Sunday 18 March 2018

ओज़ोन का पराबैंगनी किरणों से सम्बन्ध


स्कन्द शुक्ला 
तीन तिगाड़ा हमेशा काम नहीं बिगाड़ता और न सभी प्रेम-त्रिकोण कष्टकारी होते हैं 

धरती माता ओज़ोन की पोशाक पहनती है और हम इतनी नालायक औलाद हैं कि उसके कपड़ों को तार-तार करने में लगे रहते हैं। ओज़ोन की छतरी में हमारी करतूतें छेद कर देती हैं , जिसका सबसे स्पष्ट प्रमाण अंटार्कटिका के ऊपर वायुमण्डल में देखा जा सकता है। ऐसे में ओज़ोन , उसकी वायुमण्डलीय उपस्थिति , हमारे लिए उसकी उपयोगिता और उसके विनाश पर कई बातें करनी आवश्यक हो जाती हैं। 

पृथ्वी का वायुमण्डल कई परतों में बँटा है। इसी क्रम में ज्यों ही हम मिट्टी छोड़कर ऊपर उठते हैं , तो पहली परत ट्रोपोस्फ़ीयर कहलाती है और दूसरी स्ट्रेटोस्फ़ीयर। इसी स्ट्रेटोस्फ़ीयर में ओज़ोन की मौजूदगी होती है। 
ओज़ोन के निर्माण में एक पदार्थ और एक प्रकाश की भूमिका बड़े महत्त्व की है। पदार्थ ऑक्सीजन है और प्रकाश पराबैंगनी किरणें। ऑक्सीजन का एक अणु दो ऑक्सीजन-परमाणुओं से बना है। सूर्य से चली पराबैंगनी किरणें वायुमण्डलीय ऑक्सीजन-अणुओं से टकरा कर उन्हें परमाणुओं में तोड़ देती हैं। फिर एक टूटा परमाणु आसपास के ऑक्सीजन-अणु से मिलकर एक तिकड़ी बना लेता है। यही परमाणु-तिकड़ी ओज़ोन है। 
ओज़ोन का पराबैंगनी किरणों से सम्बन्ध दिलचस्प है। यह गैस पराबैंगनी किरणों द्वारा अस्तित्व में आती है और फिर उसी को पृथ्वी पर पहुँचने से रोकती है। और उसका यह काम हम जीव-जन्तुओं के लिए बेहद आवश्यक हो जाता है। 
पराबैंगनी किरणें जीवन की नाशिका हैं। उन्हें हमारे डीएनए में तोड़फोड़ करनी है। वह डीएनए जो हमारी कोशिकाओं में है और जिसके होने से हमारा अस्तित्व है। नतीजन यह विकृत-विखण्डित डीएनए तमाम कैंसर-जैसे रोगों को जन्म देने का काम करता है। 
ओज़ोन की पोशाक पृथ्वी पहनती है , तो हम बचते हैं। लेकिन हम उसकी पोशाक में छेद करके अपनी ही मृत्यु को आमन्त्रण देते हैं। हम पराबैंगनी किरणों को धरती पर बुलाते हैं और अपने ही लिये बीमारियाँ पैदा करते हैं। 
पृथ्वी के केवल 20-30 ऊपर किलोमीटर है ओज़ोन की यह पोशाक। और लगभग दस किलोमीटर मोटी , बस। इस गैस का निर्माण विषुवत्-वृत्त के वायुमण्डल में होता है और फिर यह चलती हुई ध्रुवों के ऊपर जमा हो जाती है। स्थान , मौसम और तापमान के कारण यह गैस वायुमण्डल में अलग-अलग मात्रा में मिला करती है। 
सुख्यात विज्ञान-जर्नल नेचर में 1985 में पहली बार वैज्ञानिकों ने ओज़ोन-परत के नष्ट होने की बात उठायी ; तब से अलग-अलग गोष्ठियों में और शोधपत्रों में इस बारे में तमाम बातें प्रकाश में आती रही हैं। यह बात ग़ौर करने योग्य है कि ओज़ोन का सर्वाधिक विनष्टीकरण अंटार्कटिका के ऊपर ही देखने को मिलता रहा है। ऐसा कई ख़ास पर्यावरणीय स्थितियों के कारण है और इसलिए अंटार्कटिका पर ओज़ोन के सन्दर्भ में चर्चा ज़रूरी हो जाती है। 

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