भारत को अंतरिक्ष की ऊंचाइयों तक पहुंचाने में इसरो की महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन काबिल वैज्ञानिकों और इंजीनियर्स को आकर्षित करने के मामले में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) काफी पीछे है। देश के शीर्ष तकनीकी संस्थान आईआईटी और एनआईटी के छात्र अभी भी इसरो जैसे स्वदेशी संस्थान से दूरी बनाए हुए हैं।एक आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार इसरो में कार्यरत कुल वैज्ञानिकों में से केवल 2 प्रतिशत ही आईआईटी और एनआईटी से डिग्री प्राप्त हैं।
हाल के वर्षों में अंतरिक्ष विज्ञान तथा इंजीनियरिंग के क्षेत्र में व्यावसायिकता बढ़ी है और इसी के साथ वैज्ञानिकों की मांग भी बढ़ी है। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम में इंटरप्लेनेटरी मिशन के वरिष्ठ सलाहकार वी. आदिमूर्ति का कहना है कि केवल इसरो में ही वैज्ञानिकों की आवश्यकता नहीं है। बल्कि देश के दूसरे महत्वूपर्ण क्षेत्र जैसे: सड़क परिवहन और रेलवे को भी बड़ी संख्या में काबिल इंजीनियर्स की आवश्यकता है। लेकिन शीर्ष संस्थानों में पढ़ने वाले इंजीनियर इसमें रुचि नहीं लेते हैं।
काबिले गौर यह है कि इसरो की केंद्रीयकृत भर्ती प्रणाली आईआईटी से पढ़े हुए ग्रेजुएट्स और अन्य इंजीनियरिंग कॉलेजों से पढ़कर निकले छात्रों में कोई विभेद नहीं करता है। इसरो के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन का मानना है कि तिरुवनंतपुरम स्थित भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं तकनीकी संस्थान (आईआईएसएसटी) के छात्रों का रुझान इसरो की ओर सबसे ज्यादा रहता है। उन्होंने कहा कि आईआईएसएसटी की स्थापना (2007) के बाद से ही इसरो में आने वाले इंजीनियर्स में यहां के ग्रेजुएट्स की संख्या बढ़ी है।
इसरो के पूर्व अध्यक्ष यू. आर. राव के अनुसार आईआईटी और एनआईटी के पढ़ने के बाद इंजीनियर्स उच्च वेतन वाली नौकरियों की ओर जाने को प्राथमिकता देते हैं। सॉफ्टवेयर और तकनीकी कंपनियों के बड़े वेतन के ऑफर्स उन्हें आकर्षित करते हैं। इसके साथ ही विदेश जाकर नौकरी करना भी उनकी वरीयता में रहता है।
राव का मानना है कि मार्स आर्बिटर जैसे मिशन के बाद अब ज्यादा से ज्यादा काबिल इंजीनियर और वैज्ञानिक इसरो से जुड़ना चाहेंगे।
यह है इसरो की स्थिति
इसरो केंद्र | कुल स्टाफ | आईआईटी एवं एनआईटी |
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र | 4486 | 43 |
स्पेस ऐप्लीकेशन सेंटर | 1183 | 144 |
नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर | 864 | 2 |
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