Friday 12 February 2021

शोध और नवाचार को बढ़ावा देने वाला बजट

केंद्रीय बजट 2021 

शशांक द्विवेदी

डायरेक्टर, मेवाड़ यूनिवर्सिटी

केंद्र सरकार ने देश में शोध और नवाचार को बढ़ावा देने के लिये अगले पाँच वर्षों में राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन के लिए 50,000 करोड़ रुपए के परिव्यय का प्रस्ताव किया है । बजट में घोषित नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) को पांच साल में 50,000 करोड़ रुपये के आवंटन से नवाचार (इनोवेशन) को बढ़ावा मिलेगा और देश के समग्र अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूती मिलेगी। जुलाई 2019 में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन के तौर-तरीकों की घोषणा तो की गई थी, लेकिन अभी तक इसके लिए कोई बजट आवंटित नहीं किया गया था। एनआरएफ के लिए 50,000 करोड़ रुपये के परिव्यय का प्रस्ताव करने के बाद वित्तमंत्री ने कहा, "यह सुनिश्चित करेगा कि देश के समग्र अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को राष्ट्रीय प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ मजबूत किया जाए।"

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में केन्द्रीय बजट 2021-22 पेश करते हुए डिजिटल भुगतान, अंतरिक्ष क्षेत्र और गहरे महासागर में अन्वेषणों एवं नवाचार के लिये कई महत्वपूर्ण पहल का प्रस्ताव दिया। वित्त मंत्री ने राष्ट्रीय भाषा अनुवाद अभियान (एनटीएलएम) नामक एक नई पहल का प्रस्ताव किया जिससे इंटरनेट पर शासन और नीति संबंधित ज्ञान भंडार का डिजिटलीकरण करने के साथ-साथ इसे प्रमुख भारतीय भाषाओं में उपलब्ध भी कराया जाएगा। वित्त मंत्री ने बताया कि पिछले समय में डिजिटल भुगतानों में कई गुना वृद्धि हुई है और इसी गति को आगे भी बनाए रखने की आवश्यकता थी। इसके लिए एक योजना के तहत 1,500 करोड़ रूपए का प्रस्ताव दिया गया है जिसके माध्यम से भुगतान के डिजिटल माध्यमों और आगामी डिजिटल लेन-देन को प्रोत्साहन देने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। अंतरिक्ष क्षेत्र से जुड़े बजटीय प्रावधानों का जिक्र करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत एक सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) कुछ भारतीय छोटे उपग्रहों के साथ ब्राजील के उपग्रह अमेज़ोनिया को पीएसएलवी-सीएस51 के माध्यम से प्रक्षेपित करेगी। उन्होंने कहा कि गगनयान मिशन के लिए रूस में अंतरिक्ष उड़ान आयामों के लिए चार भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है, इसके प्रक्षेपण की योजना दिसंबर 2021 में बनाई गयी है। सीतारमण ने महासागर क्षमता को बेहतर रूप से समझने के लिए अगले पाँच वर्षों के लिए 4,000 करोड़ रूपए से अधिक के बजट परिव्यय के साथ एक गहरे महासागर मिशन के शुभारंभ का प्रस्ताव दिया है। इस अभियान के तहत गहरे महासागर में सर्वेक्षण अन्वेषण और गरहे महासागर की जैव-विविधता के संरक्षण की परियोजनाओं को शामिल किया जाएगा।

बहुत जल्दी ही भारत रिसर्च और इनोवेशन के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ सकेगा केंद्रीय बजट में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) के माध्यम से अगले पांच साल में इस क्षेत्र पर 50 हजार करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है जो अब तक इस क्षेत्र पर खर्च होने वाली सबसे अधिक राशि होगी। यह राष्ट्रीय हितों और प्राथमिकता के आधार पर होने वाले रिसर्च और इनोवेशन पर खर्च होगी। वैसे भी कोरोना संकटकाल में जिस तरह शोध और इनोवेशन के जरिये उम्मीदों की एक नई आस जगी, उसमें इस क्षेत्र को लेकर सरकार का फोकस बदला है। अब तक सरकार का इस क्षेत्र की तरफ सबसे कम फोकस था। इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अब तक शोध और इनोवेशन पर कुल जीडीपी का एक फीसद से भी कम राशि खर्च होता है। 

मौजूदा समय में यह जीडीपी का सिर्फ 0.7 फीसद है। ऐसे में अब सरकार ने इस पर कुल जीडीपी का दो फीसद खर्च करने की योजना बनाई है। इसके साथ ही इसमें निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी भी बढ़ाई जाएगी। मौजूदा समय में शोध और इनोवेशन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र का योगदान सिर्फ 37 फीसद ही है, जिसे अब बढ़ाकर 68 फीसद तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है।वैसे भी मोदी सरकार का फोकस रिसर्च और इनोवेशन को लेकर ज्यादा है। इसे लेकर शैक्षणिक संस्थानों से शोध संस्थानों तक में एक नई मुहिम छिड़ी हुई है। 

पूरी दुनियाँ में छाये कोरोना संकट के बीच अब यह बात हमें समझ जानी चाहिए कि स्वदेशी तकनीक और आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं है। कोरोना संकट ने भारतीय अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुँचाया है ऐसे में अब समय आ गया है जब भारत हर क्षेत्र में स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करें क्योंकि अभी भी भारत अपनी रक्षा जरुरतो का लगभग 60 प्रतिशत सामान आयात करता है साथ ही मैन्यूफैक्चरिंग, इलेक्ट्रॉनिक सहित कई क्षेत्रों में भी बड़े पैमाने पर आयात होता है। देश में प्रौद्योगिकी के स्तर पर कोरोना संकट के बाद अब बदले हुए भारत की कल्पना करनी होगी जिसमें  हर क्षेत्र में स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करते हुए देश को मैन्यूफैक्चरिंग का हब बनाना होगा। कोरोना संकट की वजह से दुनियाँ के अधिकांश देश चीन के खिलाफ हैं और चीन से अपनी मैन्यूफैक्चरिंग हटाना चाहते हैं ऐसे में भारत के लिए ये एक बड़ा अवसर है कि वो इन कंपनियों को भारत में काम करने का मौका दे और साथ में अपनी खुद की स्वदेशी तकनीक और प्रौद्योगिकी विकसित करें । एकीकृत शोध को बढ़ावा देने के साथ इनकी प्राथमिकताएं भी तय की जा रही हैं। जैसा कोरोना काल में देखने को मिला है, जब पीपीई किट, वेंटीलेटर, मास्क और सैनिटाइजर जैसी चीजों की जरूरत पड़ने पर इन्हें देश में ही तैयार किया गया। इस दौरान न सिर्फ देश की जरूरत को पूरा किया, बल्कि दूसरे देशों को भी भेजा गया। साथ ही यह विदेश से आने वाली सामग्रियों के मुकाबले सस्ती और अच्छी भी थी। इतना ही नहीं, पिछले कुछ साल में शोध और इनोवेशन के क्षेत्र में देश की वैश्विक रैंकिंग में भी सुधार हुआ है। इनोवेशन के क्षेत्र में भारत अब वैश्विक रैंकिंग में 48वें स्थान पर आ गया है जो 2015 में 81वें स्थान था।

पिछले कुछ समय में भारत ने अपनी उन्नत स्वदेशी प्रौद्योगिकी का परिचय देते हुए अंतरिक्ष के क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ दिए है । देश को यही जरुरत बाकी दुसरे क्षेत्रों के लिए भी है जब हम अपनी स्वदेशी तकनीक पर काम कर सकें। हम स्वदेशी प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके रक्षा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहें है । लेकिन ये कामयाबियाँ अभी मंजिल तक पहुँचने का पड़ाव भर है और हमें काफी बड़ा रास्ता तय करते हुए विश्व को यह दिखाना है कि भारत में प्रतिभा और क्षमता की कोई कमी नहीं है । टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ने के बाद भी भारत दुनिया के कई देशों से पिछड़ा हुआ है और उसे  अभी बहुत से लक्ष्य  तय करने होंगे । वर्तमान में हम अपनी जरूरतों का लगभग 60 फीसदी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर आयात कर रहे हैं। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना और लगभग तीन लाख करोड़ रुपये के सालाना रक्षा बजट के बावजूद यहां करीब 60 फीसदी सैन्य उपकरण आयातित होते हैं।

अंतरिक्ष के क्षेत्र में हालिया कई कामयाबियाँ देश के लिये काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इनमें स्वदेशी तकनीक और उपकरणों का प्रयोग किया गया है । ये कामयाबियाँ देश में स्वदेशी तकनीक  के साथ साथ आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ते कदम की भी पुष्टि करतीं हैं । इससे पता चलता है कि अगर सकारात्मक सोच और ठोस रणनीति के साथ हम लगातार  अपनी प्रौद्योगीकीय जरूरतों को पूरा करने की दिशा में आगे कदम बढ़ाते  रहें तो वो दिन दूर नहीँ जब हम खुद अपने नीति नियंता बन जायेगे और दूसरे देशों पर किसी तकनीक,हथियार और उपकरण  के लिए निर्भर  नहीं रहना पड़ेगा ।

अगर हम एक विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं तो  आतंरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी । क्योंकि भारत  पिछले छह दशक के दौरान अपनी अधिकांश प्रौद्योगीकीय जरूरतों की पूर्ति दूसरे देशों से कर रहा है । रक्षा  जरूरतों के लिए भारत का दूसरों पर निर्भर रहना कई मायनों में खराब है एक तो यह कि अधिकतर दूसरे देश भारत को पुरानी प्रौद्योगिकी ही देने को राजी है, और वह भी ऐसी शर्ता पर जिन्हें स्वाभिमानी राष्ट्र कतई स्वीकार नहीं कर सकता।

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हमारा वैज्ञानिक व प्रौद्योगिकी ढाँचा न तो विकसित देशों जैसा मजबूत था और न ही संगठित। इसके बावजूद   प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमने काफी कम समय में बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की । स्वतंत्रता के बाद भारत का प्रयास यही रहा है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन भी लाया जाए। जिससे देश के जीवन स्तर में संरचनात्मक सुधार हो सके । अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण और उदारीकरण के दबाव के कारण आज टेक्नोलॉजी की जरुरत बढ़ गई है। वास्तव में वैज्ञानिक गतिविधियों को बनाए रखने के लिए तथा सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना करने के लिए भारतीय जन मानस में वैज्ञानिक चेतना का विकास करना अनिवार्य है। वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकीय ज्ञान के सतत विकास और प्रसार के लिए हम सब को आगे आना होगा । एक व्यक्ति और एक संस्था से ही यह काम सफल नहीं हो सकता है इसमें हम सब की सामूहिक और सार्थक  भागीदारी की जरुरत है ।

कोरोना संकट के समय देश में स्वदेशी प्रौद्योगिकी को बड़े पैमाने पर विकसित करने की जरुरत है और इस दिशा में जो भी समस्याएं है उन्हें सरकार द्वारा अबिलम्ब दूर करना होगा तभी सही मायनों में हम कोरोना की वजह से अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती को भी दूर कर पाएंगे । हाल ही में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में भी अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए रिसर्च और इनोवेशन पर अधिक ध्यान देने की जरूरत बताई गई है। इसके साथ ही शोध और इनोवेशन से जुड़ी देश की प्रतिभाओं को पलायन से रोकने के लिए एक नया माहौल तैयार करने पर जोर दिया गया है। फिलहाल बजट में की गई घोषणाओं से इसे मजबूती मिलेगी। साथ ही उन सभी क्षेत्रों पर भी काम हो पाएगा जो अभी भी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। जिसे तकनीकी तौर पर मजबूती देकर नए सिरे से खड़ा किया सकता है। 

 (लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर और टेक्निकल टूडे पत्रिका के संपादक हैं )

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