मुकुल व्यास ॥
जरा सोचिए, कास्मेटिक
सर्जरी से आपके चेहरे की झुर्रियां गायब हो जाएं और ऑफिस में काम करते हुए
आप हमेशा जवान दिखें। आपकी आंखों में ऐसा उपकरण फिट हो जाए, जिसकी मदद से
आप अंधेरे में भी देख सकें और आपको ऐसा कृत्रिम अस्थिपंजर मिल जाए, जिसकी
मदद से भारी से भारी सामान चुटकियों में उठा लें, भले ही आप सींकिया पहलवान
क्यों न हों। मुश्किल और बोझिल कामों में आप को खूब मजा आने लगे। यह सिर्फ
हमारी कल्पना नहीं है। यह मानव शरीर में होने वाले भौतिक सुधारों की एक
झलक है। ब्रिटेन की चार प्रमुख वैज्ञानिक संस्थाओं ने अपनी संयुक्त रिपोर्ट
में कहा है कि भविष्य के कार्य स्थलों में मनुष्य की क्षमताओं को बढ़ाने
वाली संवर्धन (इनहैंसमेंट) तकनीकों का उपयोग एक आम चलन हो जाएगा।
तकनीकी उपकरणों के जरिये मनुष्य की परफॉर्मेंस की सीमा बढ़ाना कोई नई बात नहीं है। लेकिन ब्रिटेन की एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंस, रॉयल सोसाइटी, रॉयल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग और ब्रिटिश एकेडमी का मानना है कि साइंस और टेक्नोलॉजी में हो रही तरक्की को देखते हुए इंसानी शरीर के भौतिक संवर्धन के नए युग की शुरुआत हो सकती है। अभी मानव संवर्धन तकनीकों का उपयोग मनुष्य के शरीर में उन फंक्शनों की बहाली के लिए किया जाता है, जो मेडिकल कारणों से अवरुद्ध हो जाते हैं। लेकिन भविष्य में मेडिकल साइंस का मुख्य जोर स्वस्थ लोगों की कुदरती क्षमताओं में सुधार पर आ जाएगा।
मसलन, आंखों में रेटिना के पीछे लगाए गए इंप्लांट की मदद से रात में काम करने वाले व्यक्ति अंधेरे में भी देख सकेंगे। ऐसे उपकरणों से अल्ट्रा वायलेट लाइट का भी पता लग जाएगा, जिसे मनुष्य की आंख नहीं पकड़ सकती। क्षतिग्रस्त या रुग्ण अंगों को बदलने के लिए टिशू इंजीनियरिंग और रिजेनरेटिव मेडिसिन पर दुनिया में इस समय काफी गहन रिसर्च चल रही है। लेकिन भविष्य में ये तकनीकें स्वस्थ लोगों के लिए भी काम आएंगी। शारीरिक श्रम वाले कामों को आसानी से पूरा करने के लिए मनुष्य बायोनिक भुजाओं से अपने मसल्स की ताकत बढ़ा सकेगा। आफिसों में हर आदमी युवा दिखना चाहता है। खासकर वे लोग, जो प्रौढ़ावस्था में हैं या अपने रिटायरमेंट की तरफ बढ़ रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए कास्मेटिक सर्जरी के विकल्प उपलब्ध रहेंगे।
तकनीकी उपकरणों के जरिये मनुष्य की परफॉर्मेंस की सीमा बढ़ाना कोई नई बात नहीं है। लेकिन ब्रिटेन की एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंस, रॉयल सोसाइटी, रॉयल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग और ब्रिटिश एकेडमी का मानना है कि साइंस और टेक्नोलॉजी में हो रही तरक्की को देखते हुए इंसानी शरीर के भौतिक संवर्धन के नए युग की शुरुआत हो सकती है। अभी मानव संवर्धन तकनीकों का उपयोग मनुष्य के शरीर में उन फंक्शनों की बहाली के लिए किया जाता है, जो मेडिकल कारणों से अवरुद्ध हो जाते हैं। लेकिन भविष्य में मेडिकल साइंस का मुख्य जोर स्वस्थ लोगों की कुदरती क्षमताओं में सुधार पर आ जाएगा।
मसलन, आंखों में रेटिना के पीछे लगाए गए इंप्लांट की मदद से रात में काम करने वाले व्यक्ति अंधेरे में भी देख सकेंगे। ऐसे उपकरणों से अल्ट्रा वायलेट लाइट का भी पता लग जाएगा, जिसे मनुष्य की आंख नहीं पकड़ सकती। क्षतिग्रस्त या रुग्ण अंगों को बदलने के लिए टिशू इंजीनियरिंग और रिजेनरेटिव मेडिसिन पर दुनिया में इस समय काफी गहन रिसर्च चल रही है। लेकिन भविष्य में ये तकनीकें स्वस्थ लोगों के लिए भी काम आएंगी। शारीरिक श्रम वाले कामों को आसानी से पूरा करने के लिए मनुष्य बायोनिक भुजाओं से अपने मसल्स की ताकत बढ़ा सकेगा। आफिसों में हर आदमी युवा दिखना चाहता है। खासकर वे लोग, जो प्रौढ़ावस्था में हैं या अपने रिटायरमेंट की तरफ बढ़ रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए कास्मेटिक सर्जरी के विकल्प उपलब्ध रहेंगे।
कुछ नौकरियों में युवा
लुक्स पर जोर दिया जाता है। अत: प्रौढ़ व्यक्ति अपनी नौकरियां बचाने की
खातिर चेहरा सुधार सर्जरी अपनाने के लिए मजबूर होंगे। इंसानी काबिलियत
बढ़ाने के लिए डिजिटल तरीके भी विकसित हो रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है
कि 15 साल के अंदर ऐसे छोटे उपकरण उपलब्ध हो जाएंगे, जो जीवन के सारे
अनुभवों को एक निरंतर वीडियो फीड की तरह रिकॉर्ड कर सकेंगे। यह संग्रह एक
तरह से हमारी याददाश्त की रेफरेंस बुक का काम करेगा। याददाश्त कमजोर पड़ने
पर हम तुरंत अपनी डिजिटल मेमरी को देख कर अपने पुराने दिनों में लौट
सकेंगे।
किंग्स कॉलेज लंदन की प्रोफेसर जेनेवरा रिचर्डसन का कहना है कि इन संवर्धन तकनीकों के आम चलन में आने से कार्य स्थलों में कर्मचारियों पर दबाव बढ़ जाएगा। वे अपनी नौकरियां बचाने के लिए इन्हें अपनाने को विवश हो सकते हैं। इस समय विविध तकनीकें विकसित हो रही हैं। मानव संवर्धन तकनीकों के पोटेंशियल पर पब्लिक और एकेडमिक क्षेत्रों में काफी दिलचस्पी पैदा हो रही है। लेकिन काम के संदर्भ में इन तकनीकों के दुष्प्रभावों पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। कुछ तकनीकों का इस्तेमाल शुरू भी हो चुका है। ये तकनीकें कार्य स्थलों को बेहतर या बदतर बना सकती हैं। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को समाज शास्त्रियों , दार्शनिकों , नीति - निर्धारकों और पब्लिक के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि इन तकनीकों से ज्यादा से ज्यादा फायदा मिले और नुकसान कम से कम हो। ब्रिटिश संस्थाओं की रिपोर्ट प्रो . रिचर्डसन की देखरेख में ही तैयार की गई है।
ह्यूमन इनहैंसमेंट एंड दि फ्यूचर ऑफ वर्क नामक इस रिपोर्ट में उस हर चीज के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है , जिनका उपयोग मनुष्य के काम करने की क्षमता को सुधारने के लिए किया जा सकता है। इनमंे स्मार्ट ड्रग्स और डिजिटल तकनीकें भी शामिल हैं। रिपोर्ट में मानव संवर्धन की परिभाषा ऐसे उपायों के रूप की गई है , जो मनुष्य को उसकी सामान्य काबिलियत से ऊपर उठा सकें । रिचर्डसन के मुताबिक ये तकनीकें काम करने या सीखने की हमारी क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं। ये हमें विषम परिस्थितियों या वृद्धावस्था में कार्य करने के काबिल बना सकती हैं। समाज को इन तकनीकों से फायदा हो सकता है , लेकिन कार्य स्थलों पर इनके इस्तेमाल से गंभीर नैतिक , राजनीतिक और आर्थिक सवाल भी उत्पन्न हो सकते हैं। जैसे , पब्लिक इन तकनीकों को किस दृष्टि से देखेगी और लोगों पर इनके दीर्घकालीन उपयोग का प्रभाव क्या होगा। इनके अमल में आने से जोर - जबरदस्ती का प्रश्न भी खड़ा हो सकता है। इन सवालों पर विस्तृत विचार - विमर्श की आवश्यकता है।
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की न्यूरोसाइंटिस्ट बार्बरा साहाकियन का कहना है कि कार्य स्थलों में लोगों को ज्यादा प्रोडक्टिव बनाने के लिए उन्हें बौद्धिक क्षमता बढ़ाने वाले ड्रग्स दिए जा सकते हैं। ड्रग्स के प्रभाव से वे अपना काम ज्यादा ध्यान से करेंगे और मुश्किल से मुश्किल काम करने में उन्हें मजा आएगा। साहाकियन के मुताबिक अल्ट्शाइमर्स रोग और सीजोफ्रीनिया जैसे स्नायु विकारों के लिए बनाई गई दवाओं का इस्तेमाल भविष्य में स्वस्थ लोग अपनी बौद्धिक क्षमता बढ़ाने के लिए भी कर सकते हैं। पश्चिमी देशों में किए गए विभिन्न सर्वेक्षणों से पता चलता है कि आजकल अनेक स्टूडेंट एग्जाम में अपनी ग्रेड सुधरने के लिए स्मार्ट ड्रग्स का सेवन कर रहे हैं। इससे यह सवाल पैदा होता है कि क्या कॉलेज अधिकारी ओलंपिक खिलाडि़यों की तरह ही स्टूडेंट्स को भी ड्रग्स लेने से मना करेंगे ?
स्वस्थ लोगों पर बौद्धिक संवर्धन ड्रग्स के प्रभावों को जानने के लिए दीर्घकालीन अध्ययन जरूरी है। बौद्धिक संवर्धन ड्रग्स का इस्तेमाल व्यक्तिगत पसंद का मामला हो सकता है , लेकिन भविष्य में ऐसे ड्रग्स का दुरुपयोग भी संभव है। कल्पना कीजिए कि किसी बस ड्राइवर को ड्रग देकर रात भर जागने या देर तक काम करने के लिए कहा जाए। क्या ऐसा करना उचित होगा ? मानव संवर्धन तकनीकों के इस्तेमाल की नैतिकता पर सवाल खड़े करने वाले लोगों का कहना है कि टेक्नोलॉजी की आड़ में किसी भी व्यक्ति को अनुपयुक्त परिस्थितियों में काम करने के लिए विवश नहीं किया जा स कता।
किंग्स कॉलेज लंदन की प्रोफेसर जेनेवरा रिचर्डसन का कहना है कि इन संवर्धन तकनीकों के आम चलन में आने से कार्य स्थलों में कर्मचारियों पर दबाव बढ़ जाएगा। वे अपनी नौकरियां बचाने के लिए इन्हें अपनाने को विवश हो सकते हैं। इस समय विविध तकनीकें विकसित हो रही हैं। मानव संवर्धन तकनीकों के पोटेंशियल पर पब्लिक और एकेडमिक क्षेत्रों में काफी दिलचस्पी पैदा हो रही है। लेकिन काम के संदर्भ में इन तकनीकों के दुष्प्रभावों पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। कुछ तकनीकों का इस्तेमाल शुरू भी हो चुका है। ये तकनीकें कार्य स्थलों को बेहतर या बदतर बना सकती हैं। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को समाज शास्त्रियों , दार्शनिकों , नीति - निर्धारकों और पब्लिक के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि इन तकनीकों से ज्यादा से ज्यादा फायदा मिले और नुकसान कम से कम हो। ब्रिटिश संस्थाओं की रिपोर्ट प्रो . रिचर्डसन की देखरेख में ही तैयार की गई है।
ह्यूमन इनहैंसमेंट एंड दि फ्यूचर ऑफ वर्क नामक इस रिपोर्ट में उस हर चीज के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है , जिनका उपयोग मनुष्य के काम करने की क्षमता को सुधारने के लिए किया जा सकता है। इनमंे स्मार्ट ड्रग्स और डिजिटल तकनीकें भी शामिल हैं। रिपोर्ट में मानव संवर्धन की परिभाषा ऐसे उपायों के रूप की गई है , जो मनुष्य को उसकी सामान्य काबिलियत से ऊपर उठा सकें । रिचर्डसन के मुताबिक ये तकनीकें काम करने या सीखने की हमारी क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं। ये हमें विषम परिस्थितियों या वृद्धावस्था में कार्य करने के काबिल बना सकती हैं। समाज को इन तकनीकों से फायदा हो सकता है , लेकिन कार्य स्थलों पर इनके इस्तेमाल से गंभीर नैतिक , राजनीतिक और आर्थिक सवाल भी उत्पन्न हो सकते हैं। जैसे , पब्लिक इन तकनीकों को किस दृष्टि से देखेगी और लोगों पर इनके दीर्घकालीन उपयोग का प्रभाव क्या होगा। इनके अमल में आने से जोर - जबरदस्ती का प्रश्न भी खड़ा हो सकता है। इन सवालों पर विस्तृत विचार - विमर्श की आवश्यकता है।
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की न्यूरोसाइंटिस्ट बार्बरा साहाकियन का कहना है कि कार्य स्थलों में लोगों को ज्यादा प्रोडक्टिव बनाने के लिए उन्हें बौद्धिक क्षमता बढ़ाने वाले ड्रग्स दिए जा सकते हैं। ड्रग्स के प्रभाव से वे अपना काम ज्यादा ध्यान से करेंगे और मुश्किल से मुश्किल काम करने में उन्हें मजा आएगा। साहाकियन के मुताबिक अल्ट्शाइमर्स रोग और सीजोफ्रीनिया जैसे स्नायु विकारों के लिए बनाई गई दवाओं का इस्तेमाल भविष्य में स्वस्थ लोग अपनी बौद्धिक क्षमता बढ़ाने के लिए भी कर सकते हैं। पश्चिमी देशों में किए गए विभिन्न सर्वेक्षणों से पता चलता है कि आजकल अनेक स्टूडेंट एग्जाम में अपनी ग्रेड सुधरने के लिए स्मार्ट ड्रग्स का सेवन कर रहे हैं। इससे यह सवाल पैदा होता है कि क्या कॉलेज अधिकारी ओलंपिक खिलाडि़यों की तरह ही स्टूडेंट्स को भी ड्रग्स लेने से मना करेंगे ?
स्वस्थ लोगों पर बौद्धिक संवर्धन ड्रग्स के प्रभावों को जानने के लिए दीर्घकालीन अध्ययन जरूरी है। बौद्धिक संवर्धन ड्रग्स का इस्तेमाल व्यक्तिगत पसंद का मामला हो सकता है , लेकिन भविष्य में ऐसे ड्रग्स का दुरुपयोग भी संभव है। कल्पना कीजिए कि किसी बस ड्राइवर को ड्रग देकर रात भर जागने या देर तक काम करने के लिए कहा जाए। क्या ऐसा करना उचित होगा ? मानव संवर्धन तकनीकों के इस्तेमाल की नैतिकता पर सवाल खड़े करने वाले लोगों का कहना है कि टेक्नोलॉजी की आड़ में किसी भी व्यक्ति को अनुपयुक्त परिस्थितियों में काम करने के लिए विवश नहीं किया जा स कता।
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