चंद्रभूषण
टाइटन और रिया के बाद शनि के तीसरे सबसे बड़े उपग्रह इयापीटस को सौरमंडल का सबसे रहस्यमय, सबसे आश्चर्यजनक पिंड माना जाता रहा है। करीब साढ़े तीन सौ साल पहले शनि और उसके इर्दगिर्द के माहौल का बारीकी से अध्ययन करने वाले फ्रांसीसी खगोलविद जिओवानी कैसिनी ने पाया कि इयापीटस पर चाहे कितनी भी बारीकी से टेलिस्कोप की नजर गड़ाए रखी जाए, पर वह अपने आधे रास्ते भर ही दिखाई पड़ता है। बाकी वक्त वह देखते-देखते ऐसे गायब हो जाता है, जैसे गधे के सिर से सींग।
फिर अंतत: जिओवानी कैसिनी ने ही इसकी वजह खोजी कि यह पिंड आधा बर्फ की तरह सफेद और आधा कोलतार की तरह काला है । ध्यान रहे, एक ही पिंड में रंग का इतना बड़ा फर्क खगोलशास्त्र के लिए आज भी एक अनोखी बात है। बाद में टेलिस्कोप और ताकतवर हुए तो पता चला कि इयापीटस की शक्ल कुछ ऐसी है जैसे दो गोलार्धों को जोर से चिपका कर गोले की शक्ल दी गई हो और इस कोशिश में यह गोला बीच से उभर आया हो। कुछ ऐसे, जैसे फैक्टरी में बनी हुई प्लास्टिक की गेंद।
इसके भी कुछ समय बाद दर्ज किया गया कि इसकी भूमध्यरेखा के तीन चौथाई हिस्से पर बीस किलोमीटर ऊंची एक दीवार फैली है, जो तली में दो सौ किलोमीटर चौड़ी है। इससे ज्यादा आश्चर्यजनक बात तो किसी अंतरिक्षीय पिंड के बारे में सोचना भी मुश्किल है। इस तरह की विकृतियां किसी छोटी-मोटी चट्टान नुमा उल्का के साथ होतीं तो बात समझ में आती, लेकिन इयापीटस हमारे चंद्रमा के लगभग आधे आकार वाला एक ठीकठाक बड़ा उपग्रह है, लिहाजा इनकी व्याख्या को लेकर आज भी काम चल ही रहा है।
यहां ब्यौरे में जाएं तो इयापीटस शनि का चक्कर लगभग 35 लाख किलोमीटर (पृथ्वी और चंद्रमा के फासले का कोई नौ गुना) दूरी से लगाता है और अपने ग्रह का एक चक्कर लगाने में इसे लगभग ढाई महीने लगते हैं। लेकिन इसकी कक्षा शनि के बाकी उपग्रहों और छल्लों की तुलना में काफी तिरछी है, जो कि इससे जुड़ी एक और पहेली है। बहरहाल, इयापीटस की खोज से लेकर अब तक यूरोप-अमेरिका में इसे लेकर काफी किस्से गढ़े जा चुके हैं।
इन किस्सों में एक यह भी है कि यह सौरमंडल के बाहर से आई हुई कोई चीज है और इस पर पृथ्वीवासियों के लिए चीनी प्रकृति दर्शन में निर्माण और विनाश के इस्तेमाल होने वाले यिन/यांग जैसे भयानक संदेश दर्ज हैं। अभी कैसिनी यान के पर्यवेक्षणों के जरिये इयापीटस से जुड़े कुछ रहस्यों पर से पर्दा हटा है, हालांकि इस क्रम में एक ऐसी प्रस्थापना भी सामने आई है, जिसने खगोलशास्त्रियों को हैरान कर रखा है।
इसका एक हिस्सा काला दिखने की वजह शनि का एक और- लगभग अदृश्य सा उपग्रह फीब है, जो लगभग काला है और जो अपने मूलपिंड की उलटी दिशा में घूमने वाले सौरमंडल के कुछ गिने-चुने पिंडों में एक है। फीब किसी पुच्छल तारे की तरह अपने पीछे अत्यंत विरल सामग्री छोड़ता हुआ चलता है, जो इयापीटस के एक हिस्से पर गिरकर करोड़ों वर्षों से इसपर पोचारा फेरती आ रही है। इस चीज के चलते शनि का एक और छल्ला भी बन गया है, जो दिखता नहीं।
सबसे बड़ी पहेली इयापीटस के बीचोबीच खड़ी हजारों मील लंबी दीवार है, जिसकी ऊंचाई हमारे एवरेस्ट शिखर की भी ढाईगुनी है। इसके लिए प्रस्थापना यह दी गई है कि शनि से बहुत ज्यादा दूरी होने के कारण किसी समय इयापीटस का अपना एक उप-उपग्रह भी हुआ करता था, जो इसके आकर्षण के चलते धीरे-धीरे टूट-बिखर कर इस पर गिरता चला गया। अनुमान है कि कुछ समय इयापीटस के उप-उपग्रह (मूनमून) की तरह गुजार लेने के बाद इसके विघटन की प्रक्रिया शुरू हुई होगी, जो पचास करोड़ से एक अरब साल के बीच में पूरी हो गई होगी।
सौरमंडल में तो छोड़िए, अब तक प्रेक्षित ब्रह्मांड में भी मूनमून जैसी कोई चीज कहीं दर्ज नहीं की जा सकी है। अगर यह सुनिश्चित किया जा सका कि किसी मूनमून या उप-उपग्रह के अवशेष ही इयापीटस की कुछ काली-कुछ सफेद, बेहद ऊंची और चौड़ी दीवार के रूप में आज भी इयापीटस पर दर्ज हैं तो यह एस्ट्रोफिजिक्स के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी!
टाइटन और रिया के बाद शनि के तीसरे सबसे बड़े उपग्रह इयापीटस को सौरमंडल का सबसे रहस्यमय, सबसे आश्चर्यजनक पिंड माना जाता रहा है। करीब साढ़े तीन सौ साल पहले शनि और उसके इर्दगिर्द के माहौल का बारीकी से अध्ययन करने वाले फ्रांसीसी खगोलविद जिओवानी कैसिनी ने पाया कि इयापीटस पर चाहे कितनी भी बारीकी से टेलिस्कोप की नजर गड़ाए रखी जाए, पर वह अपने आधे रास्ते भर ही दिखाई पड़ता है। बाकी वक्त वह देखते-देखते ऐसे गायब हो जाता है, जैसे गधे के सिर से सींग।
फिर अंतत: जिओवानी कैसिनी ने ही इसकी वजह खोजी कि यह पिंड आधा बर्फ की तरह सफेद और आधा कोलतार की तरह काला है । ध्यान रहे, एक ही पिंड में रंग का इतना बड़ा फर्क खगोलशास्त्र के लिए आज भी एक अनोखी बात है। बाद में टेलिस्कोप और ताकतवर हुए तो पता चला कि इयापीटस की शक्ल कुछ ऐसी है जैसे दो गोलार्धों को जोर से चिपका कर गोले की शक्ल दी गई हो और इस कोशिश में यह गोला बीच से उभर आया हो। कुछ ऐसे, जैसे फैक्टरी में बनी हुई प्लास्टिक की गेंद।
इसके भी कुछ समय बाद दर्ज किया गया कि इसकी भूमध्यरेखा के तीन चौथाई हिस्से पर बीस किलोमीटर ऊंची एक दीवार फैली है, जो तली में दो सौ किलोमीटर चौड़ी है। इससे ज्यादा आश्चर्यजनक बात तो किसी अंतरिक्षीय पिंड के बारे में सोचना भी मुश्किल है। इस तरह की विकृतियां किसी छोटी-मोटी चट्टान नुमा उल्का के साथ होतीं तो बात समझ में आती, लेकिन इयापीटस हमारे चंद्रमा के लगभग आधे आकार वाला एक ठीकठाक बड़ा उपग्रह है, लिहाजा इनकी व्याख्या को लेकर आज भी काम चल ही रहा है।
यहां ब्यौरे में जाएं तो इयापीटस शनि का चक्कर लगभग 35 लाख किलोमीटर (पृथ्वी और चंद्रमा के फासले का कोई नौ गुना) दूरी से लगाता है और अपने ग्रह का एक चक्कर लगाने में इसे लगभग ढाई महीने लगते हैं। लेकिन इसकी कक्षा शनि के बाकी उपग्रहों और छल्लों की तुलना में काफी तिरछी है, जो कि इससे जुड़ी एक और पहेली है। बहरहाल, इयापीटस की खोज से लेकर अब तक यूरोप-अमेरिका में इसे लेकर काफी किस्से गढ़े जा चुके हैं।
इन किस्सों में एक यह भी है कि यह सौरमंडल के बाहर से आई हुई कोई चीज है और इस पर पृथ्वीवासियों के लिए चीनी प्रकृति दर्शन में निर्माण और विनाश के इस्तेमाल होने वाले यिन/यांग जैसे भयानक संदेश दर्ज हैं। अभी कैसिनी यान के पर्यवेक्षणों के जरिये इयापीटस से जुड़े कुछ रहस्यों पर से पर्दा हटा है, हालांकि इस क्रम में एक ऐसी प्रस्थापना भी सामने आई है, जिसने खगोलशास्त्रियों को हैरान कर रखा है।
इसका एक हिस्सा काला दिखने की वजह शनि का एक और- लगभग अदृश्य सा उपग्रह फीब है, जो लगभग काला है और जो अपने मूलपिंड की उलटी दिशा में घूमने वाले सौरमंडल के कुछ गिने-चुने पिंडों में एक है। फीब किसी पुच्छल तारे की तरह अपने पीछे अत्यंत विरल सामग्री छोड़ता हुआ चलता है, जो इयापीटस के एक हिस्से पर गिरकर करोड़ों वर्षों से इसपर पोचारा फेरती आ रही है। इस चीज के चलते शनि का एक और छल्ला भी बन गया है, जो दिखता नहीं।
सबसे बड़ी पहेली इयापीटस के बीचोबीच खड़ी हजारों मील लंबी दीवार है, जिसकी ऊंचाई हमारे एवरेस्ट शिखर की भी ढाईगुनी है। इसके लिए प्रस्थापना यह दी गई है कि शनि से बहुत ज्यादा दूरी होने के कारण किसी समय इयापीटस का अपना एक उप-उपग्रह भी हुआ करता था, जो इसके आकर्षण के चलते धीरे-धीरे टूट-बिखर कर इस पर गिरता चला गया। अनुमान है कि कुछ समय इयापीटस के उप-उपग्रह (मूनमून) की तरह गुजार लेने के बाद इसके विघटन की प्रक्रिया शुरू हुई होगी, जो पचास करोड़ से एक अरब साल के बीच में पूरी हो गई होगी।
सौरमंडल में तो छोड़िए, अब तक प्रेक्षित ब्रह्मांड में भी मूनमून जैसी कोई चीज कहीं दर्ज नहीं की जा सकी है। अगर यह सुनिश्चित किया जा सका कि किसी मूनमून या उप-उपग्रह के अवशेष ही इयापीटस की कुछ काली-कुछ सफेद, बेहद ऊंची और चौड़ी दीवार के रूप में आज भी इयापीटस पर दर्ज हैं तो यह एस्ट्रोफिजिक्स के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी!
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