Saturday 16 July 2022

आइंश्टाइन और प्लान्क

सुशोभित

बीसवीं सदी के आरम्भिक वर्षों में दो जर्मन वैज्ञानिकों के निमित्त भौतिकी के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण घटना घट रही थी। एक घटना का नाम था जनरल रेलेटिविटी- जो अल्बर्ट आइंश्टाइन के माध्यम से रूपायित हुई। दूसरी घटना का नाम था- क्वांटम थ्योरी- जो मक्स प्लान्क के माध्यम से अस्तित्व में आई।

जनरल रेलेटिविटी बड़ी से बड़ी चीज़ों के बारे में बात करती है, जैसे स्पेस, टाइम, ग्रैविटी, यूनिवर्स। क्वांटम थ्योरी छोटी से छोटी चीज़ों के बारे में बात करती है, जैसे एटम्स, सब-एटॉमिक पार्टिकल्स, एलीमेंट्री पार्टिकल, क्वार्क। परस्पर विरोधी दिशाओं में यात्रा करने वाली इन दोनों थ्योरियों की बुनियाद पर आधुनिक भौतिकी की इमारत टिकी है। अब जाकर स्ट्रिंग थ्योरी में इन दोनों का सुमेल हो रहा है और क्वांटम ग्रैविटी की अवधारणा सामने आ रही है। यहाँ स्टीफ़न हॉकिंग का नाम उल्लेखनीय है, जिन्होंने क्वांटम मैकेनिक्स के आधारभूत सिद्धांतों की मदद से जनरल रेलेटिविटी के विषयों को समझने की कोशिश की थी- जैसे ब्लैक होल जैसी भीमकाय एस्ट्रोफ़िज़िकल परिघटना को पार्टिकल साइंस के माध्यम से विवेचित करना और हॉकिंग रैडिएशन के सिद्धांत को प्रतिपादित करना।

मॅक्स प्लान्क को वर्ष 1918 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया, क्वांटम थ्योरी के क्षेत्र में किए गए उनके कार्य के लिए (एनर्जी क्वांटा की खोज)। प्लान्क ने पाया था कि एनर्जी क्वांटम स्वभाव की होती है। मैटर की तरह लाइट में भी पार्टिकल्स होते हैं। ये ही पार्टिकल्स फ़ोटोन कहलाए। निष्कर्ष यह था कि लाइट भले ही एक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव की तरह यात्रा करती हो, लेकिन किसी ऑब्जेक्ट से टकराने पर पार्टिकल्स के रूप में विच्छिन्न होती है। यानी लाइट के स्वभाव में एक अवर्णनीय दोहरापन है। आगे चलकर यह वेव-पार्टिकल द्वैत अनेक भौतिकविदों को सिर खपाने पर मजबूर करने वाला था।

आइंश्टाइन 1915 में जनरल रेलेटिविटी का प्रतिपादन कर चुके थे, लेकिन बड़े मज़े की बात है कि इसके लिए उन्हें भौतिकी का नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया। उन्हें भौतिकी का नोबेल दिया गया वर्ष 1921 में फ़ोटोइलेक्ट्रिक इफ़ेक्ट के नियमों की खोज के लिए।

यह जनरल रेलेटिविटी के बजाय क्वांटम मैकेनिक्स का विषय था और आइंश्टाइन वास्तव में प्लान्क के काम को ही आगे बढ़ा रहे थे। वास्तव में अनेक लोगों का यह भी मत है कि प्लान्क नहीं आइंश्टाइन ही क्वांटम थ्योरी के प्रतिपादक हैं।

गर्वीला भौतिकविद् उस नोबेल-विडम्बना पर मन ही मन व्यंग्य से मुस्करा बैठा होगा, क्योंकि यह सम्भव ही नहीं है कि आइंश्टाइन प्लान्क से प्रतिस्पर्द्धा नहीं रखते हों और स्वयं को उनसे अधिक प्रतिभाशाली नहीं समझते हों, ये और बात है कि प्लान्क अनेक मायनों में आइंश्टाइन के मेंटर थे। उन्होंने 1905 में युवा अल्बर्ट को फ़िज़िक्स जर्नल में अपने तीन महत्वपूर्ण पेपर्स प्रकाशित करवाने में मदद की। तब अल्बर्ट बेर्न के एक स्विस पेटेंट ऑफ़िस में नामालूम से कर्मचारी भर थे, लेकिन उन पेपर्स के प्रकाशन को आज भौतिकी की दुनिया में आइंश्टाइन के मिरेकल-ईयर ('एनस मिरेबिलिस') की तरह याद किया जाता है। इतना ही नहीं, प्लान्क ने 1913 में व्यक्तिगत तौर से आइंश्टाइन को बर्लिन आमंत्रित किया और उन्हें प्रोफ़ेसर का काम दिलाया। 

आप कह सकते हैं कि प्लान्क के सहयोग के बिना अल्बर्ट के लिए स्वयं को जर्मन-वैज्ञानिकों की मुख्यधारा में स्थापित कर पाना सरल नहीं होता। बर्लिन में प्लान्क और आइंश्टाइन के बीच गहरी मैत्री स्थापित हुई, अलबत्ता जब वे मिलते तो भौतिकी से ज़्यादा संगीत के बारे में बातें करते थे। वे दोनों म्यूज़िशियन भी थे, लेकिन दोनों में बहुत अंतर था। प्लान्क जहाँ राष्ट्रवादी थे, वहीं अल्बर्ट के मन में जर्मन राष्ट्र के प्रति लगाव या निष्ठा नहीं थी। वे स्वयं को विश्व-नागरिक समझते थे। साथ ही, जहाँ अल्बर्ट अज्ञेयवादी थे, वहीं प्लान्क के मन में लूथरियन चर्च के प्रति अडिग आस्था थी। प्लान्क की एप्रोच परम्परावादी थी, वहीं आइंश्टाइन रचनात्मक-विद्रोही थे और चीज़ों के प्रति कहीं नवोन्मेषी दृष्टि रखते थे।

यह मज़े की बात है कि प्लान्क और आइंश्टाइन दोनों ही क्वांटम थ्योरी के प्रति सहज नहीं थे- जबकि दोनों ने ही अपने प्रयत्नों से उसे सुस्थापित किया था। उन्हें नोबेल पुरस्कार भी क्वांटम प्रयोगों के लिए ही दिया गया। लेकिन हाइज़ेनबर्ग के अनसर्टेन्टिटी प्रिंसिपल को वे स्वीकार नहीं कर पाते थे। प्लान्क के बारे में कहा जाता है कि एनर्जी क्वांटा की खोज उनसे हो गई थी, वह उनका अभिप्रेत नहीं था। यही कारण है कि प्लान्क को अकसर एक 'अनिच्छुक विद्रोही' कहा जाता है। जबकि आइंश्टाइन समझते थे कि वे फ़ोटोइलेक्ट्रिक इफ़ेक्ट के बजाय जनरल रेलेटिविटी के लिए नोबेल के हक़दार थे। तो जहाँ एक द्वैत प्लान्क और आइंश्टाइन के बीच था, वहीं एक दूसरा द्वैत क्वांटम भौतिकी के साथ उस समय की प्रचलित भौतिकी के बीच भी था, जिसमें ये दोनों वैज्ञानिक एक छोर पर साथ खड़े थे। कहीं न कहीं, प्लान्क और आइंश्टाइन दोनों न्यूटन के क्लॉकवर्क-यूनिवर्स की प्रत्याशा रखते थे और नियमों को भंग करने वाले अराजक क्वांटम-व्यवहार को अस्वीकार करते थे।

1933 में जब नात्सी पार्टी सत्ता में आई तो आइंश्टाइन जर्मनी छोड़कर अमेरिका चले गए, लेकिन प्लान्क भरसक साहस से जर्मनी में बने रहे। उन्होंने दूसरे वैज्ञानिकों से भी अनुरोध किया कि इस मुश्किल समय में अपने देश का साथ न छोड़ें। यानी आइंश्टाइन ने अपने स्वभाव के अनुरूप व्यवहार किया, प्लान्क ने अपने स्वभाव के। जर्मनी में प्लान्क पूरे समय नात्सी-विज्ञान- जिसे दोयचे-फीजिक कहा जाता था- से संघर्ष करते रहे और आइंश्टाइन, हाइज़ेनबर्ग, फ्रित्स हैबर जैसे यहूदी वैज्ञानिकों के पक्ष में तक़रीरें करने से उन्होंने कभी संकोच नहीं किया। यह बात नात्सियों को अखर गई। दण्डस्वरूप 1936 में कैसर विल्हेल्म सोसायटी के प्रेसिडेंट के रूप में उनके कार्यकाल को समाप्त कर दिया गया। 1945 में उनके बेटे एरविन की नात्सी पुलिस के द्वारा हत्या भी कर दी गई थी।

1946 में दूसरे विश्व युद्ध के समापन के बाद जब रॉयल सोसायटी ऑफ़ लंदन ने आधुनिक भौतिकी के पितामह सर आइज़ैक न्यूटन की 300वीं जन्म-जयंती मनाई, तो जर्मनी से एक ही वैज्ञानिक को न्योता दिया गया- मक्स प्लान्क। आइंश्टाइन तब अमेरिकी नागरिक थे। जब 88 वर्ष के प्लान्क ने सभागार में प्रवेश किया तो सबने खड़े होकर करतलध्वनि से उनका स्वागत किया। अपने मित्र और मेंटर का वैसा भावभीना अभिवादन होते देख अल्बर्ट मन ही मन मुस्कराए तो होंगे।

1929 का एक चित्र है। प्लान्क के सम्मान में बर्लिन की जर्मन फ़िज़िकल सोसायटी ने प्रतिवर्ष एक स्वर्ण पदक देने का निर्णय लिया था, जिसे प्लान्क मेडल कहा जाता है। पहले प्लान्क मेडल के सुयोग्य पात्र के रूप में अल्बर्ट आइंश्टाइन- भला और कौन?- को चुना गया। स्वयं प्लान्क ने यह पदक आइंश्टाइन को सौंपा। उनकी दृष्टि आइंश्टाइन के चेहरे पर थी, लेकिन आइंश्टाइन कहीं और देख रहे थे। प्लान्क के चेहरे से एक लगावपूर्ण उदारता झलक रही थी- एक पूर्वपेक्षा थी- जबकि आइंश्टाइन के मुखमण्डल पर निरपेक्ष मुस्कराहट खेल रही थी और साथ ही एक उदासीनता और अन्य-भाव। प्लान्क-आइंश्टाइन द्वैत को रूपायित करने वाला इससे अर्थपूर्ण रूपक कोई दूसरा नहीं हो सकता था।


[ लोकप्रिय विज्ञान पर अगले माह प्रतिश्रुति प्रकाशन से प्रकाशित होने जा रही मेरी पुस्तक का एक अंश ]

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