निर्मिति पाया गया।

हिरोशिमा और नागासाकी पर एटम बम गिराए जाने के बाद वाले जिस दौर में पूरी दुनिया न्यूक्लियर साइंस को इसकी महाविनाशक संभावनाओं को लेकर कोसने में जुटी थी, वह समय फंडामेंटल फिजिक्स के लिए नैतिक संकट के अलावा भयानक कन्फ्यूजन का भी था। उच्च ऊर्जा स्तर पर परमाणु नाभिकों को आपस में टकरा देने से हासिल मलबे में कोई न कोई नया कण हर रोज मिल जाता था। सवाल यह था कि अगर ये सभी मूलकण हैं तो फिर क्यों न इस शब्द की परिभाषा ही बदल दी जाए- बुनियादी स्तर पर ढेरों कणों का घालमेल है, मूल जैसा कहीं कुछ है ही नहीं। फिर असाधारण मेधा वाले कई भौतिकशास्त्रियों ने 1970 के दशक के मध्य में चीजों को सुलझाया और स्टैंडर्ड मॉडल जैसा एक खाका सामने आया, जिससे सूक्ष्म स्तर पर सारी चीजों की व्याख्या हो जाती है। इन ‘सारी चीजों’ का मामला समझने के लिए हमें कुछ बातें प्राकृतिक बलों के बारे में कर लेनी चाहिए।

सबसे पहले न्यूटन के जरिये हमें गुरुत्व बल के बारे में जानकारी मिली, जो मात्रा की दृष्टि से बहुत मामूली है। दो चीजें एक-दूसरे को खींचती हैं लेकिन दो पहाड़ भी अगल-बगल रख दिए जाएं तो उनका आपसी खिंचाव नापने में बड़े-बड़ों की छुट्टी हो जाएगी। इसके कोई दो सौ साल बाद विद्युत-चुंबकीय बल खोजा गया, जो चीजों के आवेश (चार्ज) पर निर्भर करता है। फिर परमाणुओं के नाभिक के भीतर सक्रिय रहने वाले दो सूक्ष्म स्तरीय लेकिन भयानक शक्तिशाली बल पिछली सदी में लगभग एक साथ खोजे गए, जिनमें एक का नाम कमजोर नाभिकीय बल और दूसरे का मजबूत नाभिकीय बल है। इनमें गुरुत्व को छोड़कर बाकी तीनों बलों और उनके रिश्तों की समझदारी स्टैंडर्ड मॉडल में मौजूद है। 

यह मॉडल कुल सत्रह मूल कणों पर आधारित है। छह क्वार्क (टॉप, बॉटम, अप, डाउन, चार्म और स्ट्रेंज ), छह लेप्टॉन (इलेक्ट्रॉन, म्यूऑन, टाऊ और इन तीनों से संबंधित न्यूट्रिनो), चार बलवाहक बोसॉन (ग्लूऑन, फोटॉन, जेड बोसॉन और डब्लू बोसॉन) और इन तीनों वर्गों से अलग एक अनोखा कण हिग्स बोसॉन, जिसके संसर्ग में आ सकने वाले कणों में द्रव्यमान होता है, बाकियों में नहीं होता। इस मॉडल की कई समस्याएं हो सकती हैं, जिनमें सबसे बड़ी यही है कि इसमें गुरुत्व के लिए कोई जगह नहीं है। लेकिन सूक्ष्म स्तर के जितने भी प्रेक्षण हैं, चाहे वे ब्रह्मांड के आखिरी छोर पर भी क्यों न लिए गए हों, उन सबकी व्याख्या इससे हो जाती है। 

यह बात पिछले कुछ सालों से भौतिकशास्त्रियों में झल्लाहट पैदा करने लगी है, क्योंकि थिअरी के विकास में यह मॉडल एक बड़ी बाधा बन गया है। म्यूऑन से संबंधित हाल के दोनों प्रयोग स्टैंडर्ड मॉडल (एसएम) से निकली इसकी कुछ विशेषताओं पर मजबूती से सवाल खड़े कर रहे हैं। ध्यान रहे, ये सवाल पिछले एक पखवाड़े में नहीं खड़े हुए हैं। पिछले बीस वर्षों में म्यूऑन को लेकर दो पहलुओं से विवादित निष्कर्ष आते रहे हैं। 23 मार्च को एलएचसी द्वारा और 7 अप्रैल को फर्मीलैब द्वारा जारी प्रयोगों की श्रृंखला में घोषित निष्कर्ष पिछले नतीजों की पुष्टि करते हैं। इससे वैकल्पिक सिद्धांतों की आवक तेज हो जाएगी लेकिन अगले दो-तीन वर्षों में नतीजों पर और ज्यादा पुख्तगी हासिल किए बगैर एसएम  में किसी हेरफेर पर विचार नहीं किया जाएगा। 

एलएचसी का प्रयोग बॉटम क्वार्क के विघटन पर आधारित है। एसएम के मुताबिक इसमें इलेक्ट्रॉन और म्यूऑन बराबर-बराबर मिलने चाहिए, लेकिन प्रयोग में म्यूऑन 15 फीसदी कम पाए जा रहे हैं। फर्मीलैब का प्रयोग म्यूऑन्स के चुंबकीय गुण को लेकर है, जिसमें एसएम के आकलन से अलग नतीजे दर्ज किए जा रहे हैं। ये प्रयोग इतने महीन हैं और इन्हें करने वाले वैज्ञानिक अपने काम को लेकर इतने इत्मीनान में हैं कि इनके नतीजे अपने साथ भारी उथल-पुथल ही लेकर आ सकते हैं। इसे नई भौतिकी की पदचाप यूं ही नहीं माना जा रहा है। इस शास्त्र की दुनिया सूक्ष्म और विराट, दोनों स्तरों पर पिछली सदी में बीस के दशक में ही बदलनी शुरू हुई थी। क्या पता, इस बार भी इतिहास खुद को दोहरा रहा हो।


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