Monday 31 October 2022

अक्ल को उम्र से क्या लेना

 चंद्रभूषण

उम्र के साथ अक्ल भी बढ़ती है, यह सर्वमान्य धारणा मुझे शुरू से परेशान करती आई है। आप से कोई एक-दो या दस-बीस साल बड़ा है, इस आधार पर बचपन में वह आपको पीटने का और बड़े होने पर अपने ‘ज्ञान’ का बोझा आप पर लादने का हकदार हो जाता है। अरे भले आदमी, ऐसा कुछ करने से पहले एक बार सोच तो लो कि तुम्हारी उम्र ने तुमको बुद्धिमान बनाया है या पहले से भी ज्यादा मूर्ख बना दिया है! 

ज्यादातर मामलों में मैं उलटे नतीजे पर ही पहुंचता रहा हूं। यानी यह कि उम्र बीतने के साथ समझ बढ़ना अपवाद स्वरूप ही देखने को मिलता है। लोगों के फैसले समय के साथ प्रायः एक क्रम में गलत से और ज्यादा गलत होते जाते हैं और वे खुद बेवकूफ से बेवकूफतर होते जाते हैं। 

मेरे प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर हर दूसरे-तीसरे दिन घर से झगड़ा करके  देर से स्कूल आया करते थे। बिना टीचर की क्लास में अगर वे हमें अपनी जगह से जरा भी हिलते-डुलते देख लेते तो धमकी भरे अंदाज में बाहर से ही पूछते, ‘ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना कब हुई थी?’ और किसी का जवाब सही या गलत होने की परवाह किए बगैर ‘दुखहरन’ नाम के मोटे डंडे से एक ही लपेटे में पूरी क्लास की धुनाई करते थे। 

स्कूल के संचालन को लेकर उनकी प्रतिबद्धता पर मेरे मन में कभी कोई सवाल नहीं पैदा हुआ। एक धुर देहाती स्कूल में बच्चों को अपनी क्षमता भर पढ़ाई करने के लिए तैयार करना कोई हंसी-खेल नहीं था। लेकिन बच्चों को सोचने या सांस लेने तक का मौका दिए बगैर घर का गुस्सा उन पर निकाल देना भी क्या कोई अक्लमंदी का काम था?

किस-किस की बात करूं? तीस-पैंतीस के होते-होते ज्यादातर लोग सिगरेट, तंबाकू, शराब जैसी कोई लत पकड़ लेते हैं, या जानलेवा हताशा में फंसने का कोई ठोस बहाना ढूंढ लेते हैं, या फिर आर्थिक सुरक्षा के नाम पर कोल्हू के बैल की तरह आंख मूंदकर किसी के हुक्म पर गोल-गोल घूमते रहने का हुनर साध लेते हैं। इनमें से किस चीज को आप बुद्धिमत्ता मानेंगे?

चालीस पार करते-करते लोगों में कोई न कोई सनक पैदा होने के लक्षण आप साफ देख सकते हैं, जो कई बार उनका पीछा आखिरी सांस तक नहीं छोड़ती। छोटी-छोटी बातों पर किसी से लड़ पड़ना, सालों पुराने रिश्ते पल भर में तबाह कर देना और फिर पछतावे में घुलते रहना। खुद को सबसे ऊंचा मानने का सुपीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स, या किसी काम का न मान पाने का इनफीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स। इस सब में कहां की बुद्धिमानी है?

इसलिए उम्र का कुल हासिल मुझे जब-तब मच्योरिटी जरूर लगती है- यानी जहां फंसने का चांस हो वहां हाथ ही न डालना। लेकिन इस कतराने वाली चालाकी का किसी के रचनात्मक बुद्धि-विवेक से कुछ खास सम्बन्ध मुझे नहीं दिखता। आम भगोड़ेपन से इतर मच्योरिटी का संदर्भ बहुत सीमित होता है। बस, पुराने तजुर्बे से संभावित गलतियों का अंदाजा हो जाना और उनके दोहराव से बच निकलना। 

आप अपनी खास नजर से दुनिया को देख सकें, नए-ताजे काम कर सकें, पुरानी हदें पार करने के रास्ते निकाल सकें, इसमें न तो उम्र का कोई योगदान है, न उम्रदार लोग इसमें आपकी कोई मदद कर पाएंगे। हां, नजर धुंधली करने या आपके पहिये में फच्चर फंसाने का एक भी मौका वे हाथ से बिल्कुल नहीं जाने देंगे। लिहाजा कभी जरूरी लगे तो उम्र और अक्ल को अलगाकर देखने की कोशिश की जानी चाहिए।

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