चंद्रभूषण
सोलर सिस्टम के अनसुलझे रहस्यों में एक सूरज की धुरी का झुकाव भी है। सौरमंडल के आठो ग्रह एक समतल में रहकर सूरज का चक्कर लगाते हैं। हम जानते हैं कि सोलर सिस्टम के कुल वजन के 1000 हिस्सों में 998 अकेले सूरज के हवाले हैं। बाकी 2 हिस्सों में न सिर्फ सारे ग्रह बल्कि उनके सभी उपग्रह, क्षुद्र ग्रह, उल्काएं, धूमकेतु और धूल वगैरह सब आ जाते हैं। ऐसे में भौतिकी की राय यही बनती है कि सौरमंडल की धुरी और सूरज की धुरी, दोनों बिल्कुल एक होनी चाहिए।
लेकिन खगोलविज्ञानी काफी पहले से जानते रहे हैं कि सूरज की अपनी घूर्णन धुरी सौरमंडल की घूर्णन धुरी से सवा सात डिग्री झुकी हुई है। यूं कहें कि सौरमंडल की तख्ती पर सूरज कुछ टेढ़ा सा बैठा है। यह बात इतनी बेतुकी है कि इसके कारणों पर वैज्ञानिक दायरों में बात तक नहीं होती। लेकिन सौरमंडल के कुछ बाहरी पिंडों का व्यवहार देखकर तीन साल पहले सौरमंडल के नवें ग्रह की प्रस्थापना क्या आई, कई बंद पड़े सवालों के ताले खटाखट खुलने शुरू हो गए। मौजूदा सदी ने सोलर सिस्टम के बाहरी इलाकों के बारे में हमारा समूचा नजरिया ही बदल डाला है।
कोंस्टैंटिन बैटीगिन और माइक ब्राउन ने पाया कि नेप्च्यून से काफी दूर स्थित सौरमंडल के बिल्कुल बाहरी सदस्यों की कक्षाएं इसके तल से ऊंचा कोण बना रही हैं। यह तभी संभव है, जब यूरेनस या नेप्च्यून जैसा, यानी पृथ्वी की तुलना में कम से कम दसगुना वजनी कोई ग्रह सौरमंडल के तल से 30 डिग्री या इससे ज्यादा झुकी हुई लगभग बीस हजार वर्षों की कक्षा में सूरज का चक्कर लगा रहा हो। खोजियों का हिसाब कहता है कि ऐसे किसी पिंड की मौजूदगी अरबों साल में सौरमंडल के तल को उतना झुका सकती है, जितना झुकाव उसकी और सूरज की धुरियों के बीच देखा जाता है।
सोलर सिस्टम के अनसुलझे रहस्यों में एक सूरज की धुरी का झुकाव भी है। सौरमंडल के आठो ग्रह एक समतल में रहकर सूरज का चक्कर लगाते हैं। हम जानते हैं कि सोलर सिस्टम के कुल वजन के 1000 हिस्सों में 998 अकेले सूरज के हवाले हैं। बाकी 2 हिस्सों में न सिर्फ सारे ग्रह बल्कि उनके सभी उपग्रह, क्षुद्र ग्रह, उल्काएं, धूमकेतु और धूल वगैरह सब आ जाते हैं। ऐसे में भौतिकी की राय यही बनती है कि सौरमंडल की धुरी और सूरज की धुरी, दोनों बिल्कुल एक होनी चाहिए।
लेकिन खगोलविज्ञानी काफी पहले से जानते रहे हैं कि सूरज की अपनी घूर्णन धुरी सौरमंडल की घूर्णन धुरी से सवा सात डिग्री झुकी हुई है। यूं कहें कि सौरमंडल की तख्ती पर सूरज कुछ टेढ़ा सा बैठा है। यह बात इतनी बेतुकी है कि इसके कारणों पर वैज्ञानिक दायरों में बात तक नहीं होती। लेकिन सौरमंडल के कुछ बाहरी पिंडों का व्यवहार देखकर तीन साल पहले सौरमंडल के नवें ग्रह की प्रस्थापना क्या आई, कई बंद पड़े सवालों के ताले खटाखट खुलने शुरू हो गए। मौजूदा सदी ने सोलर सिस्टम के बाहरी इलाकों के बारे में हमारा समूचा नजरिया ही बदल डाला है।
कोंस्टैंटिन बैटीगिन और माइक ब्राउन ने पाया कि नेप्च्यून से काफी दूर स्थित सौरमंडल के बिल्कुल बाहरी सदस्यों की कक्षाएं इसके तल से ऊंचा कोण बना रही हैं। यह तभी संभव है, जब यूरेनस या नेप्च्यून जैसा, यानी पृथ्वी की तुलना में कम से कम दसगुना वजनी कोई ग्रह सौरमंडल के तल से 30 डिग्री या इससे ज्यादा झुकी हुई लगभग बीस हजार वर्षों की कक्षा में सूरज का चक्कर लगा रहा हो। खोजियों का हिसाब कहता है कि ऐसे किसी पिंड की मौजूदगी अरबों साल में सौरमंडल के तल को उतना झुका सकती है, जितना झुकाव उसकी और सूरज की धुरियों के बीच देखा जाता है।
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