Saturday 17 August 2019

यह पानी हमारा नहीं है !!

यह पानी हमारा नहीं
चंद्रभूषण
पानी के बारे में हम इतना ज्यादा जानते हैं कि कुछ और जानने की किसे पड़ी है? लेकिन वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी है कि मौजूदा सदी की ही किसी तारीख में दुनिया के लिए पानी पेट्रोलियम से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाएगा, सो दिलचस्पी मर-मर कर जिंदा भी हो जा रही है। हकीकत यह है कि दुनिया में पानी की कोई कमी नहीं है, लेकिन उसका जितना हिस्सा सीधे काम में लाया जा सकता था, वह लगभग सारा का सारा लाया जा चुका है।

धरती का 97 फीसदी पानी समुद्री है, जिसे खारे से मीठा बनाना अगर कभी सस्ता हो सका तो भी उसकी मात्रा सीमित होगी। बचे 3 फीसदी का 70 प्रतिशत ध्रुवीय इलाकों या ग्लेशियरों में है, जिसपर हाथ लगाना विनाश का एक्सीलरेटर दबाने जैसा ही होगा। ज्यादा बड़े पैमाने पर देखें तो पानी की दुर्लभता का हाल यह है कि पृथ्वी के सारे पड़ोसी पिंडों चंद्रमा, शुक्र, मंगल और बुध पर यह या तो सिरे से नदारद है, या कहीं अवशेष रूप में है भी तो मौजूदा टेक्नॉलजी से बाल्टी भर पानी जुटाने में शायद भारत के जीडीपी जितनी रकम खर्च करनी पड़ जाए।

जर्मनी की म्युंस्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता हाल में मॉलिब्डेनम आइसोटोप्स पर काम करके इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सौरमंडल के बाकी चट्टानी ग्रहों की तरह पृथ्वी के लिए भी पानी कोई प्राकृतिक वस्तु नहीं है। इसकी स्वाभाविक उपस्थिति बृहस्पति या उससे दूर के ग्रहों पर ही मानी जा सकती है। पृथ्वी बनने के 10 करोड़ साल बाद उसी तरफ से आए जिस पिंड की टक्कर से चंद्रमा की सृष्टि हुई, धरती का सारा पानी उसी की देन है। सो, बात पानी की हो तो जरा संभल के!

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