Friday 28 February 2014

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर विशेष-शोध में पिछडता देश

शशांक द्विवेदी 
 वैज्ञानिक शोध और आविष्कार का माहौल बनाना होगा
राजस्थान पत्रिका 
इस दुनियाँ और सम्पूर्ण मानव सभ्यता को आधुनिक बनाने में विज्ञान का बहुत ज्यादा योगदान है । सच कहें तो मानव सभ्यता का विकास विज्ञान के बिना संभव ही नहीं था । आज हम जो  सुविधाजनक जीवन जी रहें है वह सब कुछ इसी की देन है । कुछ अपवादों को छोड़ दे तो मानवता के कल्याण के विज्ञान का अमूल्य योगदान है । उन्नत वैज्ञानिक सोच हमें प्रगतिशील और प्रबुद्ध समाज के रूप में उभरने के लिए प्रेरित करती है । विज्ञान के बिना कुछ भी संभव नहीं है। जीवन के हर पहलू में अब इसका समावेश हो चुका है। विज्ञान से होने वाले लाभों के प्रति समाज में जागरूकता लाने और वैज्ञानिक सोच पैदा करने के उद्देश्य से हर साल 28 फरवरी को भारत में राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है।  प्रकाश प्रकीर्णन के अध्ययन के परिणाम से  28 फरवरी, 1928 को एक उत्कृष्ट खोज हुई जो दुनिया भर में रमन प्रभाव के नाम से विख्यात हुई। जिसकी मदद से कणों की आणविक और परमाणविक संरचना का पता लगाया जा सकता है । इस खोज के लिए डॉ . चन्द्रशेखर वेंकटरमन को वर्ष 1930 में भौतिकी के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। उनकी इसी ऐतिहासिक खोज के कारण ही भारत में प्रतिवर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
रमन प्रभाव भौतिक और रासायनिक दोनों ही क्षेत्रों में यह अत्यंत महत्वपूर्ण है । रमन प्रभाव की खोज ने आइन्सटाइन के उस सिद्धांत को भी प्रमाणित कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रकाश में तरंग के साथ ही अणुओं के गुण भी कुछ हद तक पाए जाते हैं.इससे पहले न्यूटन ने बताया था कि प्रकाश सिर्फ एक तरंग है और उसमें अणुओं के गुण नहीं पाए जाते । आइन्सटाइन ने इससे विपरीत सिद्धांत दिया और रमन प्रभाव से वह साबित हुआ ।
लेकिन आज हम भारत को विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में कहाँ पाते है कम से कम वहाँ तो नहीं जहाँ इसे होना चाहिए । दुनिया के कई छोटे देश तक वैज्ञानिक शोध के मामले में हमसे आगे निकल चुके हैं। आज देश में प्रति 10 लाख भारतीयों पर मात्र 112 व्यक्ति ही वैज्ञानिक शोध में लगे हुए हैं। रमन इफेक्ट की खोज के बाद भी हम उस पर और आगे शोध नहीं कर पाये और रमन स्कैनर का विकास दूसरे देशों ने किया । यह हमारी नाकामी नहीं तो और क्या है। जबकि रमन प्रभाव रसायनों की आणविक संरचना के अध्ययन में एक प्रभावी साधन है। इसका वैज्ञानिक अनुसंधान की अन्य शाखाओं, जैसे औषधि विज्ञान, जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान, खगोल विज्ञान तथा दूरसंचार के क्षेत्र में भी बहुत महत्त्व है। पिछले कई सालों से देश  में एक भी ऐसा विज्ञानिक नहीं हुआ जिसे पूरी दुनियाँ उसकी अनोखी देन के कारण पहचाने । किसी भारतीय नागरिक को नोबेल भी 84 साल पहले मिला था (सीवी रमन, 1930 भौतिकी)। तब से हम भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों द्वारा अर्जित नोबेल पर ही खुशी मनाते आए हैं। आज हम भारत को विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में कहाँ पाते है कम से कम वहाँ तो नहीं जहाँ इसे होना चाहिए । दुनिया के कई छोटे देश तक वैज्ञानिक शोध के मामले में हमसे आगे निकल चुके हैं। 
एक रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर शोधपत्रों के प्रकाशन के मामले में भी भारत , चीन और अमेरिका से काफी पीछे है। अमेरिका में हर वर्ष भारत से दस गुना ज्यादा और चीन में सात गुना ज्यादा शोध पत्र प्रकाशित होते हैं और ब्राजील में भी हमसे तीन गुना अधिक शोध पत्र प्रकाशित होते हैं। शोध पत्रों के प्रकाशन में वैश्विक स्तर पर हमारी हिस्सेदारी महज 2.11 प्रतिशत है ।
हिंदुस्तान 
आजादी के बाद भी आज तक ऐसा कोई बुनियादी ढांचा विकसित नहीं हो पाया जिससे देश में बड़े पैमाने पर अनुसंधान को प्रोत्साहित किया जा सके । पिछले दिनों ही जम्मू में 101 वे विज्ञान कांग्रेस समारोह सरकारी रस्म अदायगी का एक और सम्मेलन बन कर रह गया । विज्ञान ,शोध और नवप्रवर्तन के लिए कहीं भी कोई संजीदगी नहीं दिखी । मै खुद इस सम्मेलन में आमंत्रित वक्ता के रूप में शामिल था और ये देखकर बहुत निराशा हुई कि  केंद्र और राज्य सरकार के नुमाइंदों द्वारा कोई नई बात नहीं कही गयी । विज्ञान कांग्रेस में प्रधानमंत्री “विज्ञान “ पर कम और “कांग्रेस “ के एजेंडे पर ज्यादा बोले मसलन सरकार ने इतने आईआईटी ,आईआईएम खोले ,विज्ञान का बजट बढ़ाने के साथ कुछ और योजनाओं की भी घोषणा हुई लेकिन उनका क्रियान्वयन कब और कैसे होगा उसकी कोई रुपरेखा उन्होंने नहीं बताई । प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने पिछले सालों की तरह एक बार फिर विज्ञान के लिए बजट में जीडीपी का दो प्रतिशत खर्च करने की वकालत की । जबकि इसके पहले भी वो विज्ञान कांग्रेस के समारोह में यही बात कह चुके है लेकिन इसका क्रियान्वयन आज तक नहीं हुआ । यहाँ तक कि पिछले दिनों संसद में पेश अंतरिम बजट में भी शोध और अनुसंधान के लिए वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने सिर्फ 200 करोड़ आवंटित किये है । पिछले 10 साल से विज्ञान कांग्रेस समारोह का उद्घाटन डॉ मनमोहन सिंह ही कर रहें है और देश को ,विज्ञान को उनसे बहुत उम्मीदे थी लेकिन फिर भी इन दस सालों में सिवाय वायदों और घोषणाओं के इस देश को कुछ नहीं मिला । डॉ मनमोहन सिंह जो खुद एक अर्थशास्त्री और शिक्षाशास्त्री है अगर विज्ञान के लिए कुछ नहीं कर पायें तो इसकी उम्मीद किससे की जाए । सैम प्रित्रोदा के नेतृत्व में नेशनल इनोवेशन कौंसिल ने भी पिछले सालों में कुछ बुनियादी सुधार नहीं किया । कहने का मतलब साफ है विज्ञान पर अधिकांश सरकारी समारोह सिर्फ रस्म आदायगी के तौर पर होता है । 
हमारे देश में विज्ञान और अनुसंधान पर चर्चा तभी होती है जब कोई नेता ,मंत्री या प्रधानमंत्री उसकी बदहाली पर बोलते है। विज्ञान कांग्रेस में प्रधानमंत्री ने कहा था हमारे समाज में साइंस को जो मुकाम मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल पाया है। लेकिन इसके लिए जिम्मेदार कौन है ?देश में वैज्ञानिक अनुसंधान और शोधो की दशा अत्यंत दयनीय है । विज्ञान की बदहाली पर रोना कोई नयी बात नहीं है यह क्रम कई सालों से लगातार चला आ रहा है लेकिन वास्तविक धरातल पर आज तक ठोस और सार्थक क्रियान्वयन नहीं हो पाया है  । हां यह जरूर हो रहा है कि सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए अब इस क्षेत्र को भी पूरी तरह से निजी क्षेत्र और बाजार के हवाले करने जा रही है जहाँ मुनाफाखोरी ही एकमात्र सिद्धांत है । ऐसी स्थति में आप विज्ञान और शोध  में कितने गुणात्मक सुधार की उम्मीद कर सकते है । देश में ज्यादातर यूनिवर्सिटीज के अंदरूनी हालात ऐसे हो गए हैं कि वहां शोध के लिए स्पेस काफी कम रह गया है। शोध के साथ ही पढ़ाई के मामले में भी काफी कुछ किए जाने की जरूरत है, ताकि यूनिवर्सिटी सिर्फ डिग्री बांटने वाली दुकानें न बनकर रह जाएं।
लोकमत 
देश के अधिकांश युवा अनुसंधान कार्यक्रमों से जुड़ने की बजाय या तो आईटी क्षेत्र में चले जाते हैं या फिर मैनेजमेंट को अपना भविष्य बना लेते हैं। इन क्षेत्रों में उन्हें भारी भरकम पैकेज मिल रहा है तथा सामाजिक प्रतिष्ठा भी। जबकि विज्ञान विषयों में पीएचडी करने के बाद बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ता है । आर्थिक तंगी के साथ दृसाथ शोध और अनुसंधान में आगे अवसर न होने की वजह से युवा अवसाद में आने लगते है । आज जरुरत है विज्ञान के विषय में गंभीरता से एक राष्ट्रीय नीति बनाने की और उस पर संजीदगी से अमल करने की सिर्फ बातें करने और घोषणाओं से कुछ हासिल नहीं होने वाला । 
देश में वैज्ञानिक शोध और आविष्कार का माहौल बनाना होगा। संचार माध्यमों के साथ-साथ वैज्ञानिकों की भी जिम्मेदारी है कि वो विज्ञान को लोगों तक पहुंचाने में सहयोग करें। इंटरनेट और डिजीटल क्रांति के जरिए क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान को और प्रभावी बनाया जा सकता है। देश में  विज्ञान संचार  के उन्नयन के लिये उसे व्यवहारिक और रोजगार परक भी बनाना होगा । इसके लिये हमें हर स्तर पर सकारात्मक और सार्थक कदम उठाने होंगे । विज्ञान के क्षेत्र में अब समस्याओं को ध्यान में रखकर ठोस और बुनियादी समाधान करने का है । तभी भारत एक वैज्ञानिक शक्ति संपन्न राष्ट्र के रूप में उभरेगा।

1 comment:

  1. हिंदी जानकारी को जन - जन तक पहुँचाने के लिए शेयर जरूर करे।
    हम हिंदुस्तानी हैं और हिंदी हमारी मातृ भाषा है। और दोस्तों अब समय ऐसा है के हमारा हिंदी पर गर्व 8 गुणा बढ़ गया है क्युकी हमारे देश के प्रधानमंत्री भी हिंदी भाषा पर जोर दे रहे हैं। हो भी क्यों ना आखिर हिंदी हिन्दुंस्तान का दिल जो है। और इसी दिशा में मैंने भी एक कदम बढ़ाया है और आप लोगो के सामने कुछ जानकारियां हिंदी भाषा में प्रस्तुत करने की कोशिश की हैं।
    http://foolindians.blogspot.in/2014/09/blog-post_18.html

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