Saturday 28 September 2019

चंद्रमा की गंध !!

क्या आपको चंद्रमा की गंध का कुछ अंदाजा है?
चंद्रभूषण
आपसे अगर कोई धरती की गंध के बारे में पूछे तो शायद कुछ भी ठोस बताते न बने। यहां हर चीज की ही नहीं, हर जगह की भी अपनी एक अलग खास गंध है। बाकी चीजों को छोड़कर बात अगर सिर्फ हवा की गंध की करनी हो तो भी काम बहुत आसान नहीं होगा। आप गन्ध को लेकर सचेत हों तो जानते होंगे कि देश-दुनिया के हर इलाके की गंध हर मौसम में, यहां तक कि एक ही दिन के अलग-अलग वक्तों में भी बदलती रहती है। लेकिन हमारे पड़ोसी पिंड चंद्रमा को कम से कम गंध के मामले में तो इतना वैविध्य बिल्कुल ही हासिल नहीं है।

चंद्रमा के पास अपना एक बहुत बड़ा इलाका है- क्षेत्रफल के लिहाज से लगभग अपने एशिया महाद्वीप जितना बड़ा। चंद्रमा का क्षेत्रफल 3 करोड़ 79 लाख 30 हजार वर्ग किलोमीटर है जबकि तुर्की से लेकर जापान तक और साइबेरिया से लेकर इंडोनेशिया के ठेठ दक्षिणी छोर तक एशिया का इससे थोड़ा ही ज्यादा- 4 करोड़ 38 लाख 10 हजार वर्ग किलोमीटर। उतार-चढ़ाव (टोपोग्राफी) की विविधता चंद्रमा पर जबर्दस्त है- धरती से ज्यादा ऊंचे पहाड़ और यहां से ज्यादा गहरे गड्ढे। गर्मी-सर्दी की ऊंचाई और नीचाई में भी पृथ्वी चांद के मुकाबले में कहीं नहीं ठहरती । लेकिन मोटे आकलन के मुताबिक गंध के मामले में चंद्रमा हर जगह लगभग एक सा ही है।

लेकिन जरा ठहरिए। इसमें एक छोटी सी समस्या भी है। गंध का अंदाजा सांस खींचकर ही लगाया जा सकता है लेकिन चंद्रमा पर तो सांस लेने के लिए हवा ही नहीं है। वहां अभी तक पहुंचे कुल 19 इन्सानों (सब के सब अमेरिकी श्वेत पुरुष) में से एकमात्र वैज्ञानिक (भूगर्भशास्त्री) हैरिसन श्मिट (अपोलो-17) ने प्रत्यक्ष प्रेक्षण के जरिए दर्ज किए जा सकने वाले जो सामान्य वैज्ञानिक तथ्य चंद्रमा के बारे में इकट्ठा किए थे, उनमें से फोटो और दस्तावेजों के रूप में मौजूद लगभग हरेक की मूल प्रतियां नासा की एक लाइब्रेरियन को कबाड़ में फेंकी हुई मिलीं (संदर्भ, न्यू साइंटिस्ट, 26 जून 1993)। अमेरिका के सबसे चर्चित, सबसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्थान की नजर में दुर्लभ वैज्ञानिक प्रेक्षणों की अहमियत इतनी ही है!

बहरहाल, श्मिट के प्रेक्षणों में चंद्रमा की गंध भी शामिल थी, जो उनके मुताबिक जंग लगे लोहे को करीब से सूंघने पर आने वाली गंध जैसी है। चंद्रमा में किसी किस्म की ज्वालामुखीय हलचल अभी बची है या नहीं, यह बहस अभी खत्म नही हुई है। जब-तब सतह पर नजर आ जाने वाली चमक अगर ऐसी ही हलचलों की निशानी हुई तो शायद कहीं-कहीं गंधक की महक वाली गैसों की गंध भी सूंघने को मिल जाए। लेकिन गंध के बारे में पक्की सूचना आज भी उतनी ही है जो अब से 47 साल पहले अपोलो-17 की सवारी करके लौटे हैरिसन श्मिट ने दी थी। जंग की बहुत हल्की गंध से गंधाता हुआ चांद।

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