Friday 24 July 2015

न कौशल न विकास :क्या करें इस डिग्री-डिप्लोमा का ?

शशांक द्विवेदी 
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को युवाओं को स्किल्ड बनाने के उद्देश्य से स्किल इण्डिया प्रोग्राम लाँच कर दिया .देश में मेक इन इंडिया ,डिजिटल इंडिया और अब स्किल इण्डिया जैसे कार्यक्रम लाँच करने के लिए मोदी सरकार बधाई की पात्र है क्योकि पहली बार कोई सरकार इतने महत्वपूर्ण मुद्दों को संजीदगी से ले रही है और इन पर बाकायदा अभियान चला रही है . स्किल इंडिया कैम्पेन को लांच करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि “आईआईटी नहीं बल्कि आईटीआई है सदी की जरूरत “.उनकी इस बात से सहमत हुआ जा सकता है लेकिन क्या देश में आईटीआई की दशा ठीक है ?क्या वो गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने के लिए जाने जाते है .इन कुछ सवालों के जवाब हमें खोजने होंगे साथ में इस बात की भी पड़ताल करनी होगी कि देश भर के १२००० आईटीआई के शिक्षकों का स्तर कैसा है ?उनके प्रशिक्षण के लिए सरकार ने अब तक क्या कदम उठाये है क्योकि सरकार जब प्राइमरी और माध्यमिक लेवल की शिक्षा के लिए अत्यधिक पढ़े लिखे और डिग्री होल्डर का चयन करती है ऐसे में आईटीआई के आध्यापकों के चयन और उनके प्रशिक्षण के लिए क्या व्यवस्था है ?सच्चाई तो यह है कि आईटीआई आध्यापकों के उचित प्रशिक्षण के लिए अभी तक कोई ठोस सिस्टम विकसित ही नहीं हो पाया है .इस महत्वपूर्ण विषय पर काम करने की जरुरत है 
नेशनल सैंपल सर्वे के एक अध्ययन के मुताबिक, स्कूली शिक्षा के दौरान कम्पयूटर प्रशिक्षण प्राप्त 44 प्रतिशत घर बैठे हैं। टैक्सटाइल प्रशिक्षण प्राप्त 66 प्रतिशत के पास नौकरियां नहीं हैं।
स्कूलों में वोकेशनल कोर्स उत्तीर्ण महज् 18 प्रतिशत किशोरों को ही संबंधित ट्रेड की नौकरी मिल पाई; शेष 82 प्रतिशत अपनी पढाई का लाभ नहीं पा सके। ज्यादातर बेरोजगारी झेलने को मजबूर हैं। इस 18 प्रतिशत में से मात्र 40 प्रतिशत को ही औपचारिक शर्तांे पर नौकरी मिली। जाहिर है कि शेष 60 प्रतिशत की नौकरी अस्थाई किस्म की है। नौकरियां हासिल करने वालों में 30 प्रतिशत ऐसे थे, जिनके पास स्नातक अथवा उच्च डिग्री थी।
यह हाल क्यों है ? यह हाल इसलिए नहीं कि है, तकनीकी क्षेत्र में विद्यार्थियों की आवक अधिक है या कि नौकरियां कम हैं। हकीकत यह है कि आज भारत के मात्र तीन प्रतिशत कर्मचारी ही वोकेशनल प्रशिक्षण प्राप्त है। अधिक की पूर्ति के लिए भारत में वोकेशनल स्कूलों की कमी है।
असलियत यह है कि भारत और दुनिया का आधुनिक कारपोरेट जगत ज्यादा कौशल की मांग कर रहा है। इसकी तुलना में उपलब्ध विद्याथियों की रोजगार संबंधी काबिलियत कम है। यह स्थिति शिक्षण तथा प्रायोगिक सुविधा व गुणवत्ता में कमी के कारण उत्पन्न हुई है। गुणवत्ता में कमी और प्रायोगिक सुविधाओं में कमी का असर लघु अवधि पाठ्यक्रमों में ही नहीं, स्नातक स्तरीय इंजीनियरिंग और व्यावसायिक प्रबंधन की पढाई पढ चुके युवाओं के समक्ष बेरोजगारी बनकर सामने आ रहा है।
इंजीनियरिंग
भारत में आज इंजीनियंरिंग शिक्षा के आई आई टी, बी आई टी, एन आई टी. तथा क्षेत्रीय कालेजों जैसे कई प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थान हैं। ये ऐसे संस्थान हैं, जहां से पढने वाले विद्यार्थियों को इस बात की गारंटी है कि वे बेरोजगार नहीं बैठेंगे। किंतु भारत के ज्यादातर और उनमें भी खासकर निजी इंजीनियरिंग काॅलेजों से यह गारंटी भी अब गायब हो रही है। ऐसा क्यों है ? गेहूं व खेत बेचकर या कर्ज लेकर अपने बच्चों को इंजीनियर बनाने का सपना पालने वाले गरीब अभिभावकों के लिए यह सर्वाधिक चिंता का विषय बनता जा रहा है। इस चिंता से चिंतित होना जरूरी है।
एम आई टी, अमेरिका और आई आई टी, नई दिल्ली के पढे दो इंजीनियरिंग छात्र क्रमशः वरुण अग्रवाल और हिमाशुं अग्रवाल ने एस्पायरिंग माइंड्स नामक संस्था बनाकर यह चिंता करनी शुरु की है। किंतु क्या इसके कारण और निवारण को लेकर भारतीय तकनीकी शिक्षा जगत वाकई चिंतित है ? आइये, चिंतित हों और चिंतन कर कुछ रास्ता निकालें।
निजी कालेज: खाली पड़ी सीटें
परिदृश्य यह है कि एक ओर जाने कितने निजी इंजीनियरिंग काॅलेज इस सितम्बर के महीने में भी बाट जोह रहे हैं कि कोई आये और उनकी सीटें भरे; दूसरी ओर, एक साल पहले जुलाई-2013 में उत्तीर्ण होकर निकले कितने इंजीनियरिंग डिग्रीधारी बाट जोह रहे हैं कि कोई आये और उनकी बेरोजगारी दूर करे। तमिलनाडु के काॅलेजों मंे इंजीनियरिंग की दो लाख सीटें हैं। प्रवेश के लिए इस वर्ष तमिलनाडु के मात्र 1.74 लाख विद्यार्थियों ने ही आवेदन किया।
उत्तर प्रदेश में पाॅलीटेक्निक संस्थानों में करीब सवा लाख सीटें हैं। जुलाई अंत तक मात्र 15 हजार प्रवेश से चिंतित शासन ने सभी के लिए विशेष प्रवेश खोल दिया। जुलाई अंत में विज्ञापन निकाला कि दसवीं मंे 35 प्रतिशत अंक प्राप्त कोई भी विद्यार्थी अगस्त की सुनिश्चित तारीखों में प्रवेश ले सकता है। ऐसे अखबारी विज्ञापन हमारे तकनीकी संस्थानों की दुर्दशा और खाली सीटों को लेकर संस्थान मालिकों की बेचैनी दर्शाते हैं।
गिरता पैकेज: गायब रोजगार गारंटी
प्रवेश न लेने के पीछे का मुख्य कारण तकनीकी क्षेत्र में बढती बेरोजगारी और गिरता पैकेज है। चित्र यह है कि एक ओर, सरकारी नौकरियों में आठवीं पास चपरासी भी 15 हजार रुपये से कम तनख्वाह नहीं पा रहा; निजी दुकानों में काम करने वाले अकुशल कर्मचारी भी आठ-दस हजार से कम में नहीं मिलते; दूसरी तरफ, बी टेक उत्तीर्ण नौजवान इतना भी नहीं कमा पा रहे कि बैंक द्वारा रियायती दर पर दिया शिक्षा कर्ज चुका सकंे। दुखद है कि ऐसी पढाई पढाने वाले निजी इंजीनियरिंग काॅलेजों में पढाने के लिए भी अभिभावकों को चार साल में लगभग आठ लाख रुपये खर्च करने को मजबूर हैं और बाद में पछताने को भी।
चिंता की दूसरी बात यह है कि इंजीनियरिंग स्नातक बनने के बाद ज्यादातर विद्यार्थी ऐसी नौकरियों में है, जिनका उनकी तकनीकी पढाई से कोई लेना-देना नहीं है। बी ए, बी काॅम जैसे सामान्य स्नातक की भांति, इंजीनियरिंग डिग्रीधारी भी बैंक, संयुक्त लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग तथा प्रादेशिक सेवा आयोगों द्वारा आयोजित सामान्य परीक्षाओं में नौकरी ढूंढ रहे हैं। विशिष्ट बीटीसी के जरिए उत्तर प्रदेश की प्राथमिक पाठशालाओं मंे पढाने की नौकरी की दौङ में बी टेक डिग्रीधारी भी शमिल देखे गये है।
विषय कौशल का अभाव: बड़ा कारण
इंजीनियरिंग कोर्स के चुनाव में आज आई टी और कम्पयूटर सांइस आज सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली शाखायें हैं। देश मंे हर साल करीब 6 लाख विद्यार्थी कम्पयूटर इंजीनियरिंग स्नातक की डिग्री हासिल करते हैं। गौर करने की बात है कि आज इनमे से 20 प्रतिशत भी साफ्टवेयर के क्षेत्र भर्ती योग्यता के काबिल नहीं निकल रहे। ’एस्पारिंग मांइड्स’ नामक संगठन की राष्ट्रीय रोजगार योग्यता रिपोर्ट-2013 के अनुसार मात्र 18.43 प्रतिशत इंजीनियरिंग स्नातक ही साॅफ्टवेयर क्षेत्र के काबिल पाये गये। यह हाल तब है, जब ज्यादातर कंपनियां वास्तविक इजीनियर की बजाय ज्यादातर प्रोग्रामर भर्ती कर रहे हैं।
सर्वे के मुताबिक, 91.82 प्रतिशत के पास प्रोग्रामिंग और अन्वेषण संबंधी कौशल का अभाव पाया गया। पाया गया कि 71.23 प्रतिशत में संबंधित ज्ञान की कमी तथा 60 प्रतिशत में अपने क्षेत्र से जुङे कौशल का अभाव है। 57.96 प्रतिशत में संक्षेपण, विश्लेषण तथा कम समय में अधिक कर पाने के कौशल की कमी है। 25 से 35 प्रतिशत दैनिक अंग्रेजी बोलने से हिचकते हैं। 30 प्रतिशत ऐसे हैं, जिन्हे दशमलव, अनुपात, माप प्रणाली, वर्गमूल जैसे साधारण गणितीय आकलन करने में कठिनाई होती है।
प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद के प्रमुख के एक बयान के मुताबिक हो सकता है कि 55 हजार विद्यार्थियों पर किए इस सर्वेक्षण की सैंपल संख्या नाकाफी हो, किंतु इसे कम बताकर इस सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि भारत में तकनीकी शिक्षण अपनी चमक खो रहा है। अब यह कोई छिपी बात भी नहीं है कि तकनीकी क्षेत्र में प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव बढा है; शिक्षण स्तर घटा है। बी टेक के कितने अध्यापक 15-20 हजार की मामूली तनख्वाह पा रहे हैं। न तो पाठ्यक्रम नियोजकों में परंपरागत पाठ्यक्रम में बदलाव व बेहतरी की कोई ललक अनुभव की जा रही है और न ही शिक्षकों में नई तकनीक व उत्पादों के बारे में जानने और विद्यार्थियों को बताने की।
निजी कालेज: गिरता प्रदर्शन
आंकड़ा यह है कि वर्ष 2006-07 की तुलना में वर्ष 2012-13 में इंजीनियरिंग काॅलेजांे की संख्या दोगुनी और इंजीनियरिंग सीटों की संख्या 4,99697 से बढकर 17,61967 हो गई है। इन कुल सीटो में 15 आई आई टी, आईएसएम-धनबाद, आई टी-बीएचयू और बीआईटी-पिलानी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों की हिस्सेदारी लगभग आधा प्रतिशत है। ए आई ट्रिपल थ्री प्रवेश परीक्षा के जरिए प्रवेश वाले एनआईटी, आई आईएफटी, आई आई आई आई डी एम जैसे अच्छे माने जाने वाले इंजीनियरिंग संस्थानों के हिस्से में भी कुल 25,575 सीटें हैं। उक्त दोनो को मिलाकर कुल सीटों का दो प्रतिशत भी नहीं है। जाहिर है कि भारतीय के कुल इंजीनियरिंग संस्थानों में निजी संस्थानों हिस्सेदारी ही ज्यादा है। लिहाजा, लगाम कसने की पहली प्राथमिकता निजी कालेज ही ज्यादा हैं।
ऐसा नहीं है कि सारे निजी इंजीनियरिंग काॅलेज स्तरहीन हैं। किंतु कई राज्यों का हाल कुछ ज्यादा ही बुरा है। दक्षिण के पांचों राज्यों से लेकर उत्तर के हरियाणा-उत्तर प्रदेश में तकनीकी शिक्षण की ये गिरावट साफ दिखाई दे रही है। इस बदहाली के चलते इंजीनियरिंग मंे प्रवेश लेना अब अत्यंत आसान हो गया है। लिहाजा, अयोग्य विद्यार्थी भी इस क्षेत्र में प्रवेश ले रहे हैं।
अन्ना विश्वविद्यालय ने एक अध्ययन में पाया कि पिछले साल इंजीनियरिंग के करीब 60 प्रतिशत विद्यार्थी पहले साल की परीक्षा पास नहीं कर पाये। ऐसे भी उदाहरण है कि बोर्ड के टाॅपर इंजीनियरिंग के पहले सेमेस्टर में फेल हो गये। वजह यह है कि इंटर बोर्ड परीक्षाओं जिन्हे पास नहीं होना चाहिए, उन्हे भी 80 प्रतिशत अंक दिए जा रहे हैं। मां-बाप को गलतफहमी हो जाती है कि उनका बच्चा पढने में होशियार है। लिहाजा, वे उसे कर्ज लेकर भी इंजीनियर बनाने का सपना पाल लेते हैं। इनमंे से कितनें फेल होने पर आत्महत्या करते हैं और कितने पास होने पर नौकरी न मिलने पर मां-बाप के पछतावे का कारण बनते हैं।
नियंत्रक संस्था का अभाव
जून, 2011 में एक पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में मेट्रोमैन श्रीधरन ने इस स्थिति के लिए निजी कालेजों की आई बाढ तथा उनकी गुणवान संचालन हेतु किसी कारगर नियंत्रक संस्था के अभाव को जिम्मेदार बताया था। उन्होने कहा कि जब मैने इंजीनियरिंग की पढाई शुरु की, तब मद्रास प्रेसीडेंसी में चार इंजीनियरिंग कालेज थे, आज दो हजार हैं। ज्यादातर व्यापार की दुकानें बन र्गइं हैं। लिहाजा, इंजीनियरिंग पढने वाले विद्यार्थी भी बाद में प्रबंधक बनकर दुकानों पर तेल-साबुन बेचने को मजबूर हैं। डीम्ड विश्वविद्यालयों को लेकर भी मेट्रोमैन ने चिंता व्यक्त की। मेट्रोमैन की चिंता और तर्क गलत नहीं। उत्तराखण्ड के ज्यादातर पालीटेक्निक संस्थान अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद से बगैर मान्यता ही चल रहे हैं। उच्च शिक्षा के हर क्षेत्र में निजी काॅलेजों को दाखिले के नाम पर मनमानी राशि वसूलने की जैसे छूट मिली हुई है। छात्रवृति के नाम पर उत्तर प्रदेश शासन द्वारा जारी राशि में काॅलेज प्रबंधन द्वारा किए जा रहे घोटालों के कई सामने आये ही हैं। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद भी जैसे मान्यता प्रमाणपत्र बांटने वाली संस्था बनकर रह गई है। जरूरी है कि परिषद अपनी चुप्पी तोङे और वास्तविक नियंत्रक की भूमिका निभाने के लिए आगे आये। भारत सरकार भी यदि चाहती है कि भातीय इंजीनियरिंग को विश्व स्तरीय इंजीनियरिंग बनाने की विषय-वस्तु कोरा नारा बनकर न रह जाये तो भूमिका निभाने के लिए आगे तो उसे भी आना पङेगा। वरना् तो दिवसों को मनाना अधूरा ही रहेगा और विश्वस्तरीय इंजीनियर बनाने का सपना भी।
सरकार से अपेक्षा
‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि यहां कोई गलती करता है, तो आप उसे कोर्ट में ले जा सकते हैं। लेकिन उसे उसके व्यवसाय विशेष से बाहर नहीं कर सकते।’ – मेट्रोमैन श्रीधरन का यह बयान तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में स्तर व समाधान तय करने की ओर सख्त कदम की मांग का इशारा है। यह कैसे संभव हो ? प्रशिक्षित शिक्षकों की आवक, जिज्ञासा व सम्मान कैसे सुनिश्चित हो ? सिर्फ मुनाफा खाने के लिए खङे किए गये इन निजी काॅलेजों में शिक्षा और शिक्षण की गुणवत्ता कैसे कायम हो ? इनके बेहिसाब मुनाफे पर लगाम कैसे लगे ? इंजीनियरिंग की पढाई कैसे नवाचारों के जन्म देने का मूल परिणाम लेकर आये ? ये सभी प्रश्न, भारतीय तकनीकी के समक्ष एक गंभीर चुनौती बनकर पेश हैं। लोगों को उम्मीद है कि नमो की नई सरकार की सख्त निगाह इस पर पङेगी। सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों की संख्या बढेगी। जरूरत हुई तो नये कानून बनेंगे। चार सालों में सब कुछ रटा-पढा देने की नकारा पद्धति हटेगी। भारतीय इंजीनियरिंग काॅलेज बंद दीवारों की बजाय, जमीनी हकीकत और जरूरत से रुबरु नवाचारों की खुली प्रयोगशाला बनकर उभरेंगे। देश में तकनीकी शिक्षा का स्तर सुधरेगा। तकनीकी बेरोजगारों की संख्या घटेगी और साथ-साथ तकनीकी निर्यात की हमारी बेबसी भी।
विश्वेश्वरैया का रास्ता भूल गए
1820 में मैसूर के कोलार जिले के एक संस्कृत शास्त्री. एक वै़द्य श्री मोक्षगुण्डम श्रीनिवास शास्त्री के घर प्रख्यात सिविल इंजीनियर श्री मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया का जन्म हुआ। हालांकि उन्होने तेल, साबुन, स्टील आदि की फैक्टरियां भी लगाईं। अंत में मैसूर के एक सम्मानित दीवान के रूप में सेवानिवृत हुए। किंतु दुनिया उन्हे उनकी फैक्टरियों या दीवानी के लिए नहीं, बल्कि उनके नवाचारों के लिए ही जानती है। उन्होने बांधों में रोके गये पानी से रिसाव रोकने के लिए स्टील के विशेष दरवाजों को ईजाद किया। दक्षिण भारत के अनुकूल सिंचाई की विशेष ब्लाक प्रणाली विकसित की। समुद्री कटाव से विशाखापत्तम बंदरगाह को बचाने की प्रणाली हो, हैदराबाद को बाढ से बचाने की प्रणाली अथवा सिधु नदी से सुक्कुर कस्बे को जलापूर्ति की प्रणाली… इन सभी नवाचारों पर श्री विश्वेश्वरैया का नाम दर्ज है। उनके द्वारा विकसित प्रणालियां कालांतर में नये भारत की सिंचाई, जलापूर्ति व पनबिजली उत्पादन का सहयोगी आधार बनीं। उनके इन नवाचारों की वजह से ही मरणोपरान्त 1955 में उन्हे भारत के सर्वोच्च सम्मान-भारत रत्न से नवाजा गया। उनके नवाचारों की वजह से ही उनके 155वें जन्म दिन-15 सितम्बर, 2014 को पूरे भारत ने इंजीनियरों के दिन के रूप में मनाया। इस वर्ष विषय वस्तु की ऊंचाई भी आसमान से कम ऊंची नहीं रखी – ’टू मेक इंडियन इंजीनियरिंग वल्र्ड क्लास’ यानी भारतीय इंजीनियरिंग को विश्वस्तरीय बनाना।
किंतु क्या इस विषय वस्तु में दर्ज सपना भारत में इंजीनियरिंग की पढाई और पढाई के बाद नवाचारों के मौजूदा परिदृश्य से कहीं आसपास भी दिखाई देता है ? अभियांत्रिकी दिवस पर भारतीय इंजीनियरों ने स्व श्री विश्वेश्वरैया और उनके नवाचारों को तो याद रखा, लेकिन क्या वे नवाचारों के उनके रास्ते को याद रख पा रहे हैं ? भारतीय इंजीनियरिंग के मद्देनजर इस समय बहस के लिए ये प्रश्न पर मौजूं भी हैं और जरूरी भी।
आईआईटी : नवाचारों से दूर, पर पैकेज के पास
वैज्ञानिक का काम होता है, नये-नये सिद्धांतों की खोज करना। इंजीनियर का काम होता है, उन सिद्धांतों को व्यवहार में उतारकर नवाचारों को जन्म देना। भारत की गरीब-गुरबा नागरिकों के लिए उपयोगी नवाचार रचने लायक इंजीनियरों को तैयार करने के सपने के साथ 1951 में भारत की पहली आई आई टी (खडगपुर) की स्थापना हुई। किंतु आज 63वें वर्ष के अंत में क्या हम कह सकते हैं कि आई आई टी ने वह मूल सपना पूरा किया, जिसके लिए इन्हे अस्तित्व में लाया गया ? आई आई टी से निकले कितने विद्यार्थी तकनीकी उत्पादों की दुनिया में नामी नवाचारों को जन्म दे पाये ? आई आई टी अथवा आई आई टी वि़द्यार्थियों द्वारा रचित कितने नवाचार ऐसे हैं, जो दुनिया के गरीब ग्रामीणों, किसानांे तथा परंपरागत कारीगरों को केन्द्र में रखकर रचे गये ? इनमें से कितने हैं, जो कि आज व्यवहार में हैं ? इन तमाम सवालों को लेकर आई आई टी समूह के संस्थानों पर सवालिया निशान हो सकता है। आई आई टी जैसे सरकारी संस्थान जनता की गाढी कमाई से प्राप्त करों से जुटाये सरकारी धन से चलते हैं। आपको आपत्ति हो सकती है कि ऐसे सरकारी तकनीकी संस्थानों और विद्यार्थियों… दोनो को चाहिए कि वे जनता की गाढी कमाई का उपयोग नागरिकों के लिए उपयोगी तकनीकी नवाचारों को जन्म देने में करें, न कि बङी तनख्वाह की नौकरी हासिल करने अथवा बङा कारोबार खङा करने में। आप कह सकते हैं कि नौकरी और पैकेज के बीच कहीं फंस गया है, अपेक्षित तकनीकी नवाचार। ऐसी आपत्तियों और सवालों के बावजूद, यह सच है कि नौकरी और कारोबार के मामले में आई आई टी से पढे विद्यार्थियों की काबिलियत को लेकर आज कोई सवाल नहीं है। हालांकि देश की सभी आई आई टी में इंजीनियरिंग की हर शाखा की पढाई के लिए देश की हर आई आई टी मशहूर नहीं हैं; खासकर, नई आई आई टी में पढाने वाले अच्छे शिक्षकों की कमी का सवाल सुनाई देता रहता है।

3 comments:

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  2. आपकी इस पोस्ट को शनिवार, २५ जुलाई, २०१५ की बुलेटिन - "लम्हे इंतज़ार के" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।

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  3. Hola a todos soy tan feliz que da un vistazo a mi gran testimonio de cómo conseguí mi préstamo deseo del Sr. José Luis quien es el maneger de José Luis préstamo Company, quiero usar rápidamente esta oportunidad para dejar que todo el mundo sepa de esto, Am D. Carlos Bulgheronic desde Buenos Aires Agentina, yo estaba en busca de un préstamo para iniciar mi propio negocio en apoyo de mi negocio de la agricultura, los gastos, así que se puso en línea en busca de préstamo cuando me encontré con algunos prestamistas que hacen trampa y estafado a mi poco dinero en ese proceso del tiempo se confundió i i ni siquiera sé qué más hacer, porque el poco dinero que tenía con mi fue llevado por esos bastardos fraudulentos que se hacen llamar los prestamistas de créditos real, así que un día fiel como yo estaba navegando a través de la Internet en busca de trabajo me encontré con algunos testimonios comentarios en el foro de una D. Carlos, y la señora María Lin en la forma en que reciben su préstamo de banco de la ciudad de la empresa e-mail: joseluisloans@gmail.com, así que me dije a mí mismo que debo dar a esto un juicio porque yo estaba tan asustado con respecto a lo que los otros prestamistas hicieron a mí, así que me fui por delante tomé su dirección de correo electrónico personal que se encontraba en esos comentarios en el foro así que entré en contacto con él para informarle de que yo estaba arbitrado a él por algunos clientes que recibieron su préstamo de su compañía, D. Carlos, y la señora María lin por eso, cuando oyó que estaba muy feliz por eso, por lo que mí que estoy en la compañía adecuada aseguró donde puedo recibir mi cantidad del préstamo deseo, dieron mí el formulario de solicitud de préstamo prestatario para presentar y devolver, lo hice todo eso, dado que toda mi información necesaria acerca de mí, así que me dieron los términos y condiciones de su compañía todo transcurrió sin problemas, sin perder tiempo, en no menos de 24 horas que estaba informó que mi préstamo suma válida de 9.000.000 de dólares ha sido registrado y aprobado por su junta de préstamo de fiduciario, así que en ese proceso del tiempo yo estaba tan feliz cuando me dijeron que debería enviarlos por la banca detalles, pero estaba poco escéptico de hacer por lo que le dije que tenemos confianza y creo que para este prestamista llamado Sr. Abraham les di cuenta bancaria por lo que es sorprendente que recibo y alerta de mi banco que mi cuenta ha sido acreditado con la suma de 9.000.000 dólares por el Sr. José Luis. Así que con urgencia enviarle un correo electrónico que tengo recibir mi préstamo con éxito, por lo que mis queridos hermanos y hermanas por ahí todavía en busca de compañía de préstamos genuina voy a avisarle que la amabilidad de ponerse en contacto con el Sr. José Luis con este mismo correo-e: joseluisloans@gmail.com y Yo sé que él también le ayudará con la cantidad del préstamo deseo bien, enviarlas por correo electrónico hoy en día y usted será feliz de haberlo hecho. D. Carlos Bulgheronic desde Buenos Aires Agentina

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