Monday 28 January 2013

गरीबों को क्यों नहीं मिलते साइंस के फायदे

कुमार विजय॥
 लगातार बदलती दुनिया में अपने आपको बचाए रखने के लिए आविष्कार का मंत्र याद रखना बहुत जरूरी है। लेकिन इसके साथ ही साथ ही इस बात पर भी नजर रखी जानी चाहिए कि देश-दुनिया के बेहतरीन दिमागों द्वारा जो आविष्कार या रिसर्च किए जाते हैं, उनका लाभ समाज के हर हिस्से तक पहुंच पा रहा है या नहीं। हकीकत यही है कि विज्ञान के आविष्कारों का लाभ समाज के निचले तबकों तक नहीं पहुंच पाता है, या पहुंचता भी है तो इतनी देर से कि उनके लिए इसका ज्यादा मतलब नहीं बचता। ऐसा होने की मुख्य वजह यह है कि रिसर्च में मुनाफे और बाजार को अधिक महत्व दिया जाता है, इंसान को नहीं।

सिर्फ मुनाफे की फिक्र
दुनिया में पुरुषों का गंजापन दूर करने की दवा विकसित करने के लिए जितना खर्च किया जाता है, वह मलेरिया की दवा विकसित करने पर होने वाले खर्च से 10 गुना ज्यादा है। विज्ञान के चमत्कारों को देखते हुए यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है कि मलेरिया आज भी मानव समाज के सामने एक जानलेवा रोग बनकर खड़ा है। इससे निपटने के लिए एक सदी से भी ज्यादा समय से प्रयास हो रहे हैं, लेकिन सफलता आज तक नहीं मिल सकी है। आज भी दुनिया भर में मलेरिया से हर साल 10 लाख बच्चों की मौत हो जाती है। गंजेपन और मलेरिया की रिसर्च के खर्चों के बीच नजर आने वाले विरोधाभास की कुंजी यहां है कि गंजापन दूर करने की दवा के साथ बहुत बड़ा मुनाफा जुड़ा है जबकि मलेरिया के साथ सिर्फ लोगों की जिंदगी-मौत का सवाल जुड़ा है, मुनाफे की कोई खास गुंजाइश इसमें नहीं है।
नैपकिन की जगह सूखे पत्ते
विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस स्वीकृति के बावजूद कि हर बच्चे को हैपेटाइटिस बी का वैक्सीन लगना चाहिए, विकासशील देशों के लिए यह काम एक सपने जैसा ही है। कारण? इसकी कीमत प्रति डोज 2.3 डॉलर है, जो विकासशील देशों के लोगों की पहुंच से बाहर है। ध्यान रहे, हैपेटाइटिस बी के कारण इन देशों में 1 से 2 फीसदी लोगों की मौत हो जाती है। समय से इसका टीका न लगने पर बाद में लिवर खराब होने की संभावना भी बढ़ जाती है। औरतों के बुनियादी स्वास्थ्य से जुड़े हुए क्षेत्रों में भी सस्ते अविष्कार की जरूरत है। मासिक धर्म (पीरियड्स) के समय उपयोग करने के लिए सस्ते सैनिटरी नैपकिन हर स्त्री को उपलब्ध होने चाहिए, लेकिन भारत के ग्रामीण समाज में ज्यादातर औरतें आज भी पीरियड्स के दौरान पुराने कपड़ों, अखबार, यहां तक कि सूखे पत्तों का उपयोग करती हैं।

नतीजा यह होता है कि जननांगों का संक्रमण उनके लिए आम बीमारी बन जाता है। इसके कारण बच्चा पैदा होने के दौरान मुश्किलें पेश आती हैं। औरतों के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ यह एक अहम सवाल है लेकिन इस ओर गंभीरता के साथ ध्यान नहीं दिया जाता। बाजार में उपलब्ध नैपकिन की कीमत इतनी ज्यादा होती है कि समाज की गरीब औरतें उसे खरीदने में असमर्थ होती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अरुणाचलम मुरुगनाथम ने, जिसे केवल 10वीं तक की ही शिक्षा मिली थी, अपनी चार साल के मेहनत के बाद नैपकिन बनाने की ऐसी मशीन तैयार की, जिसे बिजली और पैडल, दोनों से चलाया जा सकता है। इस मशीन के जरिये बनाया गया नैपकिन 12 रुपए में 8 की दर पर उपलब्ध है। मुरुगनाथम ने इस मशीन को पेटेंट कराने से मना किया है।

इसी तरह गुजरात के मनसुख भाई प्रजापति ने मिट्टी से एक ऐसा रेफ्रिजरेटर बनाया है, जिसमें सब्जी जैसे खाद्य पदार्थ 6 दिन तक सुरक्षित रह सकते हैं। आम आदमी के लिए कोई आविष्कार करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि आज भी हमारे समाज का एक बहुत बड़ा तबका आधुनिक विकास और तकनीक की परिधि से बाहर है। चीन में ऐसा नहीं है क्योंकि वहां ऐसी बहुत सारी कंपनियां हैं जो तकनीकी रूप से ऐसे अविष्कार या रिसर्च करती हैं, जिससे कम कीमत पर लोगों को सुविधाएं हासिल हो सकें। यही कारण है कि कम कीमतों के सामान के मामले में चीन दुनिया का अग्रणी देश है।

हमारे अविष्कारों का लक्ष्य यह होना चाहिए हमारे देश का एक बहुत बड़ा तबका, जो जिंदगी की बुनियादी जरूरतों से महरूम है, उसे रोटी, कपड़ा, मकान और मोबाइल मिल सके। पृथ्वी पर संसाधनों और श्रम की कोई कमी नहीं है। यहां आविष्कार इस बात के लिए होने चाहिए कि पानी, ऊर्जा और कुदरती संसाधनों का अधिक से अधिक उपयोग हो सके। भारत सरकार के द्वारा भी जुलाई 2012 में एक अरब डॉलर का इनोवेशन फंड प्रारंभ किया जा रहा है। सैम पित्रोदा को इसका नेतृत्व करने के लिए कहा गया है। इस फंड का निवेश वैसे इनोवेशन में किया जाएगा जो लोगों को सस्ती सेवा और उत्पाद उपलब्ध करा सके और जिसका उपयोग गरीब लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाने में किया जा सके।

आम लोगों के काम आए
पित्रोदा ने मीडिया में कहा है- 'हमें ऐसे लोगों को पैसा मुहैया कराना चाहिए जिनके पास आइडिया तो है लेकिन सीड कैपिटल नहीं है'। इस फंड का नाम इंडिया इनक्लूसिव इनोवेशन फंड है और इसका निवेश खासकर कृषि, पानी, ऊर्जा और स्वास्थ्य सेवा में किया जाएगा। यहां यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि भारत सरकार द्वारा गरीबों को आज भी काफी सब्सिडी दी जाती है, लेकिन सरकार के खुद के आकलन में भी इसका नतीजा बहुत बेहतर नहीं है। अगर हमारे समाज के बहुत बड़े निचले तबके तक आधुनिक तकनीक और आविष्कार का लाभ नहीं पहुंचा तो समाज में असमानता की खाई ओर चौड़ी होगी। सस्ते और सुविधाजनक आविष्कार भविष्य में इस खाई को पाटने के लिए एक कारगर हथियार की भूमिका निभा सकते हैं।
 

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