भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) में कार्यरत एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ऐसे पहले भारतीय हैं, जिन्होंने स्ट्रैटोस्फियर की यात्रा की। स्ट्रेटोस्फीअर यानी समताप मंडल धरती के आगे की दूसरी परत होती है और इसे अंतरिक्ष का किनारा कहा जाता है। यह ट्रापस्फीअर यानी क्षोभमंडल के ठीक ऊपर और मेजस्फीअर यानी मध्यमंडल के नीचे स्थित होती है।
हसन में इसरो के मास्टर कंट्रोल फैसिलिटी में वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत टीएन सुरेश कुमार ने अंतरिक्ष की यात्रा कराने वाली रूस की एजेंसी को 15 लाख रुपए का भुगतान किया है। कंट्री ऑफ टूरिज्म लिमिटेड नाम की यह एजेंसी पिछले छह साल 'एज ऑफ स्पेस' नाम से अंतरिक्ष की यात्रा करवा रही है। सुरेश कुमार ने सोकोल एयरबेस से मिग 29 विमान में 17 हजार 100 मीटर की ऊंचाई पर उड़ान भरी।
वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि मेरे अलावा विमान में एक पायलट भी था। उन्होंने कहा कि मैं हमेशा से भारतीय ध्वज को अंतरिक्ष में ले जाना चाहता था। इसलिए मैंने जानबूझकर 15 अगस्त को यात्रा की और ध्वज के साथ अपनी मां की तस्वीर साथ ले गया। यह काफी महंगी यात्रा थी, लेकिन जिस रोमांच को मैंने महसूस किया, उससे इसकी तुलना नहीं की जा सकती।
ट्रांस सर्बिया की यात्रा भी की
सुरेश कुमार ने बताया कि अंतरिक्ष की यात्रा के बाद वह ट्रांस-सर्बिया के टूर पर गए थे। वहां से अभी तीन दिन पहले ही स्वदेश लौटे हैं। अंतरिक्ष यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि करीब 48 मिनट की फ्लाइट उन्होंने ली। मगर, एज ऑफ स्पेस में वह महज एक मिनट ही रुक सके।
इसरो के वैज्ञानिक ने बताया कि 1985 के अंत में वह उन चुनिंदा लोगों में से थे, जिन्हें अंतरिक्ष यात्रा के लिए चुना गया था। मगर, दुर्भाग्य से 1986 में अंतरिक्षयान चैलेंजर में विस्फोट होने के बाद इस कार्यक्रम को टाल दिया गया था। वह मेरे लिए घोर निराशा का फैसला था। उन्होंने अपने अगले कदम के बारे में बताते हुए कहा कि वह अगले वर्ष फरवरी में रूस से जीरो ग्रेविटी की फ्लाइट लेना चाहता हूं।
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