Sunday, 14 October 2012

सबको साथ लेकर चलने वाला इंटरनेट चाहिए



सचिन पायलट 
इंटरनेट का जन्म कुछ वैज्ञानिकों को एक-दूसरे के साथ जोड़ने के लिए एक प्रयोग के रूप में हुआ था, ताकि वे आपस में रिसर्च से जुड़ी जानकारियों का आदान-प्रदान कर सकें। पर आज यह हमारे जीवन के तकरीबन हर क्षेत्र में शामिल है। यह सूचना और मनोरंजन का सोर्स है, व्यापार और विभिन्न सेवाओं के लिए एक जरूरी माध्यम है और महत्वपूर्ण ग्लोबल पावर है। वर्ष 2000 में दुनिया की केवल 6 प्रतिशत आबादी ऑनलाइन थी लेकिन 2010 में यह संख्या 30 प्रतिशत तक पहुंच गई। संभावना है कि 2016 तक नेटवर्क डिवाइसों की संख्या 15 अरब यानी पूरी दुनिया की आबादी के दोगुनी के बराबर पहुंच जाएगी।
लगातार बढ़ता नेटवर्क
भारत में 93 करोड़ से ज्यादा मोबाइल यूजर्स हैं जबकि 12 करोड़ भारतीय इंटरनेट का उपयोग करते हैं। यह हमारी जनसंख्या का केवल 10 प्रतिशत है। फिर भी यह विश्व में तीसरा सबसे बड़ा इंटरनेट समुदाय है। ज्यादातर नए यूजर्स अब मोबाइल डिवाइसों के माध्यम से इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। भारतीय बाजार में स्मार्टफोनों का हिस्सा 2.5 प्रतिशत वार्षिक के हिसाब से बढ़ने की संभावना है। ऐसे में 20 अरब रुपए से शुरू की गई ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क योजना हमारे कंप्यूटर नेटवर्क को एकदम पंचायत स्तर तक ले जाएगी। यह ई-लर्निंग, टेली मेडिसिन, ई-प्रशासन और चुस्त वित्तीय प्रबंधन की सरकारी योजनाओं को बेहद आसान बना देगी। विभिन्न विभागों के बीच आपसी सहयोग भी काफी आसान हो जाएगा। सरकार इंटरनेट की पूर्ण स्वतंत्रता में विश्वास रखती है और संविधान में नागरिकों को मिले सामाजिक न्याय, विकास के अवसर और आजादी के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं को महसूस करती है। व्यापक तौर पर उपलब्ध सभी संचार प्रौद्योगिकियों की तरह इंटरनेट भी हमारे समाज और डेमोक्रेसी के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितना कि प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया।

व्यवस्था में बदलाव जरूरी
इंटरनेट पूरी दुनिया के लोगों को एक दूसरे के करीब लाया है। इसने धीरे-धीरे एक जरूरी संसाधन का रूप ले लिया है। लेकिन इसे इस्तेमाल करने वाले असंख्य लोगों की व्यक्तिगत सूचनाएं, उनकी माली हालत की जानकारी, उनके सर्फिंग और ऑनलाइन व्यवहार आदि की तमाम जानकारियां इंटरनेट के रिमोट सर्वरों में होती है। अपने कामकाज को आसान बनाने और जटिल स्थितियों में समाधान प्रस्तुत करने के लिए हम इंटरनेट और इससे जुड़ी दूसरी टेक्नोलॉजी पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं। इसलिए जरूरी है कि इसकी आज की व्यवस्था में कुछ बदलाव किए जाएं। अभी इंटरनेट का लगभग पूरा नेटवर्क निजी स्वामित्व में है तथा इनका संचालन भी निजी रूप से किया जा रहा है। इसके रूट सर्वर कुछ ही देशों में केंद्रित हैं। यूरोप और उत्तरी अमेरिका-दोनों महाद्वीपों में कुल मिलाकर एक तिहाई इंटरनेट यूजर हैं, लेकिन दो तिहाई रूट सर्वर हैं, क्योंकि वहां इंटरनेट के इस्तेमाल की शुरुआत पहले हुई। लेकिन आज एशिया भर में इंटरनेट के कुल लगभग 45 प्रतिशत यूजर्स हैं, जबकि रूट-सर्वर सिर्फ 17 प्रतिशत हैं।
इंटरनेट संसाधन के नियंत्रण में इस गैरबराबरी के अलावा, साइबर अपराध का मुद्दा भी अपनी जगह है। यह एक ग्लोबल समस्या के रूप में सामने आया है। हर गुजरते दिन के साथ साइबर स्पेस पर हमले और हैकिंग की मामले बढ़ते जा रहे हैं। हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं में पिछले साल तक यह दूसरा सबसे कॉमन अपराध बन चुका था। ऐसे अपराधों के पीछे बड़े पैमाने पर संगठित संसाधन भी काम करते हैं, जिन्हें इंटरनेट के जरिए मिलने वाली गुमनामी से अपने अपराधों को कामयाबी देने में आसानी होती है। सूचना प्रौद्योगिकी संसाधन सभी प्रकार के अपराधों में बढ़-चढ़ कर अपनी भूमिका निभा रहे हैं और साइबर स्पेस से संबंधित कामकाज में भी एंट्री कर चुके हैं। हरेक नागरिक के हितों की रक्षा करने और सूचना प्रवाह को बनाए रखने के लिए पॉलिसी के लेवल पर कोऑर्डिनेशन और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
सूचना प्रौद्योगिकी पर वर्ष 2005 में ट्यूनिस में आयोजित महासम्मेलन में इस बात पर सहमति जताई गई थी कि इंटरनेट से संबंधित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीति-निर्धारण के लिए सभी पक्षों में सहयोग को बढ़ावा दिया जाए। हालांकि यह सब अमेरिकी सरकार की पहल पर हुआ, फिर भी आज इंटरनेट उद्यमी भावना का एक सशक्त प्रतीक होने के साथ-साथ पूरे विश्व में क्रिएटिविटी का आधार बन गया है। यह मानव जाति को उसकी भौगोलिक सीमाओं, धर्म और नस्ल का लिहाज किए बिना उस स्थान पर ले गया है जिसकी शताब्दियों से मात्र कल्पना की जाती रही थी। ट्यूनिस महासम्मेलन में किए गए विचार-विमर्श के अनुरूप हम मानते हैं कि इंटरनेट सुशासन में ग्लोबल स्तर पर अधिक-से-अधिक भागीदारी होनी चाहिए। प्रतिभागिता, प्रतिनिधित्व, खुलापन और जवाबदेही इससे जुड़े हुए प्रश्न हैं।
सरकार की नीति
इस संदर्भ में सरकार की नीति यह है कि हम अपनी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को आज के हालात को और ज्यादा अभिव्यक्त करने वाला बनाएं। सूचना सोसाइटी का सर्वाधिक विस्तार एशिया, अफ्रीका और विकासशील क्षेत्रों से आएगा। यूरोप और उत्तर अमेरिका के बाहर इंटरनेट के विस्तार में उभरते देशों की प्रभावी भागीदारी सामने आई है। इंटरनेट विकास की गति जहां एक ओर विकसित बाजारों में बहुत धीमी रही है, वहीं यह विकासशील देशों में तेजी के साथ आगे बढ़ रही है। पहले से ही 50 प्रतिशत से भी अधिक इंटरनेट यूजर्स विकसित दुनिया के बाहर के लोग हैं। यह प्रवृत्ति भविष्य में बढ़ती जाएगी। सभी पक्षों के साथ हमें इंटरनेट सुशासन पर अच्छी तरह विचार करके उसे इस प्रकार कार्यान्वित करना है, जिससे पूरे ग्लोबल समुदाय की आकांक्षाएं, आशाएं और संवेदनाएं साकार हों। जैसे-जैसे इंटरनेट विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है और जैसे-जैसे हम सभी इसके न्यूमेरिक सिस्टम में ज्यादा से ज्यादा शामिल होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे हमें यह आशा करने का अधिकार मिल रहा है कि हमारी वर्तमान और भावी पीढ़ियों को बेहतर इंटरनेट प्राप्त हो।
(लेखक सूचना और प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री हैं) (ref-nbt.in)

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