मुकुल व्यास
पृथ्वी के कुछ जीव-जंतु विषम परिस्थितियों
में भी जीने में सक्षम हैं और वैज्ञानिक उनकी इस अनोखी क्षमता का इस्तेमाल करना
चाहते हैं। उनकी नजर टार्डीग्रेड नामक एक विचित्र जीव पर पड़ी है जो कठोर से कठोर
पर्यावरणीय परिस्थितियों को भी ङोल सकता है। यह जीव बर्फीले माहौल, तीव्र विकिरण या
डिहाइड्रेशन का सामना कर सकता है। धरती पर मौजूद कुछ जीव अपनी जैविक क्रियाओं को
धीमा करने के लिए कुछ प्रोटीनों के जरिये अपनी कोशिका के कार्यों को नियंत्रित कर
सकते हैं। टार्डीग्रेड विषम स्थितियों से निपटने के लिए अपने शरीर की आंतरिक गतिविधियों
को धीमा कर सकता है। इस अवस्था को क्रिप्टोबायोसिस कहा जाता है। क्रिप्टोबायोसिस के
दौरान टार्डीग्रेड में समस्त जैव-रासायनिक प्रक्रियाएं बंद होती प्रतीत होती हैं, लेकिन जीव फिर भी
जीवित रहता है। टार्डीग्रेड की तरह उत्तरी अमेरिका में पाया जाने वाला मेंढक (वुड
फ्रॉग) भी विषम परिस्थितियों को ङोल सकता है। यह मेंढक कई दिनों तक सर्दियों में
बर्फ की तरह जमे रहने के बाद भी जीवित रहता है। टार्डीग्रेड और वुड फ्रॉग अलग-अलग
प्रजातियों के जीव हैं, लेकिन दोनों अपनी कोशिकाओं की मशीनों को चुनिंदा
तरीके से स्थिर करने में सक्षम हैं। अमेरिकी रक्षा अनुसंधान एजेंसी यानी डरपा
रणभूमि में जख्मी सैनिकों के जैविक समय को धीमा करने के लिए टार्डीग्रेड की तरकीब
का इस्तेमाल करना चाहती है। इसके लिए उसने बायोस्टेसिस नामक एक कार्यक्रम शुरू
किया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य घायल सैनिकों के लिए चोट लगने के समय से लेकर
प्राथमिक डॉक्टरी उपचार के समय को बढ़ाने के तरीके खोजना है। घायल व्यक्ति की जान
बचाने के लिए 60 मिनट का समय बहुत बहुमूल्य होता है जिसे हम ‘गोल्डन ऑवर’ भी कहते हैं, लेकिन हकीकत में
जख्मी के इलाज के लिए एक घंटे से भी कम वक्त मिलता है। डरपा को उम्मीद है कि
बायोस्टेसिस कार्यक्रम से जीवित कोशिकाओं में जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं को धीमा
करके घायल व्यक्ति के इलाज के लिए अतिरिक्त समय जुटाया जा सकता है। इस कार्यक्रम
का मुख्य उद्देश्य है ‘जीवन बचाने के लिए जीवन को धीमा करो।’1बायोस्टेसिस कार्यक्रम
के प्रबंधक टिस्टन मैक्लर-बेगली का कहना है कि आणविक स्तर पर जीवन वास्तव में
जैव-रासायनिक क्रियाओं की एक निरंतर श्रृंखला है। इन रासायनिक क्रियाओं को संपन्न
कराने के लिए एक उत्प्रेरक की आवश्यकता होती है। कोशिकाओं के अंदर ये उत्प्रेरक
प्रोटीनों और बड़ी आणविक संरचनाओं के रूप में मौजूद होते हैं जो रासायनिक ऊर्जा को
जैविक प्रक्रियाओं में बदलते हैं। मैक्लर-बेगली ने कहा कि बायोस्टेसिस कार्यक्रम
के जरिये हम इन आणविक मशीनों को नियंत्रित करके समूचे सिस्टम को धीमा करना चाहते
हैं। इस कार्यक्रम के तहत जैव-रासायनिक क्रियाओं को धीमा करने के तरीकों के बारे
में सुझाव मांगे जाएंगे। इनमे प्रतिरोधी तत्व और समूची कोशिकाओं के समग्र उपचार
शामिल हैं। ये विधियां तभी कारगर मानी जाएंगी जब वे सारे जैविक कार्यों को धीमा कर
दें और सिस्टम के सामान्य होने पर शरीर को ज्यादा नुकसान न पहुंचाएं।
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