शशांक द्विवेदी
अक्षय उर्जा दिवस पर विशेष प्रस्तुति
सस्ती व सतत ऊर्जा की आपूर्ति किसी भी देश की तरक्की के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। देश में उर्जा के दो प्रमुख माध्यम बिजली और पेट्रोलियम पदार्थाे की कमी होने से वैज्ञानिकों का ध्यान पुनः ऊर्जा के अन्य स्रोतों की ओर गया है। किसी भी देश क लिए ऊर्जा सुरक्षा के मायने यह हैं कि वत्र्तमान और भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति इस तरीके से हो कि सभी लोग ऊर्जा से लाभान्वित हो सकें, पर्यावरण पर कोई कु-प्रभाव न पड़े, और यह तरीका स्थायी हो, न कि लघुकालीन । हमें घरेलू, औद्योगिक और कृषि क्षेत्र में जरूरी ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए दूसरे वैकल्पिक उपायों पर भी विचार करने की आवश्यकता है। यह अक्षय ऊर्जा के प्रयोग से ही संभव है । भारत में अक्षय ऊर्जा के कई स्रोत उपलब्ध है । सुदृढ़ नीतियों द्वारा इन स्रोतों से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है । अक्षय उर्जा में वे सारी उर्जा शामिल हैं जो प्रदूषणकारक नहीं हैं तथा जिनके स्रोत का क्षय नहीं होता, या जिनके स्रोत का पुनः-भरण होता रहता है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलविद्युत उर्जा, ज्वार-भाटा से प्राप्त उर्जा, बायोमास, जैव इंधन आदि नवीनीकरणीय उर्जा के कुछ उदाहरण हैं। अक्षय ऊर्जा स्रोत वर्ष पर्यन्त अबाध रूप से भारी मात्रा में उपलब्ध होने के साथ साथ सुरक्षित, स्वतरू स्फूर्त व भरोसेमंद हैं। साथ ही इनका समान वितरण भी संभव है। पूरे विश्व में, कार्बन रहित ऊर्जा स्रोतों के विकास व उन पर शोध अब प्रयोगशाला की चाहरदीवारी से बाहर आकर औद्योगिक एवं व्यापारिक वास्तविकता बन चुके हैं। वर्तमान में अक्षय ऊर्जा स्रोत देश में संस्थापित कुल विद्युत क्षमता का लगभग 9 प्रतिशत योगदान देते हैं। जिसे बढ़ाने की आवश्यकता है ।
देश की उर्जा आवश्कताओं की स्थायी पूर्ति के लिए अक्षय ऊर्जा उर्जा स्रोतों का सहारा लेकर गुजरात ने अनेक विकास कार्यों के साथ सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी मिसाल कायम की है। गुजरात में 600 मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना भारत ही नहीं पूरे एशिया के लिए एक उदाहरण है। देश में सौर संयंत्रों से कुल 900 मेगावाट बिजली पैदा होती है। इसमें 600 मेगावाट अकेले गुजरात बना रहा है।
गुजरात ने नहर के उपर सौर ऊर्जा संयंत्र लगा कर अनूठी मिसाल कायम की है। इससे बिजली तो बनेगी ही, पानी का वाष्पीकरण भी रुकेगा। नहर पर छत की तरह तना यह संयंत्र दुनिया में पहला ऐसा प्रयोग है। गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थापित यह संयंत्र 16 लाख यूनिट बिजली का हर साल उत्पादन करेगा। साथ ही वाष्पीकरण रोककर 90 लाख लीटर पानी भी बचाएगा। यह संयंत्र आम के आम और गुठलियों के दाम की तरह है। चंद्रासन गाँव की नहर पर 750 मीटर की लंबाई में यह सौर संयंत्र बनाया गया है। इस संयंत्र की लागत 12 करोड़ रुपए के आसपास हैं। चंद्रासन संयंत्र पहला पायलट प्रोजेक्ट होने की वजह से इसकी लागत कुछ अधिक आई है।
गुजरात में नर्मदा सागर बाँध की नहरों की कुल लंबाई 19 हजार किलोमीटर है और अगर इसका दस प्रतिशत भी इस्तेमाल होता है तो 2400 मेगावाट स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। नहरों पर संयंत्र स्थापित करने से 11 हजार एक़ड भूमि अधिग्रहण से बच जाएगी और 2 अरब लीटर पानी की सालाना बचत होगी सो अलग। यह प्रयोग अन्य राज्यों में भी अपनाया जाना चाहिए। देश मे प्रति व्यक्ति औसत उर्जा खपत वहाँ के जीवन स्तर की सूचक होती है। इस दृष्टि से दुनियाँ के देशों मे भारत का स्थान काफ़ी नीचे है । देश की आबादी बढ़ रही है । बढ़ती आबादी के उपयोग के लिए और विकास को गति देने के लिए हमारी उर्जा की मांग भी बढ़ रही है द्रुतगाति से देश के विकास के लिए औद्योगीकरण, परिवहन और कृषि के विकास पर ध्यान देना होगा । इसके लिए उर्जा की आवश्यकता है । दुर्भाग्यवश उर्जा के हमारे प्राकृतिक संसाधन बहुत ही सीमित है। खनिज तेल पेट्रोलियम, गैस, उत्तम गुणवत्ता के कोयले के हमारे प्राकृतिक संसाधन बहुत ही सीमित हैं। हमें बहुत सा पेट्रोलियम आयात करना पड़ता है । हमारी विद्युत की माँग उपलब्धता से कही बहुत ज़्यादा है । आवश्यकता के अनुरुप विद्युत का उत्पादन नहीं हो पा रहा है।
भारत में अक्षय ऊर्जा के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं, और अक्षय ऊर्जा के तरीके ग्राम स्वराज्य या स्थानीय स्तर पर स्वावलंबन के सपने से भी अनुकूल हैं, इसलिए देश में इन्हे बड़े पैमाने पर अपनाने की जरूरत है । जिससे देश में उर्जा के क्षेत्र में बढती मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को कम किया जा सके । हमें न केवल वैकल्पिक ऊर्जा बनाने के लिए पर्याप्त इंतजाम करना होगा, बल्कि सांस्थानिक परिवर्तन भी करना होगा जिससे कि लोगों के लिए स्थायी और स्थानीय ऊर्जा के संसाधनों से स्थानीय ऊर्जा की जरुरत पूरी हो सके।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह विचार काफी मायने रखता है कि तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक की तर्ज पर भारत के नेतृतव में सौर ऊर्जा की संभावना वाले देशों का संगठन बनाया जाए। वास्तव में जब जी आठ, दक्षेस, जी 20 और ओपेक जैसे संगठन बन सकते हैं तो सौर ऊर्जा की संभावना वाले देशों का संगठन क्यों नहीं बन सकता। भारत ऐसे देशों के संगठन का नेतृत्व कर सकता है और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में शक्ति बनकर अपना दबदबा कायम कर सकता है । भारत में सौर ऊर्जा की असीम संभावनाएं है। गुजरात से प्रेरणा लेकर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों को भी पहल करनी चाहिए। ये राज्य भी बिजली के संकट से जूझ रहे हैं, जबकि धूप यहाँ साल में आठ महीने रहती है। मध्यप्रदेश सरकार ने भी इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाते हुए सौर ऊर्जा के लिए भूमि बैंक की स्थापना के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इस प्रस्ताव में अनुपयोगी भूमि को चिन्हांकित कर उन पर सौर संयंत्र लगाने की पहल की जाएगी। महाराष्ट्र सरकार ने भी उस्मानाबाद व परभणी में 50-50 मेगावाट के दो संयंत्र लगाने की पहल प्रारंभ की है।सौर उर्जा संयंत्र लगाने की दिशा में कुछ राज्यों के प्रयास सराहनीय है ।
क्या कभी आपने सोचा है कि जो हम बार-बार
विकास औऱ तकनीक की बात करते हैं, उसकी गति
में रह रहकर ब्रेक क्यों लग जाता है? इसका एक
मात्र कारण है विकास के लिए बुनियादी जरूरत में कमी का होना। और वो बुनियादी जरूरत
है बिजली। कोई देश कैसे वैश्विक ताक़त बनने के ख़्वाब देख सकता है, जिसकी आधी से ज्यादा आबादी बिजली की बड़ी किल्लत से दो-चार हो।
वैसे तो दक्षिण एशिया में ऊर्जा की
विशाल क्षमता होने बात कही जाती रही है, लेकिन इसी
क्षेत्र के देशों में सबसे ज्यादा लोग बिजली संकट से परेशान हैं। राजधानी दिल्ली
ही नहीं भारत के कई राज्यों में बिजली की भारी किल्लत है। बिजली संकट इतना गंभीर
है कि गाँव तो क्या शहरों में भी भारी कटौती हो रही है या फिर किसी न किसी तकनीकी
ख़राबी से अकसर सप्लाई बंद हो जाती है। हालत ये है कि शहरों में गगनचुंबी मॉल्स भी
अपनी बिजली का इंतज़ाम करने के लिए जेनरेटर पर निर्भर रहते हैं। दिल्ली से सटे
गुड़गांव जैसा साइबर सिटी हो या बैंगलोर जैसी सिलिकन वैली, सभी जगहों पर बिजली की समस्या आम है।
अगर ग्रामीण इलाक़ों की बात करें तो
वहां हालत और भी बदतर है। कई राज्यों की स्थिति यह है कि अभी गाँवों तक बिजली ही
नहीं पहुँची है। जहाँ बिजली पहुँच भी गई है वहाँ कभी कुछ घंटों के लिए ही बिजली
आती है और कहीं कभी-कभी आती है। इसका एक उदहारण बिहार में मुजफ्फरपुर का रतनौली
गांव है, जहां बिजली के खंभे तो जरूर लगे हैं
लेकिन वहां बिजली की गारंटी कोई नहीं दे सकता। रतनौली जैसे देश में कई और भी गांव
हैं जहां बिजली तो दूर उसके खंभे तक नहीं मिलेंगे।
बिजली की ऐसी विकट समस्या के रहते हुए
क्या भारत वास्तव में महाशक्ति बन सकता है? सच कहें तो
बिल्कुल नहीं। 21
सदी में बिजली के बिना विकास
नामुमकिन है। चलिए थोड़ी देर के लिए देश की भौगोलिक संरचना को जिम्मेदार मानते हुए
कह दें कि अलग-अलग भौगोलिक स्थिति होने से देश के कई इलाकों तक बिजली नहीं पहुंच
पाया है। लेकिन,
सूर्य की रोशनी किसी भी संरचना की
मोहताज नहीं होती। मालूम हो कि दुनिया में परंपरागत उर्जा स्रोत न केवल सीमित है, बल्कि हमें कई उर्जा उत्पादों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर
रहना पड़ता है। भारत में फिलहाल 170,000 मेगावॉट से
ज्यादा बिजली की उत्पादन क्षमता है और बिजली की वार्षिक मांग चार फीसदी की दर से
बढ़ रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक व्यस्त घंटों में बिजली की 10 फीसदी की कमी रहती है।
उधर विशेषज्ञों का मानना है कि ऊर्जा
तंत्र में इतनी भारी गड़बड़ी का मूल कारण बिजली की आपूर्ति में कमी है। उनके
मुताबिक दक्षिण एशियाई देश बिजली की मांग और आपूर्ति के अंतर को अपने विशाल ऊर्जा
संसाधनों और दूसरे देशों के साथ बिजली का लेन-देन कर काफी हद तक कम कर सकते हैं।
लेकिन ये कोई स्थायी निवारण नहीं हो सकता।
अगर देश से अज्ञानता, असमानता और बेरोजगारी को मिटाना है तो गाँव और शहर में 24 घंटे बिजली की व्यवस्था करनी होगी, जिसके लिए सौर उर्जा ही एक मात्र स्थायी विकल्प है। सूर्य की
रोशनी का इस्तेमाल कर सौर उर्जा पैदा कर हमें आत्मनिर्भर बनना ही पड़ेगा। सौर
ऊर्जा में शुरू में लागत भले ज़्यादा हो, लेकिन
चूँकि इसको चलाने का ख़र्च नहीं है, इसलिए
दीर्घकाल में यह लागत ज़्यादा नहीं होगी।
पिछले दिनों ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को वैकल्पिक उर्जा
प्रणालियों में निजी और सरकारी स्तर पर 2050
तक 6,10,000 करोड़ रूपये सालाना निवेश करने की जरूरत बताई गई थी। इस निवेश से भारत को
जीवाश्म ईंधन पर खर्च किये जानेवाला सालाना एक ट्रिलियन रूपये की बचत होगी और इस
नये निवेश के कारण अगले कुछ सालों में ही 20
तक भारत रोजगार के 24 लाख नये अवसर भी पैदा कर सकेगा। अगर भारत सरकार रिपोर्ट के आधार पर इन
उपायों को लागू करती है तो 2050 तक भारत की कुल उर्जा जरूरतों का 92
प्रतिशत प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त किये जाएंगे। और सबसे चौंकानेवाली
बात यह होगी उस वक्त भी हम आज से भी सस्ती बिजली प्राप्त कर सकेंगे। एक रिपोर्ट के
मुताबिक प्राकृतिक स्रोत से प्राप्त बिजली की कीमत 2050 में 3.70
रूपये प्रति यूनिट होगी।
ऐसे में अगर भारत सौर ऊर्जा को सामान्य
बिजली में बदलने का प्रयोग कामयाब हो गया तो गाँवों और कस्बों में न केवल कंप्यूटर
शिक्षा, बल्कि दूसरे अनेक क्षेत्रों में भी
रोज़गार पनप सकते हैं। सौर उर्जा के माध्यम से जहां किसान खेतों की सिचाई सोलर पंप
से कर सकेंगे वहीं अंधेरे में जीवन व्यतीत कर रहा ग्रामीण भारत का बड़ा हिस्सा भी
रोशनी से जगमगा उठेगा।
इसके लिए जरूरत इस बात कि है कि ग्रामीण
क्षेत्रों में सौर उर्जा और उससे जुड़े साजोसामान का चलन बढाया जाए। और फिर वो दिन
दूर नहीं होगा जब गांवों में साइकिल मरम्मत की दुकानों की तरह उन इलाकों में भी
सौर उर्जा से चलने वाले छोटे-मोटे उपकरणों का निर्माण और मरम्मत की दुकानें भी
देखे जा सकते हैं, जो स्थानीय
रोजगार भी उपलब्ध कराएगा।
जब से लोगों को विश्व-स्तर पर यह समझ में आ रहा है कि तेल तीव्रता से समाप्त हो रहा है, ऊर्जा का मुद्दा नीति-चर्चाओं में प्रमुख जगह लिए हुए है । पारंपरिक तौर पर ऊर्जा के रूप में बिजली प्रायः तेल, कोयला, जल या परमाणु ऊर्जा से प्राप्त की जाती है । गांव में ऊर्जा की आपूर्ति पर्याप्त नहीं है जिसके कारण लोग रोजगार के लिए शहरों की ओर पलायन करते हैं । शहरों में बिजली की आपूर्ति के कारण वहां उद्योग विकसित हो रहे है जिसके कारण गांव की अपेक्षा शहरों में भीड़ बढ़ती जा रही है । ऊर्जा आपूर्ति के लिए गैर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे कोयला, कच्चा तेल आदि पर निर्भरता इतनी बढ़ रही है कि इन स्रोतों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है । विशेषज्ञों का कहना है कि अगले 40 वर्षों में इन स्रोतों के खत्म होने की संभावना है । ऐसे में विश्वभर के सामने ऊर्जा आपूर्ति के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली प्राप्त करने का विकल्प रह जाएगा । अक्षय ऊर्जा नवीकरणीय होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी है ।
गुजरात के सौर उर्जा संयंत्र से पूरे देश को सीख लेने की जरुरत है साथ में देश के सभी राज्यों के लिए यह एक अनुकरणीय उदहारण भी है । देश के सभी राज्यों को सौर व अन्य वैकल्पिक उर्जा के निर्माण की दिशा में सार्थक कदम अविलम्ब उठाना चाहिए जिससे देश की उर्जा जरूरते सतत व् निर्बाध तरीके से पूरी होती रहें ।
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