Friday 10 November 2017

राजनीतिक एजेंडे में शामिल हो पर्यावरण का मुद्दा

जानलेवा स्तर पर वायु प्रदूषण
शशांक द्विवेदी 
पिछले कुछ दिनों से राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण ,धुंध ,धुँआ जानलेवा स्तर तक पहुँच गई है हर आम और खास को साँस लेने में परेशानी ,आँखों में जलन सहित कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं होने लगी है कुलमिलाकर कथित विकास के पीछे विनाश की आहत धीरे धीरे दिखाई और सुनाई पड़ने लगी हैहालात इतने बदतर हो गएँ है वायु प्रदूषण मापने वाला इंडेक्स ही नहीं काम कर रहा है मतलब वह उच्चतम स्तर तक पहुँच गया है इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारें बैठकें करके एक दुसरे पर आरोप –प्रत्यारोप कर रही है लेकिन आम आदमी भारी परेशानी में है ,उसे समझ में नहीं आ रहा है कि वो क्या करें ,कहाँ जाए फौरी तौर पर बच्चों के स्कूल कॉलेज बंद करने ,सब को घर में रहकर काम करने की सलाह देने वाले क्या बताएँगे कि आम नौकरी पेशा करने वाला ,मजदूरी करने वाला आदमी अब कहाँ जाएँ हो सकता है कुछ दिन में ये धुंध कम हो जाए लेकिन इसका ख़तरा तो अब हमेशा बना ही रहेगा अधिकांश राजनीतिक दलों के एजेंडे में पर्यावरण संबंधी मुद्दा है ही नहीं ,ना ही उनके चुनावी घोषणापत्र में पर्यावरण ,प्रदुषण कोई मुद्दा रहता है । देश में हर जगह ,हर तरफ हर पार्टी विकास की बातें करती है लेकिन ऐसे विकास का क्या फायदा जो लगातार विनाश को आमंत्रित करता है ।ऐसे विकास को क्या कहें जिसकी वजह से सम्पूर्ण मानवता का अस्तित्व ही खतरे में पढ़ गया हो । सच्चाई तो यह है कि अब समय आ गया है जब पर्यावरण का मुद्दा राजनीतिक पार्टियों के साथ आम आदमी की प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर होना चाहिए क्योंकि  अब भी अगर हमनें इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया आगे आने वाला समय भयावह होगा फिलहाल देश के सभी बड़े शहरों में वायु प्रदूषण अपने निर्धारित मानकों से बहुत ज्यादा है
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार  दिल्ली का वातावरण बेहद जहरीला हो गया है । इसकी गिनती विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित शहर के रूप में होने लगी है। यदि वायु प्रदूषण रोकने के लिए शीघ्र कदम नहीं उठाए गए तो इसके गंभीर परिणाम सामने आएंगे। डब्ल्यूएचओ ने वायु प्रदूषण को लेकर 91 देशों के 1600 शहरों पर डाटा आधारित अध्ययन रिपोर्ट जारी की थी । इसमें दिल्ली की हवा में पीएम 25 (2.5 माइक्रोन छोटे पार्टिकुलेट मैटर) में सबसे ज्यादा पाया गया है। पीएम 25 की सघनता 153 माइक्रोग्राम तथा पीएम 10 की सघनता 286 माइक्रोग्राम तक पहुंच गया है। जो कि स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। वहीं बीजिंग में पीएम 25 की सघनता 56 तथा पीएम 10 की 121 माइक्रोग्राम है। जबकि कुछ वर्षो पहले तक बीजिंग की गिनती दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में होती थी, लेकिन चीन की सरकार ने इस समस्या को दूर करने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए। जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। पर्यावरण विज्ञान से जुड़ी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट ने पिछले दिनों राजधानी के विभिन्न स्थलों व सार्वजनिक परिवहन के अलग-अलग साधनों में वायु प्रदूषण का स्तर मापने के लिए किए अध्ययन के आधार पर कहा है कि बस, मेट्रो, ऑटो व पैदल चलने वाले दिल्ली में सबसे अधिक जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं। दिल्ली की हवा बद से बदतर होती जा रही है। बीती सर्दी में यह खतरनाक स्तर तक पहुंच गई थी।
एक अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण भारत में मौत का पांचवां बड़ा कारण है। हवा में मौजूद पीएम25 और पीएम10 जैसे छोटे कण मनुष्य के फेफड़े में पहुंच जाते हैं। जिससे सांस व हृदय संबंधित बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे फेफड़ा का कैंसर भी हो सकता है। दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण वाहनों की बढ़ती संख्या है। इसके साथ ही थर्मल पावर स्टेशन, पड़ोसी राज्यों में स्थित ईंट भट्ठा आदि से भी दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का नया अध्ययन यह बताता है कि हम वायु प्रदूषण की समस्या को दूर करने को लेकर कितने लापरवाह हैं और यह समस्या कितनी विकट होती जा रही है। खास बात यह है कि ये समस्या सिर्फ दिल्ली में ही नहीं है बल्कि देश के लगभग सभी शहरों की हो गई है .अगर हालात नहीं सुधरे तो वो दिन दूर नहीं जब शहर रहने के लायक नहीं रहेंगे । जो लोग विकास ,तरक्की और रोजगार की वजह से गाँव से शहरों की तरफ आ गयें है उन्हें फिर से गावों की तरफ रुख करना पड़ेगा ।
स्वच्छ वायु सभी मनुष्यों, जीवों एवं वनस्पतियों के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसके महत्त्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि मनुष्य भोजन के बिना हफ्तों तक जल के बिना कुछ दिनों तक ही जीवित रह सकता है, किन्तु वायु के बिना उसका जीवित रहना असम्भव है। मनुष्य दिन भर में जो कुछ लेता है उसका 80 प्रतिशत भाग वायु है। प्रतिदिन मनुष्य 22000 बार सांस लेता है। इस प्रकार प्रत्येक दिन में वह 16 किलोग्राम या 35 गैलन वायु ग्रहण करता है। वायु विभिन्नगैसों का मिश्रण है जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा सर्वाधिक 78 प्रतिशत होती है जबकि 21 प्रतिशत ऑक्सीजन तथा 0.03 प्रतिशत कार्बन डाइ ऑक्साइड पाया जाता है तथा शेष 0.97 प्रतिशत में हाइड्रोजन, हीलियम, आर्गन, निऑन, क्रिप्टन, जेनान, ओजोन तथा जल वाष्प होती है। वायु में विभिन्न गैसों की उपरोक्त मात्रा उसे संतुलित बनाए रखती है। इसमें जरा-सा भी अन्तर आने पर वह असंतुलित हो जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है। श्वसन के लिए ऑक्सीजन जरूरी है। जब कभी वायु में कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की वृद्धि हो जाती है, तो यह खतरनाक हो जाती है ।
भारत को विश्व में सातवें सबसे अधिक पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक देश के रूप में स्थान दिया गया है । वायु शुद्धता का स्तर ,भारत के मेट्रो शहरों में पिछले 20 वर्षों में बहुत ही खराब रहा है आर्थिक स्तिथि ढाई गुना और औद्योगिक प्रदूषण चार गुना और बढा है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार हर साल लाखों लोग खतरनाक प्रदूषण के कारण मर जाते हैं। वास्तविकता तो यह है कि पिछले 18 वर्ष में जैविक ईधन के जलने की वजह से कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन 40 प्रतिशत तक बढ़ चुका है और पृथ्वी का तापमान 0.7 डिग्री सैल्शियस तक बढ़ा है। अगर यही स्थिति रही तो सन् 2030 तक पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा 90 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी।

सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के कई शहरों का वातावरण बेहद प्रदूषित हो गया है । इस प्रदूषण को रोकने के लिए कभी सरकार ने गंभीर प्रयास नहीं किये ,जो प्रयास किये गये वो नाकाफी साबित हुए और वायु प्रदूषण बढ़ता ही गया । इसे रोकने के लिए सरकार को अब जवाबदेही के साथ एक निश्चित समयसीमा के भीतर  ठोस प्रयास करना पड़ेगा नहीं तो प्राकृतिक आपदाओं के लिए हमें तैयार रहना होगा । जिस तरह से आज राजधानी दिल्ली के लोग शुद्ध हवा में साँस लेने को तरस रहें है ,ऐसे में वो दिन दूर नहीं जब देश के अधिकांश शहरों का यही हाल होगा इसलिए हमें कल से नहीं बल्कि आज से या कहे अभी से इस रोकनें के लिए तत्काल कदम उठाना होगा । सरकार के साथ साथ समाज और व्यक्तिगत स्तर पर भी काम करना होगा तभी इन सब से छुटकारा मिल पायेगा ।

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