डॉ. विशेष गुप्ता
अभी हाल ही में वायु प्रदूषण से जुड़ी अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट ‘एनवायरमेंटल परफॉरमेंस इंडेक्स’ (ईपीआई)-2014 आई है। इस रिपोर्ट में 178 देशों के बीच भारत का स्थान पिछले साल के मुकाबले 32 अंक गिरकर 155 पर आ गया है । दरअसल, यह गिरावट वायु प्रदूषण के मामले में भारत की गंभीर स्थिति को बयान करती है। ध्यान रहे कि ईपीआई ने स्वास्थ्य पर प्रभाव, वायु प्रदूषण, पेयजल, स्वच्छता, जल संसाधन, कृषि, जंगल, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन तथा ऊर्जा जैसे बिंदुओं को आधार बनाकर भारत के तुलनात्मक संदर्भ में निष्कर्ष निकाले हैं। रिपोर्ट खुलासा करती है कि भारत वायु प्रदूषण के मुद्दे पर ‘ब्रिक्स’ यानी ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका के साथ ही अपने पड़ोसी पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका तक से पीछे रह गया है। परंतु यूपीए की केंद्र सरकार ने वर्ष 2014-15 का जो अंतरिम बजट पे किया है उसमें वायु प्रदूषण को लेकर भारत की बदतर स्थिति को अनदेखा किया गया है। उल्टे बजट में दी गई रियायतों से कार उद्योग के और अधिक फलने- फूलने के आसार बढ़ गए हैं। हालांकि वित्त मंत्री स्वीकारते हैं कि इस रियायत से देश को 300- 400 करोड़ रुपयों के राजस्व की हानि होगी, परंतु दूसरी ओर वे मंदी के दौर से गुजर रहे कार उद्योग को बढ़ावा देने के लिए इस रियायत को जरूरी बता रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि कारों के निर्माण के मामले में भारत दुनिया का छठा सबसे बड़ा देश है। यहां सालाना 39 लाख कारों का निर्माण होता है। यहां का आटो उद्योग आजकल चीन तक को मात दे रहा है। कहने की जरूरत नहीं कि अंतरिम बजट में वाहन उद्योग को दी गई रियायतों के बाद लाखों कारों के एक बार फिर से सड़क पर आने की संभावनाएं प्रबल हो गई हैं। इसके बाद ध्वनि प्रदूषण के स्तर में तो शर्तिया इजाफा होगा ही, साथ ही हवा में जहर की मात्रा भी जरूर बढ़ेगी। इस बाबत सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेन्ट (सीएसई) से जुड़ी एक और रिपोर्ट गौरतलब है जो साफ तौर पर कहती है कि अब वायु प्रदूषण बड़े शहरों के साथ-साथ छोटे नगरों को भी अपनी चपेट में ले रहा है। रिपोर्ट यह भी संकेत करती है कि हालांकि ग्वालियर, इलाहाबाद, गाजियाबाद व लुधियाना जैसे शहर महानगरों की श्रेणी में नहीं आते, फिर भी यहां वायु प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। सीएसई ने बीजिंग एनवायरमेंट प्रोटेक्शन ब्यूरो, दिल्ली प्रदूषण नियंतण्रसमिति तथा केंद्रीय प्रदूषण नियंतण्रबोर्ड के पिछले चार-पांच महीनों के आंकड़ों का अध्ययन करके बताया कि दिल्लीवासी इस समय बेहद खतरनाक वायु के बीच सांस ले रहे हैं। दिल्ली में बेंजीन तथा कार्बनमोनोक्साइड जैसे घातक रसायनों की मात्रा मानक के स्तर से दस गुना तक बढ़ गइ है। दरअसल, इसके लिए सड़कों पर लगातार वाहनों की बढ़ती तादाद सबसे अधिक जिम्मेदार है। कई यूरोपीय देशों में कारों की बिक्री तथा उनके नियंत्रित प्रयोग के नियम लागू हैं। परंतु भारत में निजी वाहनों का प्रयोग सीमित करने तथा सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को कारगर बनाने के सभी सरकारी व गैरसरकारी प्रयास बहुत कमजोर दिखाई देते हैं। चीन को भले ही हम अपना निकट प्रतिस्पर्धी मानते रहें, परंतु वहां वाहनों से होने वाले प्रदूषण को रोकने का अच्छा उदाहरण हमारे सामने है। चीन ने अपने यहां पिछले सालों में हर वर्ष बेची जाने वाली गाड़ियों की संख्या 2.40 लाख निर्धारित कर दी थी। इस साल उसने यह संख्या घटाकर 1.50 लाख कर दी है। वहां पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बड़े पैमाने पर गुणवत्ता के साथ विस्तार दिया गया है। इसके साथ-साथ वहां वायु की गुणवत्ता को मापने तथा स्वास्थ्य से जुड़े चेतावनी तंत्र को भी बहुत मजबूत बनाया गया है। दूसरी तरफ अकेले दिल्ली की स्थिति यह है कि यहां डेढ़ हजार नए वाहन रोजाना सड़कों पर आ जाते हैं। साथ ही भारत में वाहन खरीदने के कर्ज पर ब्याज दरों में भारी कमी का लालच भी मौजूद है। बजट में कार उद्योग को रियायत मिलने के बाद तो देश में कारों का काफिला और लंबा होने के आसार हैं। यहां कारों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि से वायु प्रदूषण के साथ-साथ पार्किग की भी समस्या अधिक गंभीर हो सकती है। अध्ययन बताते हैं कि बीजिंग और दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक साथ काम शुरू किया गया था, परंतु हैरत की बात है कि बीजिंग अपने वायु प्रदूषण को कम करने में कामयाब हो गया लेकिन दिल्ली के हालात सुधरने के बजाए और बिगड़ते जा रहे हैं। अब सरकार द्वारा ऑटो उद्योग को दी गई कर रियायतों के बाद स्थिति के और गंभीर होने का खतरा है। ऐसा नहीं है कि देश में वायु प्रदूषण को कम करने के प्रयास नहीं किए गए। डेढ़ दशक पहले दिल्ली के साथ-साथ अन्य महानगरों में सीसा-रहित डीजल और पेट्रोल के साथ सीएनजी की बिक्री भी शुरू की गई थी। परंतु यहाँ पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को बेहतर बनाने तथा उसका विस्तार करने के बजाए डीजल व पेट्रोल चालित वाहनों को खुली छूट दे दी गई। रिपोर्ट से जुड़े तथ्य यह भी बताते हैं कि सबसे अधिक वायु प्रदूषण डीजल से चलने वाली गाड़ियां ही फैलाती हैं। रिपोर्ट यह भी खुलासा करती है कि ठंडे मौसम में लगातार धुंध की जो स्थिति बनती है, उसका कारण बड़ी मात्रा में गाड़ियों से लगातार निकलने वाला धुआं ही है। येल विविद्यालय की रिपोर्ट तो यहां तक कहती है कि गाड़ियों के इस धुएं से निकलने वाले कण मनुष्य के रक्त और फेफड़ों में जाकर कैंसर की बड़ी वजह बनते हैं। सच यह है कि आज भारत में सांस, खासकर दमा अथवा अस्थमा से मरने वालों की संख्या सबसे अधिक है। शायद यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में वायु प्रदूषण पर काबू करने के लिए डीजल चालित कारों पर अधिक कर लगाने के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार से जवाब तलब किया है। कोर्ट को दी गई अर्जी में साफ कहा गया है कि डीजल कारों की बढ़ती संख्या के कारण प्रदूषण में वृद्वि की वजह से हर साल तकरीबन तीन हजार बच्चों की मौत हो जाती है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण प्राधिकरण की ताजा रिपोर्ट में तो डीजल कारों पर 30 फीसद अधिभार लगाने तथा निजी कारों के पंजीकरण शुल्क में भारी वृद्वि करने के निर्देश दिए गए हैं। परंतु सरकार अपने चुनावी स्वार्थो के सामने इन रपटों का सच नकारने पर तुली है। बढ़ते वाहनों वाहनों की भीड़ जहां एक ओर नगरों-महानगरों में जाम व पार्किग की समस्या को बढ़ा रही है, वही दूसरी ओर इन गाड़ियों के धुएं से निकलने वाले बेंजीन और कार्बन मोनोक्साइड जैसे घातक रसायन लोगों के रक्त प्रवाह और स्नायु तंत्र पर काफी बुरा प्रभाव डाल रहे हैं। इससे लोगों की कार्यक्षमता लगातार कम होती जा रही है। वाहनों की तेज चाल हर साल सड़क दुर्घटनाओं में एक लाख से अधिक लोगों की जिंदगी लील जाती है। पेट्रोलियम मंत्रालय भी मानता है कि देश में तकरीबन बारह हजार करोड़ की सब्सिडी निजी कारों की भेंट चढ़ जाती है। यह सच है कि ऑटो उद्योग देश की जीडीपी में छह फीसद का योगदान करता है, परंतु गौरतलब बात यह है कि लोगों में निजी वाहन की ललक ऑटो उद्योग की सेहत को भले ही ठीक रखें, परंतु इससे देश की सेहत शर्तिया तौर पर बिगड़ रही है। सरकार में अंतरिम बजट में जिस तरह ऑटो उद्योग को रियायतें दी हैं उससे निश्चित ही शहरी नियोजन और परिवहन नीति के बीच का तालमेल खराब होगा। हालांकि सचाई यह भी है कि लोगों में निजी वाहन की चाहत तभी बढ़ती है जब सार्वजनिक परिवहन से उनका भरोसा लगातार टूटता है। इससे किसी को ऐतराज नहीं कि ऑटो उद्योग को रियायत मिले, परंतु ऐसी रियायतें देश की वायु प्रदूषण जैसी ज्वलंत और जानलेवा समस्या की कीमत पर नहीं दी जानी चाहिए। हालिया जरूरत इस बात की है कि देश में सार्वजनिक परिवहन पर लोगों का भरोसा कायम हो। इसके लिए जरूरी यह भी है कि आटो इंडस्ट्री को सीधे रियायतों की बजाए सार्वजनिक परिवहन के साधनों की संख्या में पर्याप्त बढ़ोत्तरी हो। इसके साथ-साथ उसका संचालन इको फ्रेंडली हो तथा उसकी गुणवत्ता में भी विस्तार हो। तभी लोगों में निजी वाहन खरीदने की आक्रामक प्रवृत्ति को हतोत्साहित करके हवा में घुलने वाले जहर की बढ़ती गंभीरता को कम किया जा सकता है । यह सच है कि ऑटो उद्योग देश की जीडीपी में छह फीसद का योगदान करता है, परंतु गौरतलब बात यह है कि लोगों में निजी वाहन की ललक ऑटो उद्योग की सेहत को भले ही ठीक रखें, परंतु इससे देश की सेहत शर्तिया तौर पर बिगड़ रही है इस पर किसी को ऐतराज नहीं कि ऑटो उद्योग को रियायत मिले, परंतु ऐसी रियायतें देश की वायु प्रदूषण जैसी ज्वलंत और जानलेवा समस्या की कीमत पर नहीं दी जानी चाहिए
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