हरजिंदर, हेड-थॉट, हिन्दुस्तान
किसी बड़े वैज्ञानिक, बड़े
खिलाड़ी, साहित्यकार या किसी भी क्षेत्र की आला
हस्ती का हम बड़ी आसानी से मूल्यांकन कर सकते हैं। सेलिब्रिटी का दर्जा हासिल कर
चुकी किसी भी शख्सीयत को आंकने और नापने के भी हमारे पास बहुत सारे पैमाने हैं।
सफलता की कहानियों का भाव तय करने के भी हमारे पास बहुत से तराजू हैं। लेकिन इन
सारी कसौटियों को एक साथ इस्तेमाल कर लें, तो हम
स्टीफन हॉकिंग के महत्व को न तो पूरी तरह आंक सकते हैं, न माप सकते हैं और न ही उनकी उस भूमिका को पूरी तरह तौल सकते
हैं, जो उन्होंने तमाम भ्रमों से ग्रस्त इस
समय में निभाई है। स्टीफन हॉकिंग और उनकी भूमिका को हम तीन तरह से देख सकते हैं।
एक साथ तीन तरह से। एक तरफ तो एक वैज्ञानिक है, आला दर्जे का कॉस्मोलॉजिस्ट। वह वैसा नहीं है, जैसा हम अपने आस-पास वरिष्ठ वैज्ञानिक, मुख्य वैज्ञानिक या प्रोफेसर आदि के रूप में देखते हैं। विज्ञान
उसका पेशा नहीं था, बल्कि वह
विज्ञान को हर पल बाकायदा जी रहा था। स्टीफन हॉकिंग जब धरती के जन्म और उसके पहले
की अवधारणाओं को देते थे, तो वह
सिर्फ इतना ही नहीं करते थे। वह हमारे अंधविश्वासों और हमारी भ्रांतियों का खंडन
भी करते थे। स्टीफन हॉकिंग ने वैज्ञानिक सोच को जनमानस का हिस्सा बनाने का वह काम
किया, जो इधर कुछ समय से वैज्ञानिकों ने
पूरी तरह छोड़ दिया है। स्टीफन हॉकिंग के इसी पहलू ने उन्हें हमारे दौर की सबसे
सशक्त और विश्वसनीय आवाज बना दिया था, वह भी तब, जब वह आवाज हमें सीधे उनके मुंह से नहीं, बल्कि उनकी व्हील चेयर पर लगे कंप्यूटर के स्पीकर से सुनाई
देती थी।
ऐसा भी नहीं है कि एक वैज्ञानिक के रूप में उनके खाते में
सिर्फ सफलताएं ही हैं। किसी भी वैज्ञानिक की तरह उन्होंने भी गलतियां कीं, और एक अच्छे इंसान की तरह जरूरत पड़ने पर उन्हें स्वीकारा भी।
उन्होंने कहा था कि ब्लैक होल सूचनाओं को नष्ट कर देता है, वह गलत साबित हुए। उन्होंने कहा कि छह हजार प्रकाश वर्ष दूरी
के हमेशा एक्स-रे छोड़ने वाला साइनस एक्स-1 कोई
ब्लैक होल नहीं है। बाद के अध्ययन में पता लगा कि यह ब्लैक होल ही है। और सबसे बड़ी
गलती हिग्स बोसोन को लेकर हुई। 1964 में उनके
और इस कण की अवधारणा पेश करने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक पीटर हिग्स के बीच इस बात
पर काफी बहस हुई। स्टीफन हॉकिंग का कहना था कि इस कण को हम कभी नहीं पा सकेंगे। यह
बहस तब और तल्ख हो गई, जब पीटर
हिग्स ने कहा कि स्टीफन हॉकिंग को सेलिब्रिटी का दर्जा हासिल है और इस बहस में वह
इसी का दुरुपयोग कर रहे हैं। लेकिन स्वीडन में बने लॉर्ज हेड्रॉन कोलाइडर ने 2012 में इस कण को खोज निकाला। यह खबर जब
स्टीफन हॉकिंग को दी गई, तो
उन्होंने गलती स्वीकारी और कहा कि पीटर हिग्स को इसके लिए नोबेल सम्मान मिलना
चाहिए। और सचमुच एक साल बाद ही पीटर हिग्स नोबेल पुरस्कार से नवाजे गए। उनके
सेलिब्रिटी स्टेटस पर टिप्पणी करके पीटर हिग्स ने भले ही अपनी कुंठा जगजाहिर कर दी
हो, लेकिन माफी मांगकर स्टीफन हॉकिंग ने
अपनी महानता स्थापित कर दी। अंधविश्वासों को तोड़ने वाले को खुद के जीवन में
कट्टरता से किस तरह दूर रहना चाहिए, स्टीफन
हॉकिंग इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं।
स्टीफन हॉकिंग को मिला सेलिब्रिटी का दर्जा उनके जीवन का एक
दूसरा पहलू है। उन्हें देखने का एक दूसरा तरीका। इतिहास में लोकप्रिय नेता, अभिनेता और साहित्यकार तो बहुत हुए हैं, लेकिन लोकप्रिय होने वाले वैज्ञानिकों की संख्या बहुत कम है।
स्टीफन हॉकिंग के अलावा कुछ ही नाम याद आते हैं। जैसे- आईजक न्यूटन, आर्किमिडीज, थॉमस
एडीसन, अल्बर्ट आइंस्टीन वगैरह। हो सकता है
कि कुछ लोग इसमें कुछ और नाम जोड़ना चाहें, लेकिन
फिर भी यह संख्या उंगलियों पर गिनी जाने लायक ही होगी। दूसरी तरफ अगर आप पिछली
एक-दो सदी के दस-बीस बड़े वैज्ञानिकों की सूची बनाएं, तो उसमें शायद ही स्टीफन हॉकिंग का नाम आ पाए। आखिर वह क्या चीज है, जो स्टीफन हॉकिंग को जितना बड़ा वैज्ञानिक नहीं बनाती, उससे कहीं ज्यादा लोकप्रियता उन्हें देती है, उन्हें उससे कहीं ज्यादा विज्ञान की विश्वसनीय आवाज बनाती है? आज के दौर के सभी वैज्ञानिकों में सबसे अलग चीज जो स्टीफन
हॉकिंग में थी,
वह था उनका कम्युनिकेटर होना।
उन्होंने अपने विज्ञान को सिर्फ शोध-पत्रों और अकादमिक सेमिनारों तक ही सीमित नहीं
रखा, उसे वह जनता के बीच लेकर गए, यहां तक कि बच्चों के बीच भी। विज्ञान के बारे में आम लोगों
से लगातार संवाद करते रहना उनकी आदत थी, वह भी तब, जब कुदरत ने संवाद का सबसे महत्वपूर्ण तंत्र उनसे छीन लिया
था। उनकी पुस्तक हिस्ट्री ऑफ टाइम इतिहास में विज्ञान की पहली ऐसी किताब बनी, जिसकी करोड़ों प्रतियां बिकीं। शायद सबसे ज्यादा पायरेसी भी
इसी किताब की हुई। यह आज भी इंटरनेट पर सबसे ज्यादा डाउनलोड की जाने वाली किताब
है। हालांकि ईष्र्यावश कुछ लेखक यह भी कहते हैं कि यह सबसे ज्यादा बिकने और सबसे
कम पढ़ी जाने वाली किताब है।
स्टीफन हॉकिंग के जीवन का तीसरा पहलू है, उनकी कामयाबी की कहानी। विपरीत हालात में सफल होने वाले
लोगों की कहानियों से तो पूरा इतिहास भरा पड़ा है। लेकिन स्थितियां जब लगातार हाथ
से निकल रही हों,
उसके बावजूद लगातार पहले से बड़ी
कामयाबी की ओर बढ़ने का ऐसा कोई दूसरा उदाहरण शायद हमारे पास नहीं है। वह जब 21 बरस के थे, तो पता
पड़ा कि उन्हें मोटार न्यूरॉन डिजीज है। इस रोग में शरीर के एक-एक अंग धीरे-धीरे
काम करना बंद कर देते हैं। शुरू में डॉक्टरों ने यह तक कह दिया था कि वह दो साल से
ज्यादा जीवित नहीं रहेंगे। लेकिन यह स्टीफन हॉकिंग का जज्बा ही था कि उसके बाद के 55 साल उनके जीवन के सबसे सक्रिय और सबसे उत्पादक साल रहे। आज
हम स्टीफन हॉकिंग को उनके शुरुआती 21 साल की
वजह से नहीं,
बल्कि बाद के 55 साल की वजह से जानते हैं। और इसी के साथ उनकी विनम्रता देखिए, हर बार जब इस रोग का जिक्र आया, तो स्टीफन हॉकिंग ने यही कहा कि इस रोग ने उनकी कामयाबी में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसी के
बाद से उन्होंने विज्ञान को ज्यादा गंभीरता से लेना शुरू किया। हमें बहुत ठीक से
पता नहीं है कि इस रोग की यह भूमिका कितनी बड़ी थी, लेकिन कहा जाता है कि जो अपनी कमी को अपनी खूबी मान लेता है, उसे कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता। स्टीफन हॉकिंग के
जीवन से सीखने के लिए बहुत कुछ है।
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