ईंधन रहित इंजन
क्या कोई इंजन ईंधन
के बगैर चल सकता है? जब ब्रिटिश वैज्ञानिक रॉबर्ट शायर ने 2000 में एमड्राइव इंजन का डिजाइन तैयार किया तो वैज्ञानिक समुदाय ने यह
कहकर उनकी अवधारणा को खारिज कर दिया कि इस तरह का इंजन असंभव है, क्योंकि यह भौतिकी के सिद्धांत के विपरीत है। अब नासा ने एक नई किस्म
के असंभव इंजन का अनुमोदन कर दिया है जिससे अंतरिक्ष भ्रमण के क्षेत्र में बड़ी
क्रांति आ सकती है। नासा की ईगलवर्क्स लेबोरेटरीज के इंजीनियरों ने एक इंजन से
ईंधन के बगैर ही वेग उत्पन्न करने में सफलता प्राप्त की है। यह एक तरह से भौतिकी
के इस नियम का उल्लंघन है कि हर क्रिया पर समान और विपरीत क्रिया उत्पन्न होती है।
पारंपरिक अंतरिक्ष यानों को अंतरिक्ष में आगे बढ़ने के लिए बड़ी मात्र में ईंधन ले
जाना पड़ता है। इस ईंधन से उत्पन्न थ्रस्ट यान को आगे की ओर धकेलता है। यह तरीका
कारगर है, लेकिन इसमें ईंधन और अंतरिक्ष में
उसके प्रक्षेपण की लागत बहुत ज्यादा आती है। नासा इंजीनियरों ने केनी ड्राइव नामक
इंजन का परीक्षण किया है। इस मशीन में बिजली से माइक्रोवेव तरंगें उत्पन्न की जाती
हैं।
इन तरंगों को विशेष
रूप से निर्मित एक पात्र के अंदर छोड़ा जाता है। माइक्रोवेव के लिए बिजली सौर
ऊर्जा से मिलती है। इसका अर्थ यह हुआ कि इस इंजिन को किसी प्रणोदक की आवश्यकता
नहीं है। जब लंदन में कार्यरत वैज्ञानिक रॉबर्ट शायर ने अपने एमड्राइव इंजन की
अवधारणा पेश की तो सिर्फ चीनी वैज्ञानिकों ने उनकेविचार को गंभीरता से लिया था।
उन्होंने अपने इंजन से 720 मिलीन्यूटन यानी 72 ग्राम थ्रस्ट पैदा करने का दावा किया था। चीनियों द्वारा निर्मित
इंजन एक उपग्रह को धकेलने में सक्षम था। पश्चिम में किसी को भी चीनी वैज्ञानिकों
के इस दावे पर यकीन नहीं हुआ। ब्रिटिश वैज्ञानिक प्रो. शायर अपनी कंपनी एसपीआर
लिमिटेड के जरिये अपने एमड्राइव इंजन में लोगों का ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश
करते रहे हैं। शायर ने अपने इंजन के कई सिस्टम निर्मित किए हैं, लेकिन उनके आलोचकों का कहना है कि भौतिकी के नियमों के अनुसार इस तरह
के सिस्टम काम नहीं कर सकते। अमेरिकी वैज्ञानिक गाइडो फेटा ने अपना एक अलग
माइक्रोवेव इंजन निर्मित किया। उन्होंने नासा से इस इंजन के परीक्षण का आग्रह
किया। नासा के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए परीक्षण के नतीजे गत 30 जुलाई को क्लीवलैंड में एक वैज्ञानिक सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए।
परीक्षण के नतीजे आश्चर्यजनक रूप से सकारात्मक थे। जॉनसन स्पेस सेंटर के पांच
रिसर्चरों ने फेटा के इंजन को स्थापित करने में छह दिन लगाए। इसके बाद वे दो दिन
तक इस पर परीक्षण करते रहे। परीक्षण के दौरान यह प्रणोदक रहित इंजन 30 और 50 माइक्रोन्यूटन वेग उत्पन्न करने में
सफल रहा। यदि नासा के रिसर्चरों की बात सही साबित होती है तो अंतरिक्ष में इस
टेक्नोलॉजी के चमत्कारिक उपयोग हो सकते हैं। सौर पैनलों से इंजन के संचालन के लिए
बिजली मिल सकती है। इससे इंजन को लंबे समय तक बिना किसी अतिरिक्त खर्च के चलाना
संभव हो सकेगा।
इससे उपग्रहों को
कक्षा में लंबे समय तक कार्यरत रखने की लागत कम हो जाएगी और स्पेस स्टेशनों का
खर्च घटेगा। साथ ही उनका जीवनकाल भी बढ़ जाएगा। सुदूर अंतरिक्ष में लंबी यात्रएं
करना बहुत आसान हो जाएगा। अंतरिक्ष यात्रियों को महीनों के बजाय कुछ ही हफ्तों में
मंगल पर पहुंचाया जा सकेगा। एक वैज्ञानिक हेरॉल्ड वाइट का अनुमान है कि इस इंजन के
बड़े संस्करण से हम प्रोक्सिमा सेंटारी की यात्र सिर्फ 30 वर्षो में कर सकने में समर्थ हो सकेंगे। प्रोक्सिमा सेंटारी हमारा
सबसे करीबी पडोसी तारा है और वर्तमान टेक्नोलॉजी से वहां तक पहुंचने में 76,000 वर्ष लगेंगे। नासा ने अभी इस इंजन की कार्यप्रणाली को ठीक से नहीं
समझाया है। जाहिर है वैज्ञानिक समुदाय ईंधन रहित इंजन के दावे की बहुत बारीकी से
पड़ताल करेंगे।
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