पिछले दिनों “सत्यमेव जयते” कार्यक्रम में जब अभिनेता आमिर खान ने जल संरक्षण का मुद्दा उठाया तो लगा कि अगर हमने अभी भी पानी की बर्बादी नहीं रोकी और इसे संरक्षित करने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाया तो वह दिन दूर नहीं जब देश के अंदर ही पानी को लेकर दंगे फसाद और बड़ी लड़ाईया शुरू हो जायेंगी । हम विकास की जिस बेहोशी में जी रहें है उसनें आज हमारी जमीन को बंजर बना दिया , अधिकांश नदियों ,तालाबों ,झील ,पोखरों का अस्तित्व मिट गया । गंगा ,यमुना जैसी जीवन दायिनी नदियों को हम नालों में तब्दील कर रहें है । शहरों में कंक्रीट के जंगलों के बीच हम इतने बेसुध हो गए है कि हमें भविष्य के खतरे की आहट ही नहीं सुनाई पड़ रही है । वास्तव में जल ही जीवन का आधार है ,जल के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती .
धरातल पर तीन चैथाई पानी होने के बाद भी पीने योग्य पानी एक सीमित मात्रा में ही है। उस सीमित मात्रा के पानी का इंसान ने अंधाधुध दोहन किया है। नदी, तालाबों और झरनों को पहले ही हम कैमिकल की भेंट चढ़ा चुके हैं, जो बचा खुचा है उसे अब हम अपनी अमानत समझ कर अंधाधुंध खर्च कर रहे हैं। जबकि भारतीय नारी पीने के पानी के लिए रोज ही औसतन चार मील पैदल चलती है।
भारत में विश्व की लगभग 16 प्रतिशत आबादी निवास करती है। लेकिन, उसके लिए मात्र 3 प्रतिशत पानी ही उपलब्य है। विकास के शुरुआती चरण में पानी का अधिकतर इस्तेमाल सिंचाई के लिए होता था। लेकिन, समय के साथ स्थिति बदलती गयी और पानी के नये क्षेत्र-औद्योगिक व घरेलू-महत्वपूर्ण होते गये। भारत में जल संबंधी मौजूदा समस्याओं से निपटने में वर्षाजल को भी एक सशक्त साधन समझा जाए। पानी के गंभीर संकट को देखते हुए पानी की उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत है। चूंकि एक टन अनाज उत्पादन में 1000 टन पानी की जरूरत होती है और पानी का 70 फीसदी हिस्सा सिंचाई में खर्च होता है, इसलिए पानी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जरूरी है कि सिंचाई का कौशल बढ़ाया जाए। यानी कम पानी से अधिकाधिक सिंचाई की जाए। अभी होता यह है कि बांधों से नहरों के माध्यम से पानी छोड़ा जाता है, जो किसानों के खेतों तक पहुंचता है। जल परियोजनाओं के आंकड़े बताते हैं कि छोड़ा गया पानी शत-प्रतिशत खेतों तक नहीं पहुंचता। कुछ पानी रास्ते में भाप बनकर उड़ जाता है, कुछ जमीन में रिस जाता है और कुछ बर्बाद हो जाता है।
पानी का महत्व भारत के लिए कितना है यह हम इसी बात से जान सकते हैं कि हमारी भाषा में पानी के कितने अधिक मुहावरे हैं। अगर हम इसी तरह कथित विकास के कारण अपने जल संसाधनों को नष्ट करते रहें तो वह दिन दूर नहीं, जब सारा पानी हमारी आँखों के सामने से बह जाएगा और हम कुछ नहीं कर पाएँगे। पानी के बारे में एक नहीं, कई चैंकाने वाले तथ्य हैं। विश्व में और विशेष रुप से भारत में पानी किस प्रकार नष्ट होता है इस विषय में जो तथ्य सामने आए हैं उस पर जागरूकता से ध्यान देकर हम पानी के अपव्यय को रोक सकते हैं। अनेक तथ्य ऐसे हैं जो हमें आने वाले खतरे से तो सावधान करते ही हैं, दूसरों से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और पानी के महत्व व इसके अनजाने स्रोतों की जानकारी भी देते हैं।दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे महानगरों में पाइप लाइनों के वॉल्व की खराबी के कारण रोज 17 से 44 प्रतिशत पानी बेकार बह जाता है। इजराइल में औसतन मात्र 10 सेंटी मीटर वर्षा होती है, इस वर्षा से वह इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात कर सकता है। दूसरी ओर भारत में औसतन 50 सेंटी मीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद अनाज की कमी बनी रहती है। ध्यान देने की बात यह है कि यदि ब्रश करते समय नल खुला रह गया है, तो पाँच मिनट में करीब 25 से 30 लीटर पानी बरबाद होता है।जबकि विश्व में प्रति 10 व्यक्तियों में से 2 व्यक्तियों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पाता है। नदियाँ पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं। जहाँ एक ओर नदियों में बढ़ते प्रदूषण रोकने के लिए विशेषज्ञ उपाय खोज रहे हं। वहीं कल कारखानों से बहते हुए रसायन उन्हें भारी मात्रा में दूषित कर रहे हैं। ऐसी अवस्था में जब तक कानून में सख्ती नहीं बरती जाती, अधिक से अधिक लोगों को दूषित पानी पीने का समय आ सकता है। जल नीति के विश्लेषक सैंड्रा पोस्टल और एमी वाइकर्स ने पाया कि बर्बादी का एक बड़ा कारण यह है कि पानी बहुत सस्ता और आसानी से सुलभ है। कई देशों में सरकारी सब्सिडी के कारण पानी की कीमत बेहद कम है। इससे लोगों को लगता है कि पानी बहुतायत में उपलब्ध है, जबकि हकीकत उलटी है।
समय आ गया है जब हम वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें। बारिश की एक-एक बूँद कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा। पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है जिसकी गोदी में हजारों नदियाँ खेलती थी, आज वे नदियाँ हजारों में से केवल सैकड़ों में ही बची हैं। कहाँ गई वे नदियाँ, कोई नहीं बता सकता। नदियों की बात छोड़ दो, हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब आज गायब हो गए हैं, इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है।
ऐसा नहीं है कि पानी की समस्या से हम जीत नहीं सकते। अगर सही ढ़ंग से पानी का सरंक्षण किया जाए और जितना हो सके पानी को बर्बाद करने से रोका जाए तो इस समस्या का समाधान बेहद आसान हो जाएगा। लेकिन इसके लिए जरुरत है जागरुकता की। एक ऐसी जागरुकता की जिसमें छोटे से छोटे बच्चे से लेकर बड़े बूढ़े भी पानी को बचाना अपना धर्म समझें। प्रकृति के खजाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है। हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते अतः प्राकृतिक संसाधनों को दूषित न होने दें और पानी को व्यर्थ न गँवाएँ यह प्रण लेना बहुत आवश्यक है।
पानी का संकट
पानी के संकट पर बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान पिछले
दिनों छोटे परदे पर अपने मशहूर कार्यक्रम सत्यमेव जयते पर बात करते दिखे. भारत के
विभित्र इलाकों में पानी की कमी के बारे में जानकारी देने के बाद वह दर्शकों में
शामिल एक लड़की से सवाल करते हैं, हमारे दैनिक इस्तेमाल के लिए पानी कहां से आता है? जवाब
बेहद ही आश्चर्यजनक था. उसने बेहद ही मासूमियत से जवाब दिया पानी नल से आता है.
इसके बाद शो पर मौजूद सभी लोग हंस प.डे, लेकिन लोगों की यह
हंसी पलक झपकते ही बंद हो गयी, क्योंकि उसके बाद कार्यक्रम
में पानी के संकट से जूझ रहे लोगों की जो दुर्दशा दिखायी गयी, उससे सभी हैरान थे. महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली और देशके विभित्र हिस्सों
में तेजी से घटते जल स्रोत के आंक.डे दिखाने के बाद माहौल उस वक्त गमगीन हो गया,
जब आमिर ने यह बताया किया कि पानी के लिए संघर्ष में ही 14 वर्षीय सुनील की हत्या कर दी गयी. पानी के लिए झड़प और हत्या का यह कोई
पहला मामला नहीं है.
पानी के लिए जंग इस कदर बढ.ती जा रही है कि साल 2010 में इंदौर की 18 वर्षीय पूनम यादव को उसके पड़ोसी ने सिर्फ इसलिए चाकू घोंपकर मार डाला, क्योंकि उसने अपने घर के नल से पानी देने से मना कर दिया था. इन उदाहरणों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पानी की चुनौती किस तरह बढ.ती जा रही है. और इस साल कमजोर मॉनसून ने भारत के जलाशयों में पानी कम होने के खतरे की घंटी पहले ही बजा दी है. ऐसा सूखा साल 2009 में देखा गया था. कमजोर मॉनसून का असर फसलों पर तो पड़ना निश्चित है. इससे पीने के पानी का संकट भी सामने आने लगा है. यह एक संकटपूर्ण स्थिति है, क्योंकि इस बार भी मॉनसून देशके एक-तिहाई हिस्से में ही सामान्य रहा है. इस मौसम में 22 फीसदी बारिश में कमी देखी गयी, लेकिन कृषि के लिहाज से महत्वपूर्ण उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में वर्षा सामान्य से 40 पीसदी तक कम हुई. भारत के 84 महत्वपूर्ण जलाशय सिर्फ 19 फीसदी तक ही भर पाये. यह पिछले साल की अपेक्षा 41 फीसदी कम है. देश के जलाशयों की यही स्थिति 2009 में हुई थी, जब भारत ने पिछले कई वर्षों का सबसे भयंकर सूख्रा देखा. इसका नकारात्मक प्रभाव कृषि पर पड़ना निश्चित है. यह प्रभाव सिर्फ खरीफ हर नहीं रबी फसलों पर भी प.डेगा, क्योंकि उसकी सिंचाई के लिए जलाशयों में पानी ही नहीं होगा. गौरतलब है कि धरती के 70 फीसदी हिस्से पर पानी होने के बाद भी उसका सिर्फ एक फीसदी हिस्सा ही इंसानी हक में है. नतीजतन स्थिति यह है कि जलस्रोत तेजी से सूख रहे हैं. भारत ही नहीं, समूचे एशिया में यही स्थिति है, क्योंकि इस महाद्वीप में दुनिया की 60 फीसदी आबादी महज 36 फीसदी जल संसाधनों पर निर्भर है. बाकी सभी महाद्वीपों में जल संसाधनों के मुकाबले आबादी का अनुपात कहीं कम है.
आने वाले एक दशक में उद्योगों के लिए पानी की जरूरत 23 फीसदी के आसपास होगी. तब खेती के लिए पानी के हिस्से में कटौती करने की जरूरत प.डेगी, क्योंकि तेजी से बढ. रहे शहरीकरण के चलते गांवों के मुकाबले शहरों को पानी की दरकार कहीं ज्यादा होगी. एक अनुमान के मुताबिक, 2025 तक देश की 55 फीसदी आबादी शहरों में बसेगी, मतलब पानी की बर्बादी अभी से कहीं ज्यादा होगी. सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि देश में उपलब्ध जल संसाधनों के उपयोग में सालाना 5-10 प्रतिशत ही बढ.ोतरी हो सकी है, जबकि मौसमी बदलाव के चलते इससे दोगुनी मात्रा में जल संरचनाएं नष्ट हो रही हैं.
खराब मॉनसून के कारण समस्या
मौसमी बदलाव के कारण मॉनसून के दौरान कम वर्षा से सूखे की स्थिति उत्पत्र होती है. गौरतलब है कि सूखा पड़ना कोई आश्चर्यजनक घटनाक्रम नहीं, बल्कि एक सामान्य घटना है जो जलवायु का एक गुण है. सूखा किसी भी जलवायु क्षेत्र में पड़ सकता है. यह कई तरह का होता है. मसलन मेट्रोलॉजिकल (जलवायविक), कृषि, और हाइड्रोलॉजिकल. जलवायविक सूखा तब पड़ता है जब औसत से कम वर्षा की अवधि काफी लंबी हो जाती है. यही जलवायविक सूखा अन्य कई प्रकार के सूखे की वजह बनता है. एक अन्य प्रकार का सूखा कृषि संबंधित कृषि. इससे फसल चक्र प्रभावित होता है.
हाइड्रोलॉजिकल सूखा : यह पानी के संकट की बड़ी वजह बनता है. जब जलस्तर, झीलों और जलाशयों के पानी का स्तर औसत से कम हो जाता है, तो हाइड्रोलॉजिकल सूखा कहलाता है. इसका असर धीरे-धीरे पड़ता है, क्योंकि इसमें पानी के भंडारण वाले स्रोत शामिल होते हैं. इनका इस्तेमाल तो होता रहता है, लेकिन पानी की आपूर्ति फिर से नहीं हो पाती. इस तरह का सूखा भी सामान्य से कम वर्षा के कारण होता है. इस तरह देखा जा सकता है कि मॉनसून के दौरान सामान्य से कम वर्षा का प्रभाव सिर्फ कृषि ही नहीं, देश के जलाशयों और भू-जल स्तर पर भी पड़ता है. ये वही जलाशय हैं जहां से देश के विभित्र हिस्सों में पीने के पानी की आपूर्ति होती है. कम वर्षा से होने से जलाशयों के पानी सूखने से जलस्तर काफी नीचे चला जाता है. इससे पानी के लिए अधिक खुदाई करने पड़ती है. लेकिन, एक वक्त के बाद वह जलस्तर इतना कम हो जाता है कि उस क्षेत्र में पानी भू-जल भी समाप्त हो जाता है.
उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब के अधिकांश हिस्सों की यही स्थिति है. अब हरियाणा के गुड़गांव जैसे शहरों की भी स्थिति कुछ ऐसी हो रही है. बहुराष्ट्रीय कंपनियों और चमचमाती इमारतों वाले इस शहर का भविष्य पानी की वजह से संकट में दिखता नजर आ रहा है. अमेरिका के मैनहटन के नाम से मशहूर इस शहर की 70 प्रतिशत आबादी भू-जल पर निर्भर है. लेकिन, जानकारों के मुताबिक अगले पांच साल में यहां जमीन के नीचे का पानी पूरी तरह सूख जायेगा.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसइ) का कहना है कि इस शहर की आबादी 2021 में करीब चार लाख यानी दोगुनी हो जायेगी. ऐसे में इतनी बड़ी आबादी के लिए पीने का पानी ही नहीं रह पायेगा. आज ही स्थिति ऐसी है कि लोग पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए जगह-जगह गैरकानूनी तौर पर बोरवेल खोद रहे हैं.
पूरी दुनिया है त्रस्त
आज पानी की यह समस्या सिर्फ भारत में ही नहीं है. पूरी दुनिया पानी के संकट का सामना कर रही है. दुनिया के कई हिस्सों में सतह जल (सरफेस वाटर) इतना अधिक प्रदूषित हो चुका है कि उसका किसी भी काम में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. एक आंक.डे के मुताबिक, चीन का 80 फीसदी और भारत का 75 फीसदी सतह जल इतना अधिक प्रदूषित है कि वह पीने योग्य नहीं है. यहां तक कि इनका इस्तेमाल नहाने या मछली पालन तक के लिए भी नहीं किया जा सकता है. यही कहानी अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देशों की है. आज हम जमीन के अंदर का पानी निकालने के लिए शक्तिशाली तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं.
हालिया वैज्ञानिक रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया में लाखों अवैध बोरवेल के कारण जमीन के अंदर का पानी पूरी तरह सूख चुका है. इसके अलावा शहरीकरण भी पानी की समस्या की बड़ी वजह बन कर सामने आया है. कंक्रीटों से बने शहरों में हर तरफ ईंट और सीमेंट से बनी सतहें वर्षा के दिनों में भी पानी का अवशोषण करने में असफल होती है. इससे भू-जल की आपूर्ति नहीं हो पाती. इस तरह पानी का संकट मानव सभ्यता के सामने सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर उभर रही है.
पानी के लिए जंग इस कदर बढ.ती जा रही है कि साल 2010 में इंदौर की 18 वर्षीय पूनम यादव को उसके पड़ोसी ने सिर्फ इसलिए चाकू घोंपकर मार डाला, क्योंकि उसने अपने घर के नल से पानी देने से मना कर दिया था. इन उदाहरणों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पानी की चुनौती किस तरह बढ.ती जा रही है. और इस साल कमजोर मॉनसून ने भारत के जलाशयों में पानी कम होने के खतरे की घंटी पहले ही बजा दी है. ऐसा सूखा साल 2009 में देखा गया था. कमजोर मॉनसून का असर फसलों पर तो पड़ना निश्चित है. इससे पीने के पानी का संकट भी सामने आने लगा है. यह एक संकटपूर्ण स्थिति है, क्योंकि इस बार भी मॉनसून देशके एक-तिहाई हिस्से में ही सामान्य रहा है. इस मौसम में 22 फीसदी बारिश में कमी देखी गयी, लेकिन कृषि के लिहाज से महत्वपूर्ण उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में वर्षा सामान्य से 40 पीसदी तक कम हुई. भारत के 84 महत्वपूर्ण जलाशय सिर्फ 19 फीसदी तक ही भर पाये. यह पिछले साल की अपेक्षा 41 फीसदी कम है. देश के जलाशयों की यही स्थिति 2009 में हुई थी, जब भारत ने पिछले कई वर्षों का सबसे भयंकर सूख्रा देखा. इसका नकारात्मक प्रभाव कृषि पर पड़ना निश्चित है. यह प्रभाव सिर्फ खरीफ हर नहीं रबी फसलों पर भी प.डेगा, क्योंकि उसकी सिंचाई के लिए जलाशयों में पानी ही नहीं होगा. गौरतलब है कि धरती के 70 फीसदी हिस्से पर पानी होने के बाद भी उसका सिर्फ एक फीसदी हिस्सा ही इंसानी हक में है. नतीजतन स्थिति यह है कि जलस्रोत तेजी से सूख रहे हैं. भारत ही नहीं, समूचे एशिया में यही स्थिति है, क्योंकि इस महाद्वीप में दुनिया की 60 फीसदी आबादी महज 36 फीसदी जल संसाधनों पर निर्भर है. बाकी सभी महाद्वीपों में जल संसाधनों के मुकाबले आबादी का अनुपात कहीं कम है.
आने वाले एक दशक में उद्योगों के लिए पानी की जरूरत 23 फीसदी के आसपास होगी. तब खेती के लिए पानी के हिस्से में कटौती करने की जरूरत प.डेगी, क्योंकि तेजी से बढ. रहे शहरीकरण के चलते गांवों के मुकाबले शहरों को पानी की दरकार कहीं ज्यादा होगी. एक अनुमान के मुताबिक, 2025 तक देश की 55 फीसदी आबादी शहरों में बसेगी, मतलब पानी की बर्बादी अभी से कहीं ज्यादा होगी. सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि देश में उपलब्ध जल संसाधनों के उपयोग में सालाना 5-10 प्रतिशत ही बढ.ोतरी हो सकी है, जबकि मौसमी बदलाव के चलते इससे दोगुनी मात्रा में जल संरचनाएं नष्ट हो रही हैं.
खराब मॉनसून के कारण समस्या
मौसमी बदलाव के कारण मॉनसून के दौरान कम वर्षा से सूखे की स्थिति उत्पत्र होती है. गौरतलब है कि सूखा पड़ना कोई आश्चर्यजनक घटनाक्रम नहीं, बल्कि एक सामान्य घटना है जो जलवायु का एक गुण है. सूखा किसी भी जलवायु क्षेत्र में पड़ सकता है. यह कई तरह का होता है. मसलन मेट्रोलॉजिकल (जलवायविक), कृषि, और हाइड्रोलॉजिकल. जलवायविक सूखा तब पड़ता है जब औसत से कम वर्षा की अवधि काफी लंबी हो जाती है. यही जलवायविक सूखा अन्य कई प्रकार के सूखे की वजह बनता है. एक अन्य प्रकार का सूखा कृषि संबंधित कृषि. इससे फसल चक्र प्रभावित होता है.
हाइड्रोलॉजिकल सूखा : यह पानी के संकट की बड़ी वजह बनता है. जब जलस्तर, झीलों और जलाशयों के पानी का स्तर औसत से कम हो जाता है, तो हाइड्रोलॉजिकल सूखा कहलाता है. इसका असर धीरे-धीरे पड़ता है, क्योंकि इसमें पानी के भंडारण वाले स्रोत शामिल होते हैं. इनका इस्तेमाल तो होता रहता है, लेकिन पानी की आपूर्ति फिर से नहीं हो पाती. इस तरह का सूखा भी सामान्य से कम वर्षा के कारण होता है. इस तरह देखा जा सकता है कि मॉनसून के दौरान सामान्य से कम वर्षा का प्रभाव सिर्फ कृषि ही नहीं, देश के जलाशयों और भू-जल स्तर पर भी पड़ता है. ये वही जलाशय हैं जहां से देश के विभित्र हिस्सों में पीने के पानी की आपूर्ति होती है. कम वर्षा से होने से जलाशयों के पानी सूखने से जलस्तर काफी नीचे चला जाता है. इससे पानी के लिए अधिक खुदाई करने पड़ती है. लेकिन, एक वक्त के बाद वह जलस्तर इतना कम हो जाता है कि उस क्षेत्र में पानी भू-जल भी समाप्त हो जाता है.
उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब के अधिकांश हिस्सों की यही स्थिति है. अब हरियाणा के गुड़गांव जैसे शहरों की भी स्थिति कुछ ऐसी हो रही है. बहुराष्ट्रीय कंपनियों और चमचमाती इमारतों वाले इस शहर का भविष्य पानी की वजह से संकट में दिखता नजर आ रहा है. अमेरिका के मैनहटन के नाम से मशहूर इस शहर की 70 प्रतिशत आबादी भू-जल पर निर्भर है. लेकिन, जानकारों के मुताबिक अगले पांच साल में यहां जमीन के नीचे का पानी पूरी तरह सूख जायेगा.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसइ) का कहना है कि इस शहर की आबादी 2021 में करीब चार लाख यानी दोगुनी हो जायेगी. ऐसे में इतनी बड़ी आबादी के लिए पीने का पानी ही नहीं रह पायेगा. आज ही स्थिति ऐसी है कि लोग पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए जगह-जगह गैरकानूनी तौर पर बोरवेल खोद रहे हैं.
पूरी दुनिया है त्रस्त
आज पानी की यह समस्या सिर्फ भारत में ही नहीं है. पूरी दुनिया पानी के संकट का सामना कर रही है. दुनिया के कई हिस्सों में सतह जल (सरफेस वाटर) इतना अधिक प्रदूषित हो चुका है कि उसका किसी भी काम में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. एक आंक.डे के मुताबिक, चीन का 80 फीसदी और भारत का 75 फीसदी सतह जल इतना अधिक प्रदूषित है कि वह पीने योग्य नहीं है. यहां तक कि इनका इस्तेमाल नहाने या मछली पालन तक के लिए भी नहीं किया जा सकता है. यही कहानी अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अधिकांश देशों की है. आज हम जमीन के अंदर का पानी निकालने के लिए शक्तिशाली तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं.
हालिया वैज्ञानिक रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया में लाखों अवैध बोरवेल के कारण जमीन के अंदर का पानी पूरी तरह सूख चुका है. इसके अलावा शहरीकरण भी पानी की समस्या की बड़ी वजह बन कर सामने आया है. कंक्रीटों से बने शहरों में हर तरफ ईंट और सीमेंट से बनी सतहें वर्षा के दिनों में भी पानी का अवशोषण करने में असफल होती है. इससे भू-जल की आपूर्ति नहीं हो पाती. इस तरह पानी का संकट मानव सभ्यता के सामने सबसे बड़ी चुनौती के तौर पर उभर रही है.
दुनिया की आधी से अधिक नदियां (लगभग 500) बहुत ही बुरी तरह से प्रदूषित
हो चुकी हैं या प्रदूषण के कारण विलुप्ति की कगार पर हैं.
त्नअफ्रीका और एशिया में महिलाओं को पानी लाने के लिए औसतन छह किलोमीटर दूरी तय करनी पड़ती है.
▪विकासशील देशों में हर साल लगभग 22 लाख लोग स्वच्छ पानी न मिलने के कारण होने वाली बीमारियों के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं. इनमें अधिकांश संख्या बाों की है.
▪ऐसा अनुमान है कि पूरी दुनिया में 2025 तक 5.3 अरब लोग , यानी लगभग दो-तिहाई आबादी पानी की कमी की चुनौतियों का सामना करने वाले हैं.
▪ पृथ्वी की सतह पर 71 फीसदी पानी है. लेकिन, सिर्फ 2.5 फीसदी ही लवणयुक्त पानी है.
▪ पृथ्वी पर उपलब्ध जल का 0.08 प्रतिशत पानी ही मानवों के इस्तेमाल के लायक है.
कृषि के लिए हम 70 फीसदी पानी का उपयोग करते हैं, लेकिन 2020 तक हमें 17 फीसदी और अधिक पानी की आवश्यकता होगी. पानी से होनेवाले रोगों और गंदगी से1.1 अरब लोग वैश्विक तौर पर स्वच्छ पेय जल की पहुंच से बाहर हैं.05 में से एक व्यक्ति की स्वच्छ पेय जल तक पहुंच नहीं है.250 अरब घन मीटर तक पानी भंडारण की क्षमता है भारत की.
त्नअफ्रीका और एशिया में महिलाओं को पानी लाने के लिए औसतन छह किलोमीटर दूरी तय करनी पड़ती है.
▪विकासशील देशों में हर साल लगभग 22 लाख लोग स्वच्छ पानी न मिलने के कारण होने वाली बीमारियों के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं. इनमें अधिकांश संख्या बाों की है.
▪ऐसा अनुमान है कि पूरी दुनिया में 2025 तक 5.3 अरब लोग , यानी लगभग दो-तिहाई आबादी पानी की कमी की चुनौतियों का सामना करने वाले हैं.
▪ पृथ्वी की सतह पर 71 फीसदी पानी है. लेकिन, सिर्फ 2.5 फीसदी ही लवणयुक्त पानी है.
▪ पृथ्वी पर उपलब्ध जल का 0.08 प्रतिशत पानी ही मानवों के इस्तेमाल के लायक है.
कृषि के लिए हम 70 फीसदी पानी का उपयोग करते हैं, लेकिन 2020 तक हमें 17 फीसदी और अधिक पानी की आवश्यकता होगी. पानी से होनेवाले रोगों और गंदगी से1.1 अरब लोग वैश्विक तौर पर स्वच्छ पेय जल की पहुंच से बाहर हैं.05 में से एक व्यक्ति की स्वच्छ पेय जल तक पहुंच नहीं है.250 अरब घन मीटर तक पानी भंडारण की क्षमता है भारत की.
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