Tuesday 13 March 2018

फिर से ज्ञान का केंद्र बनने का समय


डॉ. निरंजन कुमार
एक समय तक्षशिला, नालंदा आदि में अन्य देशों के विद्यार्थी पढ़ने आते थे। इस स्थिति को फिर से हासिल करने की जरूरत है
 मानव संसाधन विकास मंत्रलय अगले शैक्षिक सत्र से भारत में विदेशी छात्रों की संख्या को दोगुना करने की योजना पर काम कर रहा है। विदेशी छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए अपने यहां आकर्षित करने में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी आदि देशों के साथ चीन और भारत इत्यादि ने हाल के वर्षो में प्रयास करना शुरू किया है। बीते कुछ समय से विभिन्न देश ग्लोबल दुनिया पर धाक जमाने के लिए आर्थिक उपलब्धि, तकनीकी श्रेष्ठता एवं सामरिक ताकत के साथ-साथ सॉफ्ट पावर का भी इस्तेमाल करते हैं। विदेशी छात्रों की उपस्थिति सॉफ्ट पावर का ऐसा आयाम है जो किसी देश का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव सूचक बनता है। शिक्षा पूरी करने के बाद छात्र स्वदेश जाकर अपने यहां उच्च शिक्षा देने वाले देश के लिए ब्रांड एंबेसडर का कार्य करते हैं। इस बात को हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जोसेफ न्ये जूनियर ने अपनी पुस्तक सॉफ्ट पावर- द मीन्स टू सक्सेस इन वल्र्ड पॉलिटिक्समें स्पष्ट किया है। सॉफ्ट पावर यानी दुनिया में दबदबा कायम करने के लिए लोगों के दिल-दिमाग पर भी प्रभाव जमाना। हालांकि यह पुस्तक अमेरिका को ध्यान में रखकर लिखी गई है, लेकिन उसकी बात कमोबेश सभी देशों पर लागू होती है। विदेशी छात्र अपने मूल देशों में उच्च शिक्षा वाले देश के प्रति राजनयिक संबंधों, विभिन्न नीतियों आदि के लिए सकारात्मक माहौल बनाने में मददगार होते हैं। वे नकारात्मक प्रभाव को कम करने का काम करते हैं। 1विदेशी छात्रों की उपस्थिति का एक आर्थिक पक्ष भी है। उच्च शिक्षा पाने में दूसरे देशों में भरपूर पैसा खर्च होता है। न्यूयॉर्क स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एजुकेशन ने एक अध्ययन में बताया है कि भारतीय छात्रों ने 2016-17 में अमेरिका में अध्ययन के लिए 6.54 बिलियन डॉलर (करीब 43 हजार करोड़ रुपये) खर्च किए। यह राशि अमेरिका से 2016-17 में भारत में किए गए कुल विदेशी पूंजी निवेश 2.37 बिलियन डॉलर से लगभग तीन गुनी है। अमेरिका में 2016-17 में सभी विदेशी छात्रों द्वारा किया गया कुल खर्च ़36.9 बिलियन डॉलर (करीब 2 लाख 43 हजार करोड़ रुपये) था। ये विद्यार्थी न केवल भारी-भरकम फीस चुकाते हैं, बल्कि रहने, खाने, स्वास्थ्य और अन्य सुविधाओं के लिए भी धन खर्च करते हैं। चूंकि वे अपेक्षाकृत ऊंची फीस अदा करते हैं इसलिए उनके धन से शिक्षा संस्थानों को अपनी गुणवत्ता बढ़ाने में भी मदद मिलती है। विदेशी छात्रों की संख्या विश्वविद्यालयों की अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग बढ़ाने में भी सहायक बनती है। यह अनायास नहीं कि अमेरिका जैसा समर्थ-संपन्न देश विदेशी छात्रों को अपने यहां आकर्षित करने के लिए अपने विदेश मंत्रलय के जरिये ओपन डोरजैसी पहल करता है। हैरत नहीं कि दुनिया में सबसे ज्यादा विदेशी छात्र अमेरिका ही पढ़ने जाते हैं। यहां 2016-17 में 10 लाख से ज्यादा विदेशी छात्र थे। अमेरिका के अलावा ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, रूस का भी नाम आता है। एशियाई देशों में जापान, चीन, मलेशिया, दक्षिण कोरिया, संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर, सऊदी अरब का नाम आता है। भारत का स्थान कहीं नीचे हैं। चीन में 2016-17 में चार लाख से भी ज्यादा विदेशी छात्र थे तो मलेशिया में 2015-16 में 60 हजार से ज्यादा विदेशी छात्र थे। इसके विपरीत भारत में 2015-16 में मात्र 45,424 विदेशी छात्र थे।1वर्ष 2016 में दुनिया में 50 लाख से ज्यादा विद्यार्थी पढ़ने के लिए विदेश गए। इन विदेशी छात्रों को आकर्षित करने में भारत पीछे रहा। भारत की हिस्सेदारी मात्र 0.9 फीसद रही। कभी दुनिया के प्राचीन विश्वविद्यालयों तक्षशिला और नालंदा में चीन, सीरिया, यूनान और विभिन्न दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के विद्यार्थी अध्ययन करने आते थे। इस स्थिति को फिर से हासिल करने की जरूरत है। विदेशी छात्रों की भारत में संख्या बढ़ाने के लिए स्टडी इन इंडिया इनिशिएटिवकी शुरुआत ग्रेजुएट मैनेजमेंट एडमिशन काउंसिल के द्वारा सितंबर 2017 में की गई थी। मुख्य रूप से अफ्रीका, मध्यपूर्व, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को लक्ष्य में रखा गया। भारत में विदेशी छात्रों के लिए आकर्षण के अनेक बिंदु हैं। सबसे पहले तो अमेरिका और यूरोपीय देशों की तरह भारत लोकतांत्रिक देश है।इससे विदेशी छात्रों को यहां सहजता महसूस होती है। दूसरे, जापान, चीन, कोरिया, मलेशिया इत्यादि देशों के मुकाबले भारत में शिक्षण के अलावा दैनिक क्रिया कलाप में अंग्रेजी से काम चल जाता है। जर्मनी, फ्रांस, रूस की तरह यहां आरंभ से ही स्थानीय भाषा की जरूरत नहीं। वहीं भारत में फीस के साथ-साथ जीवन-यापन का खर्च भी अपेक्षाकृत कम है। विविधतापूर्ण भारतीय संस्कृति भी विदेशी छात्रों के लिए आकर्षण का एक कारण है। बाहर के देशों के छात्रों के लिए आयुर्वेद, योग-विद्या, बौद्ध अध्ययन, संस्कृति, प्राचीन भाषाएं, इतिहास, वास्तु आदि आकर्षण के बिंदु हो सकते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी डिप्लोमा प्रोग्राम में शामिल अमेरिकी, जापानी और अरब के कई विद्यार्थियों के लिए हिंदी पढ़ने की मुख्य वजह व्यापारिक और सांस्कृतिक है। 1चूंकि विदेशी छात्रों को भारत आने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है इसलिए रजिस्ट्रेशन के नियमों को आसान बनाने के साथ वीजा प्रक्रिया को भी सरल करना होगा। आवश्यक जानकारी और सुविधाओं से परिचित कराने के लिए विशिष्ट वेबसाइट बनाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही संबंधित देशों में इंडिया एजुकेशन फेयरजैसे कार्यक्रम आयोजित करने की भी जरूरत है। इसी के साथ समाज में भी यह जागरूकता फैलाने की जरुरत है कि विदेशियों के प्रति हम सम्मान से पेश आएं, क्योंकि वे सिर्फ मेहमान ही नहीं, बल्कि अर्थ का स्रोत भी हैं। इन सब उपायों से ज्यादा जरूरी है यह है कि हम उच्च शिक्षा के अपने केंद्रों में शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर ऊंचा उठाएं। दुनिया को यह संदेश जाना चाहिए कि भारत में पर्याप्त संख्या में उच्च शिक्षा के ऐसे केंद्र हैं जहां दी जाने वाली शिक्षा विश्व स्तरीय है। अगर इस दिशा में काम किया जा सके तो एक ओर जहां विदेश पढ़ने जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में कमी आएगी और उसके चलते विदेशी मुद्रा की बचत होगी वहीं दूसरी ओर विदेशी छात्रों को आकर्षित करने और विदेशी मुद्रा अर्जित करने में भी सहूलियत होगी। अच्छा होगा कि हमारे नीति-निर्धारक सबसे पहले उच्च शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर ऊंचा उठाने के काम को अपने एजेंडे पर लें। पहले चरण में इसके लिए ठोस प्रयास होने चाहिए कि भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों में पढ़ाई का स्तर अमेरिका और यूरोपीय देशों जैसा न सही तो कम से कम उनके बाद तो बेहतर बने ही। ऐसे किसी कदम के बगैर पर्याप्त संख्या में विदेशी छात्रों को आकर्षित करना कठिन ही बना रहेगा।(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)

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