सौरमंडल से बाहर पहला ग्रह, जहां बारिश होती है
चंद्रभूषण
धरती से बाहर जीवन की संभावनाओं की तलाश एक नए मुकाम पर पहुंच गई है। सन 2015 में केपलर टेलिस्कोप द्वारा 111 प्रकाशवर्ष दूर खोजे गए ग्रह के2-18बी पर खगोलशास्त्रियों की दो टीमों ने बरसाती बादलों की शिनाख्त की है। इसी हफ्ते घोषित की गई यह खोज इतनी दुर्लभ, इतनी असाधारण है कि इस क्षेत्र में काम करने वाले दुनिया भर के वैज्ञानिक इस पर लहालोट हुए जा रहे हैं। हालांकि साथ में उन्होंने इस ग्रह को पृथ्वी जैसा मान लिए जाने के अतिरेक को लेकर आगाह भी किया है। उनकी खोज की कठिनाई का अंदाजा लगाने के लिए इस रूपक पर विचार किया जा सकता है कि अंधेरी रात में किसी ऊंची इमारत से दसियों किलोमीटर दूर लगे एक तेज बल्ब पर मंडराता हुआ कीड़ा देखकर आप बता दें कि उसकी प्रजाति कौन सी है, और वह नर है या मादा।
सौरमंडल से बाहर ग्रहों की तलाश में हमारे सामने अभी कुछ बड़ी तकनीकी बाधाएं मौजूद हैं। एक विधि में यह काम ग्रह के खिंचाव से तारे की डगमगाहट नापने के जरिये किया जाता है, दूसरी में ग्रह की आड़ पड़ने से तारे की रोशनी में आने वाली कमी पकड़ने के जरिये। इन दोनों कामों के लिए अलग-अलग टेलिस्कोप आजमाए जाते रहे हैं और एक तरीके से मिले सुराग की पुष्टि दूसरे तरीके की आजमाइश के जरिये की जाती रही है। लेकिन दोनों विधियों की सीमा हाल तक यह रही है कि ये बड़े ग्रहों को ही पकड़ पाती हैं। वह भी, या तो तारे से बहुत दूर नेपच्यून जितने या उससे भी ज्यादा ठंडे, या फिर तारे के बहुत पास भट्ठी की तरह दहकते हुए, जिससे तुलना करने लायक का कोई ग्रह हमारे सौरमंडल में नहीं है।
केपलर टेलिस्कोप ने इन सीमाओं से काफी हद तक मुक्ति दिलाई है। इसकी मेहरबानी से खोजे गए एक्सोप्लैनेट्स (सूर्य के अलावा अन्य तारों के ग्रहों) की संख्या देखते-देखते सैकड़ों से बढ़कर हजारों में (अभी चार हजार से ज्यादा) पहुंच गई है। इससे ग्रह विज्ञान (प्लैनेटरी साइंस) बड़ी तेजी से एक स्वतंत्र विज्ञान का रूप लेता जा रहा है। लेकिन अगर इस समूची खोज यात्रा को सिर्फ एक सवाल के इर्दगिर्द समेट कर देखा जाए कि क्या हम ब्रह्मांड में अकेले हैं, या पृथ्वी से बाहर कहीं और भी बुद्धिमान प्राणी मौजूद हैं या नहीं, या फिर यह कि क्या सचमुच आकाश में कोई ऐसी जगह है जहां से रहस्यमय एलिएन उड़नतश्तरी पर सवार होकर आते हैं, तो इस नए विज्ञान के पास हमारी जिज्ञासा शांत करने वाला कोई जवाब फिलहाल मौजूद नहीं है।
के2-18बी पर वापस लौटें तो केपलर टेलिस्कोप द्वारा की गई शिनाख्त के बाद दो अलग-अलग टीमों द्वारा हबल टेलिस्कोप से लिए गए के2-18 तारे के स्पेक्ट्रम के अध्ययन से पता चला कि इस ग्रह के वातावरण में हाइड्रोजन, हीलियम और पानी की भाप मौजूद है। भाप की उपस्थिति गर्म ग्रहों पर इसके पहले भी दर्ज की जा चुकी है, लेकिन के2-18बी पर मिली भाप का स्वरूप भिन्न है। यह वहां पानी के पांच अणुओं के गुच्छे के रूप में मौजूद है, जैसी धरती पर बादलों की शक्ल में हुआ करती है। 111 प्रकाशवर्ष की विराट दूरी पर इतने संश्लिष्ट रूप में पानी का दर्ज किया जाना खुद में एक चमत्कार है। बड़ी बात यह कि के2-18बी अपने तारे के2-18 के हैबिटेबल जोन में है, हालांकि बादलों के प्रेक्षण भर से इसकी सतह पर जीवनदायिनी बरसात होने का अनुमान लगाना तथ्यों से आगे बढ़कर कहानियों में जाने जैसा होगा।
ऐसा कहने की सबसे बड़ी वजह यह है कि अभी तो हम यही नहीं जानते कि उक्त ग्रह की कोई ठोस सतह है भी या नहीं। तारा के2-18 वजन में सूरज का 40 फीसदी है और इसका तापमान सूरज का लगभग आधा है। ज्यादा सटीक तौर पर कहें तो सूरज के 5778 डिग्री केल्विन के बरक्स 3503 डिग्री केल्विन। लेकिन सबसे खास बात यह कि के2-18 की धात्विकता (तारे में धातुओं की मौजूदगी) सूरज के दसवें हिस्से से भी कम है। यह बात खिंचती हुई के2-18बी तक चली आती है- इस मायने में की इसका घनत्व पृथ्वी की तुलना में काफी कम है।
पृथ्वी की 2.71 गुनी त्रिज्या को देखते हुए समान घनत्व पर इस ग्रह का वजन पृथ्वी का 20 गुना होना चाहिए था, लेकिन यह धरती के नौ गुने से भी जरा कम नापा गया है। तारे में धातुएं कम होने से ग्रह में भी धातुओं का कम होना स्वाभाविक है, लेकिन घनत्व कम होने की एक वजह यह भी हो सकती है कि ग्रह का कोर और बाकी ठोस हिस्सा छोटा हो और उसकी बनावट में पानी का हिस्सा काफी बड़ा हो। ऐसे में यह संभव है कि ग्रह की सतह पृथ्वी की तरह चट्टानी न हो। बहरहाल, इससे जुड़ी कई उत्सुकताओं का समाधान 2021 में छोड़े जाने वाले जस्टिन वेब टेलिस्कोप के प्रेक्षणों से हो जाएगा। और अगर वहां इवॉल्यूशन की संभावना मौजूद हुई तो इसके लिए समय कोई समस्या नहीं है। के2-18 जैसे लाल बौने तारों की उम्र सूरज की तुलना में बहुत ज्यादा होती है। इतनी कि कुछ वैज्ञानिक इन्हें अमर तारे कहने में भी संकोच नहीं करते।
चंद्रभूषण
धरती से बाहर जीवन की संभावनाओं की तलाश एक नए मुकाम पर पहुंच गई है। सन 2015 में केपलर टेलिस्कोप द्वारा 111 प्रकाशवर्ष दूर खोजे गए ग्रह के2-18बी पर खगोलशास्त्रियों की दो टीमों ने बरसाती बादलों की शिनाख्त की है। इसी हफ्ते घोषित की गई यह खोज इतनी दुर्लभ, इतनी असाधारण है कि इस क्षेत्र में काम करने वाले दुनिया भर के वैज्ञानिक इस पर लहालोट हुए जा रहे हैं। हालांकि साथ में उन्होंने इस ग्रह को पृथ्वी जैसा मान लिए जाने के अतिरेक को लेकर आगाह भी किया है। उनकी खोज की कठिनाई का अंदाजा लगाने के लिए इस रूपक पर विचार किया जा सकता है कि अंधेरी रात में किसी ऊंची इमारत से दसियों किलोमीटर दूर लगे एक तेज बल्ब पर मंडराता हुआ कीड़ा देखकर आप बता दें कि उसकी प्रजाति कौन सी है, और वह नर है या मादा।
सौरमंडल से बाहर ग्रहों की तलाश में हमारे सामने अभी कुछ बड़ी तकनीकी बाधाएं मौजूद हैं। एक विधि में यह काम ग्रह के खिंचाव से तारे की डगमगाहट नापने के जरिये किया जाता है, दूसरी में ग्रह की आड़ पड़ने से तारे की रोशनी में आने वाली कमी पकड़ने के जरिये। इन दोनों कामों के लिए अलग-अलग टेलिस्कोप आजमाए जाते रहे हैं और एक तरीके से मिले सुराग की पुष्टि दूसरे तरीके की आजमाइश के जरिये की जाती रही है। लेकिन दोनों विधियों की सीमा हाल तक यह रही है कि ये बड़े ग्रहों को ही पकड़ पाती हैं। वह भी, या तो तारे से बहुत दूर नेपच्यून जितने या उससे भी ज्यादा ठंडे, या फिर तारे के बहुत पास भट्ठी की तरह दहकते हुए, जिससे तुलना करने लायक का कोई ग्रह हमारे सौरमंडल में नहीं है।
केपलर टेलिस्कोप ने इन सीमाओं से काफी हद तक मुक्ति दिलाई है। इसकी मेहरबानी से खोजे गए एक्सोप्लैनेट्स (सूर्य के अलावा अन्य तारों के ग्रहों) की संख्या देखते-देखते सैकड़ों से बढ़कर हजारों में (अभी चार हजार से ज्यादा) पहुंच गई है। इससे ग्रह विज्ञान (प्लैनेटरी साइंस) बड़ी तेजी से एक स्वतंत्र विज्ञान का रूप लेता जा रहा है। लेकिन अगर इस समूची खोज यात्रा को सिर्फ एक सवाल के इर्दगिर्द समेट कर देखा जाए कि क्या हम ब्रह्मांड में अकेले हैं, या पृथ्वी से बाहर कहीं और भी बुद्धिमान प्राणी मौजूद हैं या नहीं, या फिर यह कि क्या सचमुच आकाश में कोई ऐसी जगह है जहां से रहस्यमय एलिएन उड़नतश्तरी पर सवार होकर आते हैं, तो इस नए विज्ञान के पास हमारी जिज्ञासा शांत करने वाला कोई जवाब फिलहाल मौजूद नहीं है।
के2-18बी पर वापस लौटें तो केपलर टेलिस्कोप द्वारा की गई शिनाख्त के बाद दो अलग-अलग टीमों द्वारा हबल टेलिस्कोप से लिए गए के2-18 तारे के स्पेक्ट्रम के अध्ययन से पता चला कि इस ग्रह के वातावरण में हाइड्रोजन, हीलियम और पानी की भाप मौजूद है। भाप की उपस्थिति गर्म ग्रहों पर इसके पहले भी दर्ज की जा चुकी है, लेकिन के2-18बी पर मिली भाप का स्वरूप भिन्न है। यह वहां पानी के पांच अणुओं के गुच्छे के रूप में मौजूद है, जैसी धरती पर बादलों की शक्ल में हुआ करती है। 111 प्रकाशवर्ष की विराट दूरी पर इतने संश्लिष्ट रूप में पानी का दर्ज किया जाना खुद में एक चमत्कार है। बड़ी बात यह कि के2-18बी अपने तारे के2-18 के हैबिटेबल जोन में है, हालांकि बादलों के प्रेक्षण भर से इसकी सतह पर जीवनदायिनी बरसात होने का अनुमान लगाना तथ्यों से आगे बढ़कर कहानियों में जाने जैसा होगा।
ऐसा कहने की सबसे बड़ी वजह यह है कि अभी तो हम यही नहीं जानते कि उक्त ग्रह की कोई ठोस सतह है भी या नहीं। तारा के2-18 वजन में सूरज का 40 फीसदी है और इसका तापमान सूरज का लगभग आधा है। ज्यादा सटीक तौर पर कहें तो सूरज के 5778 डिग्री केल्विन के बरक्स 3503 डिग्री केल्विन। लेकिन सबसे खास बात यह कि के2-18 की धात्विकता (तारे में धातुओं की मौजूदगी) सूरज के दसवें हिस्से से भी कम है। यह बात खिंचती हुई के2-18बी तक चली आती है- इस मायने में की इसका घनत्व पृथ्वी की तुलना में काफी कम है।
पृथ्वी की 2.71 गुनी त्रिज्या को देखते हुए समान घनत्व पर इस ग्रह का वजन पृथ्वी का 20 गुना होना चाहिए था, लेकिन यह धरती के नौ गुने से भी जरा कम नापा गया है। तारे में धातुएं कम होने से ग्रह में भी धातुओं का कम होना स्वाभाविक है, लेकिन घनत्व कम होने की एक वजह यह भी हो सकती है कि ग्रह का कोर और बाकी ठोस हिस्सा छोटा हो और उसकी बनावट में पानी का हिस्सा काफी बड़ा हो। ऐसे में यह संभव है कि ग्रह की सतह पृथ्वी की तरह चट्टानी न हो। बहरहाल, इससे जुड़ी कई उत्सुकताओं का समाधान 2021 में छोड़े जाने वाले जस्टिन वेब टेलिस्कोप के प्रेक्षणों से हो जाएगा। और अगर वहां इवॉल्यूशन की संभावना मौजूद हुई तो इसके लिए समय कोई समस्या नहीं है। के2-18 जैसे लाल बौने तारों की उम्र सूरज की तुलना में बहुत ज्यादा होती है। इतनी कि कुछ वैज्ञानिक इन्हें अमर तारे कहने में भी संकोच नहीं करते।
Thanks for updating this information. Good job.
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