चंद्रभूषण
इवॉल्यूशन की एक बड़ी गुत्थी सुलझने लगी है। दिलचस्प बात यह कि इसे सुलझाने वाली प्रस्थापना से धरती के विकास और जीवन के विकास के बीच एक अनूठी कड़ी भी जुड़ने जा रही है। इवॉल्यूशन की पुरानी पहेलियां सुलझाने में जुटे जीवविज्ञानी अर्से से एक समस्या को लेकर जूझ रहे हैं। मौजूदा समय से 1 अरब 80 करोड़ साल पहले जीवन मुख्यतः एककोशीय (प्रोकैरियोटिक) था लेकिन तब न केवल इसकी ढेरों किस्में मौजूद थीं, बल्कि बहुकोशीय (यूकैरियोटिक) जीवन भी वजूद में आ चुका था। इसके बाद एक अरब साल का वक्त ऐसा गुजरता है जिसमें इवॉल्यूशन की रफ्तार बहुत ही सुस्त हो जाती है।
कुछ यूं कि लगता है, 100 करोड़ साल के लंबे दौर में कुछ भी नया नहीं हो रहा। फिर अब से 80 करोड़ साल पहले इवॉल्यूशन अचानक स्पीड पकड़ता है। बहुकोशीय जीवन के नमूने ज्यादा मिलने लगते हैं और अब से 50 करोड़ साल पहले हालात कुछ ऐसे दर्ज किए जाते हैं कि अभी की सारी जीवजातियों का कोई न कोई सिरा तब के दौर से जुड़ने लगता है। कमजोर इवॉल्यूशन वाली इस बीच की अवधि को ‘बोरिंग बिलियन’ का नाम दिया गया, हालांकि इसके होने की कोई वजह किसी की समझ में नहीं आई।
युवा चीनी भूगर्भशास्त्री मिंग तांग ने अभी हाल में जिर्कान क्रिस्टलों के विश्वव्यापी अध्ययन के आधार पर यह प्रस्थापना प्रस्तुत की है कि यही अवधि पृथ्वी की ऊपरी सतह (क्रस्ट) के पतली पड़ने, नए पहाड़ों के जन्म न लेने और पुराने पहाड़ों की ऊंचाई न बढ़ने के कारण उनके सपाट हो जाने की भी है। जीवन का एक बुनियादी घटक एक्टिव फास्फोरस है, जो धरती पर बहुत कम है और इसका भीतरी द्रव्य बाहर निकलने के क्रम में ही सतह पर आता है। इस प्रक्रिया के थम जाने का ही नतीजा इवॉल्यूशन के ठहर जाने के रूप में दिखता है।
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