Thursday 17 May 2012

उच्च शिक्षा व्यवस्था

सरकार यदि उच्च शिक्षा क्षेत्र को नयी दिशा देने के लिए जल्द कोई कारगर कदम नहीं उठाती है तो किसी भी क्षेत्र में महाशक्ति बनने का सपना शायद कभी हकीकत में तब्दील नहीं हो पायेगा.
भारत की उच्च शिक्षा व्यवस्था इन दिनों सुखिर्यो में है, पर नकारात्मक कारणों से. विश्व के 200 श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों की सालाना सूची में भारत की एक भी यूनिवर्सिटी को जगह नहीं मिल पायी है. टाइम्स हाइयर एजुकेशन मैगजीन के इस सर्वे में शिखर पर हार्वर्ड, स्टैनफ़ोर्ड और ऑक्सफ़ोर्ड जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों को रखा गया है.
इस सूची में यदि आप किसी भारतीय संस्थान का नाम तलाशना चाहें तो आपको इसे नीचे तक खंगालना होगा. अभियांत्रिकी एवं तकनीकी शिक्षा के भारत के अत्यंत प्रतिष्ठित संस्थान द इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, बंबई को सूची में जगह दी गयी है, लेकिन वह श्रेष्ठ 200 संस्थानों में शुमार नहीं है. दुनियाभर के 400 प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थानों के सर्वे में आइआइटी बंबई को अत्यंत साधारण मानते हुए 301 से 350 की श्रेणी में रखा गया है.
इस अध्ययन में उच्च शिक्षण संस्थानों को कई मानकों पर परखने के बाद उनकी रैंकिंग की गयी है. इनमें संस्थान में सीखने के माहौल की गुणवत्ता और वहां हुए शोध कार्य की संख्या तथा उनके प्रभाव भी शामिल हैं. सर्वे में श्रेष्ठ 200 के बाद के संस्थानों को अलग-अलग रैंकिंग नहीं दी गयी है, बल्कि उन्हें 50 संस्थानों के ग्रुप में एक साथ रखा गया है. आइआइटी, बंबई को मिले स्थान की तुलना पिछले साल से भी नहीं की जा सकती है, क्योंकि मैगजीन इससे पहले 200 संस्थानों की सूची ही जारी करती थी.
सर्वे में भारतीय संस्थानों का निराशाजनक प्रदर्शन इस तथ्य की पुष्टि करता है कि देश के आर्थिक विकास के बावजूद इसका शैक्षणिक ढांचा कमजोर हो रहा है. भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों से स्नातक डिग्री हासिल करने वाले युवाओं की संख्या हर साल लगातार बढ़ रही है, लेकिन ये कॉलेज और विश्वविद्यालय पर्याप्त संख्या में रोजगार पाने के योग्य युवा तैयार नहीं कर पा रहे हैं.
हालत यह है कि कई कंपनियों को योग्य युवाओं की तलाश के लिए लंबी मशक्कत करनी पड़ती है. कुल मिलाकर भारत की छवि एक ऐसे देश की बन रही है, जहां हर साल लाखों युवा उच्च शिक्षा प्राप्त कर बेरोजगार की कतार में शामिल होते हैं. यह पश्चिमी देशों में काम कर रहे मध्यवर्गीय भारतीय कामगारों के लिए भी खतरे की घंटी है. जबकि भारतीय छात्रों की प्रतिभा और गणित के क्षेत्र में उनकी योग्यता की तारीफ़ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा तक कर चुके हैं.
भारत में योग्य पेशेवरों की तलाश कठिन होते जाने के कारण कई कंपनियां फ़िलीपिंस और निकारागुआ जैसे देशों की ओर रुख कर रही हैं. भारत के आर्थिक विकास के साथ उम्मीद की गयी थी कि इससे लाखों लोगों के लिए अवसर के नये द्वार खुलेंगे, वे बेहतर शिक्षा और रोजगार हासिल कर सकेंगे और उनकी गरीबी दूर हो जायेगी. लेकिन कई दशकों के समाजवाद के बाद 1991 में जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को उदार बनाना शुरू किया, तब यह अपनी शिक्षा व्यवस्था में जरूरी सुधार करने में पूरी तरह नाकाम रहा.
जानी-मानी आइटी कंपनी इन्फ़ोसिस के सह-संस्थापक एवं चेयरमैन नारायण मूर्ति ने पिछले दिनों दोटूक कहा कि देश में प्रतिष्ठित आइआइटी तक में शिक्षा की गुणवत्ता लगातार गिर रही है. उन्होंने कहा कि समस्या के कारण इन संस्थानों में प्रवेश के मानदंड भी हैं, जो पर्याप्त सख्त नहीं हैं. नतीजे के तौर पर आइआइटी में प्रवेश पाने वाले विद्यार्थियों का स्तर भी लगातार गिर रहा है. मूर्ति न्यूयार्क में आइआइटी के पूर्व छात्रों के एक समारोह को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा, छात्र किसी तरह आइआइसी संयुक्त प्रवेश परीक्षा पास कर जाते हैं, लेकिन आइआइटी में उनका प्रदर्शन और फ़िर उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका के किसी संस्थान में जाने पर उनका प्रदर्शन उच्चस्तरीय नहीं होता है. आइआइटी से निकलने वाले ज्यादातर विद्यार्थी मुश्किल से ही नियुक्ति या वैश्विक संस्थाओं में प्रवेश पाने के योग्य होते हैं. जबकि आइआइटी को महज एक शिक्षण संस्थान की बजाय एक प्रतिष्ठित शोध संस्थान होना चाहिए था.
मूर्ति के इस बयान से आइआइटी की गुणवत्ता पर नयी बहस छिड़ गयी है. यह भारत के लिए एक संवेदनशील विषय है, क्योंकि देश को अकसर शिक्षा के मंदिर के रूप में देखा जाता रहा है. आइआइटी के छात्र रहे चर्चित उपन्यासकार चेतन भगत को मूर्ति की यह टिप्पणी नागवार गुजरी है. उन्होंने ट्वीट किया है कि इन्फ़ोसिस आज जहां है, उसे वहां तक पहुंचाने में आइआइटी छात्रों का अहम योगदान रहा है. लेकिन नया वैश्विक सर्वे मूर्ति की आलोचनाओं को ही पुख्ता करता है. विशेषज्ञों का कहना है कि उच्चशिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट की मुख्य वजहों में नौकरशाही की दखल के साथ-साथ विेषणात्मक कौशल की जगह रटने पर ज्यादा जोर देना शामिल है.
-    डॉ हर्ष वी पंत

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